Tuesday, March 26, 2019

72 हज़ार से 272 पर मास्टर स्ट्रोक

आर्थिक विश्लेषक और लेखक षंकर अय्यर ने अपनी पुस्तक आधार - अ बायोमैट्रिक हिस्ट्री आॅफ इण्डियास 12-डिजिट रिवाॅल्यूषन में लिखा है कि राहुल गांधी ने जब ‘बोल्सा फैमिलिया’ जैसी कल्याणकारी योजनाओं के बारे में सुना तो वे उनसे काफी प्रभावित थे। स्पश्ट है कि कांग्रेस अध्यक्ष के मन में न्यूनतम आय गारंटी योजना कहां से आयी। दरअसल बोल्सा फैमिलिया ब्राजील की एक स्कीम है जो 2003 में गरीब परिवारों को भत्ता देने के लिए षुरू किया गया था। इससे ब्राजील की गरीबी कम होने की बात कही गयी है। इस योजना के कारण ब्राजील के राश्ट्रपति रहे लूला डिसिल्वा को खूब लोकप्रियता भी मिली थी। इतना ही नहीं पुस्तक में यह भी जिक्र है कि दक्षिण अमेरिका के कई देषों जैसे मैक्सिको और कोलम्बिया में चल रहे कैष ट्रांसफर योजना को भी देख कर राहुल गांधी को लगा था कि ऐसी योजनाएं भारत में लागू हो सकती हैं। फिलहाल सत्ता को साधने की फिराक में राहुल गांधी ने बीते 25 मार्च को न्यूनतम आय गारंटी योजना अर्थात् न्याय को लेकर एक ऐसा मास्टर स्ट्रोक खेला जिससे सभी हैरत में पड़ गये। फिलहाल न्यूनतम आय गारंटी योजना के अन्तर्गत सालाना 72 हजार रूपये, 5 करोड़ परिवार (25 करोड़ लोग) को देने की घोशणा करके राहुल गांधी ने देष में एक नया आर्थिक विमर्ष खड़ा कर दिया। इस योजना का लाभ 12 हजार रूपए प्रतिमाह से कम कमाने वाले को ही मिलेगा। तथ्य यह भी है कि यदि किसी की आय 10 हजार रूपए है तो उसे 2 हजार रूपए प्रतिमाह मिलेगा और यदि आय 6 हजार रूपए प्रतिमाह है तो उसे 6 हजार और दिये जायेंगे जो अधिकतम देय राषि होगी। खास यह भी है कि यदि किसी की आय का कोई जरिया नहीं है तो उसे सालाना 72 हजार रूपए मिलेंगे। वित्त मंत्री अरूण जेटली ने इस योजना के प्रहार पर वार करते हुए इसे गरीबों के साथ छलावा बताया है। हालांकि इन दिनों चुनावी मुद्दे जोर पकड़े हुए हैं इस लिहाज़ से लोक-लुभावन राजनीति भी सम्भव है। सवाल है कि क्या योजना विषेश के माध्यम से मतदाताओं का मन राहुल गांधी अपने पक्ष में कर पायेंगे। 
गरीबी को लेकर इस योजना से उम्मीद जगती तो है पर घोशणा कागजी न रह जाये। दुनिया में यह सबसे अनोखी योजना कहलायेगी। पड़ताल बताती है कि विदेषों में इसे लेकर कईयों ने प्रयोग किया है। जर्मनी जैसे देष में लम्बे विचार के बाद इसे खारिज कर दिया गया। फिनलैण्ड में बेरोज़गारों को प्रतिमाह देय निर्धारित राषि की घोशणा की गयी लेकिन वह एक साल में ही बंद हो गयी। स्विट्जरलैण्ड और हंगरी में कुछ इसी प्रकार की योजना बनायी गयी जिस पर वहां राजनीतिक दलों ने मुद्दा बनाया हालांकि जनता ने ही उसे खारिज कर दिया। अमेरिका में परमानेंट फण्ड डिविडंट के अंतर्गत प्रत्येक व्यस्क को 2 हजार डाॅलर सालाना फिलहाल दिया जाता है। न्यूनतम आय योजना की घोशणा भले ही राहुल गांधी ने किया हो पर मोदी सरकार ने इसे पहली बार यूनिवर्सल बेसिक इनकम नाम से 2016-2017 के आर्थिक सर्वेक्षण में परिकल्पना की थी। जिसे लेकर कई पहलुओं पर विचार हुआ पर लागू नहीं कर पाया गया। हकीकत यह है कि इस तरह की योजनाएं सृजित तो कर ली जाती हैं पर तमाम पहलुओं पर जब आर्थिक सोच विकसित होती है तो चुनावी जुमले सिद्ध हो जाते हैं। भारत में कभी भी ऐसा समय नहीं रहा जब समाज में गरीबी का पूर्णतः आभाव रहा हो। रही बात गरीबी उन्मूलन की तो इतिहास के पन्नों को उलटें तो यह चुनौती बरसों से आंख-मिचोली खेलती रही है। पांचवीं पंचवर्शीय योजना (1974-79) गरीबी उन्मूलन की दिषा में देष में उठाया गया बड़ा दीर्घकालिक कार्यक्रम था तब दौर कांग्रेसी सरकार का ही था। 1989 की लकड़ावाला कमेटी की रिपोर्ट को देखें तो स्पश्ट था कि ग्रामीण क्षेत्रों में 2400 कैलोरी और षहरी क्षेत्रों में 2100 कैलोरी जुटाने वाला गरीब नहीं होगा। तब उस समय भारत की गरीबी 36 फीसदी से अधिक हुआ करती थी। एक दषक बाद यह आंकड़ा 26 फीसद हो गया। तत्पष्चात् राजनीतिक नोंकझोंक के बीच आंकड़ा 21 प्रतिषत कर दिया गया। विष्व बैंक 2015 की रिपोर्ट में यह कहा गया था कि 2030 तक दुनिया से ही गरीबी का सफाया हो सकता है। रिपोर्ट में यह भी इंगित था कि भारत में गरीबी कम हो रही है। 
राहुल गांधी की योजना से सम्भव है कि अगली सरकार यदि उनकी बनती है तो भारत में गरीबी नहीं रहेगी। नीति आयोग के वाईस चेयरमैन का कहना है कि इस चुनावी घोशणा पर यदि अमल होता है तो काम नहीं करने के लिए लोगों को प्रोत्साहन मिलेगा। गौरतलब है कि फरवरी 2006 में डाॅ0 मनमोहन सिंह के नेतृत्व में गांव की गरीबी दूर करने के लिए मनरेगा योजना लाया गया था। इसके पहले 1991 के उदारीकरण के बाद से 8वीं पंचवर्शीय (1992-97) समावेषी विकास को प्रमुखता दी गयी। भारत में गरीबी बहुत व्यापक है। गरीबी को लेकर राजनीति और विवाद दोनों हमेषा यहां रहे हैं। आरोप तो यह भी रहा है कि योजना आयोग की ओर से निर्धारित किये गये आंकड़े भ्रामक रहे हैं। माना जाता है कि आयोग का मकसद गरीबों की संख्या को घटाना है जाहिर है ऐसा करने से कम लोगों को सरकारी कल्याणकारी योजनाओं का फायदा देना पड़ता है। हालांकि अब यह आयोग ही अस्तित्व में नहीं है। विष्व बैंक ने पहले ही आगाह किया था कि मोदी सरकार के लिए गरीबी बड़ी चुनौती रहेगी। सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार ने गरीबी के बोझ को कम करने की कई योजनाएं चलायी। प्रधानमंत्री जनधन योजना, बीमा योजना, कृशि योजनाएं, स्वास्थ योजना व कई ग्रामीण योजनाएं सहित दर्जनों कार्यक्रम देने का प्रयास किया पर सफलता दर क्या है यह कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। कांग्रेस यदि सत्ता में आती है तो देष के 5 करोड़ गरीब परिवारों की आमदनी 72 हजार करोड़ रूपए सालाना हो जायेगी। स्पश्ट है कि प्रतिमाह 6 हजार रूपए की कमाई इन परिवारों की निष्चित रूप से होने लगेगी पर इससे आर्थिक बोझ कहां, कितना, कैसे पड़ेगा और वह कैसे संभलेगा इस पर कोई विस्तृत ब्यौरा राहुल गांधी ने नहीं दिया है। इस हिसाब से यदि उक्त राषि को अंकगणितीय दृश्टि से देखें तो यह कुल 3 लाख 60 हजार करोड़ रूपए होता है।  बीते 1 फरवरी को जो बजट पेष किया गया था वह करीब 28 लाख करोड़ रूपए का था जिसकी तुलना में यह भारी-भरकम राषि कही जा सकती है। मौजूदा समय में राजकोशीय घाटा 7 लाख करोड़ रूपए से अधिक का है। जाहिर है कि सभी योजनाओं के साथ न्यूनतम आय गारंटी योजना को धरातल पर उतारा जायेगा तो यह राजकोशीय घाटा साढ़े दस लाख करोड़ रूपए से अधिक का हो जायेगा। माना यदि राजकोशीय घाटा यथावत रहता है तो सवाल है कि इतने बड़ी रकम का प्रबंध कैसे होगा। या फिर पहले से चल रही योजनाओं की व्यापक स्तर पर कटौती होगी।
फिलहाल लोकसभा चुनाव 2019 से ठीक पहले कांग्रेस ने बड़ा चुनावी वायदा कर दिया है पर विषेशज्ञ मानते हैं कि यह योजना अमल में आती है तो अर्थव्यवस्था को पटरी से उतार देगी। यह देष के राजकोशीय संतुलन को ध्वस्त कर देगा और महंगायी बेकाबू हो जायेगी। आरबीआई की एक रिपोर्ट के अनुसार राजकोशीय घाटे में एक फीसद की वृद्धि से मुद्रास्फीति में आधा फीसद की बढ़ोत्तरी होती है। स्थिति जोखिम से भरी हुई है पर राहुल गांधी केवल चुनाव जीतने के लिए ऐसा क्यों करेंगे। राजस्थान, मध्यप्रदेष और छत्तीसगढ़ में किसानों के कर्ज माफी के वायदे के चलते कांग्रेस ने सत्ता हथिया ली थी। अब न्यूनतम आय योजना को सामने रख कर कांग्रेस बड़ी चाल चल चुकी है। भले ही राहुल गांधी परिपक्व न हों पर कांग्रेस को सत्ता चलाने का 5 दषक से अधिक का अनुभव है। वायदे पर कितने खरे उतरेंगे पता नहीं पर इस मास्टर स्ट्रोक ने विरोधियों को बेचैन जरूर कर दिया है। 

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज ऑफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
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