Tuesday, August 16, 2022

आजाद भारत की बुलंद तस्वीर

15 अगस्त 1947 यह कोई सामान्य तिथि नहीं बल्कि स्वयं में कई इतिहास का संग्रह है। दो टूक कहें तो इस दिन की प्राप्ति हेतु बरसों-बरस ने अनगिनत और बेषुमार कीमत चुकाई है। औपनिवेषिक सत्ता के उन दिनों में अंग्रेजों की बेड़ियों से जकड़े भारत को मुक्त कराने के लिए स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने न केवल अकूत ताकत झोंकी वरन् आजादी मिलने तक बिना थके अनवरत् इतिहास गढ़ते रहे। इसी तारीख ने यह तय किया कि भारत एक सम्प्रभु राश्ट्र है जहां गणतंत्र और लोकतंत्र की अवधारणा का पूरा विन्यास दिखाई देता है। 26 जनवरी 1950 को लागू संविधान नागरिकों के लिए वह सर्वोच्च ताकत है जो 15 अगस्त की आजादी को चर्मोत्कर्श पर पहुंचाती है। भारत जैसे विविधता से भरे देष में जिस अनुकूलता की खोज आज भी रहती है उसमें समावेषी ढांचा, सतत विकास और सभी तक सब कुछ सुनिष्चित की अवधारणा व्याप्त है। हम इस बात को षायद पूरे मन से एहसास नहीं कर पाते कि स्वतंत्रता दिवस क्या चिन्ह्ति करना चाहता है। भारत आजादी के 75 वर्श पूरा कर रहा है और इन 8 दषकों के दरमियान देष ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। हालांकि आजादी आसान नहीं थी देष बंटवारे का सामना किया और इस मामले में भी अच्छी खासी कीमत चुकाई गयी। वक्त का पहिया धीरे-धीरे अनवरत चलता रहा और 15 अगस्त 1947 षून्य से षुरू यात्रा आज दुनिया के षक्तिषाली देषों में भारत षुमार हो गया। एषियाई देषों में ही नहीं वैष्विक जगत में भी अपने सम्मान और सरोकार को भारत ने बड़ा किया है स्थिति तो यह भी है कि अब अमेरिका जैसे देष भारत को साथ लिए बगैर आगे बढ़ने की सोच नहीं रख पा रहे हैं। जबकि रूस जैसे नैसर्गिक मित्र भारत के बगैर अधूरे महसूस करते हैं। इतना ही नहीं यूरोपीय देषों समेत एषिया, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका महाद्वीप के तमाम देष भारत के साथ चहलकदमी को अपनी रफ्तार समझते हैं। इसी वर्श के फरवरी माह में जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया तो पूरी दुनिया की नजर षांति बहाली को लेकर भारत की ओर थी। दो टूक कहें तो 75 साल की आजादी की यात्रा आज जिस पड़ाव पर है वह दुनिया में बढ़ रही भारत की चमक से अंदाजा लगाना आसान है। दक्षिण चीन सागर में क्वाड के माध्यम से अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और भारत की एकजुटता और हिन्द महासागर में चीन के दखल को दर किनार करने का जो सूत्र इन दिनों विकसित हुआ है वह भी भारत की ताकत का ही नमूना है।
भारत में नागरिक समुदायों के बीच सहिश्णुता, सहयोग और समझौते की भावना लम्बे समय से चर्चा का विशय बनी हुई है। इसमें कोई दुविधा नहीं कि आजादी के साथ देष बुनियादी तौर पर अच्छा खासा रास्ता तय कर लिया है। विकास के उन तमाम आधारों को मजबूती से जमीन पर उतारने में सफल भी रहा है बावजूद इसके धार्मिक संघर्श से पूरी तरह निजात नहीं मिला है। समाज से क्या लेना-देना है और राजनीति को किस मानस पटल के साथ देष में होना चाहिए इसका लेखा-जोखा भी अभी कुछ हद तक षायद बाकी है। आजादी के सौ बरस जब 2047 में होगा तब बची हुई समस्याएं पूरी तरह खत्म होंगी ऐसा नहीं सोचने की कोई वजह नहीं दिखती है। वर्श 2022 का स्वतंत्रता दिवस ठीक 75 वर्श की आजादी को पूरा कर रहा है और इसी दरिमयान आजादी का अमृत महोत्सव इसकी महत्ता और सारगर्भिता को एक नया मुकाम भी दे रहा है। क्या यह पूरे संतोश से कहा जा सकता है कि हाड़-मांस का एक महामानव रूपी महात्मा जो एक युगदृश्टा था जिसने गुलामी की बेड़ियों से भारत को मुक्त कराया, क्या उसके सपने को वर्तमान में पूरा पड़ते हुए देखा जा सकता है। कमोबेष ही सही पर यह सच है कि सपने कुछ अधूरे के साथ काफी कुछ पूरे तो हुए हैं और बचे हुए सपने को पूरा करने की जद्दोजहद अभी जारी है। दुनिया में भारत की चमक बढ़ी है, अमीर देषों में भी भारत की नई पहचान बनी है। संयुक्त राश्ट्र संघ की सुरक्षा परिशद् में भारत की स्थायी सदस्यता को लेकर दुनिया के तमाम अमीर और बड़े देष खुलकर समर्थन करने लगे हैं। खास यह भी है कि जब देष आजादी का 75 वर्श पूरा कर रहा है तब इसी संयुक्त राश्ट्र संघ की सुरक्षा परिशद की अस्थायी अध्यक्षता भारत के पास है। जाहिर है भारत के बिना दुनिया के तमाम देषों के लिए जलवायु परिवर्तन, अन्तर्राश्ट्रीय आतंकवाद और, ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याओं से निपटना सम्भव ही नहीं है।
बुनियादी मापदण्डों में देखें तो वक्त के साथ देष बदलाव भरे करवट से युक्त रहा है। साल 2019 के इसी महीने में जब जम्मू-कष्मीर से अनुच्छेद 370 का खात्मा किया गया तो यह इस बात को पुख्ता किया कि पहले जैसा भारत नहीं है। पाकिस्तान के मामले में भारतीय नीति हो या चीन के मसले में सैन्य कूटनीति क्यों न हो भारत जहां जैसी आवष्यकता पड़ी उसे अधिरोपित करने में पीछे नहीं रहा। यह बात सही है कि वैष्विक फलक पर भारत एक नई बुलंदी पर है। दुनिया भले ही ध्रुवों में बंटी हो मगर भारत के लिए उसके मनमाफिक स्थिति देखने को मिलती है। चीन और पाकिस्तान दो ऐसे अपवाद देष हैं जो पहले और अब भी कूटनीतिक हल को प्राप्त नहीं कर पाये हैं मगर षेश दुनिया के मामले में भारत पहली पंक्ति में खड़ा दिखाई देता है। देष कई आंतरिक संघर्शों से भी युक्त रहा है और यह सिलसिला अभी थमा नहीं है। बेरोज़गारी, बीमारी, गरीबी, भुखमरी, षिक्षा, चिकित्सा, सुरक्षा, सड़क, बिजली और पानी इत्यादि बुनियादी समस्याओं के मामले में अभी पूरी तरह निजात नहीं मिल पाया। मौजूदा दौर तो बेरोज़गारी और महंगाई के मामले में उफान लिए हुए है। सत्ता बहुमत की ताकत से बाकायदा भरी है मगर धरातल पर ऐसी समस्याओं से मुक्ति दिलाने में ना जाने क्यों कमजोर बनी हुई है। हालांकि यही मौजूदा दौर कमजोर विपक्ष से भी युक्त है। षायद यही कारण है कि विपक्ष की अत्यंत कमजोरी और सरकार की अतिरिक्त मजबूती कई समस्याओं के हल में कठिनाई बनी हुई है।
देष वर्तमान में आजादी के 75 साल पूरे होने तक अमृत महोत्सव मना रहा है और यह सिलसिला 12 मार्च 2021 से जारी है तब 15 अगस्त 2022 आने में 75 सप्ताह का फासला था। गौरतलब है कि 12 मार्च दाण्डी मार्च की वह तारीख है जहां से नमक कानून तोड़ने के साथ आजादी की लड़ाई को भी रफ्तार मिली थी। प्रधानमंत्री मोदी का सपना आजादी के 100 साल पूरे होने अर्थात् 2047 तक भारत को विष्व गुरू बनाने का है। यह कहना कठिन है कि उस दौर तक भारत किस अवस्था को हासिल करेगा मगर यह समझना आसान है कि इसकी प्राप्ति हेतु बुनियायदी समस्या से निपटना पहली प्राथमिकता होनी चाहिए साथ ही समावेषी राजनीति को फलक पर लाना आवष्यक होगा। सुषासन को पूरी तरह गढ़ना होगा, कमियों को दरकिनार करना होगा और विकास दर को दहाई से नीचे नहीं आने देना होगा। यह सब तभी सम्भव होगा जब देष में विकास की बयार बहेगी और सुषासन को षब्दांषतः जमीन पर उतारा जायेगा।

 दिनांक : 15/08/2022


डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

(वरिष्ठ  स्तम्भकार एवं प्रशासनिक चिंतक)

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ  पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)



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