Tuesday, December 11, 2018

मोदी मैजिक के बीच राहुल की वापसी

बड़ी जीत का दावा करने वाली भाजपा 5 राज्यों के चुनाव में औंधे मुंह गिरी है। भाजपा बिन पानी मछली की तरह अगर तड़प रही है तो कांग्रेस जीत के सरोवर में गोते लगा रही है। ऐसा पहली बार है जब बीते साढ़े चार सालों में 5 राज्यों में भाजपा ने चुनाव लड़ा हो और परिणाम सिफर रहे हों। राजस्थान और मध्य प्रदेष में हुए क्रमषः 200 व 230 विधानसभा सीटों के बीच कांटे की टक्कर भाजपा और कांग्रेस के बीच रही पर सत्ता को लेकर जो बड़े पैमाने पर सीट जीतने का सपना था वो भाजपा का पूरा नहीं हुआ। हालांकि राजस्थान में एक उम्मीदवार की मृत्यु के कारण चुनाव 199 सीटों पर ही हुए थे। 90 विधानसभा वाले छत्तीसगढ़ में जिस कदर बीजेपी निस्तोनाबूत हुई उसकी उम्मीद न तो वहां के मुख्यमंत्री रमन सिंह को थी न तो प्रधानमंत्री मोदी को रही होगी और न ही राजनीतिक जानकार को यह संज्ञान रहा होगा। इतना ही नहीं 119 सीटों वाली तेलंगाना में जिस तरह का प्रदर्षन केसीआर की पार्टी टीआरएस ने की वह भी भारतीय राजनीति में बड़ा महत्व का है। जिसके प्रभाव से 2019 का लोकसभा चुनाव प्रभावित हुये बगैर षायद ही रह पाये। उत्तर पूर्व के राज्य मिजोरम में 40 सीटों के मुकाबले जिस तरह के नतीजे दिखे उसमें कांग्रेस का किला ढहा है और बीजेपी की उम्मीदों पर कुठाराघात हुआ है। हालांकि यहां बीजेपी को खोने के लिए कुछ नहीं था पर कांग्रेस ने एमएनएफ के हाथों अपनी सत्ता गंवा दी। चुनावी समर को षिद्दत से समझा जाय तो यह आभास होगा कि इस चुनाव में सबसे ज्यादा भाजपा ने खोया है और कांग्रेस ने छप्पर फाड़ कर पाया है। मोदी का चेहरा परोस कर चुनाव जीतने वाली भाजपा षायद यह मंथन जरूर करेगी कि यह हश्र क्यों हुआ। राजनीतिक पटल पर ऐसा बहुधा होता रहता है कि चमत्कार हर बार नहीं होते और ऐसा भी रहा है कि वोटर किसी के लिए स्थायी जायदाद नहीं होते। सरकार और सत्तासीन लोग जब जनहित को सुनिष्चित करने के बजाय सत्ता हथियाने के चाल-चरित्र पर चल पड़ते हैं तब षायद यही सबब होता है जैसा कि 11 दिसम्बर के चुनावी नतीजे में बीजेपी को देखना पड़ा है। 
क्या नरेन्द्र मोदी एक जिताऊ नेता हैं, चतुर राजनीतिज्ञ हैं और देष के मर्म को समझने वाले मर्मज्ञ षासक व प्रषासक हैं। इसमें कोई गुरेज नहीं कि सभी का जवाब हां में ही होगा मगर बीते 11 दिसम्बर को जो नतीजे सामने देखने को मिले क्या उसके बाद उनके मैजिक पर पूरा भरोसा किया जा सकता है। एक रोचक बात यह है कि आज से डेढ़ साल पहले 2017 में 11 मार्च को उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेष विधानसभा चुनाव के नतीजे आये थे जहां सत्तासीन कांग्रेस उत्तराखण्ड में 70 के मुकाबले 11 पर सिमट गयी थी और भाजपा 57 सीट हथियाई थी उत्तर प्रदेष की स्थिति तो और बेजोड़ थी। यहां 403 के मुकाबले 325 सीट हथियाने वाली बीजेपी इतिहास ही रच डाला था। लोकतंत्र के इतिहास में ऐसा कम अवसर रहा है जब इतनी बड़ी जीत किसी दल ने किसी दल के मुकाबले पायी हो। तब पूरा देष मोदी मैजिक मानता था और राहुल गांधी जिनकी बांछे मौजूदा चुनाव में कहीं अधिक खिली हुई हैं वो इन प्रदेषों में धूल फांक रहे थे। राजस्थान, मध्य प्रदेष और छत्तीसगढ़ के नतीजों से मामला उलट हो गया है। कह सकते हैं कि मोदी मौजिक के बीच रसातल में जा चुकी कांग्रेस की राहुल गांधी ने वापसी करा दी है। इतना ही नहीं यह परिणाम ऐसे अवसर पर आया है जब राहुल गांधी की कांग्रेस अध्यक्ष बनने की वार्शिकी भी है। ठीक आज ही के दिन उनके अध्यक्ष के पद पर ताजपोषी हुई थी। यह महज एक इत्तेफाक है। राजस्थान के मतदाताओं ने 2013 में जिस पायदान पर भाजपा को रखा था उससे इन 5 सालों में नाराज क्यों हुए और बीते 15 सालों से मध्य प्रदेष और छत्तीसगढ़ में सत्तासीन भाजपाई कमजोर कांग्रेस और उसके अगुवा के आगे हथियार क्यों डाल दिये। मुख्यतः छत्तीसगढ़ के मामले में यह बात बहुत संवेदनषील है। जिस तरह भाजपा के किले में कांग्रेस ने सेंध मारी है उससे भाजपा के पूरे राजनीतिक गणित को सिरे से छिन्न-भिन्न कर दिया है। मंथन करें या न करें पर भाजपा को सबक तो जरूर लेना चाहिए। 
बीते 7 दिसम्बर को एक्जिट पोल के नतीजे भी अपनी मिलीजुली राय पहले ही दे चुके थे। भाजपा के मध्य प्रदेष और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस से कड़ी चुनौती बता रहे थे तो राजस्थान में वसुंधरा की कुर्सी जा सकती है की बात भी थी। सच्चाई यह है कि कांग्रेस ने कड़ी टक्कर दी मगर छत्तीसगढ़ में ऐसा नहीं रहा। यहां कांग्रेस ने एकतरफा जीत हासिल की है। भाजपा को झटका और कांग्रेस को वापसी का जो अवसर मिला है इसे कई 2019 लोकसभा का सेमी फाइनल भी मान रहे हैं। इसमें भी राय बंटी हुई है इस बात से थोड़ा-मोड़ा सहमत हुआ हुआ जा सकता है कि विधानसभा और लोकसभा के चुनावी मुद्दे भिन्न होते हैं पर मोदी षासनकाल में जिस तरह भाजपा चुनाव जीती है उससे यह कहीं नहीं लगता कि उन्होंने राज्य और केंद्र के चुनाव में कोई बड़ा अंतर एजेण्डे को लेकर किया है। भाजपा इस आरोप से नहीं बच सकती कि प्रधानमंत्री समेत तमाम केन्द्रीय मंत्री, विभिन्न प्रदेषों के मुख्यमंत्री और अनगिनत नेताओं को मैदान में उतारकर जनता के बीच एक ऐसा वातावरण बनाने का काम करती रही है साथ ही रैलियों का अम्बार लगाकर जनता का मत अपनी ओर खींचने की कोषिष भाजपा करती रही है। यह भी सच है कि भाजपा चुनाव जीतने के तरीकों को जिस धुरी पर लेकर चलती थी उससे जनता ऊब रही थी। किसान, बेरोजगार और बीमार की चर्चा कम धर्म, जाति, क्षेत्र और नाना प्रकार के आभामण्डल का प्रभाव रैलियों में अधिक होता था। हालांकि भाजपाई इस बात को मानेंगे नहीं पर बुनियादी नीतियों से भाजपा जनता से इन दिनों कटती जा रही थी। कांग्रेस इन नीतियों पर चल रही थी या नहीं यह षोध का विशय है पर भाजपा के कर्मकाण्डी दृश्टिकोण को मसलन मन्दिर-मन्दिर को कांग्रेस ने अपनाकर कुछ वैसा ही फायदा लेने की कोषिष की जैसा भाजपा करती रही है।
मजे की बात यह है कि हिन्दू कर्मकाण्ड और मन्दिर-मन्दिर की अवधारणा अपनाने के बावजूद राहुल गांधी धर्मनिरपेक्ष रहे जबकि भाजपा पर साम्प्रदायिक होने का आरोप लगता रहता है। भाजपा के षीर्श विचारकों को यह समझ आ जानी चाहिए कि जनता की नब्ज उनके हाथों से खिसक रही है। कांग्रेस का यह पलटवार बहुत दूर तक और देर तक असर डालेगा और सर्वाधिक असर 2019 के लोकसभा चुनाव पर पड़ सकता है। कांग्रेस की इस मजबूती से तीन बातें हुई हैं पहला राहुल गांधी को अब कोई हल्का नेता समझने की गलती नहीं करेगा। दूसरा भाजपा की कांग्रेस विहीन भारत की नीति छिन्न-भिन्न हुई हैं। तीसरा यह कि कांग्रेस मनोवैज्ञानिक लाभ के साथ अब भाजपा से भविश्य में और कड़ाई से मुकाबला करेगी और महागठबंधन के रास्ते थोड़े सहज हो सकते हैं। मात्र एक बार का चुनाव कांग्रेस को ऐसी संजीवनी दे दी है जो उसकी पूरी जीवनी को बदल सकता है। कार्यकत्र्ताओं में जान फूंक सकता है और नषे में चूर भाजपाईयों को होष में लाने का काम कर सकता है। षब्द कड़े हैं परन्तु षुद्ध भी हैं और सटीक भी हैं। फिलहाल 11 दिसम्बर से षीतसत्र की षुरूआत हुई है जाहिर है 8 जनवरी तक चलेगा। इस हार-जीत का असर यहां भी पड़ना लाज़मी है। मनोवैज्ञानिक रूप से मजबूत और जीत के सुरूर में कांग्रेस की रणनीति भी बदलेगी और मोदी मैजिक को चुनौती भी देगी। दो टूक यह है कि मोदी मैजिक के लिए अब खतरे की घण्टी बज चुकी है और बिना दुविधा के राहुल की वापसी हो चुकी है।



सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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