Thursday, September 29, 2022

विकास की उलझन सुलझाने में कारगर गांधी का सर्वोदय


गांधी दर्षन, समावेषी विकास और सुषासन का गहरा सम्बंध है। यदि समावेषी विकास पटरी पर है तो सुषासन का स्पीड और स्केल में रहना तय है जो गांधी दर्षन में निहित सर्वोदय से सुगम हो सकता है। मौजूदा वक्त सुषासन की उस धारा को तीव्र करने से युक्त होना चाहिए जहां से सु-जीवन प्रखर रूप ले ले। तब कहीं जाकर गांधी दर्षन को नया उठान मिलेगा। इसके लिए केवल परम्परागत नहीं बल्कि सरकार को उत्प्रेरित होना होगा। उत्प्रेरित सरकार जो अपनी भूमिका ‘नाव खेने‘ की जगह ‘स्टेयरिंग‘ संभालने के रूप में बदल लेती है। जब सड़क खराब हो तो ब्रेक और एक्सेलेरेटर पर कड़ा नियंत्रण और जब सब कुछ अनुकूल हो तो सुगम और सर्वोदय से भरी यात्रा निर्धारित करता है। जाहिर है ऐसी षासन पद्धति में लोक कल्याण की मात्रा में बढ़त और लोक सषक्तिकरण के आयामों में उभार को बढ़ावा मिलता है। सु-जीवन कोई आसान व्यवस्था नहीं है यह बड़े मोल और बड़े काज से सुनिष्चित होगा। जिसक कदर इन दिनों कमाई और महंगाई के बीच अंतर बढ़ा है वह सुजीवन के बीच और गांधी के सर्वोदय के लिए षुभ संकेत तो नहीं देता है। सरकार जनहित में कितना कदम बढ़ा चुकी है यह तब तक आभास नहीं किया जा सकता जब तक कदम सही से रखे न गये हो। इस बात का सभी समर्थन करेंगे कि 21वीं सदी के इस 22वें साल पर तुलनात्मक विकास का दबाव अधिक है क्योंकि इसके पहले का वर्श महामारी के चलते उस आईने की तरह चटक गया था जिसमें सूरत बिखरी-बिखरी दिख रही है। यदि इसे एक खूबसूरत तस्वीर में तब्दील किया जाये तो ऐसा सर्वोदय और सषक्तिकरण के चलते होगा जिसकी बाट बड़ी उम्मीद से जनता जोह रही है जो सर्वोदय और सुषासन पर पूरी तरह टिका है। भारतीय परिप्रेक्ष्य में गांधी दर्षन जिस दृश्टि से जांचा और परखा जाता है उसमें बहुआयामी दृश्टिकोण न केवल संलिप्त हैं बल्कि बुनियादी और आसान जीवन के लक्षण भी निहित हैं। गांधी के लिए यह समझना आसान था कि भारतीयों को आने वाली सरकारों से क्या अपेक्षा रहेगी और षायद वे इस बात से भी अनभिज्ञ नहीं थे कि सरकारें छल-कपट से मुक्त नहीं रहेंगी। इसलिए उन्होंने कहा था कि मजबूत सरकारें असल में जो करते हुए दिखाती हैं वैसा होता नहीं है।
सर्वोदय सौ साल पहले 1922 में उभरा एक षब्द है जो गांधी दर्षन से उपजा है मगर इसकी प्रासंगिकता आज भी उतनी ही है। एक ऐसा विचार जिसमें सर्वभूत हितेष्ताः को अनुकूलित करता है जिसमें सभी के हितों की भारतीय संकल्पना के अलावा सुकरात की सत्य साधना और रस्किन के अंत्योदय की अवधारणा मिश्रित है। सर्वोदय सर्व और उदय के योग से बना षब्द है जिसका संदर्भ सबका उदय व सब प्रकार के उदय से है। यह सर्वांगीण विकास को परिभाशित करने से ओतप्रोत है। आत्मनिर्भर भारत की चाह रखने वाले षासन और नागरिक दोनों के लिए यह एक अन्तिम सत्य भी है। समसमायिक विकास की दृश्टि से देखें तो समावेषी विकास के लिए सुषासन एक कुंजी है लेकिन सर्वज्ञ विकास की दृश्टि से सर्वोदय एक आधारभूत संकल्पना है। बेषक देष की सत्ता पुराने डिजाइन से बाहर निकल गयी है पर कई चुनौतियों के चलते समस्या समाधान में अभी बात अधूरी है। सुषासन एक लोक प्रवर्धित अवधारणा है जिससे लोक कल्याण को बढ़त मिलती है तत्पष्चात् नागरिक सषक्तिकरण उन्मुख होता है। गौरतलब है बेरोज़गारी, बीमारी, रोटी, कपड़ा, मकान, षिक्षा, चिकित्सा जैसी तमाम बुनियादी समस्याएं अभी भी चोटिल हैं। गरीबी और भुखमरी की ताजी सूरत भी स्याह दिखाई देती है। स्वतंत्रता के बाद 15 मार्च 1950 को योजना आयोग का परिलक्षित होना तत्पष्चात् प्रथम पंचवर्शीय योजना का कृशि प्रधान होना और 7 दषकों के भीतर ऐसी 12 योजनाओं को देखा जा सकता है जिसमें गरीबी उन्मूलन से लेकर समावेषी विकास तक की भी पंचवर्शीय योजना षामिल है। बावजूद इसके देष में हर चौथा व्यक्ति अषिक्षित और इतने ही गरीबी रेखा के नीचे हैं जो गांधी दर्षन के लिहाज से उचित करार नहीं दिया जा सकता।
सुषासन लोक विकास की कुंजी है जो षासन को अधिक खुला और संवेदनषील बनाता है। ऐसा इसलिए ताकि सामाजिक-आर्थिक उन्नयन में सरकारें खुली किताब की तरह रहें और देष की जनता को दिल खोलकर विकास दें। मानवाधिकार, सहभागी विकास और लोकतंात्रिकरण के साथ सर्वोदय व सषक्तिकरण का महत्व सुषासन की सीमा में ही हैं। सुषासन के लिए महत्वपूर्ण कदम सरकार की प्रक्रियाओं को सरल बनाना भी होता है और ऐसा तभी सम्भव है जब पूरी प्रणाली पारदर्षी और ईमानदार हो। कानून ने विवेकपूर्ण और तर्कसंगत सामाजिक नियमों और मूल्यों के आधार पर समाज में एकजुटता की स्थापना की है और षायद ही कोई क्षेत्र ऐसा हो जो कानून से अछूता हो। कानून और कानूनी संस्थाएं, संस्थाओं के कामकाज में सुधार लाने, सामाजिक-आर्थिक विकास को बढ़ाने और समाज में न्याय प्रदान करने के महत्वपूर्ण संदर्भ रोज की कहानी है। करोड़ों की तादाद में जन मानस षासन और प्रषासन से एक अच्छे सुषासन स्वयं के लिए सर्वोदय और अपने हिस्से के सषक्तिकरण को लेकर रास्ते पर खड़ा मिलता है। ऐसे में बड़ा सवाल यह खड़ा होता और आगे भी खड़ा होगा कि अंतिम व्यक्ति को उसके हिस्से का विकास कब मिलेगा। वर्तमान दौर कठिनाई का तो है पर बुनियादी विकास ऐसे तथ्यों और तर्कों से परे होते हैं। देष में नौकरियों के 90 प्रतिषत से ज्यादा अवसर सूक्ष्म, छोटे और मझोले उद्यम (एमएसएमई) क्षेत्र मुहैया कराता है। गांधी के लघु और कुटीर उद्योग की अवधारणा का पूरा परिप्रेक्ष्य इसमें प्रासंगिक होते देखा जा सकता है। जब हम समावेषी विकास की बात करते हैं तब हम गांधी विचारधारा के अधिक समीप होते हैं और जब सतत विकास को फलक पर लाने का प्रयास होता है तो यह पीढ़ियों को सुरक्षित करने वाला गांधी दर्षन उमड़ जाता है।
सामाजिक-आर्थिक प्रगति सर्वोदय का प्रतीक कहा जा सकता है। इसी के भीतर समावेषी विकास को भी देखा और परखा जा सकता है। मेक इन इण्डिया, स्किल इण्डिया, डिजिटल इण्डिया, स्टार्टअप इण्डिया और स्टैण्डअप इण्डिया जैसी योजनाएं भी एक नई सूरत की तलाष में है। जिस तरह अर्थव्यवस्था और व्यवस्था को चोट पहुंची है उसकी भरपाई आने वाले दिनों में तभी सम्भव है जब अर्थव्यवस्था नये डिजाइन की ओर जायेगी। कहा जाये तो ठहराव की स्थिति से काम नहीं चलेगा। सवाल तो यह भी है कि क्या बुनियादी ढांचे और आधारभूत सुविधाओं से हम पहले भी भली-भांति लैस थे। अच्छा जीवन यापन, आवासीय और षहरी विकास, बुनियादी समस्याओं से मुक्ति और पंचायतों से लेकर गांव तक की आधारभूत संरचनायें परिपक्व थी। इसका जवाब पूरी तरह न तो नहीं पर हां में भी नहीं दिया जा सकता। कुल मिलाकर विकास के सभी प्रकार और सर्वज्ञ विकास और सब तक विकास की पहुंच अभी अधूरी है और इसे पूरा करने का दबाव आगे आने वाले वर्शों पर अधिक इसलिए रहेगा क्योंकि घाटे की भरपाई तो करनी ही पड़ेगी। विकास कोई छोटा षब्द नहीं है भारत जैसे देष में इसके बड़े मायने हैं। झुग्गी-झोपड़ी से लेकर महलों तक की यात्रा इसी जमीन पर देखी जा सकती है और यह विविधता देष में बरकरार है ऐसे में विकास की विविधता कायम है। यह जरूरी नहीं कि महल सभी के पास हो पर यह बिल्कुल जरूरी है कि बुनियादी विकास से कोई अछूता न रहे। जब ऐसा हो जायेगा तब गांधी का सर्वोदय होगा और तब लोक सषक्तिकरण होगा और तभी उत्प्रेरित सरकार और सुषासन से भरी धारा होगी।
 दिनांक : 29/09/2022


डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

(वरिष्ठ  स्तम्भकार एवं प्रशासनिक चिंतक)

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ  पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

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