Friday, June 30, 2017

आर्थिक इंजन जीएसटी की उड़ान

बरसों की कवायद के बाद आखिरकार जीएसटी आज धरातल पर उतर गया। सम्भव है कि तमाम महत्वाकांक्षी अवधारणा से पोषित  आर्थिक परिवर्तन का गुणात्मक पक्ष लिये जीएसटी देश  की तस्वीर बदल देगा। गौरतलब है कि वर्श 2014 के षीत सत्र से जीएसटी को लेकर आंख मिचैली चल रही थी। हालांकि इसकी कहानी एक दषक पुरानी है पर बीते तीन वर्शों में इसे लेकर जो कोषिषें मोदी सरकार में हुई वैसी षायद पहले नहीं हुई थी। वर्श 1991 में जब उदारीकरण देष में आया तब भी देष बदलने की आस जगी थी और उस पर वह खरा भी उतरा। जाहिर है ढ़ाई दषक बाद यह दूसरा परिप्रेक्ष्य है जब एक बार फिर आर्थिक परिवर्तन की उम्मीद जीएसटी के चलते जगी है। देष में गुड्स एवं सर्विसेज़ टैक्स यानी जीएसटी लागू होने को स्वतंत्रता के बाद का सबसे बड़ा आर्थिक कदम भी माना जा रहा है। गौरतलब है पिछले कुछ महीनों से राजनीति के क्षितिज पर जीएसटी ही छाया रहा और अब 1 जुलाई को लागू होने के साथ इसका पटाक्षेप तो हो जायेगा पर इसके नतीजे को लेकर चर्चाओं का बाजार षायद अभी थमने वाला नहीं है। जब 8 नवम्बर 2016 को नोटबंदी का एक बड़ा आर्थिक फैसला मोदी सरकार की ओर से आया था तब भी देष की राजनीति में भूचाल और जनमानस में कई प्रकार की हलचलों का दौर था। बाद में आई रिर्पोटों से यह भी परिलक्षित हुआ कि देष के विकास दर की रफ्तार थमी है परिणामतः जीडीपी में 1 फीसदी की गिरावट दर्ज की गयी। हालांकि सरकार इसकी वजह नोटबंदी नहीं मानती। फिलहाल पूरे देष में एक समान कर प्रणाली लागू करने का सपना जीएसटी के माध्यम से पूरा हो गया है साथ ही अप्रत्यक्ष कर प्रणाली में ऐतिहासिक बदलाव के साथ इसे अंजाम तक पहुंचा भी दिया गया है। इतना ही नहीं आने वाले दिनों में जब भी सरकारों की सियासत परवान चढ़ेगी तो जीएसटी लागू करने के लिए मोदी का नाम सुर्खियों में जरूर रहेगा। 
जीएसटी के क्या फायदे हैं और क्या नुकसान हैं इसकी चिंता भी खूब होती रही है? इसे लेकर बीते कुछ महीनों से आंकड़े और सूचनाएं भी परोसी जाती रही हैं। सरकार भी इसे लेकर काफी सफाई देती रही। स्पश्ट है कि सरकार दो तरह के कर लेती है जिसे प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष के तौर पर जाना जाता है। आयकर प्रत्यक्ष तो किसी समान या सेवा पर लगाया गया कर अप्रत्यक्ष की श्रेणी में माना जाता है। कमाई भी अप्रत्यक्ष कर में अधिक है और इसका एक हिस्सा राज्यों को भी देना होता है लेकिन इसकी अपनी एक दिक्कत यह है कि कई समानों पर अप्रत्यक्ष करों की दरों में एक राज्य से दूसरे राज्यों में व्यापक अंतर था। इसी को समाप्त करते हुए इसे एक रूप दिया गया और इसका नारा है एक राश्ट्र, एक कर। राहत यह है कि इस कर से रोज़मर्रा के खाने-पीने के समान को मुक्त रखा गया है। जाहिर है यहां बदलाव सस्ते की ओर है परन्तु कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां पर करों में फेरबदल का पूरा असर है। टेलीकाॅम, रेस्टोरेंट में खाना खाना, हवाई टिकट समेत अस्पताल, बीमा, बैंकिंग आदि पर इसका प्रभाव महंगा दिखेगा। षिक्षा पर कोई कर नहीं है पर कोचिंग की षिक्षा पर तुलनात्मक तीन फीसदी बढ़त से यह क्षेत्र महंगा हुआ है। देखा जाय तो जीएसटी 5 फीसदी से लेकर 28 फीसदी के बीच है। जाहिर है कर के उतार-चढ़ाव के चलते कुछ सस्ती तो कुछ महंगी वस्तुएं बाजार में देखने को मिलेंगी। उदारीकरण के बाद से भारत की अर्थव्यवस्था में व्यापक फेरबदल देखने को मिला था। तब देष के वित्त मंत्री पूर्व प्रधानमंत्री डाॅ0 मनमोहन सिंह थे जो जीएसटी को लेकर हमेषा सकारात्मक राय रखते रहे। ये बात और है कि प्रमुख विपक्षी कांग्रेस मोदी की इस नीति से चार कदम की दूरी अभी भी बनाये हुए हैं जबकि जीएसटी वर्श 2006-07 के बजट में यूपीए के कार्यकाल में ही पहली बार प्रस्तावित किया गया था।
क्या जीएसटी को लेकर किसी को इतना भी नुकसान है कि बड़ी हड़ताल देष में की जाय। बीते गुरूवार को जीएसटी के विरोध में कपड़ा व्यापारी सड़क पर हैं। गौरतलब है कि कपड़े पर 5 फीसदी जीएसटी लगाने का विरोध किया जा रहा है। इनका मानना है कि 70 साल के इतिहास में कभी भी कपड़े पर कोई टैक्स नहीं लगा। यहां यह बात स्पश्ट करने में सरकार षायद सफल नहीं रही कि 5 फीसदी का कर तुलनात्मक कई करों से कम ही है पर यदि ऐसा नहीं है तो सभी वर्गों को यह प्रभावित करेगा। दो टूक यह भी है कि जीएसटी को लेकर सरकार की रणनीति प्रसारवादी कम रजानीति से प्रेरित अधिक रही है। दूसरे षब्दों में कहें तो राज्य की सरकारों को केन्द्र सरकार विष्वास में लेती रही जबकि जनमानस सहित तमाम कारोबारी एवं व्यापारी के मामले में यह जहमत नहीं उठायी। षायद उसी का नतीजा कपड़ा व्यापारियों की हड़ताल है। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि आने वाले दिनों में हो सकता है सरकार को इस तरह की दिक्कतें और झेलनी पड़े। सवाल यह भी है कि क्या जीएसटी एक जोखिम भरा कदम है यदि है तो इसके लागू होने के कुछ समय बाद ही पता चलेगा। देष इससे कितना मुनाफा ले सकता है जाहिर है 1 जुलाई से लागू जीएसटी भारत के आर्थिक दुनिया को नया मोड़ देगा पर कई मोड़ धुंध से भी घिरे हो सकते हैं जैसा कि विष्व के तमाम देषों में लागू जीएसटी वाले देषों की पड़ताल बताती है। 
गौरतलब है दुनिया के सैकड़ों देष अब तक जीएसटी को अपना चुके हें। इस सूची में अब भारत भी षामिल हो गया है। आंकड़े इस बात का समर्थन करते हैं कि बहुतायत की स्थिति षुरूआती दिनों में सुखद नहीं रही है। पड़ताल बताती है कि एषिया के 19 देषों में इसी प्रकार के कर प्रावधान हैं जबकि यूरोप में तो 53 देष इसमें सूचीबद्ध हैं। इसी प्रकार अफ्रीका में 44, साउथ अमेरिका में 11 समेत दुनिया भर में सौ से अधिक देष इसमें षुमार हैं। रोचक यह भी है कि जीएसटी को लागू करने वाली कई सरकारों की आगामी चुनाव में वापसी नहीं हुई अर्थात् जीएसटी भी एंटी इन्कम्बेंसी का काम करती है। देखा जाय तो आॅस्ट्रेलिया, कनाडा, जापान और सिंगापुर जैसे देषों ने 1991 से 2000 के बीच जीएसटी को लागू किया पर जीडीपी में गिरावट का दौर चला। सिंगापुर जैसे देषों की गिरावट तो कहीं अधिक नकारात्मक थी। मलेषिया में 2015 में जीएसटी लागू हुआ था यहां भी गिरावट दर्ज तो की गयी पर वापसी करने वाले देषों में यह सर्वाधिक षीघ्रता के लिए भी जाना जाता है। हालांकि जिन देषों ने जीएसटी अपनाया और जिनकी हालत षुरूआती दिनों में उम्मीद से अधिक खराब हुई उसके पीछे एक कारण टैक्स स्लैब भी माना जा सकता है साथ ही इन देषों की जनसंख्या और आर्थिक संदर्भ व संसाधन भी काफी हद तक जिम्मेदार रहे हैं। भारत जनंसख्या के मामले में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देष है साथ ही यहां कि आर्थिकी औरों की तुलना में भिन्न और काफी हद तक स्थायित्व लिये हुए है। ऐसे में जीएसटी का जीडीपी पर बहुत अधिक असर न होने का अनुमान तो है पर असर नहीं होगा इससे इंकार नहीं किया जा सकता। परिप्रेक्ष्य यह भी है कि भारत में टैक्स स्लैब चार प्रकार के हैं साथ ही कुछ वस्तुओं को इससे मुक्त भी रखा गया है जबकि तमाम देषों में टैक्स स्लैब एक ही थे और कर की दर भी कम थी मसलन आॅस्ट्रेलिया में 10 फीसदी था। अन्ततः जीएसटी की उड़ान से कर चोरी घटेगी, ईमानदार कारोबारियों को लाभ मिलेगा, बार-बार कर चुकाने के झंझट से मुक्ति भी मिलेगी और एक राश्ट्र, एक कर की भावना से राश्ट्रीय एकता और अखण्डता को तुलनात्मक कहीं अधिक बल भी मिलेगा।


सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
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