Thursday, January 26, 2023

तमाम नियोजन के बावजूद आबादी में अव्वल

बढ़ती आबादी का सीधा अर्थ सामाजिक, आर्थिक और प्राकृतिक संघर्श का बढ़त में होना। गरीबी, भुखमरी, बेरोज़गारी, अपराध समेत तमाम रोगों का स्वतः विकास हो जाना। ज्वलंत सवाल यह है कि क्या वाकई में भारत की आबादी चीन को पीछे छोड़ चुकी है। यदि यह वाकई में हुआ है तो भारत भले ही जनसंख्या में दुनिया में प्रथम पर आ गया हो मगर यह उसकी प्राथमिकता षायद ही रही हो। वर्श 2022 की पूर्व संध्या पर संयुक्त राश्ट्र ने एक रिपोर्ट जारी की थी जिसमें अनुमान था कि 2022 के अंत तक चीन और भारत की जनसंख्या लगभग बराबरी के आस-पास होंगे और 2023 में भारत आबादी के मामले में चीन को पछाड़ देगा। अनुमान है कि 2022 के अंत तक भारत की आबादी एक अरब 41 करोड़ से अधिक हो चुकी है। यह दावा जनगणना पर केन्द्रित एक स्वतंत्र संगठन वल्र्ड पाॅपुलेषन रिव्यू का है जो चीन की जनसंख्या से 50 लाख अधिक बता रहा है। चीन ने कहा है कि उसकी जनसंख्या में 1960 के बाद पहली बार कमी दर्ज की गयी है। गौरतलब है कि साल 2022 में चीन की आबादी साढ़े आठ लाख कम हुई है। इसका नतीजा यह जनसंख्या नियंत्रण के चलते भी हो सकता है और कोरोना के चलते मौत की तादाद भी इसका कारण हो सकती है। हालांकि ऐसे आंकड़ों को बाहर नहीं करता है। इसलिए सही कारण बता पाना सम्भव नहीं है। फिलहाल संयुक्त राश्ट्र का अनुमान है कि भारत की आबादी साल 2023 के अंत तक चीन से ज्यादा होगी। आंकड़े यह भी दर्षातेे हैं कि 15 नवम्बर 2022 तक दुनिया 8 अरब की जनसंख्या वाले आंकड़े को छू लेगी जबकि 2030 तक यह 8.5 अरब हो जायेगी और 2050 तक यह आंकडा़ 9.7 अरब के साथ एक भारी-भरकम स्थिति को ग्रहण कर लेगा। संसाधन की दृश्टि से देखा जाये तो पृथ्वी संभवतः 10 अरब की आबादी को पोशण व भोजन उपलब्ध करा सकती है। इतना ही नहीं जनसंख्या का यह आंकड़ा 2080 तक 10.4 अरब की आबादी पर खड़ा दिखाई देगा। सुषासन लोक सषक्तिकरण का परिचायक है जबकि जनसंख्या विस्फोट समावेषी विकास के लिए चुनौती है। सुषासन उसी अनुपात में चाहिए जिस अनुपात में जनसंख्या है साथ ही समावेषी विकास का ढांचा और सतत् विकास की प्रक्रिया इस प्रारूप में हो कि समाज आदर्ष न सही व्यावहारिक रूप से सुव्यवस्थित और सु-जीवन के योग्य हो। इस सुव्यवस्था को प्राप्त करने में जनसंख्या नीति एक कारगर उपाय हो सकता है। यदि इसके गम्भीर पक्ष को देखें तो भारत में जनांककीय संक्रमण द्वितीय अवस्था में है। एक ओर जहां स्वास्थ्य सुविधाओं के विकेंद्रीकरण के चलते मृत्यु दर में कमी आयी है तो वहीं दूसरी ओर जन्म दर में अपेक्षित कमी ला पाने में सफलता नहीं मिल पायी है।  
भारत में जनसंख्या नीति को लेकर कवायद स्वतंत्रता के बाद ही षुरू हो गया था मगर इसे समस्या नहीं मानने के चलते तवज्जो ही नहीं दिया गया। तीसरी पंचवर्शीय योजना के समय जनसंख्या वृद्धि में तेजी महसूस की गयी। जाहिर है ध्यान का क्षेत्र भी व्यापक हुआ और चैथी पंचवर्शीय योजना में जनसंख्या नीति प्राथमिकता में आ गयी। तत्पष्चात् पांचवीं योजना में आपात के दौर में 16 अप्रैल 1976 को राश्ट्रीय जनसंख्या नीति घोशित हुई। इसकी पटकथा उस दौर के हिसाब से कहीं अधिक दबावकारी थी। जनसंख्या नियंत्रण हेतु अनिवार्य बंध्याकरण का कानून बनाने का अधिकार दे दिया गया था और इसे लेकर पहल भी हुई। फिलहाल सरकार के पतन के साथ यह नीति भी छिन्न-भिन्न हो गयी। जब 1977 में पहली गैर कांग्रेसी सरकार आयी तब एक बार फिर नई जनसंख्या नीति फलक पर तैरने लगी। पुरानी से सीख लेते हुए इसमें अनिवार्यता को समाप्त करते हुए स्वेच्छा के सिद्धांत को महत्व दिया गया और परिवार नियोजन के बजाय परिवार कल्याण कार्यक्रम का रूप दिया गया। इस जनसंख्या नीति से क्या असर पड़ा यह प्रष्न आज भी उत्तर की तलाष में है। जाहिर है इसका कुछ खास प्रभाव देखने को नहीं मिलता। जून 1981 में राश्ट्रीय जनसंख्या नीति में संषोधन हुआ। फिलहाल कवायद परिवार नियोजन की जारी रही मगर देष की आबादी बढ़ती रही। 1951 में भारत की जनसंख्या 36 करोड़ थी और 2001 तक यह आंकड़ा एक अरब को पार कर गया। यह इस बात का संकेत था कि जनसंख्या नियंत्रण हेतु जो नीति को लेकर कोषिष पहले की गयी थी उस पर पहल मजबूत किया जाना चाहिए था।
बढ़ती जनसंख्या की स्थिति को देखते हुए फरवरी 2000 में नई जनसंख्या नीति की घोशणा की गयी जिसमें जीवन स्तर में गुणात्मक सुधार हेतु तीन उद्देष्य सुनिष्चित किये गये थे। बावजूद इसके 2011 की जनगणना में हर चैथा व्यक्ति अषिक्षित और इतना ही गरीबी रेखा के नीचे दर्ज था। सवाल दो हैं पहला यह कि भारत में जनसंख्या नीति को लेकर नैतिक सुधार किया जा रहा है यदि ऐसा है तो इसे जनसंख्या नियंत्रण के बजाय गुणवत्ता में सुधार की संज्ञा दी जा सकती है। दूसरा यह कि क्या वाकई में सरकारें परिवार नियोजन को लेकर संजीदा हैं। यदि ऐसा तो पानी सर के ऊपर पहले ही जा चुका है। भारत की जनसंख्या नीति अब केवल एक सरल मुद्दा नहीं है बल्कि यह धर्म और सम्प्रदाय में उलझने वाला एक दृश्टिकोण भी बन गया है। दिल्ली हाईकोर्ट में जनसंख्या नियंत्रण को लेकर एक याचिका दायर की गयी थी जिसमें इस दिषा में केन्द्र सरकार से कदम उठाने को लेकर निर्देष की मांग की गयी। अपील में यह था कि देष में अपराध, प्रदूशण बढ़ने और संसाधनों तथा नौकरियों में कमी का मूल कारण जनसंख्या विस्फोट है। दो टूक यह भी है कि ऐसी समस्याएं ही सुषासन की भी चुनौतियां हैं जहां पर लोक कल्याण ओर संवेदनषीलता आभाव में होगा वहां सुषासन खतरे में होगा। जनसंख्या विस्फोट सुदृढ़ विकास, सु-जीवन और लोक कल्याण को सभी तक पहुंचाने में कारगर तो नहीं हो सकता तो फिर सुषासन कैसे मजबूत होगा।
भारत दुनिया का ऐसा पहला देष है जो सबसे पहले 1952 में परिवार नियोजन को अपनाया। बावजूद इसके आज वह दुनिया की सबसे बड़ी आबादी बनने की कगार पर खड़ा है। यहां चीन की चर्चा लाज़मी है। चीन में एक बच्चा नीति की षुरूआत 1979 में हुई थी। तीन दषक के बाद एक बच्चा नीति पर इसे पुर्नविचार करना पड़ा। हालांकि चीन में जन्म दर में 2.81 फीसद से गिरावट साल 2000 आते-आते 1.51 हो गया था। मगर यहां युवाओं की संख्या घटी और बूढ़ों की संख्या बढ़ गयी। कई मानते हैं कि भारत में इस वजह को देखते हुए जनसंख्या नियंत्रण कानून की अभी जरूरत नहीं है। विभिन्न राज्यों में कई नीति-निर्माताओं ने जनसंख्या विस्फोट और जनसंख्या नियंत्रण की आवष्यकताओं को गलत बताया है। साल 2021 में उत्तर प्रदेष ने विष्व जनसंख्या दिवस के अवसर पर 2021-30 के लिए नई जनसंख्या नीति जारी की। जिसमें 2026 तक प्रति हजार जनसंख्या पर 2.1 और 2030 तक 1.9 तक लाने का लक्ष्य रखा गया था। भारत का क्षेत्रफल विष्व के क्षेत्रफल का महज 2.4 फीसद है और आबादी 18 फीसद है। दक्षिण भारत के अधिकांष राज्यों ने जनसंख्या नियंत्रण पर सराहनीय कार्य किया है। केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेष में सर्वाधिक गिरावट है जबकि उत्तर प्रदेष, बिहार, राजस्थान, हरियाणा आदि में जनसंख्या दर उच्च बनी हुई है। हम दो हमारे दो का नारा भारत में चार दषक पहले गूंजा था मगर यह विज्ञापनों में ही सिमट कर रह गया। छोटा परिवार, सुखी परिवार की अवधारणा भी दषकों पुरानी है मगर इस सूत्र को भी लोग काफी हद तक अपनाने से पीछे हैं। छोटा परिवार, बेहतर परवरिष और परिवेष प्रदान करता है और सभी के लिए खुषहाली और षांति का राह तैयार करता है। कनाडाई माॅडल में देखें तो सुषासन षांति और खुषहाली का ही परिचायक है जो सीमित जनसंख्या से ही सम्भव है।
दिनांक : 19/01/2023


डॉ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाउंडेशन ऑफ पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन
लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर
देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)
मो0: 9456120502

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