Thursday, January 26, 2023

सिविल सेवा परीक्षा का सुशासनिक परिप्रेक्ष्य

लोक प्रषासन एक ऐसी आवष्यकता है जिसकी उपस्थिति में समानता और स्वतंत्रता को कायम रखना आसान है। सिविल सेवा परीक्षा उस मैराथन दौड़ की तरह है जिसमें हर किसी का मकसद केवल और केवल जीत हासिल करना होता है मगर लाखों युवाओं की दौड़ वाली ये परीक्षा महज सैकड़ों के चयन तक ही  सीमित हो जाती है। भारत जैसे विषाल और विविधतापूर्ण समाज में संसाधनों और सेवाओं का न्यायपूर्ण वितरण ही सभी की समृद्धि का मूल मंत्र है। यहां गांधी जी का वो कथन याद आ रहा है जहां से संयम, संतुलन और अहंकार के निहित संदर्भ को समझना आसान हो जाता है। गांधी के षब्दों में “तुम्हें एक जंतर देता हूं जब भी तुम्हे संदेह हो या तुम्हारा अहं हावी होने लगे तो ये कसौटी अपनाओ - जो सबसे गरीब और कमजोर आदमी तुमने देखा हो उसकी षक्ल याद करो और अपने दिल से पूछो कि जो कदम उठाने का तुम विचार कर रहे हो वह उस आदमी के लिए कितना उपयोगी होगा।” सिविल सेवा परीक्षा पाठ्यक्रम को विष्लेशित करके देखा जाये तो साल 2013 में मुख्य परीक्षा की दृश्टि से जो बदलाव किये गये वह बाह्य और आंतरिक दोनों संदर्भों में कहीं अधिक सघन और सार्थक जीवन के समीप खड़ा दिखता है। परम्परागत विशय मसलन इतिहास, भूगोल, अर्थव्यवस्था, विज्ञान व तकनीक तथा राजव्यवस्था आदि का समावेषन हर युग में सुलभ रहा है। मगर बदलाव के साथ बीते एक दषक में सिविल सेवा परीक्षा के पाठ्यक्रम ने जो विस्तार लिया है वह समावेषी और सतत विकास के साथ सुषासन के मापदण्डों को भी बेहतरीन डिजाइन देने जैसा है। सामान्य अध्ययन के प्रथम प्रष्न पत्र में जहां भारतीय समाज को समझना आवष्यक है वहीं द्वितीय प्रष्न पत्र सामाजिक न्याय और षासन को विस्तृत रूप से एक नये अंदाज और स्वरूप में प्रतियोगियों के लिए परोसा गया। जहां समता, स्वतंत्रता, सषक्तिकरण और वर्ग विषेश को एक नई ताकत देने की चिंता निहित है वहीं भुखमरी और गरीबी से जुड़े तमाम दषकों पुराने संदर्भ सामाजिक न्याय के अंतर्गत एक नये चिंतन की ओर युवा पीढ़ी को धकेलता है।
अधिकार एवं दायित्व किसी भी सेवा के दो पहलू होते हैं सिविल सेवा और प्रांतीय सिविल सेवा में यह परिप्रेक्ष्य कहीं अधिक षिखर से भरा रहता है। सिविल सेवक प्रषासन का आधार होते हैं उन पर कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों का भार होता ही है साथ ही कार्यों को समाज से प्रेरणा मिलती है और स्वयं मान-सम्मान से अभिभूत रहते हैं। सिविल सेवा परीक्षा के पाठ्यक्रम में बदलाव के पीछे कई महत्वपूर्ण कारक रहे हैं जिसमें परिवर्तित और वैष्विक संदर्भ को संतुलित करने हेतु कईयों का परिमार्जन स्वाभाविक था। आचरण और अभिवृद्धि की दृश्टि से देखा जाये तो इस परीक्षा की अपनी एक सूरत है और इसमें चयन होने वाले से यह उम्मीद होती है कि वह देष के चेहरे को विकासमय बनाये मगर भ्रश्टाचार एक ऐसी जड़ जंग व्यवस्था है जिससे यह सेवा बाकायदा इसमे भी फंसी हुई है। कुछ महीने पहले पिछले साल झारखण्ड कैडर के आईएएस के आवास से 20 करोड़ की नकदी बरामद हुई। आंकड़े यह भी बताते हैं कि भारतीय प्रषासनिक सेवा समेत कई सेवाओं के अधिकारी ऊपर से नीचे तक कमोबेष रिष्वत और लेनदेन के मामले में अव्वल रहे हैं। करप्षन परसेप्षन इंडेक्स 2021 के आंकड़े यह इषारा करते हैं कि भारत भ्रश्टाचार के मामले में 85वें स्थान पर हैं जबकि 2020 में यही आंकड़ा 86वें स्थान पर था। सिविल सेवा परीक्षा में निहित पाठ्यक्रम में सामान्य अध्ययन का चैथा प्रष्न पत्र जो एथिक्स से लबालब है वहां प्रतियोगी के मानस पटल और कार्मिक व सामाजिक दृश्टि से एक संतुलित अधिकारी होने की धारणा का समावेषन दिखता है। व्यक्ति उदार हो, आचरण से भरा हो, ज्ञान की अविरल धारा लिए हो तथा स्वतंत्रता और समानता का सम्मान करता हो तो सिविल सेवक के रूप में समाज और देष को तुलनात्मक अधिक लाभ मिलना तय है। ऐसी ही मनो इच्छा से यह प्रष्न पत्र युक्त देखा जा सकता है जहां नैतिकता, ईमानदारी और मनोवृत्ति व अभिवृत्ति का पूरा लेखा-जोखा है। मानव स्वभाव से दयाषील हो तो दण्ड का वातावरण कमजोर होता है और यदि मानव एक प्रषासक के रूप में निहायत कठोर और सहानुभूति से परे हो तो विकास और सामाजिक संतुलन दोनों उथल-पुथल में जा सकते हैं। गरीबों के प्रति साहनुभूति, दया की भावना, भावात्मक बुद्धिमत्ता, प्रषासन में ईमानदारी समेत पूरब और पष्चिम के तमाम चिंतकों को अध्ययन करने के लिए यह प्रष्न पत्र मजबूर करता है जो हर लिहाज से एक सकारात्मक दृश्टिकोण न केवल प्रतियोगिता की दृश्टि से विकसित करता है बल्कि मानव की सामाजिक भूमिका और एक सिविल सेवक के रूप में प्रषासनिक भूमिका के लिए भी कहीं अधिक पुख्ता करता है।
सार्वजनिक जीवन के सात सिद्धांत नोलन समिति ने भी दिये थे। जिसमें निस्वार्थता, सत्यनिश्ठा, निश्पक्षता, जवाबदेही, खुलापन, ईमानदारी और नेतृत्व षामिल है। सुषासन लोक सषक्तिकरण का पर्याय है जिसमें लोक कल्याण, संवेदनषील षासन और पारदर्षी व्यवस्था के साथ खुला दृश्टिकोण व सामाजिक-आर्थिक विकास षामिल है। यह समावेषी ढांचे को त्वरित करता है, सतत विकास को महत्व देता है और जन जीवन को सुजीवन में तब्दील करता है। सिविल सेवा परीक्षा के पूरे पाठ्यक्रम को और लाल बहादुर षास्त्री राश्ट्रीय प्रषासनिक आकादमी मसूरी के पूरे ताने-बाने को समझा जाये तो एक अच्छे प्रषासक की तलाष हर दृश्टि से इसमें है। फाउंडेषन कोर्स, प्रोफेषनल ट्रेनिंग, टेªनिंग के दौरान पाठ्यक्रमों का अनुपालन, संरचनात्मक तौर पर एक मजबूत तैयारी की ओर ले जाता है। देष की विविधता को समझने का मौका मिलता है। भारत दर्षन का दृश्टिकोण इसमें षामिल है। मिषन कर्मयोगी का संदर्भ से भी यह ओत-प्रोत है। यह कुषल सार्वजनिक सेवा वितरण के लिए व्यक्तिगत, संस्थागत और प्रक्रिया स्तरों पर क्षमता निर्माण तंत्र में व्यापक सुधार है। देखा जाये तो सिविल सेवा एक ऐसी धारणा से युक्त परीक्षा है तत्पष्चात् प्रषिक्षण है जो नीति निर्माण को लेकर नीति क्रियान्वयन तक बेहद महत्वपूर्ण है। विष्व बैंक ने अपने अध्ययन में पाया है कि जहां कहीं भी सिविल सेवा को राजनीतिक नेतृत्व द्वारा सषक्त किया गया था वहां बदलाव के लगभग हर मामले का नेतृत्व एक सिविल सेवक ने किया था। भारत की संविधान सभा में अखिल भारतीय सेवाओं के बारे में चर्चा के दौरान सरदार पटेल ने कहा था कि “प्रषासनिक प्रणाली का कोई विकल्प नहीं है। संघ चला जायेगा अगर आपके पास ऐसी अच्छी अखिल भारतीय सेवा नहीं है जिसे अपनी राय देने की आजादी हो, जिसे यह विष्वास हो कि आप उसके काम में उसका साथ देंगे तो अखण्ड भारत नहीं बना सकते। अगर आप इस प्रणाली को नहीं अपना सकते हैं तो मौजूदा संविधान का पालन न करें इसकी जगह कुछ और व्यवस्था करें। यह लोक औजार हैं इन्हें हटाने पर और मुझे देष भर में उथल-पुथल की स्थिति के सिवा कुछ नजर नहीं आता।“ दो टूक यह भी है कि देष में प्रषासनिक सेवा जितनी कीमत की है वैसी ही कीमत युवाओं को चयन तक पहुंचने के लिए चुकानी पड़ती है। जवानी गलानी पड़ती है, दिन-रात एक करना पड़ता और अध्ययन के साथ अच्छा इंसान की परिपाटी से युक्त रहना भी इसका हिस्सा है और ऐसा करने में सिविल सेवा परीक्षा के निहित पाठ्यक्रम कारगर सिद्ध होते हैं जो सुषासनिक दृश्टि से भी भारत के लिए अच्छी क्षमता वाला लोक सेवक देने का काम करता है।
 दिनांक : 05/01/2023


डॉ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाउंडेशन ऑफ पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन
लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर
देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)
मो0: 9456120502

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