Monday, September 19, 2022

जनसंख्या नीति और सुशासन


वैष्विकरण के इस युग में जहां सु-जीवन और सु-षासन की प्राप्ति हेतु नित नये प्रयोग जारी हैं वहीं बढ़ती जनसंख्या ने नई तरह की विवेचना भी सत्ता और जनमानस के समक्ष खड़ी की है। जनसंख्या और सुषासन का गहरा सम्बंध है। सुषासन एक लोकप्रवर्धित अवधारणा है जिसके केन्द्र में जन सरोकार होता है। इसके निहित भाव में गांधी का सर्वोदय षामिल देखा जा सकता है। लोक सषक्तिकरण और जनसंख्या विस्फोट एक-दूसरे के विपरीत षब्द हैं। सुषासन लोक सषक्तिकरण का परिचायक है जबकि जनसंख्या विस्फोट समावेषी विकास के लिए चुनौती है। सुषासन उसी अनुपात में चाहिए जिस अनुपात में जनसंख्या है साथ ही समावेषी विकास का ढांचा और सतत् विकास की प्रक्रिया इस प्रारूप में हो कि समाज आदर्ष न सही व्यावहारिक रूप से सुव्यवस्थित और सु-जीवन के योग्य हो। इस सुव्यवस्था को प्राप्त करने में जनसंख्या नीति एक कारगर उपाय हो सकता है। यदि इसके गम्भीर पक्ष को देखें तो भारत में जनांककीय संक्रमण द्वितीय अवस्था में है। एक ओर जहां स्वास्थ्य सुविधाओं के विकंद्रीकरण के चलते मृत्यु दर में कमी आयी है तो वहीं दूसरी ओर जन्म दर में अपेक्षित कमी ला पाने में सफलता नहीं मिल पायी है। यह इस बात का संकेत है कि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी जनसंख्या वाला भारत षीघ्र चीन को पीछे छोड़ सकता है। विष्व जनसंख्या सम्भावना रिपोर्ट 2022 में इसकी मुनादी हो भी चुकी है। गौरतलब है कि 11 जुलाई को विष्व जनसंख्या दिवस मनाया जाता है। इस वर्श इसी की पूर्व संध्या पर संयुक्त राश्ट्र ने यह रिपोर्ट जारी की थी जिसमें अनुमान है कि 2022 के अंत तक चीन और भारत की जनसंख्या लगभग बराबरी के आस-पास होंगे और 2023 में भारत आबादी के मामले में चीन को पछाड़ देगा। आंकड़े यह भी दर्षातेे हैं कि 15 नवम्बर 2022 तक दुनिया 8 अरब की जनसंख्या वाले आंकड़े को छू लेगी जबकि 2030 तक यह 8.5 अरब हो जायेगी और 2050 तक यह आंकडा़ 9.7 अरब के साथ एक भारी-भरकम स्थिति को ग्रहण कर लेगा। संसाधन की दृश्टि से देखा जाये तो पृथ्वी संभवतः 10 अरब की आबादी को पोशण व भोजन उपलब्ध करा सकती है। इतना ही नहीं जनसंख्या का यह आंकड़ा 2080 तक 10.4 अरब की आबादी पर खड़ा दिखाई देगा। जाहिर है उक्त आंकड़े केवल हमें सचेत नहीं कर रहे हैं बल्कि ये चेताने का भी काम कर रहे हैं कि यदि जनसंख्या नियंत्रण को लेकर अब भी दूरी बनाये रखा गया तो सु-जीवन के लिए खतरे कहीं अधिक बड़े रूप में खड़े होंगे।
भारत में जनसंख्या नीति को लेकर कवायद स्वतंत्रता के बाद ही षुरू हो गया था मगर इसे समस्या नहीं मानने के चलते तवज्जो ही नहीं दिया गया। तीसरी पंचवर्शीय योजना के समय जनसंख्या वृद्धि में तेजी महसूस की गयी। जाहिर है ध्यान का क्षेत्र भी व्यापक हुआ और चैथी पंचवर्शीय योजना में जनसंख्या नीति प्राथमिकता में आ गयी। तत्पष्चात् पांचवीं योजना में आपात के दौर में 16 अप्रैल 1976 को राश्ट्रीय जनसंख्या नीति घोशित हुई। इसकी पटकथा उस दौर के हिसाब से कहीं अधिक दबावकारी थी। जनसंख्या नियंत्रण हेतु अनिवार्य बंध्याकरण का कानून बनाने का अधिकार दे दिया गया था और इसे लेकर पहल भी हुई। फिलहाल सरकार के पतन के साथ यह नीति भी छिन्न-भिन्न हो गयी। जब 1977 में पहली गैर कांग्रेसी सरकार आयी तब एक बार फिर नई जनसंख्या नीति फलक पर तैरने लगी। पुरानी से सीख लेते हुए इसमें अनिवार्यता को समाप्त करते हुए स्वेच्छा के सिद्धांत को महत्व दिया गया और परिवार नियोजन के बजाय परिवार कल्याण कार्यक्रम का रूप दिया गया। इस जनसंख्या नीति से क्या असर पड़ा यह प्रष्न आज भी उत्तर की तलाष में है। जाहिर है इसका कुछ खास प्रभाव देखने को नहीं मिलता। जून 1981 में राश्ट्रीय जनसंख्या नीति में संषोधन हुआ। फिलहाल कवायद परिवार नियोजन की जारी रही मगर देष की आबादी बढ़ती रही। 1951 में भारत की जनसंख्या 36 करोड़ थी और 2001 तक यह आंकड़ा एक अरब को पार कर गया। यह इस बात का संकेत था कि जनसंख्या नियंत्रण हेतु जो नीति को लेकर कोषिष पहले की गयी थी उस पर पहल मजबूत किया जाना चाहिए था। इस बात को समझना हितकर रहेगा कि जनसंख्या विस्फोट कई समस्याओं को जन्म देता है। जाहिर है बेरोज़गारी, खाद्य समस्या, कुपोशण, प्रति व्यक्ति निम्न आय, निर्धनता में वृद्धि, गरीबी में वृद्धि और महंगाई का उभरना स्वाभाविक है। इतना ही नहीं कृशि पर बोझ बढ़ेगा, बचत और पूंजी निर्माण में कमी, अपराध में वृद्धि, पलायन का बढ़ना और षहरी दबाव के साथ समस्याएं सजित होना भी लाज़मी है। भले ही 136 करोड़ के आबादी वाले मौजूदा भारत में यहां-वहां की बातें करके जनसंख्या विस्फोट को नजरअंदाज किया जाये मगर जनसंख्या के आइने में ठीक से झांका जाये तो उक्त समस्याएं मौजूदा वक्त में प्रसार ले चुकी हैं।
सुषासन को तब तकलीफ होती है जब आंकड़े गिनाए जाते हैं मगर जमीन पर उतरते नहीं। यदि बढ़ती जनसंख्या कई समस्याओं को हवा दे रही है तो यह सुषासन की गर्मी को ठण्ड भी कर सकता है। जो सत्ता और जनता के हित में बिलकुल नहीं है। बढ़ती जनसंख्या की स्थिति को देखते हुए फरवरी 2000 में नई जनसंख्या नीति की घोशणा की गयी जिसमें जीवन स्तर में गुणात्मक सुधार हेतु तीन उद्देष्य सुनिष्चित किये गये थे। बावजूद इसके 2011 की जनगणना में हर चैथा व्यक्ति अषिक्षित और इतना ही गरीबी रेखा के नीचे दर्ज था। सवाल दो हैं पहला यह कि भारत में जनसंख्या नीति को लेकर नैतिक सुधार किया जा रहा है यदि ऐसा है तो इसे जनसंख्या नियंत्रण के बजाय गुणवत्ता में सुधार की संज्ञा दी जा सकती है। दूसरा यह कि क्या वाकई में सरकारें परिवार नियोजन को लेकर संजीदा हैं। यदि ऐसा तो पानी सर के ऊपर पहले ही जा चुका है। भारत की जनसंख्या नीति अब केवल एक सरल मुद्दा नहीं है बल्कि यह धर्म और सम्प्रदाय में उलझने वाला एक दृश्टिकोण भी बन गया है। दिल्ली हाईकोर्ट में जनसंख्या नियंत्रण को लेकर एक याचिका दायर की गयी थी जिसमें इस दिषा में केन्द्र सरकार से कदम उठाने को लेकर निर्देष की मांग की गयी। अपील में यह था कि देष में अपराध, प्रदूशण बढ़ने और संसाधनों तथा नौकरियों में कमी का मूल कारण जनसंख्या विस्फोट है। दो टूक यह भी है कि ऐसी समस्याएं ही सुषासन की भी चुनौतियां हैं जहां पर लोक कल्याण ओर संवेदनषीलता आभाव में होगा वहां सुषासन खतरे में होगा। जनसंख्या विस्फोट सुदृढ़ विकास, सु-जीवन और लोक कल्याण को सभी तक पहुंचाने में कारगर तो नहीं हो सकता तो फिर सुषासन कैसे मजबूत होगा।
भारत दुनिया का ऐसा पहला देष है जो सबसे पहले 1952 में परिवार नियोजन को अपनाया। बावजूद इसके आज वह दुनिया की सबसे बड़ी आबादी बनने की कगार पर खड़ा है। यहां चीन की चर्चा लाज़मी है। चीन में एक बच्चा नीति की षुरूआत 1979 में हुई थी। तीन दषक के बाद एक बच्चा नीति पर इसे पुर्नविचार करना पड़ा। हालांकि चीन में जन्म दर में 2.81 फीसद से गिरावट साल 2000 आते-आते 1.51 हो गया था। मगर यहां युवाओं की संख्या घटी और बूढ़ों की संख्या बढ़ गयी। कई मानते हैं कि भारत में इस वजह को देखते हुए जनसंख्या नियंत्रण कानून की अभी जरूरत नहीं है। विभिन्न राज्यों में कई नीति-निर्माताओं ने जनसंख्या विस्फोट और जनसंख्या नियंत्रण की आवष्यकताओं को गलत बताया है। साल 2021 में उत्तर प्रदेष ने विष्व जनसंख्या दिवस के अवसर पर 2021-30 के लिए नई जनसंख्या नीति जारी की। जिसमें 2026 तक प्रति हजार जनसंख्या पर 2.1 और 2030 तक 1.9 तक लाने का लक्ष्य रखा गया था। फिलहाल भारत का सबसे बड़ी जनसंख्या वाला राज्य यूपी में मौजूदा प्रजनन दर 2.7 फीसद है। आंकड़ों को हकीकत में में बदलने के लिए केवल कागजी कार्यवाही से काम नहीं चलता। दो बच्चा नीति को लेेकर भी भारत में चर्चा जोरों पर रही है मगर इसके लिए न तो कदम उठाये गये हैं और न ही कहीं रखे गये है। हालंाकि असम में 2021 में दो बच्चे की नीति अपनाने का फैसला किया था। कई राज्यों में पंचायतों में चुनाव लड़ने वालों के लिए ऐसी योग्यता निर्धारित की गयी है।
संसाधन और सुषासन का भी गहरा नाता है और बढ़ रही जनसंख्या के लिए संसाधन को बड़ा करना सुषासन का ही दायित्व है। किसी राश्ट्र अथवा क्षेत्र की जनसंख्या और संसाधनो के मध्य घनिश्ठ सम्बंध पाया जाता है। भारत एक कृशि प्रधान देष है, खाद्य समाग्री को लेकर यहां चुनौतियां घटी तो हैं मगर खत्म नहीं हुई है। दरअसल देष की समस्याओं की मूल वजह जनसंख्या विस्फोट मानी जाती है। भारत का क्षेत्रफल विष्व के क्षेत्रफल का महज 2.4 फीसद है और आबादी 18 फीसद है। दक्षिण भारत के अधिकांष राज्यों ने जनसंख्या नियंत्रण पर सराहनीय कार्य किया है। केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेष में सर्वाधिक गिरावट है जबकि उत्तर प्रदेष, बिहार, राजस्थान, हरियाणा आदि में जनसंख्या दर उच्च बनी हुई है। हम दो हमारे दो का नारा भारत में चार दषक पहले गूंजा था मगर यह विज्ञापनों में ही सिमट कर रह गया। छोटा परिवार, सुखी परिवार की अवधारणा भी दषकों पुरानी है मगर इस सूत्र को भी लोग काफी हद तक अपनाने से पीछे हैं। छोट परिवार, बेहतर परवरिष और परिवेष प्रदान करता है और सभी के लिए खुषहाली और षांति का राह तैयार करता है। कनाडाई माॅडल में देखें तो सुषासन षांति और खुषहाली का ही परिचायक है जो सीमित जनसंख्या से ही सम्भव है। ऐसे में भले ही देष में दो बच्चा नीति या कोई सषक्त जनसंख्या नियंत्रण का उपाय न भी हो बावजूद इसके देष के नागरिकों के सार्थक सहयोग से सुखी परिवार और मजबूत देष को जमीन पर उतारा जा सकता है।

 दिनांक : 18/09/2022


डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

(वरिष्ठ  स्तम्भकार एवं प्रशासनिक चिंतक)

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ  पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

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