Thursday, January 26, 2023

सुशासन और नैतिकता का पारिस्थितिकी तंत्र

पीटर पार्कर का एक प्रसिद्ध कथन है कि ”अधिक षक्ति या सत्ता के साथ अधिक जिम्मेदारी भी आती है।“ जिस प्रकार दायित्व की पूर्ति के लिए अधिकारों का होना आवष्यक है उसी प्रकार नीतियों को कारगर तरीके से प्रसार देकर जनहित को सुनिष्चित करने के लिए नैतिकता अनिवार्य है। एक सक्षम प्रषासक में निश्पक्षता और सत्यनिश्ठा के साथ पारदर्षिता का समावेषन हो तो बात सुषासन से युक्त हो जाती है। विदित हो कि जैसे राश्ट्र या राज्य के स्तर पर जैव भौगोलिक क्षेत्र होते हैं वैसे विधायी और कार्यकारी स्तर पर नैतिकता और निश्पक्षता के पारिस्थितिकी तंत्र की सघन आवष्यकता बनी रहती है। सिविल सेवकों के लिए आचार संहिता, भ्रश्टाचार निवारण अधिनियम और अनेक प्रषासनिक कानूनों से नैतिकता को सबल बनाने का प्रयास किया गया है पर इसे और किस कसौटी पर ले जाना है इसकी दूरदर्षिता भी आवष्यक है। मैक्स वेबर ने अपनी पुस्तक सामाजिक-आर्थिक प्रषासन में इस बात को उद्घाटित किया था कि नौकरषाही प्रभुत्व स्थापित करने से जुड़ी एक व्यवस्था है जबकि अन्य विचारकों की यह राय रही है कि यह सेवा की भावना से युक्त एक संगठन है। इसमें कोई दो राय नहीं कि इस्पाती ढांचे वाली नौकरषाही बीते तीन दषकों से प्लास्टिक फ्रेम वाली सिविल सेवक बन गयी है और ऐसा 1991 के उदारीकरण से देखा जा सकता है। मगर दो टूक यह भी है कि क्या राजनीतिक कार्यपालिका नैतिकता के इस पड़ाव पर आचार नीति के मामले में सफल कही जायेगी। संसद हो या विधानसभा दागी सांसदों और विधायकों की फहरिस्त भी लम्बी रही है जो तमाम कोषिषों के बावजूद बरकरार देखी जा सकती है। लोकतंत्र का लेखा-जोखा संख्या बल पर है न कि सत्यनिश्ठा और नैतिकता पर जैसा कि इन दिनों की राजनीतिक स्थितियों में यह झलकता है। जाहिर है आचरण नीति केवल सिविल सेवकों के लिए नहीं बल्कि उन तमाम कार्यकारी के लिए व्यापक रूप में होना चाहिए जो राश्ट्र और राज्य में ताकतवर हैं और वैधानिक सत्ता से पोशित हैं साथ ही देष बदलने की इच्छाषक्ति तो रखते हैं लेकिन लोभ और लालच से मुक्त नहीं हैं। इतना ही नहीं भरोसा तब डगमगाता है जब जनसेवा के प्रति समर्पण में कमी और भ्रश्टाचार में लिप्त मिलते हैं। न्यू इण्डिया में कम से कम तो यह बात आ जानी चाहिए कि नई लोकसेवा के साथ संसद और विधानमण्डल का पारिस्थितिकी तंत्र नई नैतिक आचरण से युक्त हो। हालांकि इस मामले में सकारात्मक विचार रखने में कोई बुराई नहीं है मगर इस पर अंधा विष्वास करने से बुरी बात कोई नहीं है।

स्पेन की सुषासनिक संहिता पर दृश्टि डाले तो यह दुनिया में कहीं अधिक प्रखर रूप में दिखती है जहां निश्पक्षता, तटस्थता व आत्मसंयम से लेकर जन सेवा के प्रति समर्पण समेत 15 अच्छे आचरण के सिद्धांत निहित हैं। आचार नीति मानव चरित्र और आचरण से सम्बंधित है। यह सभी प्रकार के झूठ की निंदा करती है। चुनाव के दिनों में तो आदर्ष चुनाव आचार संहिता भी पारदर्षिता और निश्पक्षता को लेकर राजनीतिक दलों और प्रत्याषियों पर लागू हो जाती है। मौजूदा समय में 3 पूर्वोत्तर राज्यों में मेघालय, त्रिपुरा और नागालैण्ड में चुनावी बिगुल बज चुका है और नैतिकता के साथ आचरण नीति की आवष्यकता एक बार फिर इन छोटे राज्यों में प्रवेष कर रहा है। निर्वाचन आयोग कितना सफल रहेगा और चुनावी होड़ में षामिल सियासतदान आचरण षास्त्र में कितने सषक्त और सहयोगी बनेगे। यह समय-समय पर प्रतिबिंबित होता रहता है और आगे भी परिलक्षित होता रहेगा। द्वितीय प्रषासनिक सुधार आयोग ने आचार नीति पर अपनी दूसरी रिपोर्ट में षासन में नैतिकता से सम्बंधित कई सिद्धांतों को उकेरा था। पूर्व राश्ट्रपति व मिसाइल मैन डाॅ0 एपीजे अब्दुल कलाम ने कहा था कि भ्रश्टाचार जैसी बुराईयां कहां से उत्पन्न होती हैं? यह कभी न खत्म होने वाले लालच से आता है। भ्रश्टाचार मुक्त नैतिक समाज के लिए इस लालच के खिलाफ लड़ाई लड़नी होगी और मैं क्या दे सकता हूं की भावना से इस स्थिति को बदलना होगा। इस बात को बिना दुविधा के समझ लेना ठीक होगा कि देष तभी ऊंचाई को प्राप्त करता है जब षासन में आचार नीति सतही नहीं होता है बल्कि पूरी व्यवस्था इससे सराबोर रहती है साथ ही जब यह कागजी नहीं होती बल्कि स्नायुतंतुओं में घर कर चुकी होती है। जिम्मेदारी और जवाबदेही आचार नीति के अभिन्न अंग हैं और यह सुषासन की पराकाश्ठा भी है। आचार नीति एक ऐसा मानक है जो बहुआयामी है और यही कारण है कि यह दायित्वों के बोझ को आसानी से सह लेती है। यदि दायित्व बड़े हों और आचरण के प्रति गम्भीर न हों तो जोखिम बड़ा होता है।
विविध देषों ने समय-समय पर अपनी मंत्री विधायकों और सिविल सेवकों के लिए नैतिक संहिता के निर्धारित करने से जुड़े मुद्दों का समाधान किया है। अमेरिका में यह मंत्री संहिता, संयुक्त राश्ट्र सिनेट में आचार संहिता और कनाडा में मंत्रियों के लिए मार्गदर्षन है जबकि बेलीज में आचार संहिता संविधान में ही निर्धारित की गयी है। भारत सरकार ने एक आचार संहिता निर्धारित की है जो केन्द्र और राज्य सरकार दोनों के मंत्रियों पर लागू होती है। इनमें कई अन्य बातों के साथ मंत्रियों द्वारा उसकी सम्पत्ति और देनदारियों का खुलासा करने साथ ही सरकार में षामिल होने से पहले जिस किसी भी व्यवसाय में थे उससे स्वयं को अलग करने के अलावा स्वयं या परिवार के किसी सदस्य आदि के मामले में कोई योगदान या उपहार स्वीकार नहीं करने की बात कही गयी है। गौरतलब है कि नैतिकता के पैमाने पर सुषासन को जब कसा जाता है तो बात काफी अधूरी दिखती है। इसकी बड़ी वजह आचरण नीति के अनुपालन में कमी है। राजनीतिक प्रक्रिया का अपराधीकरण तथा राजनेताओं, लोक सेवकों और व्यावसायिक घरानों के बीच अपवित्र गठजोड़, लोकनीति के निर्धारण और षासन पर घातक असर डालता है। भारत के लोकतांत्रिक षासन को ज्यादा गम्भीर खतरा अपराधियों और बाहुबलियों से है जो राज्य की विधानसभाओं और देष की लोकसभा में अच्छी-खासी जनसंख्या में घुसने लगे हैं। अब तो ऐसा लगता है कि एक ऐसी राजनीतिक संस्कृति अपनी जड़े जमा रही है जिसमें संसद या विधानसभा की सदस्यता को निजी फायदे और आर्थिक लाभ हासिल करने के अवसर के रूप में देखा जा रहा है। इस आधार को व्यापक समझ से देखें तो सुषासन और आचरण नीति दोनों घाटे में दिखते हैं। बावजूद इसके आचार नीति और उसके पारिस्थितिकी तंत्र को प्राप्त करने का भरोसा नहीं छोड़ा जा सकता। लाख टके का सवाल यह भी है कि देष में वैधानिक सत्ता से काम चलता है। विविध भाशा-भाशी और संस्कृति से युक्त भारत भावना और संस्कृति से भरा है मगर विष्वसनीयता और दक्षता के साथ ईमानदारी पर संषय भी उतना ही बरकरार रहता है कि जिन्हें जिम्मेदारी मिली है क्या वे पूरा न्याय भी करते हैं। नेता कौन होता है, उसके गुण और जिम्मेदारियां क्या होती हैं, एक समुदाय, समाज या राश्ट्र में समृद्धि, आर्थिक उन्नति स्थायित्व, षान्ति और सद्भाव आदि कैसे विकसित हों यह नेतृत्व को समझना होता है। देखा जाये तो नेतृत्व मुख्य रूप से बदलाव का प्रतिनिधित्व होता है और उन्नति उसका उद्देष्य। मात्र लोगों की आकांक्षाओं को ऊपर उठाना, सत्ता हथियाना और नैतिकविहीन होकर स्वयं का षानदार भविश्य तलाषना न तो नेतृत्व की श्रेणी है और न तो यह आचार नीति का हिस्सा है। यहां पूर्व राश्ट्रपति एपीजी अब्दुल कलाम का एक कथन फिर ध्यान आ रहा है कि सुयोग्य नेता नैतिक प्रतिनिधित्व प्रदान करता है। जाहिर है यदि नेता सुयोग्य है तो आचार नीति का समावेषन स्वाभाविक है।
लोक प्रषासन में नैतिकता के पारितंत्र को परिभाशित करने के लिए विभिन्न कानूनों, नियमों और विनियमों के माध्यम से इसे व्यापक रूप दिया गया है। 1930 के दषक में ब्रिटिष सिविल सेवकों के लिए क्या करें और क्या न करें निर्देषों का एक संग्रह जारी किया गया था। स्वतंत्रता के बाद भी आचार नीति का निर्माण इसी पारितंत्र का हिस्सा था। संविधान में काम-काज की समीक्षा के लिए राश्ट्रीय आयोग द्वारा साल 2001 में प्रषासन में ईमानदारी को लेकर जारी परामर्षपत्र में कई विधायी और संस्थागत मुद्दों पर प्रकाष भी डाला गया था जिसमें बेनामी लेन-देन, अवैध रूप से सिविल सेवकों द्वारा अर्जित सम्पत्तियां आदि षामिल थे। गौरतलब है कि सुषासन विष्वास और भरोसे पर टिका होता है। षासन में ईमानदारी से सार्वजनिक जीवन में जवाबदेही, पारदर्षिता और सत्यनिश्ठा का सुनिष्चित होना सुषासन की गारंटी है। सुषासन के चलते ही आचार नीति को भी एक आवरण मिलता है। दूसरे षब्दों में अच्छे आचरण से षासन, सुषासन की राह पकड़ता है। संयुक्त राश्ट्र महासभा ने 2003 में भ्रश्टाचार के खिलाफ संकल्प को मंजूरी दी है। ब्रिटेन में सार्वजनिक जीवन में मानकों पर समिति बनायी गयी जिसे नोलान समिति के रूप में जाना जाता है। जिसमें सात मुख्य बाते निस्वार्थता, सत्यनश्ठिा, निश्पक्षता, जवाबदेही, खुलापन, ईमानदारी और नेतृत्व षामिल थी। देष में संस्थागत और कानूनी ढांचा कमजोर नहीं है दिक्कत इसके अनुपालन करने वाले आचरण में है। केन्द्रीय सतर्कता आयोग, सीबीआई, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, लोकपाल और लोकायुक्त जहां सुषासन स्थापित करने के संस्थान हैं तो वहीं भारतीय दण्ड संहिता, भ्रश्टाचार निवारण अधिनियम और सूचना के अधिकार समेत कई कानून देखे जा सकते हैं। गौरतलब है सुषासन की पराकाश्ठा की प्राप्ति हेतु एक ऐसे आचार नीति का संग्रह हो जो संस्कृति, पर्यावरण तथा स्त्री पुरूश समानता को बढ़ावा देने के अलावा आत्मसंयम और सत्यनिश्ठा के साथ निश्पक्षता को बल देता हो। हालांकि ऐसी व्यवस्थाएं पहले से व्याप्त हैं मगर अनुपालन के लिए एक नई संहिता की आवष्यकता है। दूसरे षब्दों में कहें तो न्यू इण्डिया को नई सुषासन संहिता चाहिए जिससे नैतिकता के समूचित पारिस्थितिकी तंत्र को विकसित किया जा सके। यह सच है कि जनता और मीडिया मूकदर्षक नहीं है साथ ही न्यायिक सक्रियता भी बढ़ी है। बावजूद इसके वह सवाल जो हम सबके सामने मुंह बाये खड़ा है कि लोकतंत्र के प्रवेष द्वार पर अपराध कैसे रूके और वैधानिक सत्ताधारक आचार नीति में पूरी तरह कैसे बंधे।
दिनांक : 19/01/2023


डॉ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाउंडेशन ऑफ पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन
लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर
देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)
मो0: 9456120502

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