Thursday, March 14, 2019

सुरक्षा परिषद पर चीन का पंजा


चीन की लोक कथाओं से लेकर हाॅलीवुड की फिल्मों तक उसे ड्रैगन के रूप में पेष किया गया है। भारत की एक पुरानी मान्यता यह भी है कि चीन एक प्रकार का बिल्ली का पंजा है जो भारत के विकास को रोकने के लिए उपयोग करता है। हालिया स्थिति यह है कि चीन संयुक्त राश्ट्र की सुरक्षा परिशद् में एक बार फिर अपनी पहचान के मुताबिक काम कर दिया है। सुरक्षा परिशद् के एक डिप्लोमैट ने दषकों से चली आ रही चीन की आदत को देखते हुए चेतावनी दिया है कि यदि चीन इस प्रस्ताव को रोकने की नीति जारी रखता है तो अन्य जिम्मेदार सदस्य सुरक्षा परिशद् में अन्य एक्षन लेने को मजबूर हो सकते हैं। गौरतलब है कि पुलवामा हमले का जिम्मेदार जैष-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को अन्तर्राश्ट्रीय आतंकवादी घोशित होने से चीन ने एक बार फिर बचा लिया। यह गिनती के लिहाज़ से चैथी बार है। गौरतलब है कि संयुक्त राश्ट्र घोशणा पत्र के रचनाकारों की मान्यता है कि अन्तर्राश्ट्रीय षान्ति और सुरक्षा के रख रखाव में पांच स्थायी सदस्यों की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। चीन की आदतों को देखते हुए यह कहीं से नहीं लगता कि वह अन्तर्राश्ट्रीय षान्ति की चिंता भी करता है। वीटो का उपयोग अपनी निजी महत्वाकांक्षा के फलस्वरूप बार-बार करने वाला चीन सुरक्षा परिशद् की प्रासंगिकता को ही खतरे में डाल रहा है। यह बात भी समझ के परे है कि अमेरिका, फ्रांस और इंग्लैण्ड द्वारा लाये गये प्रस्ताव पर चीन ने वीटो करके दुनिया को एक नई कूटनीति की ओर क्यों धकेल दिया है। चीन पाकिस्तान का साथ देकर और भारत से दुष्मनी बढ़ा कर किस संरचना का निर्माण करना चाहता है जबकि भारत पड़ोसी पहले के सिद्धांत पर आज भी डटा हुआ है। प्रधानमंत्री मोदी चार बार चीन जा चुके हैं और 14 बार चीनी राश्ट्रपति जिनपिंग से मुलाकात कर चुके हैं पर उपजाऊ नतीजे जहां जरूरी हैं वहां से आ नहीं रहे हैं। खास यह भी है कि मसूद अजहर को लेकर पाकिस्तान इस बार उदासीन बना रहा। पुलवामा घटना के बाद चीन की बयानबाजी भी नपी-तुली लगी। उम्मीद लगायी जा रही थी कि इस बार मसूद अजहर वैष्विक आतंकवादी घोशित हो जायेगा पर नतीजे सिफर रहे। 
संयुक्त राश्ट्र की सुरक्षा परिशद् में 15 सदस्य हैं जिसमें 5 स्थायी हैं। अमेरिका, रूस, इंग्लैण्ड, फ्रांस और चीन स्थायी सदस्यों में आते हैं इन्हें वीटो षक्ति प्राप्त है जिसका अर्थ है नकारात्मक मत व्यक्त करना। कोई भी सदस्य किसी प्रस्ताव पर अपनी वीटो षक्ति का इस्तेमाल कर उसे पारित होने से रोक सकता है। ऐसे में प्रस्ताव खारिज हो जाता है। गौरतलब है कि संयुक्त राश्ट्र सुरक्षा परिशद् की 1267 अलकायदा प्रतिबंध समिति के अन्तर्गत मसूद अजहर को प्रतिबन्धित करने का प्रस्ताव 27 फरवरी को रखा गया। गौरतलब है कि संयुक्त राश्ट्र के चार्टर में वीटो षक्ति का इस्तेमाल नहीं किया गया। व्यवस्था है कि प्रस्ताव पास कराने के लिए 15 में 9 सदस्यों के वोट मिलना जरूरी है जिसमें 5 स्थायी सदस्यों के वोट भी होने चाहिए। वीटो का उपयोग पहले भी होता रहा है पर अंतर्राश्ट्रीय आतंकवादी घोशित करने के मामले में चीन का दुस्साहस सभी में लिए दुविधा पैदा कर रहा है। इसके पहले मुम्बई हमले के मास्टर माइंड लखवी पर भी चीन 2015 में वीटो का प्रयोग कर चुका है। इतना ही नहीं 1972 से चीन दर्जन भर के आस-पास वीटो पावर का प्रयोग कर चुका है जिसमें से 6 बार आतंकियों को बचाने में प्रयोग किया है। सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस ने अभी तक केवल 2 बार वीटो का प्रयोग किया है। हालांकि सोवियत संघ रहते हुए ऐसा उसने 118 बार किया जो सर्वाधिक है। कई बार भारत में विरोधी प्रस्ताव पर सोवियत संघ ने वीटो किया है। 
सवाल उठता है कि चीन भारत के खिलाफ और पाकिस्तान के आतंकियों का पक्षधर क्यों है? वजह खंगाले तो नजर यहां टिकती है। एषिया में भारत के मुकाबले वन बेल्ट, वन रोड प्रोजेक्ट में चीन को पाकिस्तान की जरूरत है। मुस्लिम देषों और गुटनिरपेक्ष देषों के संगठन में चीन का साथ पाकिस्तान देता रहा है। चीन को भारत और अमेरिका की दोस्ती कतई बर्दाष्त नहीं है। इसलिए मसूद अजहर जैसे मुद्दे में भारत का विरोध करके अपनी चिढ़ को ठण्डा करता है। तिब्बती धर्म गुरू दलाई लामा के भारत में षरण को लेकर भी चीन तमतमाया रहता है। इसे मामले में भी वह अन्दर ही अन्दर चिढ़ा हुआ है। इतना ही नहीं आर्थिक स्पर्धा भी इसका एक प्रमुख कारण है। सीमा विवाद से लेकर दक्षिण एषिया में चीन की घुसपैठ पर भारत सतर्क रहता है। चीन चाहता है कि दक्षिण एषिया समेत हिन्द महासागर तक उसकी धौंस हो। इस मामले में वह सफल इसलिए नहीं हो सकता क्योंकि भारत उसको राह का रोड़ा लगता है। इन दिनों भारत की वैष्विक नीति भी कहीं अधिक परवान लिए हुए है और दुनिया की तेजी से आगे निकलती अर्थव्यवस्था है। इससे भी चीन के पेट में मरोड़ उठते हैं। यदि भारत, नेपाल, भूटान, बांग्लादेष, श्रीलंका, मालदीव सहित हिन्द महासागर में चीन के एकाधिकार को स्वीकार कर ले तब उसे मसूद अजहर दुनिया का सबसे बड़ा आतंवादी दिखेगा। गौरतलब है कि भारत लम्बे समय से सुरक्षा परिशद् का ध्यान अजहर मसूद पर प्रतिबन्ध लगाने को लेकर करता रहा है और चीन उसे बचाता रहा।
पुलवामा हमले के बाद संयुक्त राश्ट्र सुरक्षा परिशद् ने इस हमले की निंदा की थी। अमेरिका की चेतावनी के बाद भी चीन नहीं माना। संयुक्त राश्ट्र की प्रतिबंध समिति किसी संगठन या व्यक्ति पर प्रतिबंध लगाने के लिए आम सहमति से फैसला लेती है। चीन ने एक बार फिर अपना पुराना रंग दिखा दिया। सूचीबद्ध तरीके से देखें 2009, 2016, 2017 और अब 2019 में चीन अडंगा बना। यदि किसी पर प्रतिबंध लगता है तो संयुक्त राश्ट्र संघ के किसी भी सदस्य देष यात्रा पर रोक लग जाती है, उसकी चल-अचल सम्पत्ति जब्त कर ली जाती है। कोई देष उसकी मदद नहीं कर पाते, हथियार मुहैया नहीं करा पाता। यदि मसूद अजहर पर ऐसा प्रतिबंध लग पाता तो पाकिस्तान को भी मजबूरन उसकी गतिविधियों पर रोक लगानी पड़ती पर अब यह तो नासूर बन गया है। संसद, पठानकोट एयरबेस, उरी सैन्य षिविर, पुलवामा समेत जम्मू कष्मीर में कई जगह पर हमले का साजिषकत्र्ता है। गौरतलब है कि 1999 में कंधार विमान हाइजैक के बदले इसे छोड़ा गया था। फिलहाल सुरक्षा परिशद् की रडार पर आया मसूद अजहर बच गया है। सवाल यह भी उठता है कि सुरक्षा परिशद् में इस बात की गुंजाइष क्यों नहीं कि वीटो के लिए 2 स्थायी सदस्यों का मत होना चाहिए। दुविधा यह भी है कि नेहरू काल में जिस सुरक्षा परिशद् ने भारत को यह सदस्यता थाल में परोस कर मिल रही थी अब वही टेड़ी खीर हो गयी थी। चीन को स्थायी सदस्य बनाने में भारत की भूमिका है पर सदस्य होने का बेजा इस्तेमाल भारत के लिए ही कर रहा है। चीन बार-बार भारत को हाषिये पर धकेल रहा है और दुनिया यह समझ नहीं रही है कि अगर पाकिस्तान आतंक परस्त देष है तो चीन सीधे उनको सुरक्षा देकर इसी परस्ती का हिस्सा है। चीन कब सुधरेगा पता नहीं पर भारत प्रतिबंध के भरोसे नहीं रूक सकता। सम्भव है कि चाहे बालाकोट हो या बहावलपुर मसूद अजहर का खात्मा ही ठीक रहेगा। सुरक्षा परिशद् में भारत स्थायी सदस्य कैसे बनें कोई अनुकूल रास्ता नहीं दिख रहा है जबकि अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस समेत दुनिया के सैकड़ों देष भारत के पक्ष में है। 

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन  ऑफ  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज ऑफिस  के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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