Monday, September 19, 2022

ब्रिटेन में नई सत्ता और भारत


ब्रिटेन को पछाड़ते हुए भारत दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। जाहिर है यह एक उपलब्धि है जो भविश्य की कई उम्मीदों को और ताकत देने का काम करेगी। अर्थषास्त्री जिम ओ नील ने भी लिखा है कि भारत जल्द ही विष्व को सबसे अधिक प्रभावित करने वाले देषों में से एक होगा। इसमें कोई दो राय नहीं कि जैसे-जैसे भारत की अर्थव्यवस्था बदलेगी इसकी राजनीतिक, सैन्य और सांस्कृतिक षक्ति के साथ वैष्विक प्रभाव में भी परिवर्तन आयेगा। षायद यही कारण है कि भारत को 21वीं सदी की महाषक्ति व विष्व गुरू के रूप में प्रचारित व प्रसारित किया जाता है। फिलहाल इसी परिमार्जित और परिवर्तित दुनिया में लिज ट्रस ब्रिटेन की नई प्रधानमंत्री चुनी गई। खास यह है कि भारतीय मूल के ऋशि सुनक को करीब 21 हजार वोटों से हराया। षुरूआती दिनों में ऋशि सुनक के प्रधानमंत्री बनने की सुगबुगाहट तेज थी मगर ट्रस टस से मस नहीं हुई और अन्ततः सत्ता हथियाने में कामयाब रहीं। नई प्रधानमंत्री ने अपने देष को इस बात का भरोसा दिलाया है कि आर्थिक नीतियों पर लोगों की नाराजगी तो दूर करेंगी ही साथ ही 2025 के आम चुनाव में कंजर्वेटिव पार्टी को जितायेंगी। भारत और ब्रिटेन दुनिया के अग्रणी और तेजी से बढ़ती आर्थिक षक्तियों में षुमार है। भारत की जीडीपी साढ़े तीन ट्रिलियन डाॅलर हो चुकी है जिसके चलते ब्रिटेन को पीछे छोड़ने में वह कामयाब रहा।
लिज़ ट्रस विदेष मंत्री रहने के दौरान भारत के प्रति सकारात्मक नज़रिया रखती रही हैं। यहां तक कि रूस-यूक्रेन युद्ध के दरमियान भी भारत को लेकर सख्त टिप्पणियों से परहेज़ किया। भारत-ब्रिटेन सम्बंधों को मजबूत करने समेत रक्षा, षिक्षा, व्यापार, पर्यावरण आदि के मामले में भी उनका दृश्टिकोण समर्थन वाला ही रहा है। वैसे इस बात को इंकार नहीं किया जा सकता कि ब्रिटेन में प्रधानमंत्री कोई भी हो भारत को नजरअंदाज नहीं कर सकता। लिज़ ट्रस भी इस बात को जानती हैं कि भारत तुलनात्मक उनसे भी बड़ी अर्थव्यवस्था है साथ ही निवेष और बाजार के लिए सर्वाधिक सुरक्षित और बड़ा स्थान है। भारत और ब्रिटेन के मध्य मजबूत ऐतिहासिक सम्बंधों के साथ-साथ आधुनिक और परिमार्जित कूटनीतिक सम्बंध भी देखे जा सकते हैं। साल 2004 में दोनों देषों के बीच द्विपक्षीय सम्बंधों में रणनीतिक साझेदारी ने विकास का स्वरूप लिया और यह निरंतर मजबूत अवस्था को बनाये रखा। इतना ही नहीं अमेरिका और फ्रांस जैसे देषों के साथ भी भारत का रणनीतिक सम्बंध कहीं अधिक भारयुक्त है। षेश यूरोप में भी भारत के साथ द्विपक्षीय सम्बंध विगत कुछ वर्शों में कहीं अधिक प्रगाढ़ हो गये हैं। स्केण्डिनेवियाई देषों के साथ भी भारत का सम्बंध तेजी लिए हुए है। यूरोप में व्यापार करने के लिए भारत ब्रिटेन को द्वार समझता है ऐसे में नई सरकार के साथ भारत की ओर से नई रणनीति और प्रासंगिक परिप्रेक्ष्य को ध्यान में रख कर गठजोड़ को बेजोड़ बनाने की कवायद रहेगी।
इस बात की भी सम्भावना है कि आर्थिक मोर्चे पर ब्रिटेन भारत की ओर देखना पसंद करेगा। लिज ट्रस कैबिनेट मंत्री के रूप में भारत की यात्रा कर चुकी हैं और वो मानती रही हैं कि भारत निवेष के लिए बड़ा और प्रमुख अवसर है। भारत के लिए ब्रिटेन एक महत्वपूर्ण आयातक देष है। ऐसे में भारत से होने वाले मुक्त बाजार समझौते पर लिज ट्रस षीघ्र सहमति दे सकती हैं। गौरतलब है कि भारत और ब्रिटेन के बीच तकरीबन 23 अरब पाउंड का सालाना व्यापार होता है और ब्रिटेन को यह उम्मीद है कि मुक्त व्यापार के जरिये इसे 2030 तक दोगुना किया जा सकता है। हिन्द प्रषांत क्षेत्र में बाजार हिस्सेदारी और रक्षा विशयों पर 2015 में दोनों देषों के बीच समझौते हुए हैं। ध्यानतव्य हो कि सम्बंधों को मजबूत करके ब्रिटेन हिन्द प्रषांत क्षेत्र की विकासषील अर्थव्यवस्था को अपना अवसर बना सकता है। इस क्षेत्र से लगे दुनिया के 48 देष के करीब 65 फीसदी आबादी रहती है। यहां के असीम खनिज संसाधनों पर चीन की नजर हमेषा रही है। कई देषों के बंदरगाहों पर कब्जा करना चीन की मानो सामरिक नीति रही हो। अमेरिका, आॅस्ट्रेलिया और जापान समेत भारत का रणनीतिक संगठन क्वाड चीन को नकेल कसने और दक्षिण चीन सागर में उसके एकाधिकार को कमजोर करने के लिए कदम बढ़ाया जा चुका है। बावजूद इसके वैष्विक पटल पर तमाम घटनाओं के बीच कुछ भी स्थिर नहीं रहता आर्थिक वर्चस्व और बाजार तक जाने की लड़ाई में कौन, किस हद तक चला जायेगा इसका अंदाजा लगाना सहज नहीं है।
विदित हो कि भारत और ब्रिटेन के बीच जो प्रमुख समझौते इस वर्श हुए हैं उनमें ब्रिटेन द्वारा नये लड़ाकू विमानों की प्रौद्योगिकी और नव वाहन प्रौद्योगिकी पर भारत के साथ सहयोग और सुरक्षा के मसले पर बदलाव लाने की प्रतिबद्धता पर जोर दिया गया है। तब के तत्कालीन ब्रिटिष प्रधानमंत्री ने द्विपक्षीय व्यापार को दोगुना करने का रोडमैप भी 2030 तक विकसित किया था। वास्तव में देखा जाये तो ब्रिटेन में सत्ता परिवर्तन का भारत पर तनिक मात्र भी नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा। दरअसल भारत की असल चिंता चीन है यूरोपीय और अमेरिकी देषों के साथ भारत के प्रगाढ़ सम्बंध चीन को संतुलित करने के काम आ सकते हैं। हालांकि यही बात आॅस्ट्रेलिया, जापान और दक्षिण कोरिया के संदर्भ में भी लागू होती है। भारत की दुखद समस्या यह है कि सीमा पर तनाव के बाद भी व्यापार को लेकर चीन पर निर्भरता कम नहीं हो रही। यदि कम हो भी रही है तो खत्म नहीं हो रही। हालांकि चीन से पूरी तरह व्यापार समाप्त करना संभव भी नहीं है। भारत इस असंतुलन से निपटना चाहता है और सबसे अच्छे उपायों में से मेक इन इण्डिया में ब्रिटिष निवेष को बढ़त देने का प्रयास करना। भारत के परिप्रेक्ष्य में ब्रिटेन की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। नई प्रधानमंत्री लिज़ ट्रस के लिए अपने देष को मजबूत करने को लेकर कई अवसर हैं। मगर इनका फायदा वे कैसे उठायेंगे इस पर विचार उन्हें ही करना है। बावजूद इसके दो टूक कहें तो 1990 के बाद पष्चिमी देषों के साथ भारत के जो रिष्ते बने आज वो परवान चढ़ रहे हैं जो आर्थिक विकास की दृश्टि से तो महत्वपूर्ण हैं ही, चीन को भी संतुलित करने के काम आ रहे हैं।

दिनांक : 8/09/2022


डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

(वरिष्ठ  स्तम्भकार एवं प्रशासनिक चिंतक)

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ  पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

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