Monday, March 20, 2017

सत्ता का त्रिकोण और दृष्टिकोण

फिलहाल पांच विधानसभा चुनाव के बाद उभरे चित्र को देखते हुए वर्श 2017 को नई व्यवस्था से युक्त साल भी कहा जा सकता है। मौजूदा लोकतंत्र में जिस प्रकार के समीकरण इन दिनों उभरे हैं और जिस भांति सत्ता की रोपाई में भाजपा आगे निकलती जा रही है इससे संकेत मिलता है कि भारत की दिषा और दषा में अब गहरे परिवर्तन सम्भव हैं। जाहिर है जब दिल्ली अर्थात् केन्द्र में भाजपा की लगभग तीन बरस पुरानी मोदी सरकार हो और ताजे प्रकरण में देहरादून में भी त्रिवेंद्र सिंह रावत के नेतृत्व में भाजपा की उपस्थिति हो गयी हो साथ ही लोकतंत्र के इतिहास को बदलते हुए डेढ़ दषक का वनवास काटते हुए लखनऊ में भी भाजपा गद्दी पर विराजमान हो गयी हो तो उक्त बात को पुख्ता करार देना कहीं से असंगत नहीं है। संदर्भ और परिप्रेक्ष्य यह भी इषारा करते हैं कि जिस तर्ज पर दिल्ली, देहरादून और लखनऊ में भाजपा ने सत्ता पोशण में कामयाब हुई है और जिस प्रकार सत्ता का त्रिकोण उभरा है इससे कई और दृश्टिकोणों का उभरना लाज़मी है। जिस समृद्धि और सामाजिक उत्कर्श की नीति अपनाकर भाजपा ने इस मुकाम को हासिल किया है उससे यह भी साफ है कि लोकतंत्र में अब उसकी जड़ें औरों की तुलना में बहुत गहरी हो गयी हैं। उत्तर प्रदेष में योगी आदित्यनाथ को नेतृत्व सौंप कर कोई चैंकाने वाली बात तो नहीं हुई है पर सियासत की जिस पौध को उगाने की यहां कोषिष इनके माध्यम से की जायेगी उससे षायद ही कोई अनजान हो। योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री के तौर पर बदले हुए उत्तर प्रदेष को आने वाले दिनों में देखा और परखा जायेगा साथ ही अन्वेशण का विशय यह रहेगा कि ट्रिपल इंजन से युक्त भाजपा केन्द्र समेत उत्तर प्रदेष और उत्तराखण्ड में विकास को लेकर कौन से दरिया बनाती है और कितना पानी बहाती है।
मोदी सरकार की महत्वाकांक्षा को बीते 26 मई 2014 से कई बार देखा गया है पर खरे कितने थे ये सवाल भी उभरे हैं। जिन वायदों को उन्होंने धरातल पर उतारने की कोषिष की उनके नतीजे उनके पक्ष में गये हैं यह पूरा सच नहीं है। काले धन पर किये गये वायदे पर कोषिष तो की गयी पर सफलता अभी भी नहीं मिली है और नोटबंदी के चलते भी वार तो काले धन पर किया गया पर परिणाम यहां भी घालमेल वाला ही रहा। सैकड़ों नीतियों और योजनाओं को केन्द्र सरकार ने समाप्त कर दिया है मसलन योजना आयोग और कई नई व्यवस्थाओं को विकसित करने का काम किया है मसलन नीति आयोग परन्तु उनके मुनाफे दीर्घकालीन बताये जा रहे हैं। जाहिर है पूरी पड़ताल अभी सम्भव नहीं है। देखा जाय तो स्टार्टअप इण्डिया, स्टैंडअप इण्डिया, डिजीटल इण्डिया और क्लीन इण्डिया जैसे तमाम योजनाएं मुखर तो हुई हैं पर मन माफिक परिणाम देने में पीछे हैं। कैषलेस को लेकर भी कोषिष अच्छी है पर नतीजे अधकचरे हैं। इसकी एक वजह बिना तैयारी के इसे लागू करना माना जा रहा है। सबके बावजूद एक सच तो यह है कि जिस तीव्रता से भाजपा राज्यों में सरकार बना रही है उससे यह साफ है कि जनता का भरोसा जीतने में वह मीलों आगे है। राज्यों को इस बात का भी सुकून है कि मोदी सरकार उनके लिए एक बेहतर ताकत के तौर पर उपलब्ध है। पिछले तीन दषकों से देखें तो उत्तर प्रदेष के साथ केन्द्र में एक ही दल की प्रचण्ड बहुमत की सरकार नहीं देखी गयी। यदि साथ रहे भी तो मिलीजुली स्थिति कहीं न कहीं रही ही है। अब स्थिति बिल्कुल उलट है। दोनों स्थानों पर बहुमत और उत्तर प्रदेष में तो प्रचण्ड और ऐतिहासिक बहुमत के साथ योगी सरकार उदित हो गयी है। यहां उत्तराखण्ड का भी जिक्र करना सही होगा कि त्रिवेन्द्र रावत के नेतृत्व में ठीक वैसा ही ऐतिहासिक एवं प्रचण्ड बहुमत वाली सरकार कामकाज में आगे बढ़ गयी है। दिषा कहां से तय होगी, कितनी तय होगी और जनता की उम्मीदों पर कितनी समुचित होगी यह आने वाले दिनों में पता चलेगा।
उत्तर प्रदेष की नई सरकार से सूबे की तस्वीर बदलने की उम्मीद जताई जा रही है। भाजपा को विकास के मुद्दे पर विराट जीत मिली है। विरोधियों को उसी अनुपात में हार। लिहाज़ा जनता वोट के बदले विकास की तूफानी दरिया तो चाहेगी। उत्तर प्रदेष विगत् वर्शों से आर्थिक विकास के मामले में असंतुलित रहा है। देष के सबसे बड़े राज्य की सबसे बड़ी कमजोरी लचर कानूनी व्यवस्था रही है। बुनियादी समस्याओं का यहां अम्बार है। महिला सुरक्षा को लेकर स्थिति काफी हद तक पटरी से उतरी हुई है। चोरी, डकैती, गुण्डागर्दी, बलात्कार समेत दर्जनों विभिन्न प्रकार की घटनायें यहां की फिजा में अक्सर तैरती रहती हैं। यदि 125 करोड़ का देष भारत है तो इसमें से 25 करोड़ उत्तर प्रदेष से ही है। धर्म और जाति के नाम पर सियासत का खेल भी यहां बरसों पुराना है पर इस बार का चुनाव इनसे ऊपर था। मोदी सरकार उत्तर प्रदेष में हर सूरत में अपना रसूख जमाना चाहती थी, योगी के माध्यम से यह सम्भव भी हो गया है लिहाज़ा सहयोग और तालमेल की कमी से उत्तर प्रदेष और उत्तराखण्ड नहीं जूझेगा। ऐसे में उम्मीदों का परवान चढ़ना और विकास को अंजाम तक पहुंचाना सहज माना जा रहा है। योगी की छवि प्रखर हिन्दुत्ववादी है पर उन्होंने षपथ के बाद भरोसा दिया कि सबको साथ लेकर चलेंगे। जिस तर्ज पर मंत्रिपरिशद् को निर्मित किया गया है उससे भी सबको साथ ले चलने की बात प्रस्फुटित होती है। एक भी मुस्लिम चेहरा चुनाव में न उतारने वाली बीजेपी की मंत्रिपरिशद् में एक मुस्लिम मंत्री बनाया गया है। यह भी उक्त कथन का समर्थन करता है। रही बात विकास की तो चुनौतियों का यहां ढेर है। किसानों की समस्या वैसे तो पूरे देष में है पर अनुपात में उत्तर प्रदेष अव्वल है। बुंदेलखण्ड सूखा पड़ा है। आत्महत्या और पलायन से भी प्रदेष खाली नहीं है और यह हर षासनकाल में रहा है। 
युवाओं का विकास, महिलाओं का विकास, षिक्षा, चिकित्सा एवं रोजगार समेत कर्ज माफी और सुविधाओं को आसान बनाने और अनेक सुविधाओं से युक्त करने के वायदे और इरादे भाजपा ने अपने चुनावी दौर में खूब जताये हैं। विज़न डाॅक्यूमेन्ट से लेकर घोशणापत्र तक में ऐसे दर्जनों बातें पढ़ी जा सकती हैं। लिहाजा सरकार को इस दिषा में तो सोचना ही होगा जिन किसानों ने घरों से निकलकर भाजपा को इतने बड़े स्थान पर बिठाया है उनकी समस्याओं को स्थायी समाधान देना इनकी नैतिकता है। बिजली आपूर्ति और कानून व्यवस्था यहां की जड़ समस्या है जिस पर बड़े कदम उठाने ही होंगे। क्षेत्रफल के लिहाज़ से इसके कई हिस्से हैं और हर हिस्से की अपनी बुलन्द आवाज़ है सबको सुनना भी सरकार की बड़ी जिम्मेदारी है। देहरादून में मोदी ने 28 दिसम्बर के भाशण में कहा था कि उत्तराखण्ड गहरे खड्डे में है इसे बाहर निकालने के लिए डबल इंजन की जरूरत है। एक दिल्ली का और एक देहरादून का। उत्तर प्रदेष समेत अब इंजन भी ट्रिपल हो गया है। उत्तराखण्ड अपने निर्माणकाल वर्श 2000 से ही परसम्पत्तियों के बंटवारे में फंसा है जिसका निपटान अभी तक नहीं हुआ है। रामपुर तिराहा काण्ड पर उत्तराखण्ड आन्दोलनकारियों के साथ हुई घटना को लेकर भी इंसाफ की मांग अभी भी यहां उठती रहती है। गाज़ियाबाद से लेकर हरिद्वार तक नहर के किनारे मैट्रो चलाने की बात काफी आगे बढ़ चुकी थी। लाज़मी है कि अब दोनों प्रदेषों में छोटे भाई और बड़े भाई की सरकार के मौजूद होने के चलते उक्त समस्याएं न केवल निदान तक पहुंचेगी बल्कि केन्द्र से मोदी के सुपरविज़न में दोनों विकास की पटरी पर जनता के मन माफिक दौड़ भी लगायेंगे। इस बात का ध्यान रखते हुए कि 2019 में उसी जनता से लोकसभा में वोट लेना है और डेढ़ दषक से बिछुड़ी सत्ता को प्राप्त करने के बाद 2022 में फिसलने से भी इसे रोकना है। 
सुशील कुमार सिंह


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