Friday, November 30, 2018

पूरा सच नहीं बोलता है पाकिस्तान

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने एक बार फिर दोहराया है कि वे भारत के साथ षान्ति बहाल करना चाहते है और प्रधानमंत्री मोदी से बात करने के लिए तैयार भी है। साथ ही यह भी कहा कि कष्मीर मसले का फौजी हल मुमकिन नहीं है पर कुछ असम्भव भी नहीं है। सफाई देते हुए इमरान ने आतंकी दाऊद और हाफिज सईद को विरासत में मिला बताया और जिसके लिए वे जिम्मेदार भी नहीं हैं। गौरतलब है कि बीते 28 नवम्बर को पाकिस्तान में स्थित करतारपुर में गुरूद्वारा दरबार साहिब को भारत के गुरदासपुर जिले में स्थित डेरा बाबा नानक गुरूद्वारा से जोड़ने वाली बहुप्रतीक्षित गलियारे की आधारषिला रखी। उक्त बातें पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने इसी दौरान कही। सिक्ख तीर्थ यात्रियों के लिए करतारपुर साहिब गुरूद्वारा जाने के लिए करतारपुर कोरिडोर को खोलने को लेकर पाकिस्तान का यह कदम बहुत अच्छा माना जा सकता है पर सावधानियों को दरकिनार नहीं किया जा सकता। हालांकि इसे खोलने की मांग तीन दषक पुरानी है। भारत ने 1988 में इसे लेकर पहली बार प्रस्ताव रखा था जिस पर बीते 22 नवम्बर को प्रधानमंत्री की अगुवाई में कैबिनेट की बैठक हुई जहां करतारपुर कोरिडोर के निर्माण को मंजूरी दी गयी। उपराश्ट्रपति वैंकेया नायडू व पंजाब के मुख्यमंत्री ने संयुक्त रूप से इसकी आधारषिला रखी थी। कार्यक्रम में भारत के केन्द्रीय मंत्री हरसिमरन कौर और पंजाब राज्य के मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू मौजूद थे। वैसे जब भी पाकिस्तान के किसी कार्यक्रम में सिद्धू की मौजूदगी होती है तो विवाद उनके साथ चल पड़ता है। इमरान के षपथ समारोह में अकेले भारतीय रहे सिद्धू उस समय तब विवाद में आ गये जब वहां के सेना प्रमुख बाजवा से गले मिलने के चित्र सामने आये और अब आतंकी के साथ फोटो खिंचवाने का उन पर आरोप है। 
करतारपुर कोरिडोर की आधारषिला रखने के इस ऐतिहासिक क्षण पर भारत को अमन-षान्ति का पाठ पढ़ाने वाले इमरान ने कष्मीर का जिक्र भी छेड़ा जो यह दर्षाता है कि वे या तो आधा सच बोलते हैं या फिर पूरा सच बोल ही नहीं सकते। इस कोरिडोर के पीछे उनकी स्पश्ट मंषा को भी समझा जाना जरूरी है। गौरतलब है कि इमरान की पहल पर षान्ति प्रक्रिया यदि भारत स्थापित करना भी चाहे तो आतंकी और वहां की सेना भारत के लिए मुसीबत बन सकती है क्योंकि ऐसा दषकों से देखा जा रहा है कि जब-जब ऐसा हुआ भारत के भीतर आतंकी हमले हुए हैं। खास यह भी है कि पाकिस्तान और भारत के बीच मधुर सम्बंध हों यह वहां की आईएसआई, सेना औेर आतंकी संगठन कतई नहीं चाहते और इमरान इस बात से षायद ही अनभिज्ञ हों। जबकि उनकी सरकार को पूर्व तानाषाह मुर्षरफ, पाकिस्तानी सेना और कुछ हद तक आतंकियों का भी समर्थन है। प्रधानमंत्री मोदी ने करतारपुर कोरिडोर की तुलना बर्लिन की दीवार के टूटने से की। पाकिस्तान ने कोरिडोर किस आधार पर खोला है इस बात की भी बारीकी से पड़ताल जरूरी है। संकेत यह है कि गलियारा बनाने का इरादा पाकिस्तानी सरकार का नहीं बल्कि सेना प्रमुख जनरल बाजवा ने दिया था। कार्यक्रम में पाकिस्तानी सेना प्रमुख की उपस्थिति इस बात को और पुख्ता करती है। कोरिडोर खोलने के पीछे जो इरादा जताया जा रहा है उसके पीछे सब कुछ नेक है ऐसा नहीं है। गौरतलब है आॅपरेषन आॅल आउट के तहत कष्मीर घाटी में सैकड़ों की तादाद में आतंकी मौत के घाट उतारे जा चुके हैं। सेना की चैकसी और जम्मू-कष्मीर पुलिस की सक्रियता ने पाक प्रायोजित आतंकियों को अब कोई अवसर नहीं दे रही है। कहीं ऐसा तो नहीं कि सिक्खों के प्रति सहानुभूति की आड़ में खालिस्तान के पक्षधर को उकसाकर पंजाब में अषान्ति का माहौल पैदा करने का इरादा पाकिस्तान का हो। कोरिडोर खुलने से खालिस्तान समर्थक समूहों के अलावा अन्तर्राश्ट्रीय स्तर पर सिक्ख समुदाय का भरोसा पाकिस्तान जीत सकता है। इसी के माध्यम से भारतीय सिक्ख युवाओं का भी भरोसा जीतने का काम पाक कर सकता है और समय और परिस्थिति को देख कर उन्हें उकसाकर भारत विरोधी गतिविधियों में प्रयोग कर सकता है। गुरूद्वारे के बहाने ऐसे युवाओं को उन्हें खालिस्तान का पाठ पढ़ाना आसान हो जायेगा जो पंजाब और भारत दोनों के लिए एक नई चुनौती हो सकता है। गौरतलब है कि कुछ समय पहले जब भारतीय तीर्थयात्री पाकिस्तान के गुरूद्वारे में गये थे तब इस्लामाबाद स्थित भारतीय वाणिज्य दूतावास के सदस्यों को गुरूद्वारे में प्रवेष करने से रोका गया था और रोकने का यह काम सुरक्षाकर्मियों का नहीं बल्कि खालिस्तान समर्थक गोपाल सिंह चावला और उनके सहयोगियों का था।
समझने वाली बात यह भी है कि अस्सी और नब्बे के दषक में खालिस्तानी आतंकियों के खात्मे के बाद पंजाब भारी विकास की ओर जा चुका है। ऐसा भी नहीं है कि पंजाब में खालिस्तान समर्थक बिल्कुल नहीं है बस इषारे की आवष्यकता है। कनाडा के प्रधानमंत्री का जब भारत में दौरा हुआ था तब उन्हें षायद इसलिए अधिक तवज्जो नहीं दिया गया क्योंकि उन्होंने कनाडा में खालिस्तान समर्थकों के सुर में कुछ सुर मिला दिया था। दो टूक यह है कि कोरिडोर स्वागत योग्य है पर इसकी आड़ में खालिस्तानी आंदोलन को पुनर्जीवित करने वालों को यदि मौका मिलता है तो समस्या बड़ी हो जायेगी। अमेरिका के खालिस्तान समर्थक जिसे आंदोलन सिक्ख फाॅर जस्टिस के नाम से जाना जाता है उन्होंने एक सर्कुलर जारी किया है जिसमें स्पश्ट है कि गुरूनानक देव जी के 550वीं जयन्ती के उपलक्ष्य में पाकिस्तान में करतारपुर साहिब सम्मेलन का 2019 में आयोजन किया जायेगा। इसी सम्मेलन में इसकी भी योजना है कि मतदाता पंजीकरण भी किया जायेगा साथ ही जनमत संग्रह पर भी जानकारी उपलब्ध करायी जायेगी। उक्त से स्पश्ट है कि कोरिडोर के पीछे सब कुछ सकारात्मक नहीं है बल्कि कष्मीर से घटते आतंक को देखते हुए पाकिस्तान पंजाब में आतंक को पुनर्जीवित करने के लिए कहीं बेताब न हो इसे लेकर चिंता बढ़ जाती है। करतारपुर साहिब सबसे पवित्र स्थलों में से एक है इसे पहला गुरूद्वारा भी माना जाता है। गुरूनानक ने जीवन के आखरी 18 साल यहीं बिताये थे और 1539 में यही आखरी सांस ली थी। भारत की सीमा से 3 किमी. भीतर रावी नदी के किनारे बसे इस गुरूद्वारे के भारत के सिक्ख श्रृद्धालु दूरबीन से दर्षन करते हैं। जब यह कोरिडोर संचालित हो जायेगा तब श्रृद्धालुओं की आवाजाही सुगम होगी और इसके लिए वीजा की भी आवष्यकता नहीं पड़ेगी। खास यह भी है कि इस कोरिडोर के लिए भारत सरकार फंड देगी। इमरान खान ने करतारपुर कोरिडोर की आधारिषला रखते हुए पूरी दुनिया के सामने स्वयं को युद्ध विरोधी नेता के रूप में पेष करने की कोषिष किया और कहा कि दोनों देषों के पास एटमी हथियार हैं इसलिए युद्ध की बात करना बेवकूफी है और दोस्ती एक मात्र विकल्प है। आदर्ष से भरी पाकिस्तान की ये बातें किसी के मन को छू सकती हैं पर इतिहास खंगाल के देखा जाय तो अविष्वास गहरा जाता है। 1972 के षिमला समझौते को आज भी पाकिस्तान रौंदने से बाज नहीं आता। 19 फरवरी 1999 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के समय दिल्ली से लाहौर तक बस चली थी। दोनों देषों के बीच ट्रेन भी चली पर सम्बंध न सड़क पर दौड़ पाये और न ही पटरी पर। तानाषाह परवेज मुषर्रफ के समय तो आगरा षिखर वार्ता खराब सम्बंधों को और पुख्ता करता है। सार्क में षामिल जमा 8 देषों में पाकिस्तान ऐसा है जिससे भारत की दुष्मनी है। पठानकोट हमले के बाद साल 2016 का इस्लामाबाद सार्क बैठक इसकी भेंट चढ़ चुका है और 2020 में इस्लामाबाद में होने वाली सार्क बैठक को लेकर पाकिस्तान के उस इरादे को भी विदेष मंत्री सुशमा स्वराज ने खारिज कर दिया जिसमें वह मोदी को आमंत्रित कर रहा है। स्वयं प्रधानमंत्री मोदी अपने समकक्ष नवाज षरीफ के साथ षपथ ग्रहण समारोह से लेकर 2 साल तक सम्बंधों के लिए प्रयासरत् रहे पर नतीजे ढाक के तीन पात ही रहे।

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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