Wednesday, March 15, 2017

ईवीएम पर सवाल कितना वाजिब !

जिस ईवीएम को केरल के एक विधानसभा क्षेत्र से 1982 में और वर्श 2004 के 14वीं लोकसभा से पूरे देष में लोकतंत्र का सबसे बड़ा तकनीकी हथियार बनाया गया आज वह विवादों के घेरे में है। गौरतलब है कि पांच राज्यों के चुनाव के नतीजे से भारतीय जनता पार्टी को बेषुमार सीटें मिली हैं। उत्तर प्रदेष और उत्तराखण्ड में तो भाजपा 80 फीसदी से ज्यादा स्थानों पर जीत हासिल की है जबकि सपा, बसपा तथा कांग्रेस समेत सभी को करारी षिकस्त मिली है। नतीजे को देखते हुए बसपा की मुखिया मायावती ने ईवीएम पर ही सवाल खड़े कर दिये हैं। उनका आरोप है कि ईवीएम को मैनेज किया गया है। इस आरोप में कितनी सच्चाई है अभी इसका खुलासा सम्भव नहीं है पर ऐसे बयान के बाद भारत की सियासत में चर्चा जोर पकड़ ली है। परिप्रेक्ष्य और दृश्टिकोण यह भी है कि भाजपा की विरोधी मायावती के सुर में सुर मिला रहे हैं और यह राय भी आम है कि ईवीएम के साथ कोई अनहोनी होना हैरत की बाद नहीं है। ध्यानतव्य हो कि उत्तर प्रदेष में मायावती की बुरी हार और उत्तराखण्ड से सफाया हो गया है। ऐसे में उनका झल्लाना या आरोप लगाना सम्भव हो सकता है पर बात केवल मायावती तक ही नहीं है ईवीएम को लेकर मसले 2009 से ही उठते रहे हैं। भाजपा के वयोवृद्ध नेता लालकृश्ण अडवाणी और सुब्रमण्यम स्वामी ने 2009 लोकसभा चुनाव के बाद ईवीएम के जरिये चुनाव में धांधली का आरोप लगाया था और ऐसा पहला मौका था जब ईवीएम विवादों में आई थी। यही सुब्रमण्यम स्वामी गुजरात विधानसभा चुनाव को लेकर ईवीएम पर सवाल उठा चुके हैं और उनका मानना था कांग्रेस ने यदि इसमें छेड़छाड़ न की होती तो भाजपा वर्तमान की तुलना में 35 सीट अधिक जीतती। ईवीएम के विवाद में आते ही सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दाखिल की गयी थी। षीर्श अदालत ने चुनाव आयोग को निर्देष जारी किया था कि मतदाताओं का इस पर भरोसा बनाये रखने के लिए कदम उठाये। 
ईवीएम पर उठे सवाल के बीच में यह प्रष्न भी वाजिब है कि ईवीएम के क्या-क्या खतरे हो सकते हैं। ईवीएम मषीनें हैक की जा सकती हैं यह बात भी कही जा रही है। ईवीएम मषीनों के जरिये वोटरों की पूरी जानकारी भी निकाली जा सकती है। इसके अलावा चुनावी नतीजों में फेरबदल किया जा सकता है। गौरतलब है कि इसे हैक करने को लेकर कई बार धमकी भी देने की बात कही गई है ऐसा विदेषों में भी हुआ है। सुरक्षा के लिए ईवीएम का इलेक्षन साॅफ्टवेयर के साथ भी छेड़छाड़ वाली बात आसान मानी जा रही है। यह भी समझ लेना सही होगा कि दुनिया के विकसित देषों ने ईवीएम को लोकतंत्र का बेहतरीन हथियार नहीं माना है। अमेरिका और जापान जैसे देष इसका प्रयोग करने से आज भी कतराते हैं। नीदरलैण्ड ने पारदर्षिता के अभाव में इसे बैन किया हुआ है। आयरलैण्ड ने तो करोड़ों खर्च करने के बाद और तीन साल के रिसर्च के बावजूद सुरक्षा और पारदर्षिता को देखते हुए ईवीएम को प्रतिबंधित कर दिया। जर्मनी ने तो ई-वोटिंग को तो असंवैधानिक तक करार दे दिया है इसकी भी वजह पारदर्षिता ही है। इटली ने भी इसे खारिज किया है। खास यह भी है कि इंग्लैण्ड और फ्रांस ने तो इसका उपयोग ही नहीं किया। अमेरिका के मिषिगन विष्वविद्यालय के प्रोफेसर और छात्रों का षोध यह इषारा करता है कि ईवीएम संदेह से परे नहीं है। ऐसे में दो सवाल उठते हैं एक यह कि भारत में ईवीएम को अपनाने से पहले क्या सभी प्रकार के सुरक्षा उपायों पर विचार किया गया था। दूसरा यह कि यदि यह इतना सुरक्षित है तो दुनिया के अमीर देषों ने इससे मुंह क्यों मोड़ा है? दो टूक यह भी है कि मौजूदा सियासत में यदि ईवीएम चर्चे में आ ही गयी है तो इसका पोस्टमार्टम करने में किसी को आखिर गुरेज क्यों होगा? जाहिर है तकनीक है एक सीमा तक निर्भरता हो सकती है पर गैर सीमित तो नहीं हुआ जा सकता। दूध का दूध और पानी का पानी हो जाय तो ईवीएम पर डगमगाता विष्वास ही बढ़ेगा जो आगे की राजनीति और लोकतंत्र दोनों को मुनाफे में ले जायेगा।
ऐसा नहीं है कि ईवीएम केवल फंसाद की जड़ है। देखा जाय तो ईवीएम के चलते चुनाव की प्रक्रिया आसान हुई है। गौरतलब है कि ईवीएम भारत इलैक्ट्राॅनिक लिमिटेड बंगलुरू और इलैक्ट्राॅनिक काॅरपोरेषन और इण्डिया लिमिटेड हैदराबाद द्वारा विनिर्मित 6 बोल्ट की एल्कलाइन बैटरी पर चलती है। इसका उपयोग वहां भी सम्भव है जहां बिजली का कनेक्षन न भी हो। इसके होने से लाखों-करोड़ों की संख्या में मतपत्रों की छपाई से मुक्ति मिल जाती है जिसके चलते कागज, मुद्रण, परिवहन, भण्डारण, वितरण यहां तक कि बड़ी लागत की भी बचत होती है साथ ही मतगणना भी तेजी से होती है। जहां मतगणना करने में 30 से 40 घण्टे लगते हों वहां ईवीएम के माध्यम से मतगणना मात्र दो-तीन घण्टे में ही सम्भव है। तमाम फायदों के बावजूद इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि यह तकनीक हर लिहाज़ से दुरूस्त है। ऐसा भी नहीं है कि आरोप एकतरफा है। लालकृश्ण अडवाणी से लेकर सुब्रमण्यम स्वामी तक इस पर संदेह जता चुके हैं। फर्क यह है कि उस समय उनका दल चुनाव हारा था, आज मायावती इसी मुकाम पर है। माना हारने वालों ने ही ईवीएम पर सवाल खड़े किये हैं पर इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता। मायावती ने प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित षाह को चुनौती दी है कि यदि उनमें हिम्मत है तो चुनाव रद्द कर फिर से चुनाव करायें। यह भी कहा है कि चुनाव बैलेट पेपर पर करवायें। इतना ही नहीं मायावती ने चुनाव आयोग को भी पत्र लिखा है कि ईवीएम पर लोगों का भरोसा नहीं है। देष की षीर्श अदालत ने ऐसे ही निर्देष निर्वाचन आयोग को पहले भी दिया था पर ठोस कार्यवाही किस पैमाने तक हुई बता पाना मुष्किल है। 
पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में हार-जीत की चर्चा के बाद अब ईवीएम पर परिचर्चा छिड़ गयी है। जिस तर्ज पर भाजपा ने उत्तर प्रदेष और उत्तराखण्ड में वोटों के कारोबार में अव्वल रही है और जिस तरह विपक्षी धराषाही हुए हैं उसे देखते हुए उनका आरोप लगाना कोई हैरत की बात नहीं है पर यह मात्र गड़बड़ी के चलते ही जीत हुई है ऐसा सोचना सही नहीं होगा। मायावती के सुर में कई विरोधी समेत उत्तराखण्ड के हरीष रावत एकमत राय रख रहे हैं। असल सच्चाई यह है कि ये सभी लोकतंत्र के हाषिये पर इन दिनों फेंके जा चुके हैं। बावजूद इसके जिस सवाल को मायावती ने खड़ा किया है उसका समाधान खोजा ही जाना चाहिए। केजरीवाल भी दिल्ली में होने वाले स्थानीय निकाय के चुनाव में ईवीएम को लेकर असंतोश जता रहे हैं। फिलहाल हल्के अंदाज में उठा ईवीएम विवाद अब तूल पकड़ रहा है। यहां एक घटना का जिक्र करना ठीक होगा कि बीएमसी के चुनाव में ईवीएम पर एक निर्दलीय प्रत्याषी श्रीकांत षिरसत ने तब सवाल उठाया जब उसके दिये गये वोट का पता ही नहीं चला। उसका कहना था कि परिवार के सदस्यों ने वोट दिया और उसका वोट वहां पर षून्य दिखाया गया। यदि इस बात में सच्चाई है तो ईवीएम में गड़बड़ी समझी जा सकती है। यदि इस प्रकार की गड़बड़ी से ईवीएम परे नहीं है तो देष में इतने बड़े चुनाव में कहीं भी इस पर सवाल न उठे यह सम्भव नहीं है। इससे बचने का एक ही रास्ता है कि इसकी तकनीक की पड़ताल हो और वास्तुस्थिति को जनता के समक्ष रखा जाय ताकि ईवीएम पर डगमगाते विष्वास को फिर से लोकतांत्रिक बनाया जा सके। इस बात की चिन्ता किये बगैर किये सवाल किसने उठाये हैं बल्कि इस बात की चिंता करके कि सवाल कितने वाजिब हैं। 

सुशील कुमार सिंह


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