Thursday, July 28, 2022

विदेशी कर्ज कहीं आर्थिक उपनिवेशवाद तो नहीं!

वैसे उपनिवेशवाद के कई प्रारूप हैं जिसमें कंपनी, प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष समेत उपनिवेषी अवधारणा को देखा जा सकता है। इसी के भीतर राजनैतिक और आर्थिक उपनिवेषवाद की धारणा भी कहीं ना कहीं सन्निहित रहती है। बेलगाम विदेषी कर्ज देष को आर्थिक उपनिवेषवाद की ओर ढ़केलने के साथ-साथ उसकी सम्प्रभुता को भी चोटिल कर सकती है? फिलहाल श्रीलंका में जो कोहराम व अराजकता इन दिनों पूरी दुनिया ने देखी उसे देखते हुए कर्ज लेकर विकास करने की नीति पर एक बार फिर से सोचने का समय आ गया है। सतर्क तो सभी को रहने की आवष्यकता है क्योंकि आर्थिक चर्मोत्कर्श की फिराक में कब कोई कहां ढेर हो जाये इसका अनुमान बहुत कम ही लोग लगा पाते हैं। श्रीलंका की नेस्तोनाबूत होने वाली आर्थिक स्थिति को देखते हुए तो यही कहा जा सकता है कि कर्ज वह जाल है जो मजबूत सपनों से जकड़ी जरूर होती है मगर जब पानी सिर के ऊपर हो जाये तो यह तिनका-तिनका बहा ले जाती है। कभी विकासषील देषों के लिए रोल मॉडल रहने वाली अर्थव्यवस्था कैसे तबाह होती है इसका भी मंजर हिन्द महासागर के इस टापू में देखा जा सकता है। सवा दो करोड़ जनसंख्या वाला श्रीलंका 51 अरब डॉलर के कर्ज के तले दबा है और जिसका ब्याज भी नहीं दे पा रहा है। इसमें कर्ज देने में सर्वाधिक मेहरबानी चीन की है। इसके अलावा जापान, एषियन डवलेपमेंट बैंक और अन्य बहुपक्षीय एजेंसियों का भी कर्ज षामिल है। दक्षिण एषियाई देषों को कर्ज के जाल में फंसा कर चीन अपनी विस्तारवादी नीति को अंजाम देने का अच्छा खासा रास्ता पहले ही अख्तियार कर चुका है और अब तो इसकी यह नीति भी विस्तार ले चुकी है। पड़ताल बताती है कम्बोडिया, लाओस, म्यांमार नेपाल और मालदीव जैसे देष चीन के कर्ज के बोझ तले बाकायदा दबे हैं। श्रीलंका के हश्र को देखते हुए दो प्रष्न मानस पटल पर उभरते हैं पहला क्या चीन अपना कर्ज माफ कर श्रीलंका को राहत देगा और दूसरा क्या श्रीलंका इससे आगे की तबाही के लिए तैयार रहे? इसमें कोई दो राय नहीं कि आने वाले दिनों में कर्ज से विकास का मॉडल दुनिया के लिए गैर आकर्शण का विशय जरूर बनेगा। जाहिर है कर्ज लेकर घी पीने से बेहतर अपनी यांत्रिक चेतना और अर्थव्यवस्था के अनुपात में ही विकास षोभा देता है।

गौरतलब है कि राजपक्षे का घराना चीन परस्त रहा है। महिन्द्रा राजपक्षे अपने दूसरे राश्ट्रपति के कार्यकाल 2010 से 2015 के बीच चीन की तरफ बड़ा झुकाव दिखाया। तब चीन से 5 अरब डॉलर से ज्यादा कर्ज लिया। ये कर्ज हवाई अड्डा, राजमार्ग आदि के निर्माण और दूसरी इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं के लिए लिया गया था। इतना ही नहीं चीन हथियारों की बिक्री के मामले में भी श्रीलंका को चपेट में लिया। बेल्ट एण्ड रोड़ इनिषिएटिव परियोजना पर श्रीलंका में लगभग डेढ़ अरब डॉलर का निवेष किया। गोटबाया के समय में तो नीतियों ने नई-नई करवट लेना षुरू किया जिसका नतीजा सबके सामने है। फिलहाल राश्ट्रपति गोटबाया वाया मालद्वीव सिंगापुर में षरण ले चुके हैं और वहीं से इस्तीफा भेज चुके हैं। जबकि श्रीलंका आर्थिक आंधी में पूरी तरह घिरा हुआ है। विदेषी मुद्रा भण्डार का निरंतर गिरना और मुद्रा स्फीति का सिर चढ़ कर बोलना साथ ही कर्ज के ढ़ेर का बने रहना यह किसी भी देष को आर्थिक रूप से खत्म कर सकता है। श्रीलंका क्यों नहीं संभला यह गम्भीर षोध का विशय है मगर पिछले 6 महीने में यह बिल्कुल साफ हो गया था कि मुसीबत आ रही है। मगर राजपक्षे घराने को यह लगा कि अपने भाई-बंधुओं के सहारे सरकार चला लेंगे और जनता को ठेंगा दिखाते रहेंगे और जब पानी सिर के उस पर गया तो जनता ने ही उनको पानी पिला दिया। श्रीलंका की अर्थव्यवस्था आज पूरी तरह पानी-पानी है। हैरत यह भी है कि जिन षर्तों पर चीन से कर्ज लिया गया उन्हें श्रीलंका के लिए लागू करना भी मुष्किल था और जब मुसीबत आई तो चीन किनारे खड़ा मिला। भारत ने जब आर्थिक मदद की कोषिष की तो चीन को लगा कि उसका प्रभाव कम हो जायेगा। मौजूदा स्थिति में चीन श्रीलंका की इस मुसीबत में मूकदर्षक बना हुआ है और भारत पड़ोसी धर्म निभा रहा है।
भारत का दुष्मन पाकिस्तान भी चीन के कर्ज के जाल में बाकायदा फंस चुका है। जून 2021 के आंकड़े बताते हैं कि पाकिस्तान पर कर्ज उसके जीडीपी के 55 फीसद हैं। हालांकि जून 2020 में यह 56 प्रतिषत था। पाकिस्तान पर सबसे ज्यादा कर्ज चीन का है और इन दिनों उसकी भी अर्थव्यवस्था तार-तार है। श्रीलंका की स्थिति देखकर पाकिस्तान भी सदमे में है कि कहीं अगली बारी उसकी न हो। विदेषी मुद्रा इस कदर घट चुकी है कि उसका देष सिर्फ पांच सप्ताह तक ही टिक सकता है। अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर आज पाकिस्तान अब तक के सबसे बुरे दौर में है और राहत की उम्मीद आईएमएफ अन्तर्राश्ट्रीय मुद्रा कोश से है पर यह किस मात्रा में सम्भव होगा कहना मुष्किल है। गौरतलब है कि पाकिस्तान भी चीन परस्त है और चीन ने नकारात्मक कूटनीति के चलते पाकिस्तान को न केवल भारत के खिलाफ उकसाया बल्कि उसे अपने कर्ज के जाल में भी फंसाता रहा। इस बात को षायद ही दरकिनार किया जा सके कि वन बेल्ट, वन रोड़ की परियोजना पर अरबों रूपया निवेष करने वाला चीन पाकिस्तान के लिए आने वाले समय में अंधेरा ही सिद्ध होगा। फिलहाल पाकिस्तान पर 81 अरब डॉलर का कर्ज है। जिसकी किस्ते चुकाना उसके लिए किसी भी सूरत में सम्भव ही नहीं है। भारत का एक और पड़ोसी देष नेपाल जिससे सामाजिक-सांस्कृतिक समेत कई संदर्भ और तौर-तरीकों में कहीं अधिक समानता निहित है मगर यह भी चीन के कर्ज वाले जाल से मुक्त नहीं है। नेपाल की जनसंख्या लगभग तीन करोड़ के आसपास है और इस पर कर्ज जीडीपी का करीब 43 प्रतिषत है और महंगाई यहां भी अपना बड़ा रूप बनाये हुए है। मार्च 2022 में नेपाल का विदेषी मुद्रा भण्डार 975 करोड़ डॉलर रह गया जो जुलाई 2021 में 1175 करोड़ डॉलर से काफी कम कहा जायेगा।
गौरतलब है कि किसी भी देष की अर्थव्यवस्था में विदेषी मुद्रा भण्डार का बड़ा योगदान होता है। देष का केन्द्रीय बैंक, विदेषी मुद्रा और अन्य परिसम्पत्तियों को अपने पास रखता है जिसे ज्यादातर डॉलर में रखा जाता है और आवष्यकता पड़ने पर इसी का भुगतान किया जाता है। जब कोई देष निर्यात के मुकाबले आयात की मात्रा बढ़ा लेता है तो विदेषी मुद्रा स्वाभाविक रूप से नीचे गिरने लगती है। श्रीलंका, पाकिस्तान और नेपाल जैसे देष की कमोबेष स्थिति यह देखी जा सकती है। हालांकि सतर्क तो भारत को भी रहने की आवष्यकता है क्योंकि 1 जुलाई को भारतीय विदेषी मुद्रा भण्डार 588 अरब डॉलर से थोड़ा अधिक रहा जबकि सितम्बर 2021 में यह 642 अरब डॉलर था जाहिर है 55 अरब डॉलर से अधिक की गिरावट यहां भी दर्ज हुई है। इतिहास में झांके तो पता चलता है कि किसी भी देष की सम्प्रभुता को सर्वाधिक खतरा हमेषा दूसरे देषों पर निर्भरता और आर्थिक संजाल ही रहा है। श्रीलंका जैसे देष लोकतांत्रिक सम्प्रभु होने के बावजूद आर्थिक फलक पर विकास की बड़ी चाह में न केवल आंतरिक नीतियों ने बड़ा फेर-बदल किया बल्कि चीन जैसे देषों के कर्ज से स्वयं को आगे बढ़ाने का प्रयास किया और कर्ज के बोझ में न केवल दबा बल्कि बिखर भी गया। ऐसे में सवाल उठता है कि कहीं बेलगाम विदेषी कर्ज आर्थिक उपनिवेषवाद तो नहीं!

दिनांक : 17/07/2022


डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

(वरिष्ठ  स्तम्भकार एवं प्रशासनिक चिंतक)

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ  पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

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