Thursday, July 28, 2022

भूमण्डलीकरण और सुशासन

सवाल यह नहीं कि भूमण्डलीकरण ने पूरी दुनिया में षासन को रूपांतरित किया है या नहीं। बल्कि सवाल यह है कि इस रूपांतरण की प्रकृति और मात्रा क्या है साथ ही दुनिया के देष सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक बदलाव के बीच सुषासन को कितना मजबूती दे पाये हैं। गौरतलब है कि भूमण्डलीकरण और सुषासन का गहरा नाता है। भूमण्डलीकरण का एक लक्षण यह भी है कि एक घटनाक्रम सारे संसार को प्रभावित करता है। सुषासन एक लोक प्रवर्धित अवधारणा है जो देष की आंतरिक नीतियों के साथ बाह्य घटनाओं से भी प्रभावित होती हैं। ऐसे में देष विषेश को रणनीतिक तौर पर सुषासनिक बदलाव लाना लाज़मी हो जाता है। मौजूदा दौर विष्व युद्ध का नहीं है मगर रूस और यूक्रेन के बीच जारी जंग वैचारिक रूप से दुनिया को कई ध्रुवों में बांट दिया है जिसके असर से षायद ही कोई देष वंचित हो। आर्थिक सम्बंध जो राजनीतिक वातावरण के कारण विस्तृत होते हैं वे तब घाटे का सामना करने लगते हैं जब दुनिया के देष नकारात्मक हलचलों में फंस जाते हैं मसलन श्रीलंका की आर्थिकी का जर्जर होना जिसका सीधा प्रभाव भारत पर देखा जा सकता है। यहां केवल कूटनीतिक संतुलन ही नहीं बल्कि चीन के चंगुल से श्रीलंका कैसे बच पाये उसके लिए भी भारत को अरबों रूपए राहत के लिए देना पड़ता है। रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध के सिलसिले ने दुनिया को एक नई सोच की ओर धकेल दिया है। आंकड़े यह बताते हैं कि वैष्विक आर्थिक गतिविधियां इस युद्ध के चलते कईयों के लिए बड़ा संकट पैदा कर चुकी हैं। विदित हो कि भारत में काला सागर से आने वाली वस्तुएं भी इस युद्ध से प्रभावित हुई और कुछ लिहाज से महंगाई व अन्य कठिनाइयों का सामना भी इसमें निहित है। जनवरी से मौजूदा समय में जहां रूस की मुद्रा रूबल 37 फीसद बढ़त ले चुकी है वहीं डॉलर रूपए के मुकाबले काफी मजबूत हुआ है हालांकि अमेरिका इन दिनों महंगाई का सामना कर रहा है और उसकी मुद्रास्फीति 9 फीसद से ऊपर चल रही है। इन सबका असर भी भारत समेत दुनिया के तमाम देषों पर पड़ रहा है। देखा जाये तो मौजूदा समय में कई देषों की मुद्राएं निरंतर गिरावट लिए हुए हैं। जिसमें सबसे ज्याद असर जापान की मुद्रा येन है। इंग्लैण्ड 11 फीसद, चीन 5 फीसद से थोड़ा अधिक और भारत भी 7 फीसद की गिरावट लिए हुए है। जाहिर है इसके चलते बाहर से आने वाली तमाम वस्तुएं पर अधिक कीमत चुकानी पड़ रही है। इससे न केवल विदेषी मुद्रा के घटाव में तेजी आती है बल्कि सुषासन की दृश्टि से चुनौती भी बढ़ जाती है।

चीन और अमेरिका के बीच के ट्रेड वॉर बरसों पुराना एक ऐसा झगड़ा है जो आर्थिक रूप से दोनों के लिए अभी भी चुनौती है। कोरोना काल में भारत ने भी चीन से कई प्रारूपों के व्यापार को न केवल रोका था बल्कि उसके 250 से अधिक एप्पस को प्रतिबंधित भी किया था। सीमा विवाद को लेकर दोनों के बीच जहां द्विपक्षीय समस्याएं आज भी कायम हैं वहीं अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत से युक्त वैष्विक संस्था क्वॉड से दक्षिण चीन सागर में चीन के एकाधिकार को चुनौती और हिन्द महासागर में संतुलन प्राप्त करने का प्रयास जारी है। जलवायु व ग्लोबल वार्मिंग की समस्या को भूमण्डलीकरण की दृश्टि से देखें तो स्थायी समस्या का रूप ले चुकी है नतीजन बार-बार हल खोजने की कोषिष के बावजूद समस्याएं मुखर हैं। इंग्लैण्ड इन दिनों 40 डिग्री सेल्सियस तापमान से जूझ रहा है तो वहीं कई यूरोपीय देष के जंगलों में आग लगी हुई है। अमेरिका के हवाई द्वीप में तो समुद्री तूफान जिस कदर ताण्डव किया है वह कहीं न कहीं ग्लोबल वार्मिंग का पूरा प्रभाव दर्षाता है। इतना ही नहीं आतंकवाद भी वैष्विक जगत के लिए उतनी ही बड़ी समस्या के रूप में आज भी कायम है। इससे निपटने के लिए भी वैष्विक मंचों पर दुनिया के देष सुषासनिक दृश्टिकोण गढ़ने हुए देखे जा सकते हैं। दो टूक यह भी है कि समस्या भले ही किसी देष विषेश में व्याप्त हो मगर उसके असर से कई चपेट में रहते हैं। उद्योग, व्यापार, आयात-निर्यात, विज्ञान तकनीक, रोज़गार की अनिष्चितता, गरीबी उन्मूलन की कवायद समेत कृशि आदि तमाम संदर्भों का लेना-देना भूमण्डलीकरण से ही है।
आमतौर पर भूमण्डलीकरण का सम्बंध वस्तुओं एवं सेवाओं, आर्थिक उत्पादों, सूचनाओं और संस्कृति से होता है जो कि अधिक चलायमान होते हैं साथ ही दुनिया में जिनके ज्यादा मुक्त रूप से फैलने की सम्भावना होती है। जबकि सुषासन का परिप्रेक्ष्य ईज़ ऑफ लीविंग, षान्ति, खुषहाली और लोक सषक्तिकरण के बढ़ावा देने से सम्बंधित है जिसका समुचित परिप्रेक्ष्य लोक कल्याण, संवेदनषीलता, पारदर्षिता और खुले दृश्टिकोण से युक्त है। अन्तर्राश्ट्रीय मुद्रा कोश तथा विष्व बैंक के दबाव में साल 1991 में जो स्थायित्व और संरचनात्मक समायोजन देष के सामने प्रकट हुआ तो उसने उदारीकरण, निजीकरण तथा वैष्वीकरण के पथ को चिकना किया। विष्व बैंक की सुषासन पर गढ़ी गयी आर्थिक परिभाशा इसी दौर में नई करवट ली और ब्रिटेन जो मौजूदा समय में राजनीतिक उतार-चढ़ाव से गुजर रहा है वहां 1992 में पहली बार सुषासन की नई लकीर खींची गयी। जबकि नव लोक प्रबंध को अपनाने वाला पहला देष न्यूजीलैंड है। नव लोक प्रबंध सुषासन की राह में एक ऐसी व्यवस्था है जो डी-रेगुलेषन, डी-लाइसेंसिंग, डी-सब्सिडाइजेषन तथा डी-सेंटलाइजेषन पर जोर देता है। सरोकार की दृश्टि से देखें तो सुषासन और नव लोक प्रबंध का गहरा नाता है जो उपभोक्ताओं की सेवा, बाजार मूल्यन, प्रतियोगिता और विकल्प का विस्तार साथ ही समुदायों का सषक्तिकरण इसमें निहित है। जबकि भूमडलीकरण ने पूरी दुनिया में षासन को रूपांतरित किया है। देष और हालात की स्थिति में इसका असर कम-ज्यादा सभी पर हुआ है और आज भी यह निरंतर जारी है।
फिलहाल भारतीय अर्थव्यवस्था भूमण्डलीकरण के तीन दषक पूरे कर चुकी है मगर इस समय अर्थव्यवस्था दोहरे संकट से जूझ रही है। एक ओर जहां कोरोना महामारी से अर्थव्यवस्था कमजोर हुई वहीं महंगाई और तेजी से गिरते रूपए में अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का काम और मुष्किल कर दिया है। हालांकि इन सभी के पीछे भूमण्डलीकरण का प्रभाव कमोबेष है बावजूद इसके सुषासन के उन मापदण्डों को जो जनता की राहत से सम्बंधित है पर कदम उठाना भी सरकार की ड्यूटी है। निहित पक्ष यह भी है कि आंतरिक सुषासन कितना भी सषक्त क्यों न हो भूमण्डलीकरण के चलते उत्पन्न समस्याएं यदि समय रहते समाधान न प्राप्त करें तो संकट लम्बे समय तक बरकरार रहते हैं।

दिनांक : 21/07/2022


डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

(वरिष्ठ  स्तम्भकार एवं प्रशासनिक चिंतक)

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ  पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

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