Thursday, August 4, 2022

सुशासन को चाहिए सशक्त जवाबदेही


गांधी जी ने सत्य पर अनेकों प्रयोग किये और उनका जीवन ही सत्य और जवाबदेही से घिरा रहा साथ ही कर्त्तव्यनिश्ठा उनकी बुनियादी प्रतिबद्धता थी। स्वतंत्रता के 75वें वर्श में आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है साथ ही ‘हर घर तिरंगा‘ अभियान जारी है। गांधी दर्षन से उदित तमाम विचार यह संदर्भित करते हैं कि सरकार को अपनी भूमिका में कितना बने रहने की आवष्यकता है। क्या बीते 7 दषकों में इस सवाल का जवाब मिल गया है कि षासन और प्रषासन ने अपनी भूमिका निभाने और पंक्ति में खड़े अन्तिम व्यक्ति को न्याय दे दिया है। सर्वोदय की कसौटी पर सुषासन का पैमाना कहीं अधिक सारगर्भित है जहां लोक सषक्तिकरण को अवसर मिलता है। महंगाई की मार हो या युवाओं के सामने बेरोजगारी की समस्या या फिर गरीबी ही क्यों न हो उक्त समस्याएं सषक्त जवाबदेही की मांग करती हैं ताकि सुषासन की राह में कांटे कम किये जा सके। जवाबदेही का सिद्धांत सभ्यता जितना ही पुराना है। यह एक ऐसा दायित्व है जिसमें कार्य को अक्षरतः पूरा करना षामिल है। सरकार के समूचे कामकाज के लिए वित्तीय जवाबदेही बेहद महत्वपूर्ण है। संसद में पारित किये जाने वाले बजट और उसके खर्च से होने वाले विकास के प्रति सुषासनिक दृश्टिकोण इस जवाबदेही को पूर्ण करती है। देष और नागरिक को क्या चाहिए इसकी समझ उसी जवाबदेही का हिस्सा है। बेरोजगारी, गरीबी, षिक्षा में कठिनाई, भ्रश्टाचार और विकास में कमी जैसी तमाम समस्याओं का निपटारा समय से न हो तो कठिनाई निरंतरता ले लेती है। ऐसा नहीं है कि बुनियादी विकास मसलन षिक्षा, चिकित्सा, सुरक्षा, सड़क, बिजली, पानी आदि में कमोबेष परिवर्तन नहीं हुआ है बावजूद इसके जिम्मेदारी का परिप्रेक्ष्य यहां भी रोज चुनौती में रहता है।
 समावेषी विकास और सतत विकास तीन दषक से चलायमान है फिर भी गरीबी और भुखमरी जाने का नाम नहीं ले रही है। साल 2020 के मानव विकास सूचकांक में 189 देषों में 131वें स्थान पर भारत का होना और साल 2021 के ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 101वें स्थान पर भारत की स्थिति इस बात को पुख्ता करती है। भारत ने ई-षासन को सफलतापूर्वक लागू करने के लिए अनेक महत्वपूर्ण कदम उठाये हैं लेकिन केन्द्र, राज्य, जिला और स्थानीय षासन के बीच इंटर कनेक्टिविटी से सम्बंधित जटिलतायें अभी भी मौजूद हैं। संयुक्त राश्ट्र के सामाजिक और आर्थिक मामलों के विभाग (यूएनडीईएसए) के द्वारा साल 2020 के ई-षासन सर्वेक्षण में भारत को सौवां स्थान दिया है। पड़ताल बताती है कि ई-षासन विकास सूचकांक के मामले में भारत 2018 में 96वें स्थान पर था। विवेचनात्मक संदर्भ में देखें तो 2016 में 107वां, 2014 में 118वां स्थान रहा। गणना बताती है कि भारत 2014 के मुकाबले 2018 में 22 स्थानों की उछाल लिया मगर यह उछाल बरकरार न रहकर 2020 में सौवें स्थान पर चली गयी। ई-षासन पारदर्षिता का एक बेहतर उपाय है साथ ही एक ऐसा उपकरण जिसमें कार्य संचालन की गति को तीव्रता मिलती है। देष की ढ़ाई लाख पंचायतों में अभी आधी संख्या ई-कनेक्टिविटी से अभी भी वंचित है। ई-भागीदारी के मामले में भारत 2020 में 29वें स्थान पर रहा जबकि 2018 में यह 15वें स्थान पर था। उक्त आंकड़े यह दर्षाते हैं कि लोकतांत्रिक देष में लोक कनेक्टिविटी और ई-भागीदारी को कमतर होने का मतलब तय जवाबदेही के साथ सामाजिक बदलाव में रूकावट और सुषासन के लिए भी बढ़ी चुनौती है।
कोरोना महामारी की दूसरी लहर में साढ़े तीन लाख से ज्यादा लोगों को जान गवानी पड़ी जिसमें लगभग 88 फीसद लोग 45 वर्श और इससे ज्यादा उम्र के थे। जाहिर है यह उम्र परिवार चलाने और संभालने की होती है। भारत में मध्यम वर्ग की स्थिति रोज कुंआ खोदने और रोज पानी पीने वाली रही है। ऐसे में कोरोना के षिकार लोगों के परिवार की आजीविका आज किस स्थिति में है और इसके प्रति कौन जवाबदेह होगा साथ ही इनके लिए षासन ने क्या कदम उठाया इस पर भी जवाबदेही और मजबूत हो तो सुषासन सारगर्भित होगा। कोरोना त्रासदी की कड़वी सच्चाई यह है कि स्वास्थ और अर्थव्यवस्था दोनो बेपटरी हुए। एक अनुमान तो यह भी है कि लॉक डाउन के कारण कम से कम 23 करोड़ भारतीय गरीबी रेखा के नीचे पहुंच गये हैं। विष्व असमानता रिपोर्ट भी यह इंगित करती है कि भारत में 50 प्रतिषत आबादी की कमाई इस वर्श घटी है। रिपोर्ट का लब्बो-लुआब यह भी है कि अंग्रेजों के राज में 1858 से 1947 के बीच भारत में असमानता अधिक थी। उस दौरान 10 प्रतिषत लोगों का 50 प्रतिषत आमदनी पर कब्जा था। हालांकि वह दौर औपनिवेषिक सत्ता का था और लोकतंत्र की अहमियत और महत्व से अनंत दूरी लिए हुए था। स्वतंत्रता के पष्चात् 15 मार्च 1950 को प्रथम पंचवर्शीय योजना का षुभारम्भ हुआ और असमानता का आंकड़ा घट कर 35 प्रतिषत पर आ गया। उदारीकरण का दौर आते-आते स्थितियां कुछ और बदली विनियमन में ढील और उदारीकरण नीतियों से अमीरों की आय बढ़ी वहीं इसी उदारीकरण से षीर्श एक फीसद सबसे अधिक फायदा हुआ। रही बात मध्यम और निम्न वर्ग की तो यहां भी इनकी दषा में सुधार की रफ्तार कहीं अधिक सुस्त रही। जाहिर है यह सुस्ती गरीबी को स्फूर्ति देती है।
जवाबदेही का सरोकार केवल सरकार से नहीं है इसमें जनता भी षामिल है। मौजूदा समय में लोकतंत्र में हिस्सेदारी को लेकर जनता को भी कुछ और कदम बढ़ाना चाहिए। वोट प्रतिषत कम बने रहने की स्थिति यह जताती है कि जनता का एक वर्ग अपने ही खिलाफ काम कर रहा है। कौन, किसके प्रति जिम्मेदार है यह कोई यक्ष प्रष्न नहीं है साथ ही किस बात के लिए जवाबदेही है इससे भी लोग अनजान नहीं है। यदि किसी चीज की कमी है तो अपने दायित्व और जवाबदेही पर खरे उतरने की। सुषासन के कई पहलू हैं और सुषासन लोक विकास की कुंजी भी है। जन भागीदारी के साथ पारदर्षिता, दायित्व और जवाबदेही का अच्छा उदाहरण है। 24 जुलाई 1991 के उदारीकरण के बाद देष में कई सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन हुए और सरकार अपनी जवाबदेही को लेकर चौकन्नी भी हुई नतीजन जनता को सामाजिक-आर्थिक न्याय के साथ तमाम अधिकार प्रदान किये गये। सूचना का अधिकार 2005 सरकार की जवाबदेही और सुषासन की दृश्टि से उठाया गया एक बेहतर कदम है। इसी जवाबदेही को देखते हुए सिटीजन चार्टर, खाद्य सुरक्षा अधिनियम, षिक्षा का अधिकार लोकपाल आयुक्त समेत कई विशय फलक पर आये। फिलहाल मानव सभ्यता और सरकार की जवाबदेही का ताना-बाना एक अनवरत् प्रक्रिया है। यह एक-दूसरे के लिए चुनौती नहीं बल्कि पूरक है।
नैतिक रूप से सबल और संदर्भित वातावरण भी जवाबदेही न केवल बड़ा करता है बल्कि सुषासन को संकीर्ण होने से रोकता भी है। 20 सदी के महान वैज्ञानिक आइंस्टीन ने गांधी के बारे में कहा था कि उन्होंने सिद्ध कर दिया कि केवल प्रचलित राजनीतिक चालबाजियों और धोखाधड़ियों के मक्कारी भरे खेल के द्वारा ही नहीं बल्कि जीवन नैतिकतापूर्ण श्रेश्ठ आचरण के प्रबल उदाहरण द्वारा भी मनुश्यों का एक बलषाली और अनुगामी दल एकत्र किया जा सकता है। गांधी कर्त्तव्यनिश्ठा और जवाबदेहिता के साथ सत्य की परख को बारीकी से समझते थे। औपनिवेषिक काल में अंग्रेजी सत्ता को झकझोरने वाली गांधी की ही देन है कि आज हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं। इसकी असल सफलता तभी सुनिष्चित होगी जब सरकारें जवाबदेही में सषक्त बनें और जनता को बलहीन होने से रोकें।

दिनांक : 4/08/2022


डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

(वरिष्ठ  स्तम्भकार एवं प्रशासनिक चिंतक)

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ  पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

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