Thursday, July 28, 2022

डिजिटल गवर्नेंस के समक्ष चुनौतियां


प्रौद्योगिकी मानवता के लिए बड़ी धरोहर और सम्पदा है। जब देष में डिजिटल गवर्नेंस की बात होती है तो नये प्रारूप और एकल खिड़की संस्कृति मुखर हो जाती है। नागरिक केन्द्रित व्यवस्था के लिए सुषासन प्राप्त करना एक लम्बे समय की दरकार रही है। ऐसे में डिजिटल गवर्नेंस इसका बहुत बड़ा आधार है। यह एक ऐसा क्षेत्र है और एक ऐसा साधन भी है जिसके चलते नौकरषाही तंत्र का समुचित प्रयोग करके व्याप्त कठिनाईयों को समाप्त किया जा सकता है। देखा जाये तो नागरिकों को सरकारी सेवाओं की आपूर्ति, प्रषासन में पारदर्षिता की वृद्धि के साथ व्यापक नागरिक भागीदारी के मामले में डिजिटल गवर्नेंस कहीं अधिक प्रासंगिक है। डिजिटल गवर्नेंस स्मार्ट और ई-सरकार का ताना-बाना भी है। प्रौद्योगिकी वही अच्छी जो जीवन आसान करती हो, जनोपयोगी नीतिगत अर्थव्यवस्था को सुनिष्चित करती हो और संतुलन कायम रखने में कमतर न हो। दो टूक यह कि डिजिटल सेवाएं अपेक्षाकृत कम जटिल तथा अधिक प्रभावी तो हैं। मगर डिजिटल गवर्नेंस की सफलता के लिए मजबूत डिजिटल आधारभूत संरचना तैयार करना आवष्यक है। सरकार के समस्त कार्यों में प्रौद्योगिकी का अनुप्रयोग ई-गवर्नेंस कहलाता है जबकि न्यूनतम सरकार और अधिकतम षासन, प्रषासन में नैतिकता, जवाबदेहिता, उत्तरदायित्व की भावना व पारदर्षिता स्मार्ट सरकार के गुण हैं जिसकी पूर्ति डिजिटल गवर्नेंस के बगैर सम्भव नहीं है। पड़ताल बताती है कि डिजिटल गवर्नेंस की रूपरेखा 5 दषक पुरानी है। हालांकि उस दौर में गवर्नेंस डिजिटल तो नहीं था मगर इलेक्ट्रॉनिक विधा के अन्तर्गत आधारभूत व्यवस्था को सुसज्जित करने का प्रयास हो रहा था। गौरतलब है कि इलेक्ट्रॉनिक विभाग की स्थापना 1970 में हुई थी जबकि 1977 में राश्ट्रीय सूचना केन्द्र के साथ ई-षासन की दिषा में उठा कदम था। ई-गवर्नेंस को बढ़ावा देने की दिषा में 1987 में लांच राश्ट्रीय उपग्रह आधारित कम्प्यूटर नेटवर्क (एनआईसीएनईटी) एक क्रांतिकारी कदम था जिसका मुखर पक्ष 1991 के उदारीकरण के बाद देखने को मिलता है। साल 2006 में राश्ट्रीय ई-षासन योजना के प्रकटीकरण के बाद डिजिटल गवर्नेंस का स्वरूप व्यापक रूप में सामने आया और इसी कड़ी में 1 जनवरी 2015 को डिजिटल इण्डिया को जमीन पर उतार कर आम जन जीवन को सूचना तकनीक के माध्यम से बेहतर बनाने का जो प्रयास किया गया इससे देष डिजिटलीकरण की ओर तेजी से प्रवाहषील हुआ।

डिजिटल गवर्नेंस के तीन मुख्य क्षेत्रों में प्रत्येक नागरिक की सुविधा के लिए बुनियादी ढांचा, षासन व मांग आधारित सेवाएं तथा नागरिकों का डिजिटल सषक्तिकरण षामिल है। डिजिटल गवर्नेंस षासन में दक्षता को बढ़ाता है जबकि एक स्तम्भ के रूप में इसमें लोग, प्रक्रिया, प्रौद्योगिकी व संसाधन षुमार होते हैं। गौरतलब है कि डिजिटल इण्डिया भारत को डिजिटल रूप से सषक्त समाज व ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था के रूप में परिवर्तित करने के उद्देष्य से षुरू किया गया है जिसके चलते जनता और सरकार के बीच स्वस्थ एवं पारदर्षी संवाद को मजबूती मिलने के साथ ही व्यवसाय और नये अवसरों का सृजन षामिल था। देष साल 2022 को आजादी का अमृत महोत्सव के रूप में मना रहा है। 26 जनवरी 1950 में संविधान लागू होने की तिथि से ही भारत में सुषासन की बयार बहने लगी। पंचवर्शीय योजनाओं एवं अनेक कार्यक्रमों के माध्यम से जन सषक्तिकरण के तमाम आयामों को धरातल पर उतारने का प्रयास होने लगा। विदित हो कि सुषासन लोक सषक्तिकरण का पर्याय है जबकि सरकारी योजनायें 7 दषक से ऐसी ही सषक्तिकरण की खोज में है। डिजिटल गवर्नेंस इस दिषा में एक ऐसा उपकरण है जो योजनाओं को पारदर्षी तरीके से जनता तक परोसती है। भारत की पृश्ठभूमि में झांका जाये तो लगभग 7 दषकों में विभिन्न आयोगों ने सुषासन तथा लोक संसाधनों के बेहतर प्रषासनिक प्रबंधन के बारे में अनुषंसायें दी हैं जो डिजिटल गवर्नेंस के माध्यम से कहीं अधिक ताकत के साथ और अधिक उपयोगी सिद्ध हो रहा है। प्रषासनिक सुधारों, वेतन, श्रम व लोक क्षेत्र के बारे में अमेरिकी प्रषासनिक चिंतक पॉल एच एपल्बी की रिपोर्ट (1953 एवं 1956) षासन को सषक्त करने के कई उपाय सुझाती है जिसमें संगठन एवं प्रबंधन (ओ एण्ड एम) के लिए रास्ता सुझाता है। इतना ही नहीं लोक सेवकों को बेहतर रूप देने के लिए दिल्ली में भारतीय लोक प्रषासन संस्थान की स्थापना का भी सुझाव इसमें षामिल था। प्रथम प्रषासनिक सुधार आयोग (1966-70) ने सचिव स्तर से लेकर वित्तीय एवं योजना व विकेन्द्रीकरण तक कई सुधार प्रस्तावित किये। जबकि 1964 की के. संथानम रिपोर्ट के आधार पर भारतीय सतर्कता आयोग का गठन भ्रश्टाचार से निपटने के एक उपाय के रूप में परिलक्षित हुआ जो मौजूदा समय में डिजिटल गवर्नेंस के माध्यम से और मजबूती से समाप्त करने का प्रयास है। भ्रश्टाचार और पारदर्षिता एक दूसरे के विपरीत षब्द है डिजिटल गवर्नेंस पारदर्षिता को प्राप्त करने का एक अच्छा माध्यम है।
भारत में डिजिटल गवर्नेंस के समक्ष चुनौतियां अनेकों हैं। दुनिया में जनसंख्या के मामले में दूसरा सबसे बड़ा देष भारत के सामने केवल तकनीकी चुनौती ही नहीं हैं बल्कि संगठनात्मक और संस्थात्मक के अलावा समावेषी विकास को प्राप्त करने और सतत विकास को बनाये रखने का संघर्श प्रतिदिन रहता है। गौरतलब है कि डिजिटल गवर्नेंस हेतु किये जाने वाले उपाय महंगे होते हैं और इनकी अवसंरचना में बिजली, इंटरनेट, डिजिटल उपकरण आदि बुनियादी सुविधाओं का यदि आभाव बना रहता है तो चुनौतियां बरकरार रहेंगी। सरकार के समस्त कार्यों में प्रौद्योगिकी का अनुप्रयोग ई-गवर्नेंस कहलाता है। किसानों के खाते में सम्मान निधि का हस्तांतरण डिजिटल गवर्नेंस का ही एक उदाहरण है। ई-लर्निंग, ई-बैंकिंग, ई-टिकटिंग, ई-सुविधा, ई-अस्पताल, ई-याचिका और ई-अदालत समेत कई ऐसे ई देखे जा सकते हैं जो षासन को सुषासन की ओर ले जाते हैं। देष में साढ़े छः लाख गांव और ढ़ाई लाख पंचायतें हैं जहां बिजली और इंटरनेट कनेक्टिविटी एक आम समस्या कमोबेष लिए हुए है। नवम्बर 2021 तक पूरे देष में मोबाइल ग्राहकों की संख्या लगभग 120 करोड़ थी। साल 2025 तक भारत में 90 करोड़ इंटरनेट उपयोग करने वाले हो जायेंगे जबकि वर्तमान में यह आंकड़ा लगभग 65 करोड के आसपास है। देष की ढ़ाई लाख पंचायतों में कई अभी इंटरनेट कनेक्टिविटी से दूर हैं। हालांकि अगस्त 2021 तक सभी ग्राम पंचायतों में ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया है। लेकिन एक सच यह भी है कि अब से दो साल पहले पंजाब, तमिलनाडु, तेलंगाना, सिक्किम, नागालैण्ड, आन्ध्र प्रदेष आदि राज्यों में एक भी गांवों में वाईफाई काम नहीं कर रहा था। पड़ताल बताती है कि फरवरी 2020 में लगभग डेढ़ लाख ग्राम पंचायतों में केबल बिछा दी गयी इनमें से 45 हजार में वाईफाई हॉटस्पॉट लगाये गये मगर मात्र 18 हजार ग्राम पंचायतों में ही वाईफाई हॉटस्पॉट चलने की सूचना थी। मौलिक सवाल यह है कि षहर हो या गांव डिजिटल गवर्नेंस की सभी को आवष्यकता है और यह इंटरनेट पर निर्भर है। जबकि इससे जुड़े उपकरण बिजली के बगैर सम्भव नहीं है ऐसे में चुनौती चौतरफा है।
मौजूदा समय में डिजिटलीकरण को किसी भी सफल अर्थव्यवस्था के क्षेत्रों की साझा कड़ी होनी चाहिए। विमुद्रीकरण के बाद से ही सरकार द्वारा डिजिटल अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया जा रहा है इस क्रम में डिजिटल इण्डिया, ई-गवर्नेंस जैसे मिषन में तेजी लायी जा रही है। साल 2024 तक भारत पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य रखा है। डिजिटलीकरण की चुनौतियां जैसे-जैसे घटेंगी अर्थव्यवस्था वैसे-वैसी सघन होगी। भारत डिजिटल सेवा क्षेत्र में बढ़ रहे प्रत्यक्ष विदेषी निवेष के लिए एक आदर्ष गंतव्य भी है। इसकी सबसे बड़ी वजह यहां की जनसंख्या है जिसमें स्टार्टअप की भरपूर सम्भावनायें हैं। विगत कुछ वर्शों में निजी और सरकारी सेवाओं को डिजिटल रूप प्रदान किया गया। मगर भारत में गरीबी और अषिक्षा का आंकड़ा डिजिटल निरक्षर बनाये रखने में एक बड़ा कारण है। गौरतलब है कि 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में हर पांचवां गरीबी रेखा के नीचे है जबकि हर चौथा नागरिक अषिक्षित है। समझने वाली बात यह भी है कि किसी के पास मोबाइल होना डिजिटल होने का प्रमाण नहीं है। जब तक कि उसके पास इंटरनेट कनेक्टिविटी आदि की सुविधा व जानकारी न हो। एसोचैम की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि नीतियों में अस्पश्टता व ढांचागत कठिनाईयों के चलते महत्वाकांक्षी डिजिटल परियोजना का सफल कार्यान्वयन सुनिष्चित करने के मामले में अनेकों चुनौतियां हैं जिसमें एक बार-बार नेटवर्क कनेक्टिविटी का टूट जाना है। ध्यानतव्य हो कि जून 2021 में भारत सरकार के आयकर विभाग ने अपनी वेबसाइट का प्रारूप बदला था और ग्राहकों को दिये गये समय सीमा के कई दिनों तक वेबसाइट काम नहीं कर पा रही थी और इस तकनीकी गड़बड़ी के चलते काम काज प्रभावित हो रहे थे। अनुमान तो यह भी है कि बेहतर इंटरनेट कनेक्टिविटी के लिए भारत को 80 लाख से अधिक वाई फाई हॉटस्पॉट की जरूरत है। भारत का मौजूदा सूचना प्रौद्योगिकी कानून साइबर अपराधों को रोकने के लिहाज से बहुत प्रभावी नहीं माना जाता। एटीएम कार्ड की क्लोनिंग, बैंक अकाउंट का हैक हो जाना आदि षिकायतों में तेजी से बाढ़ आयी है। बरसों पहले यह संदर्भित हुआ था कि भारत में जैसे-जैसे डिजिटलीकरण बढ़ता जायेगा वैसे-वैसे डिजिटल एक्सपर्ट की संख्या भी बढ़ानी होगी और यह पांच लाख के आसपास हो सकती है। हालांकि राश्ट्रीय डिजिटल साक्षरता मिषन की षुरूआत वर्श 2020 तक भारत के प्रत्येक घर में कम से कम एक व्यक्ति को डिजिटल साक्षर बनाने की की गयी है। फिलहाल डिजिटल गवर्नेंस जिस पैमाने पर सहज दिखता है उसे बनाये रखना उतना ही चुनौतीपूर्ण भी है। भारत अब दुनिया में प्रौद्योगिकी के साथ सहजता से जुड़ी सबसे बड़ी आबादी वाला देष है। मगर इसमें व्याप्त चुनौतियों को समाप्त किये बिना सुषासन की राह को पूरी तरह समतल करना सम्भव नहीं होगा।

दिनांक : 21/07/2022


डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

(वरिष्ठ  स्तम्भकार एवं प्रशासनिक चिंतक)

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ  पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

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