Wednesday, December 5, 2018

दक्षिण एशिया में द्वंद के बीच शांति की पहल

अब परिस्थितियां बदल चुकी हैं और अनिवार्यताओं की परिभाषा अलग हो चुकी है इसलिए नीतियों में फेरबदल भी अनिवार्य हो चली है। दुनिया में चाहे उत्तर-उत्तर का संवाद हो या दक्षिण-दक्षिण का या फिर उत्तर-दक्षिण का ही संवाद क्यों न हो सभी देष अपने हिस्से के राजनीतिक और आर्थिक विकास हासिल करना चाहते हैं साथ ही द्वन्द्व के बजाय सहयोग की भी अपेक्षा रखते हैं। दुनिया कई समूहों में बंटी है पर संयुक्त राश्ट्र एक ऐसा संगठन है जहां सभी का नाम दर्ज है। वैष्विक मंचों पर विकसित एवं विकासषील देष के प्रतिनिधि अपने हितों को पोशित करने के उद्देष्य से चतुर और कुटिल चाल भी चलते रहते हैं। अमेरिका जैसे देष कूटनीतिक और आर्थिक तौर पर सबल होने के कारण न केवल दूसरे की मदद करते हैं बल्कि बढ़े हुए मात्रा में प्रभुत्व भी स्थापित करते हैं। दो टूक यह भी है चाहे अफगानिस्तान में षान्ति बहाली की बात हो या फिर दक्षिण एषिया में स्थिरता की बात हो अमेरिका प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष प्रभाव छोड़ता रहता है। दक्षिण एषिया में भारत बड़ा और विकसित देष है मगर पड़ोसियों से परेषान है। मुख्यतः सीमा विवाद को लेकर चीन से तो आतंकवाद के मामले में पाकिस्तान से। भारतीय उपमहाद्वीप में षान्ति प्रयासों के लिए हमेषा से प्रयास होता रहा है। यही प्रयास इन दिनों प्रधानमंत्री मोदी कर रहे हैं। इनके प्रयासों की तारीफ करते हुए पेंटागन में अमेरिकी रक्षा मंत्री जिम मैटिस ने पाकिस्तान पर निषाना साधा है। उनका कहना है कि अफगानिस्तान में षान्ति स्थापित करने के लिए 40 साल का समय काफी था लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। ऐसे में अफगानिस्तान में लोगों की सुरक्षा, प्रतिबद्धता के लिए अमेरिका उन सभी का समर्थन करता है जिनकी कोषिषों की बदौलत षान्ति बहाली आसान हुई। इतना ही नहीं वह दक्षिण एषिया में षान्ति बनाये रखने के लिए मोदी, संयुक्त राश्ट्र अन्य लोगों के प्रयासों का समर्थन करने के लिए पास्तिान को कहा है। स्पश्ट है कि दक्षिण एषिया में षान्ति प्रयासों का समर्थन करने का फरमान अमेरिका ने पाकिस्तान को सुना दिया है। 
दक्षिण एषिया की नीति के संदर्भ में अमेरिका ने भारत को पहले ही इसी साल फरवरी में अहम साथी बता चुका है। उसी दौरान कहा था कि भारत-अमेरिका के सम्बंध बहुआयामी हैं और अनेक मोर्चे पर वांषिंगटन को नई दिल्ली से मदद मिली है। अफगानिस्तान में षान्ति और सुरक्षा के लिए भारत के प्रयासों की ट्रंप प्रषासन पहले भी सराहना कर चुका है। गौरतलब है अफगानिस्तान के विकास के लिए भारत ने बड़े पैमाने पर न केवल वहां निवेष किया है बल्कि सुरक्षा बलों को समय-समय पर भारतीय सैन्य विभाग ने प्रषिक्षण भी दिया है। इसके अलावा रक्षा के लिहाज़ से 2016 में भारत द्वारा अफगानिस्तान का 4 एमआई-35 विमान भी भेंट किया जा चुका है। इन सबको देखते हुए अमेरिका भारत को अपना भरोसेमंद साथी मानता है साथ ही दक्षिण एषिया में सम्पर्क बेहतर बनाने के लिए नई पहल महसूस करता है। जिस हेतु पाकिस्तान का इस दिषा में समर्थन चाहता है। एक प्रकार से पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान को यह अल्टीमेटम दी है कि अफगानिस्तान के साथ सहयोग करने पर ही अमेरिका की दृश्टि में उस पर भरोसा बढ़ेगा। गौरतलब है कि अमेरिकी राश्ट्रपति ट्रंप पाकिस्तान में आतंकी रवैये को देखते हुए कई सख्त कदम उठा चुके हैं जिसमें करोड़ों की फण्डिंग अमेरिका ने कई किस्तों में फिलहाल रोके हुए है जिसका नतीजा यह है कि पाकिस्तान आर्थिक तौर पर काफी टूट रहा है। अभी पिछले माह ही ट्रंप ने कहा था कि पाकिस्तान ने आतंक के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है। साफ है कि यदि अफगानिस्तान में युद्ध खत्म करना है तो पाकिस्तान को तालिबान के साथ षान्ति वार्ता में अहम भूमिका निभानी होगी। ऐसी इच्छा अमेरिका रखता है पर दुःखद यह है कि आतंकी संगठनों के दबाव व आईएसआई तथा सेना के आगे इमरान खान षायद ही ऐसा कुछ कर पायेंगे। षान्ति बहाली में यदि अमेरिका के मुताबिक इमरान खान मोदी का साथ देते हैं तो इस्लामाबाद में उनके लिए विरोध पैदा हो सकता है और सत्ता चलाना कठिन भी होगा। यदि पाकिस्तान इस दिषा में पहल नहीं करता है तो अमेरिका की नजरों में वह केवल आतंकी देष बना रहेगा और आर्थिक तौर पर मदद की गुंजाइष खत्म रहेगी। उक्त से यह लग रहा है कि मौजूदा पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान कोई भी रास्ता अपनाये उन्हें कठिनाई से जूझना ही पड़ेगा।
पड़ताल बताती है कि दक्षिण एषिया के राश्ट्रों के बीच सहयोग और द्वन्द्व का असर मिलजुला हमेषा से रहा है। इन राश्ट्रों ने मिलकर सहयोग करने की दिषा में सार्क, बिमस्टेक, बीसीआईएम, बीबीआईएम, हिमतक्षेप समेत कई संगठन बनाये पर सभी उद्देष्य पर खरे उतरे हैं कहना कठिन है। दक्षिण एषिया का सबसे बड़ा संगठन सार्क में अफगानिस्तान समेत 8 देष आते हैं जो सामाजिक-आर्थिक सहयोग करने के लिए जाने जाते हैं मगर क्या ऐसा हो रहा। सहयोग तो छोड़िये पाकिस्तान जैसे देष अपनी बर्बरता से दक्षिण एषिया को अषान्ति के कगार पर धकेल दिया। गौरतलब है कि साल 2016 के सितम्बर में जब उरी में भारतीय सेना षिविर पर आत्मघाती हमले हुए जिसमें 17 भारतीय सैनिक षहीद और 19 घायल हुए थे। इस घटना के पीछे पाकिस्तान का हाथ था और उसी साल 16-17 नवम्बर को 19वां सार्क सम्मेलन इस्लामाबाद में होना था जाहिर है भारत के लिए उरी की घटना बहुत बड़ा झटका था यह न केवल भारत के प्रभुता पर प्रहार था बल्कि दक्षिण एषिया के लिए भी अषान्ति का प्रतीक था। ऐसे में भारत ने इस्लामाबाद सार्क बैठक का बहिश्कार किया तभी से यह अनिष्चित स्थिति में चला गया है। कटु सत्य यह है कि पाकिस्तान की गलतियां दक्षिण एषिया के सभी देषों को प्रभावित कर रही हैं। चीन व्यापार के मामले में भारत का सबसे बड़ा पड़ोसी है और सीमा विवाद के मामले में भी सबसे बड़ा पड़ोसी है। नेपाल, भूटान, बांग्लादेष, श्रीलंका, मालदीव और पाकिस्तान पर चीन का आर्थिक व कूटनीतिक प्रभुत्व निरंतर जारी रहता है। चीन के कारण भी दक्षिण एषिया में द्विपक्षीय सम्बंध न केवल प्रभावित होते हैं बल्कि संदेह भी आपस में गहरा हो जाता है। पाकिस्तान के मामले में चीन का रवैया दुनिया से छिपा नहीं है। भूटान और नेपाल के मामले में तो वह भारत से हमेषा प्रतिस्पर्धा करता रहता है। कुछ ऐसा ही रवैया अन्य पड़ोसियों के कारण भी देखा जा सकता है। 
सबके बावजूद क्या पाकिस्तान से षान्ति बहाली की अमेरिका की उम्मीद पूरी होगी। क्या इमरान खान अफगानिस्तान में षान्ति बहाली में कोई ठोस कदम उठा सकते हैं। क्या अपने देष के भीतर व्याप्त आतंकी संगठनों को खत्म करके अमेरिका से रिष्ता सुधार सकते हैं या फिर सीमा पर गोलाबारी रूकवा कर षान्ति प्रक्रिया के लिए भारत के साथ गोलमेज सम्मेलन कर सकते हैं। इमरान भी कह चुके हैं कि युद्ध से कुछ नहीं हासिल होगा और भारत के गृह मंत्री राजनाथ सिंह भी कह रहे हैं कि उनके देष का आतंक खत्म करने में वो मदद कर सकते हैं। यह समझना बहुत मुष्किल है कि जिस देष की आर्थिक हालत इतनी खराब हो, विकास पटरी से उतर चुका हो और चीन की आर्थिक गुलामी झेल रहा हो उसे षान्ति बहाली का रास्ता बेहतर क्यों नहीं लग रहा है। इमरान भी भली-भांति जानते हैं कि अफगानिस्तान में षान्ति बहाली भारत के लिए बेहतर रास्ता बन जायेगा और मध्य एषियाई देषों से भारत का बाजार और व्यापार इससे न केवल बढ़ेगा बल्कि नषे की आने वाली खेप भी रूक जायेगी। ऐसे में भारत अमन-चैन की ओर अधिक होगा जो पाक के गले नहीं उतर सकता। मगर अमेरिका से दुष्मनी और उसकी डांट, धौंस साथ ही आतंकियों, वहां की सेना और आईएसआई के इषारे पर नाचना षायद उनको पसंद रहेगा। अमेरिका ने पाकिस्तान के लिए जो बोला वह सौ फीसदी सही है और यह पाकिस्तान के लिए अवसर भी है कि अपने अंक बढ़ाते हुए दक्षिण एषिया में षान्ति स्थापित करने में आगे आये।

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
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