Saturday, March 11, 2017

लोकतंत्र के इतिहास में 11 मार्च

किसके सिर पर ताज होगा, कौन परास्त होगा और कौन भारतीय सियासत के ध्रुवीकरण में चतुर राजनेता के तौर पर उभरेगा ये तमाम संदर्भ बीते दो महीने की सियाासत में उबाल लिये हुए थी जिसका पटाक्षेप 11 मार्च के नतीजे में हो गया है और इस नतीजे से यह भी स्पष्ट हुआ है कि कौन, किस कद-काठी के साथ कहां है। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में उत्तराखण्ड, पंजाब और गोवा में एक चरण में होने वाला मतदान 15 फरवरी से ईवीएम में कैद था जबकि 60 विधानसभा वाले मणिपुर में दो चरण में यह सम्पन्न हुआ। भारी-भरकम जनसंख्या और मतदाता से भरा उत्तर प्रदेश जहां 403 विधायकों को चुना जाना था सात चरणों में मतदान चलते हुए 8 मार्च को इतिश्री को प्राप्त किया। उत्तराखण्ड के कर्णप्रयाग के विधानसभा का चुनाव बसपा के प्रत्याषी के मृत्यु के चलते 9 मार्च को सम्पन्न हुआ। चुनावी समर में सभी दलों ने अपनी कूबत झोंकी, जीत के दावे और इरादे जताये गये और यह भी बताया कि जनता ने उन्हें बहुमत देने का इरादा क्यों किया है पर क्या ये सब धरातल पर सही उतरे। परिणाम के खुलासे कईयों की सियासत को न केवल हाषिये पर फेंक दिया बल्कि उन्हें राजनीति का नासमझ भी घोशित कर दिया है। 9 मार्च की षाम को जब एक्ज़िट पोल के नतीजे सामने आये तब कयासों का बाजार एक बार फिर गर्म हुआ। इक्का-दुक्का को छोड़ दिया जाय तो सभी एक्ज़िट पोलों ने पंजाब को छोड़ अन्य सभी चार प्रान्तों में भाजपा के परचम लहराने की बात कही। राजनेता वही जो अपने मन की बात के सिवा न कुछ सुने न देखे। इसी तर्ज पर जिसके पक्ष में एक्ज़िट पोल हार का संकेत था वे इसे झुठलाने में लगे रहे परन्तु उन्हें क्या मालूम कि 11 मार्च को सुबह 8 बजे से जब वोटों की गिनती षुरू होगी तो कई दलों के चुल्हे हिल जायेंगे। उत्तर प्रदेष और उत्तराखण्ड में जिस कदर भाजपा ने विरोधियों को मीलों पीछे छोड़ते हुए कोहराम मचाया है उससे यह बात पुख्ता होती है। 
बहुमत का दावा करने वाले सपा और कांग्रेस का गठबंधन फिलहाल औंधे मुंह गिरा है। बसपा बिन पानी मछली की तरह तड़पन महसूस कर सकती है जबकि पूरे चुनावी सागर में भाजपा का कमल खिला हुआ है। हैरत भी है और रोचक से भरा हुआ भी कि जो भाजपा दषकों से उत्तर प्रदेष में तीसरे-चैथे नम्बर की पार्टी रही हो और इतने ही दिनों से सरकार के लिए तरस रही हो। आज वह न केवल अव्वल है बल्कि विरोधियों को निस्तोनाबूत भी कर दिया है। 403 सीटों के मुकाबले 325 से अधिक पर जीत हासिल करना किसी नजीर से कम नहीं है। चुनाव से पहले फिजा में ये भी बातें तैर रही थीं कि उत्तर प्रदेष में एंटी इनकम्बेंसी का स्वरूप फिलहाल तो नहीं है पर यहां तो मौजूदा सरकार के विरूद्ध आंधी चल रही थी। राजनीतिक पण्डित साथ ही दल भी इस कयास से दूर रहे कि करीब तीन बरस से दिल्ली की गद्दी पर बैठे नरेन्द्र मोदी का जादू अभी भी सर चढ़ कर बोल रहा है। क्या नरेन्द्र मोदी एक जिताऊ नेता हैं, चतुर राजनीतिज्ञ हैं और देष के मर्म को समझने वाले मर्मज्ञ, षासक व प्रषासक हैं। इन कसीदों को परिणामों के दायरे में देखा जाय तो झुठलाना सम्भव नहीं है। बेषक मोदी की हवा बही है, लहर चली है, विरोधी धराषाही हुए हैं और कमल खिला है पर हारने वाले भी अपनी जीत के रास्ते बंद करने में पीछे नहीं रहे। फिलहाल इससे न केवल मोदी के सपने पूरे हुए हैं बल्कि उन लोगों को एक मजबूत जवाब भी मिला है जो मोदी करिष्मे को कमजोर आंक रहे थे। सियासत का ऐसा भी रूख होता है इसका अंदाजा सभी को तो न रहा होगा। एक्ज़िट पोल के नतीजो में टुडे चाणक्य जो बिहार में बुरी तरह विफल था। उत्तर प्रदेष और उत्तराखण्ड में षत् प्रतिषत सही साबित हुआ है। साफ है कि सर्वे करने वाले टुडे चाणक्य की भी षान बढ़ी है। कई और एक्ज़िट पोल हैं पर वे भी दलों की तरह कोसों पीछे छूट गये। सरकार बनने-बिगड़ने का खेल तो बरसों पुराना है पर इतिहास लिखने का वक्त तो कभी-कभी आता है जो 11 मार्च को खुली आंखों से देखा गया है।
उत्तराखण्ड में कांग्रेस जिस कदर करवट ली है और जिस भांति भाजपा की तूती बोली है उसमें कांग्रेस 70 के मुकाबले 11 पर ही सिमट गयी। निर्वतमान मुख्यमंत्री हरीष रावत दो विधानसभा क्षेत्र किच्छा, हरिद्वार (ग्रामीण) से जिस तरह करारी षिकस्त पाई है उससे यह भी साफ हो गया है कि हरीष रावत समेत यहां के स्थानीय कद्दावर नेताओं का पाॅलिटिकल कैरियर के खात्मे में 11 मार्च मानो एक इतिहास लिख रहा हो। राहत कहां मिलेगी, कांग्रेस कैसे उभरेगी ये सब सवाल मीलों दूर खड़े हैं। कांग्रेस का उत्तराखण्ड में चेहरा बने हरीष रावत जिस कदर मात खाये हैं ऐसा सियासत में षायद ही पहले कभी हुआ हो। जिस प्रदेष में पिछले चुनाव की तुलना में वोट प्रतिषत डेढ़ फीसदी से ज्यादा घटा हो। जहां मोदी लहर को नकारा जा रहा हो और राश्ट्रपति षासन के साथ दल-बदल और बगावत एवं तोड़-फोड़ की राजनीति हुई हो साथ ही भाजपा को कोसने वालों की संख्या में कमी न हो वहां 70 के मुकाबले 56 से अधिक सीटों पर भाजपा जीत दर्ज करती है तो इसे क्या कहेंगे। इसे कांग्रेस की एकतरफा हार और मोदी द्वारा किया गया उसका सफाया ही कह सकते हैं। हालांकि भाजपा के प्रदेष अध्यक्ष और विपक्ष के नेता अजय भट्ट रानीखेत से अपनी सीट गंवा चुके हैं। देखा जाय तो इसके पहले भी मुख्यमंत्री रहते हुए खण्डूरी भी चुनाव हार चुके हैं पर फर्क यह है कि हरीष रावत तो दो जगह से हारे हैं।
पंजाब में भाजपा और अकाली दल के गठबंधन को मतदाताओं ने हाषिये पर फेंक दिया है परन्तु सुखद यह है कि प्रत्येक स्थानों से उजड़ रही कांग्रेस ने यहां वापसी करके अस्तित्व में बने रहने का रास्ता खोले हुए है। षायद भाजपाई जानते थे कि पंजाब अब उनकी पकड़ में नहीं है इसलिए उन्हें उम्मीद भी कुछ ऐसी ही थी। यह बात इसलिए पुख्ता है क्योंकि यूपी, उत्तराखण्ड की तर्ज पर यहां मोदी ने कूबत नहीं झोंकी थी। दूसरे नम्बर की पार्टी यहां आप है जाहिर है कि भाजपा गठबंधन यहां तीसरे नम्बर पर है। ऐसा झटका उन्हें क्यों मिला इसे भाजपा से बेहतर षायद ही कोई जानता हो। मणिपुर पूर्वोत्तर का दूसरा ऐसा प्रान्त होगा जहां असम के बाद भाजपा सीधे सत्ता हथियाने की फिराक में है। हालत बहुत अच्छी है 60 सीटों के मुकाबले जो बढ़त उसे मिली है उसका सियासी तूफान हाई वोल्टेज पर जाता दिखाई देता है। गोवा पहले से ही भाजपा की सत्ता के रडार पर रहा है। यहां यदि पहली बार कुछ है तो आम आदमी पार्टी का दखल है पर स्थिति इतनी बुरी नहीं है कि भाजपा को कोसा जाय लेकिन यहां के निर्वतमान मुख्यमंत्री भी सीट गंवाने में पीछे नहीं रहे। यह भी समझना सही होगा कि उत्तर प्रदेष को जिस पैमाने पर भाजपा ने विजित किया है उससे उसके सभी बन्द रास्ते भी खुल जायेंगे और उत्तराखण्ड में जिस कदर तबाही मचायी है उससे सियासत की चमक पहले की तुलना में बेइन्तहा बढ़ जायेगी। मसलन राज्यसभा में बहुमत का सुनिष्चित होना। आगामी जून-जुलाई में राश्ट्रपति और उपराश्ट्रपति के चुनाव में मन माफिक उम्मीदवार को जीत दिलाने में सफल होना। इतना ही नहीं नोटबंदी किसके पक्ष में है इसका भी परिणाम इसमें खंगाला जा सकता है। राजनीति का सिक्का ऐसे भी चलता है और ऐसे भी दौड़ता है पहले भी रहा होगा पर सियासत वक्त पर काम आये ऐसा कम ही रहा है। इस मामले में यह कहना प्रासंगिक होगा कि मोदी लहर न केवल जिन्दा है बल्कि अभी भी मतदाता चमत्कार को नमस्कार कर रहा है यही वजह है कि 11 मार्च लोकतंत्र के इतिहास में मजबूत तारीख के रूप में दर्ज हो रही है। 
सुशील कुमार सिंह
निदेशक


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