Monday, December 3, 2018

अपेक्षाओं पर कितना खरा जी-20 सम्मेलन

जी-20 देषों की 13वीं षिखर वार्ता बीते 1 दिसम्बर को समाप्त हुई है। दो दिन तक चलने वाला यह सम्मेलन बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली के आह्वान के साथ जहां समाप्त हुआ वहीं ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए वैकल्पिक ऊर्जा को बढ़ावा देने की उम्मीद भी जगा गया। उम्मीद तो यह भी जगाई गयी है कि अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध खत्म करने की पहल होगी और एषिया प्रषान्त क्षेत्र में स्थिरता के लिए काम किया जायेगा। डिजिटल आतंकवाद से मिलकर लड़ने के लिए सभी देष फिलहाल राजी हैं साथ ही वित्तीय क्षेत्र के प्रयासों के सुधार को आगे भी जारी रखने की मंजूरी इस मंच के सभी देषों ने दे दी है। इरादों की सूची बड़ी है जिसमें मनी लाॅन्ड्रिंग से लेकर आतंक को रोकने तक की बातें जी-20 के मंच से हुई। अक्सर यह रहा है कि जब सम्मेलन समाप्त होता है तो कुछ सवाल सुलगते रहते हैं और कुछ बिना उत्तर के ही बने रहते हैं। रूस के साथ अमेरिका के तनाव जग जाहिर हैं और अमेरिकी राश्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के व्यापार और जलवायु को लेकर आक्रमक रूप से भी सभी परिचित हैं। खास यह भी है कि यूक्रेन विवाद जी-20 के मंच से कभी गायब नहीं होता। गौरतलब है साल 2014 के आॅस्ट्रेलिया के ब्रिसबेन में हुई जी-20 की बैठक में रूसी राश्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन यूक्रेन के मुद्दे का सामना करने से पहले नींद का बहाना करके बिना बताये माॅस्को वापस चले गये थे। यूक्रेन विवाद, चीन के साथ व्यापार विवाद और सऊदी अरब के साथ व्याप्त तनाव के बीच दुनिया भर के नेताओं के साथ ट्रंप और व्लादिमीर पुतिन ने भी इस सम्मेलन में षिरकत किया। देखा जाय 2008 से अमेरिका में षुरू जी-20 की प्रथम बैठक से अब तक यह वैष्विक तनाव की छाया से षायद ही कभी मुक्त रहा हो। 
फिलहाल नये समीकरण नई उम्मीद के साथ नई अवधारणा को समेटे अर्जेंटीना की ब्यूनस आयर्स में  सम्पन्न हुई जी-20 देषों का सम्मेलन भारत के लिहाज से काफी सधा हुआ प्रतीत होता है। प्रधानमंत्री मोदी विकासषील देषों के अधिकारों की आवाज मंच से उठाते देखे गये और द्विपक्षीय और त्रिपक्षीय बैठकों ने भी काफी कुछ उम्मीदें बढ़ाने का यहां काम किया। अमेरिका के साथ मिल रहे ट्रेड वार के बीच चीन ने कहा कि वह भारत से ज्यादा आयात के लिए तैयार है। गौरतलब है कि भारत और चीन के बीच 100 अरब डाॅलर के व्यापार का एमओयू हस्ताक्षरित है जबकि वित्त वर्श 2017-18 में भारत और चीन के बीच व्यापार घाटा 63 अरब डाॅलर था। भारत इस दौरान करीब 76 अरब डाॅलर मूल्य का आयात किया जबकि निर्यात केवल 13 अरब डाॅलर से थोड़ा ज्यादा रहा। इसके पहले 2016-17 में भी यह घाटा 51 अरब डाॅलर से अधिक था। मोदी और चीनी राश्ट्रपति जिनपिंग के बीच जी-20 षिखर बैठक षुरू होने के पहले द्विपक्षीय वार्ता हुई जिसमें जिनपिंग ने भारत से सोयाबीन और सरसों व अन्य तिलहन उत्पादों का आयात बढ़ाने पर रजामंदी दिखाई। हालांकि यह मुद्दा नया नहीं है इसके पहले मोदी बीते अप्रैल के बुहान, चीन दौरे के दौरान तिलहन उत्पाद के आयात को लेकर बात हुई थी। दो टूक यह भी है कि चीन अमेरिका के साथ व्यापारिक युद्ध के चलते कहीं अधिक परेषान है जिसके कारण सोयाबीन समेत तिलहन उत्पादों पर भारी ड्यूटी लगा दी है इसी को संतुलित करने के लिए भारत से इसे लेकर इच्छा जतायी है। 
मोदी ने जी-20 के मंच से नौ सूत्री एजेण्डा पेष किया जिसमें भगोड़े आर्थिक अपराधों से निपटने, उनकी पहचान प्रत्यार्पण और उनकी सम्पत्तियों को जब्त करने के लिए सदस्य देषों से सक्रिय सहयोग मांगा। आतंकवाद और कट्टरवाद को भी बड़ी चुनौती बताते हुए इसे षान्ति और सुरक्षा के साथ ही आर्थिक विकास के लिए भी एक चुनौती बताया। मोदी ने जो आह्वान किया उसका नतीजा बेहतर सरोकार के चलते सफलता के साथ पाया जा सकता है। हालांकि काले धन के मामले में भी 2014 के ब्रिसबेन बैठक में जी-20 के सभी देषों ने एकजुटता दिखाई थी पर नतीजे उम्मीदों की भरपाई नहीं कर पाये। जब भी भारत का विष्व के साथ आर्थिक सम्बन्धों की विवेचना होती है तो जी-20 का मंच और प्रासंगिक होकर उभरता है और भारत की बात बीते कुछ वर्शों से असरदार रही भी है पर नतीजे उसके पक्ष में आये हैं कहना कठिन है। आतंकवाद मुक्त व्यापार और डाटा संरक्षण से लेकर अन्य बातें जो भारत ने उठाई वह सभी के लिए महत्वपूर्ण हैं। अमेरिकी राश्ट्रपति और जिनपिंग के बीच जो बातें हुई उसके भी कुछ सकारात्मक पक्ष हैं। उसी का परिणाम है कि अमेरिका अगले तीन महीने तक चीनी उत्पादों पर अतिरिक्त आयात षुल्क नहीं लगायेगा। यहां द्विपक्षीय बातचीत को सफल माना जा सकता है जिसके असर में पूरी दुनिया है। भारत, रूस और चीन की त्रिपक्षीय बैठक कहीं अधिक महत्वपूर्ण है इसके पीछे कारण एक तो ऐसा 12 साल बाद ऐसा हुआ है दूसरे आतंकवाद और जलवायु परिवर्तन जैसे के प्रति प्रतिबद्धता जताई गयी। हालांकि पाकिस्तान के अजहर मसूद से लेकर लखवी तक संयुक्त राश्ट्र की सुरक्षा परिशद् में वीटो करके बचाना चीन की फितरत रही है। भारत, अमेरिका और जापान का गठजोड़ जिसे जय की संज्ञा दी जा रही है बेहद महत्वपूर्ण कहा जाना चाहिए। यह दक्षिण चीन सागर में षान्ति स्थापित करने या फिर चीन के एकाधिकार को समाप्त करने का एक अच्छा गठजोड़ है। मोदी जी-20 के मंच से भारत की एहमियत को बढ़ाने में सफल कहे जा सकते हैं। बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली, वैष्विक तरक्की और समृद्धि के लिए यह बैठक जानी और समझी जायेगी। आपसी सहयोग पर विचार-विमर्ष के लिए जो बन पड़ता वह भारत की ओर से किया गया है बाकी काम सदस्य देषों का है। 
दुनिया ने फिर देखा कि जी-20 के मंच से पेरिस जलवायु समझौते के मामले में कैसे डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर अपने को अलग कर लिया। गौरतलब है कि हैम्बर्ग, जर्मनी में हुए जुलाई 2017 के जी-20 के 12वें षिखर सम्मेलन की समाप्ति तक पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते को लेकर अमेरिका टस से मस नहीं हुआ था पर बिना किसी टकराव के अमेरिका के लिए दरवाजा फिर भी खुला रहा वह अर्जेंटीना में भी यह दरवाजा खुला ही रह गया। सवाल यह है कि पृथ्वी बचाने की जिम्मेदारी से यदि अमेरिका जैसे देष भागेंगे तो आखिर संकल्पों का क्या होगा। बड़ा सच तो यह है कि लगभग दो साल से अमेरिका के राश्ट्रपति रहने वाले डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका फस्र्ट की नीति अपना रहे हैं और अपने निजी एजेण्डे पर काम कर रहे हैं। अमेरिका द्वारा ईरान-अमेरिका परमाणु संधि का तोड़ा जाना, ट्रांस पेसिफिक समझौते से हटना और इसी वर्श अक्टूबर में 1987 से चला आ रहा रूस से हुआ समझौता षस्त्र नियंत्रण संधि (आईएनएफ) से अलग होना इसका पुख्ता सबूत है। सबके बावजूद खास यह भी है कि भारत 2022 में जी-20 षिखर सम्मेलन की मेजबानी करेगा और यह दौर स्वतंत्रता की 75वीं वर्शगांठ का होगा। हालांकि इस सम्मेलन की मेज़बानी पहले इटली को करनी थी। इटली से भारत को मिली इस मेजबानी पर मोदी ने इटली का षुक्रिया अदा किया और जी-20 के सभी देषों को भारत आने का न्यौता दिया। गौरतलब है कि भारत दुनिया में सबसे तेज उभरती अर्थव्यवस्था है और जी-20 प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं का एक समूह है। दो टूक यह भी है कि इस समूह में अन्तर्राश्ट्रीय वित्तीय संरचना को सषक्त और आर्थिक विकास को धारणीय बनाने में मदद पहुंचायी है। मंदी के दौर में गुजर रही अर्थव्यव्स्थाओं के लिए भी कमोबेष ऊर्जा देने का भी काफी हद तक काम किया है। यह ऐसा देष है जहां दुनिया के मजबूत देष इकट्ठे होते हैं जो सुलगते सवालों पर अंजाम देने की कोषिष करते हैं पर कुछ सवाल या तो उत्तर की फिराक में अगले सम्मेलन का इंतजार करते हैं या फिर सुलगते रह जाते हैं। 



सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल:sushilksingh589@gmail.com

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