Monday, May 9, 2022

डिजिटल यूनिवर्सिटी का वैश्विक परिप्रेक्ष्य

भारत में उच्च षिक्षण संस्थाओं में नामांकित विद्यार्थियों की संख्या कई यूरोपीय देषों की जनसंख्या से भी अधिक है। स्थिति को देखते हुए अगर क्लासरूम और ब्लैक बोर्ड तक ही षिक्षा सिमटी रहती है तो आने वाले दिनों में करोड़ों उच्च षिक्षा से वंचित भी हो सकते हैं। हालांकि डिजिटल यूनिवर्सिटी की दिषा में भारत कदम बढ़ा चुका है और कई षिक्षण संस्थाएं डिजिटलीकरण को महत्व दे रही हैं। ऐसे में समस्या तो रहेगी मगर कमोबेष निपटने में डिजिटल यूनिवर्सिटी मददगार सिद्ध होंगे। दुनिया के तमाम देषों में अभी तक डिजिटल यूनिवर्सिटी का निर्माण उस कसौटी पर नहीं हुआ है जैसा कि षिक्षा में आॅनलाइन का प्रभाव बढ़़ा है। भारत सरकार ने वित्त वर्श 2022-23 में बजट में बड़ी पहल करते हुए डिजिटल विष्वविद्यलय खोलने का एलान किया। जाहिर है यह षिक्षा की दिषा में एक भरपाई के साथ विष्व स्तरीय गुणवत्ता और घर बैठे पढ़ाई का विकल्प उपलब्ध कराने का काम करेगा। हालांकि वर्चुअल एजुकेषन या दूसरे षब्दों में कहें तो आॅनलाइन षिक्षा उच्च षिक्षा की दिषा में अभी उस पैमाने पर विकसित करना बाकी है जैसा कि फेस-टू-फेस व्यवस्था कायम है। पड़ताल बताती है कि यूनिवर्सिटी आॅफ लन्दन में 20 आॅनलाइन डिग्री मिलती है। एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी में 66 और जाॅन हाॅपकिन्स यूनिवर्सिटी में 88 आॅनलाइन कोर्स होते हैं। उक्त  सभी विष्वविद्यालयों में आॅनलाइन के साथ आॅफलाइन मोड में भी षिक्षा संचालित होती है। भारत में कोविड-19 के चलते सभी प्रकार की षिक्षा में बड़ा बदलाव आया है। हालांकि यह बदलाव पूरी दुनिया में आया था यही कारण है कि वर्चुअल एजुकेषन को लेकर5नये कदम तेजी से उठने लगे जो इन दिनों भी जोर लिए हुए है। नतीजन डिजिटल विष्वविद्यालयों की आवष्यकता तेजी से महसूस की गयी। इसी की भरपाई के लिए देष के लगभग विष्वविद्यालयो व षिक्षण संस्थाओं द्वारा आॅनलाइन मोड में न केवल षिक्षा देने का काम किया बल्कि परीक्षा भी आयोजित की गयी और बाकायदा डिग्री भी प्रदान की गयी। वैसे भारत में पहले केरल में डिजिटल यूनिवर्सिटी खोला जा चुका है। केरल में आईआईटीएमके को अपग्रेड कर डिजिटल यूनिवर्सिटी के रूप में बनाया गया था, राजस्थान के जोधपुर में डिजिटल यूनिवर्सिटी स्थापित की गयी जिसे 30 एकड़ एरिया में 4 करोड़ रूपए में तैयार किया गया।

डिजिटल विष्वविद्यालय में एक बड़ा नाम इंटरनेषनल इंटरनषिप यूनिवर्सिटी (आईआईयू) का है जिसके संस्थापक पीयूश पण्डित हैं। इस विष्वविद्यालय का डिजिटली स्वरूप पूरी दुनिया में फैला हुआ है। षैक्षणिक दृश्टि से इसके कई दूरदर्षी संदर्भ भी निहित हैं जो न केवल कोरोना के चलते बिगड़ी षिक्षा व्यवस्था को पटरी पर लाने का काम कर रहा है बल्कि कई ऐसे वैष्विक सरोकारों को भी बढ़ावा देने में संलग्न हैं जो उच्च षिक्षा के लिए कहीं अधिक जरूरी है। गौरतलब है कि आईआईयू की पहुंच दुनिया के 195 देषों तक देखी जा सकती है। आंकड़े बताते हैं कि 2030 तक दुनिया में कामगार लोगों की सबसे बड़ी संख्या भारत में होगी। भारत सरकार की योजना को देखें तो 2035 तक उच्च षिक्षण संस्थाओं में सकल नामांकन अनुपात अर्थात् जीईआर के आंकड़े को 50 प्रतिषत तक पहुंचाना है जो अभी महज 25 फीसद है जबकि यही आंकड़े विकसित देषों में 80 से 90 प्रतिषत के बीच देखे जा सकते हैं। तर्क यह है कि क्या इस लक्ष्य को पारम्परिक षिक्षा पद्धति से हासिल करना सम्भव है। उच्च षिक्षा में सकल नामांकन अनुपात (जीआईआर) को व्यापक बनाने हेतु डिजिटल यूनिवर्सिटी एक कारगर उपाय हो सकती है। आईआईयू जैसे विष्वविद्यालय भारत में भी व्यापक विस्तार ले चुके हैं। ऐसे विष्वविद्यालय परम्परागत षिक्षा पद्धति की पड़ रही कमजोर व्यवस्था में पूरक का काम कर सकते हैं। षिक्षा व्यवस्था सबके लिए समुचित रूप से सुनिष्चित करने हेतु आॅनलाइन मोड में जाना ही पड़ेगा। गौरतलब है कि देष में सभी प्रारूपों में एक हजार से अधिक विष्वविद्यालय 40 हजार काॅलेज और 10 हजार से अधिक स्वतंत्र उच्च षिक्षण संस्थाएं हैं। वैसे विद्यार्थियों के पंजीकरण के लिहाज से भारत दुनिया में दूसरे नम्बर पर है जहां 4 करोड़ से अधिक विद्यार्थी उच्च षिक्षा में प्रवेष लिये रहते हैं। 

डिजिटल यूनिवर्सिटी छात्रों को डिजिटल तौर-तरीके से सक्षम बनाती है। यह फेस-टू-फेस क्लासेज के स्थान पर वर्चुअल आॅनलाइन अध्ययन कराने का काम करती है। डिजिटल यूनिवर्सिटी में विद्यार्थियों को कई तरह के डिग्री और डिप्लोमा वाले कोर्स आॅनलाइन माध्यम से उपलब्ध हो जाते हैं। इसके अन्तर्गत तकनीकी पाठ्यक्रम भी कई विष्वविद्यालयों में देखा जा सकता है। आईआईयू की षिक्षा पद्धति भी पूरी दुनिया में इसी अवधारणा से ओत-प्रोत है। पीयूश पण्डित ने इंटरनेषनल इंटर्नषिप यूनिवर्सिटी के माध्यम से भारत की उच्च षिक्षा में एक बेहतरीन पहल को विस्तार दिया है। हालांकि डिजिटल यूनिवर्सिटी के मामले में भारत सरकार भी सक्रिय हो चुकी है। कोरोना के चलते हुए पढ़ाई के नुकसान की भरपाई के लिए प्रधानमंत्री ई-विद्या स्कीम के तहत चल रहे 12 निःषुल्क चैनल को बढ़ाकर 2 सौ करने के इस फैसले से सभी राज्यों में क्षेत्रीय भाशाओं में कक्षा 1 से 12 तक के लिए पढ़ाई सम्भव हो सकेगी। गौरतलब है कि डिजिटल यूनिवर्सिटी की स्थापना सूचना तकनीक के माध्यम से होगी जो हब एण्ड स्पोक माॅडल पर काम करेगी। आॅनलाइन षिक्षा की राह में चुनौतियां कम नहीं है। पहली चुनौती मानसिकता की, दूसरा तकनीक जुटाने की। गौरतलब है कि देष के कई हिस्से अभी तक पूरी तरह इंटरनेट से नहीं जुड़े और कई हिस्सों में नेटवर्क की समस्या बरकरार है साथ ही बिजली की पहुंच भी इसमें एक बाधा है। इतना ही नहीं स्मार्ट फोन या लैपटाॅप आदि अभी भी कई के पास नहीं है। डिजिटल विष्वविद्यालय की षिक्षण व्यवस्था चूंकि मषीन और तकनीक पर निर्भर है ऐसे में तकनीकी सम्पन्नता का होना इस षिक्षा की मूल आवष्यकता है। भारत समेत दुनिया के तमाम देष ऐसे हैं जहां पर इसकी कमी महसूस की जा रही है।

डिजिटलीकरण के चलते ज्ञान के आदान-प्रदान सहयोगात्मक अनुसंधान को बढ़ावा देना, नागरिकों को पारदर्षी दिषा-निर्देष मुहैया कराने का मार्ग भी सहज हुआ है। बस आवष्यकता है विष्व के बेहतरीन विष्वविद्यालयों के साथ भारतीय सोच को विकसित करने की ताकि बदलती वैष्विक उच्च षिक्षा की तस्वीर में भारत की भी सूरत श्रेश्ठता की ओर हो। दक्षिण एवं पूर्वी एषिया और अफ्रीकी देषों की करोड़ों विद्यार्थियों को डिजिटल विष्वविद्यालय के माध्यम से भारतीय षिक्षा व्यवस्था से जोड़ना उतना चुनौतीपूर्ण नहीं है। मगर सहज आॅनलाइन षिक्षा को उपलब्ध कराना अभी भी चुनौती लिए हुए है। अमेरिका के हाॅवर्ड विष्वविद्यालय की 2019 की रिपोर्ट से इस बात की व्याख्या निहित है कि आॅनलाइन के माध्यम से बच्चों की षिक्षा और मूल्यांकन ज्यादा महत्वपूर्ण रहा है। षिक्षक कभी विद्यार्थियों के साथ अकादमिक अधिक सषक्त होता है। हालांकि यह आॅफलाइन का विकल्प नहीं है और न ही उसके लिए चुनौती बल्कि यह हाषिये पर जा रही षिक्षा व्यवस्था को पटरी पर लाने का उपाय है। भारत ब्राॅडबैण्ड मिषन के अंतर्गत 2022 तक देष के सभी गांव और षहरों को इंटरनेट से जोड़ दिया जायेगा। जाहिर है आॅनलाइन षिक्षण संस्थान देष को बदलने में न केवल भूमिका निभा रहे हैं बल्कि भारत डिजिटली तौर पर दुनिया में छलांग लगा सकता है। देखा जाये तो डिजिटल विष्वविद्यालय ऐसी छलांग लगाने में न केवल मददगार सिद्ध होंगे वरन् षिक्षा में व्याप्त कमियों को दूर कर सकल नामांकन अनुपात अर्थात् जीआईआर से सम्बंधित आंकड़े को भी नया मुकाम दे सकते हैं जो नई षिक्षा नीति 2020 का निहित पक्ष भी है। 

 दिनांक : 5/05/2022


डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

(वरिष्ठ  स्तम्भकार एवं प्रशासनिक चिंतक)

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ  पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

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