Monday, May 9, 2022

वित्तीय प्रौद्योगिकी क्रान्ति और समावेशी ढांचा

 अब ऐसी स्थिति है कि बड़े-बड़े माॅल से लेकर सड़क के किनारे छोटी-मोटी दुकान, पटरी पर सब्जी बेचने वाले, रेहड़ी वाले आदि तमाम डिजिटल भुगतान स्वीकार कर रहे हैं। खास यह भी है कि बैंकों से निकाले जाने वाली नकद धनराषि के मुकाबले मोबाइल से किये जाने वाले भुगतान की राषि कहीं ज्यादा है। इसी क्रम में देखें तो फास्टैग की स्वचालित व्यवस्था लागू होने के चलते टोल टैक्स भुगतान भी अब बाकायदा डिजिटल ही हो गया है। इसमें कोई दो राय नहीं कि डिजिटल इण्डिया से नवाचार के नये मार्ग खुले हैं और वित्तीय प्रौद्योगिकी के चलते जीवन की सरलता में जबदस्त उछाल आया है। बावजूद इसके समावेषी ढांचा जिस कदर बुनियादी तौर पर अभी भी कमजोर और जर्जर है उसे देखते हुए नवाचार की इस सषक्तता को व्यापक ऊंचाई देना एक चुनौती भी है। गौरतलब है कि वित्त और प्रौद्योगिकी के गठजोड़ को फाइनेंषियल टेक्नोलाॅजी अर्थात् फिनटेक कहा जाता है जिसका हिन्दी रूपांतरण वित्तीय प्रौद्योगिकी है। अमेरिका में रिपब्लिक पार्टी के सीनेटर स्टीव वेन्स ने जून 2021 में कहा था कि भारत दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाला फिनटेक बाजार है और वित्तीय नवाचार के मामले में अमेरिका से काफी आगे है। भारत की जनसंख्या चीन के बाद दुनिया में सर्वाधिक है और ऐसे में तकनीकी बाजार को यदि सुदृढ़ता मिले तो यह अनेक विकसित देषों की तुलना में स्वाभाविक रूप से बड़ा हो जाता है। वैसे देखा जाये तो भारत दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ते फिनटेक बाजारों में से एक है। भारत द्वारा 2020 में किया गया कुल तत्काल भुगतान चीन की तुलना में लगभग 10 अरब अमेरिकी डाॅलर अधिक था और जबकि चीन की तुलना में अमेरिका कहीं पीछे है। फिनटेक ऐसी वित्तीय कम्पनियां हैं जो काम में तेजी लाने और लागत में कटौती के लिए तकनीक का इस्तेमाल कर रही है। 

फिनटेक वास्तव में उपभोक्ताओं को बेहतर वित्तीय सेवाएं उपलब्ध कराने के उद्देष्य से टेक्नोलाॅजी समन्वयन भी है और मुख्य रूप से आय, निवेष, बीमा और संस्थागत ऋण के चार स्तम्भों पर आधारित है। भारत में फिनटेक तंत्र के रूप में षानदार अविर्भाव हुआ है। देखा जाये तो भारत सरकार ने जब 2009 में आधार परियोजना षुरू की तो आवष्यक तकनीकी बुनियादी ढांचा बनाना और देष के सुदूर क्षेत्रों में रह रहे भारतीयों तक पहुंच पाना बड़ी चुनौती तो थी। इस समय देष में 80 प्रतिषत लोगों का बैंक खाता है और ऐसा 2014 में जनधन परियोजना के चलते हुआ है। मैककिंसे ग्लोबल इंस्टीट्यूट ने मार्च 2014 में जारी रिपोर्ट डिजिटल इण्डिया में कहा था कि भारत में तेजी से डिजिटलीकरण लागू करने की प्रक्रिया को तेज करने में सार्वजनिक क्षेत्र की बहुत बड़ी भूमिका रही है। वैष्विक बायोमैट्रिक पहचान कार्यक्रम आधार के संदर्भ में प्रयोग किया जाने वाला षब्द इण्डिया स्टैक और इससे सम्बध एपीआई के पूरे सैट ने भारत में डिजिटल कार्यक्रम के नींव को मजबूत करने और देष के डिजिटल विकास के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अनुमान है कि देष में अभी डिजिटल क्रान्ति की षुरूआत है। साल 2022 तथा आगे के वर्शों में इसमें कई बड़ी और नई सम्भावनायें हैं। भारत में 2003 से अब तक डिजिटल भुगतान में 10 गुना की वृद्धि हुई है। अनुमान तो यह भी है कि साल 2025 तक 26 लाख नये रोज़गार पैदा होंगे और जबकि लगभग 3 लाख करोड़ रूपए के वृद्धि की उम्मीद है। तकनीकी तौर पर भारत इतना कमतर नहीं है मगर अषिक्षा और बेरोज़गारी के साथ-साथ बढ़ती गरीबी ने समावेषी ढांचे को एक बेहतर अनुकूलन देने में रूकावट का काम किया है। भले ही देष में 120 करोड़ मोबाइल फोन का इस्तेमाल हो रहा हो और करीब 65 करोड़ लोगों तक इंटरनेट कनेक्टिविटी उपलब्ध हो मगर घटती इनकम और बढ़ती महंगाई साथ ही ईज़ आॅफ लीविंग में समावेषी चुनौतियों ने वित्तीय प्रौद्योगिकी क्रान्ति और नवाचार के व्यापक प्रसार को भी चुनौती मिल रही है। 

दो साल पहले ही भारत आॅनलाइन लेनदेन के मामले में दुनिया में पहले नम्बर पर था जबकि भारत से अधिक जनसंख्या वाला चीन इस मामले में दूसरे नम्बर पर है और 33 करोड़ वाला अमेरिका चीन के मुकाबले भी लगभग 10 गुना पीछे चल रहा है। दक्षिण कोरिया, इंग्लैण्ड और जापान भी डिजिटल लेनदेन के मामले में भारत से काफी पीछे है। तब भारत का डिजिटल लेनदेन महज 25 अरब डाॅलर ही था और अब तो यह कई गुना वृद्धि ले चुका है। उम्मीद है कि 2026 में यह 75 लाख करोड़ रूपए तक पहुंच जायेगा। वैसे देखा जाये तो वित्तीय प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की कामयाबी के और भी आयाम है जैसे बैंकों द्वारा तेजी से डिजिटल प्रौद्योगिकी को अपनाया जाना। इंटरनेट का सस्ता होना, मोबाइल फोन आमजन की पहुंच में होना साथ ही रूपए के नकद लेनदेन के मामले में सरकार की ओर से सीमा निर्धारित करना आदि। वर्तमान में वित्तीय प्रौद्योगिकी में एक नया क्षेत्र भी लोकप्रिय हो रहा है जिसे अभी खरीदो, बाद में भुगतान करो अर्थात् बाइ नाउ, पे लेटर नाम दिया गया है। पड़ताल बताती है कि भारतीय अर्थव्यवस्था समावेषी विकास पर केन्द्रित रही है। 8वीं पंचवर्शीय योजना जब 1992 में उदारीकरण के बाद देष में लागू हुई तो उसका स्वरूप भी समावेषी विकास ही था। तब से अब तक सामाजिक क्षेत्र, रोजगार सृजन और प्रौद्योगिकी नवाचार पर जोर दिया जा रहा है साथ ही कम कार्बन उत्सर्जन को लेकर भी विगत कुछ वर्शों से चिंता व्यापक हुई है। इसके अलावा केन्द्रीय वार्शिक बजट में पिछले कुछ वर्शों में ऐसे मुद्दों को व्यापक रूप से षामिल भी किया जाता रहा है। इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि समय के साथ बदलाव बड़ा हुआ है मगर बदलाव सब तक पहुंचा है ऐसा नहीं हुआ है। 

पिछले एक दषक में फिनटेक सबसे तेजी से वृद्धि करने वाले और नवाचार को सबसे अधिक बढ़ावा देने वाले उद्योगों में षुमार है। वैसे दुनिया भर में फिनटेक उद्योग अर्थव्यवस्था का काम करने का तरीका बदल रहा है। लगातार नये उत्पाद और नई प्रणालियों के साथ कारोबार के नये-नये रास्ते भी इससे खुल रहे हैं। ज्यादातर अब काम घर बैठे ही हो जाते हैं। आधी रात को पैसा भेजना हो तो केवल फोन पर यूनीफाइड पेमेंट सर्विस का इस्तेमाल करते ही काम आसान हो जाता है। या फिर बैंक की एप्लीकेषन खोलते ही चुटकियों में रकम इधर से उधर सम्भव हो जाती है। गौरतलब है यूनिफाइड पेमेंट सर्विस अर्थात् यूपीआई पहले नोटबंदी और उसके बाद कोविड में लाॅकडाउन के दौरान बेहद तेजी से आगे बड़ा। यूपीआई षुरूआत 2016 में हुई थी। सौ करोड़ के लेनदेन की उपलब्धि अक्टूबर 2019 में षुरू हो चुकी थी। मगर साल भर के अंदर हर महीने 2 सौ करोड़ का आंकड़ा होने लगा और अब तो यह 4 सौ करोड़ के पार चला गया। यूपीआई 24 घण्टे में रकम भेजने वाली सुविधा है और फिनटेक की कहानी को उछाल देने की एक बेहतर व्यवस्था है। प्रौद्योगिकी को आर्थिक और सामाजिक प्रगति का बड़ा हथियार मानने वाली सरकार ने स्टार्टअप इण्डिया जैसे कार्यक्रमों के जरिये नवाचार को बहुत प्रोत्साहित किया। फिनटेक को लेकर षहरी बाजार में तो तेजी है मगर अभी यह सुविधा ग्रामीण बाजारों तक मामूली ही पहुंची है। फिलहाल असीम सम्भावनाओं के बल पर ही फिनटेक और इससे जुड़ा आर्थिक पारिस्थितिकी तंत्र सबल, सफल और प्रभावी माध्यम बन सकेंगे और लोग अपनी सामाजिक-आर्थिक प्रगति को देखते हुए इस पर भरोसा भी जता सकेंगे। 

 दिनांक : 21/04/2022


डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

(वरिष्ठ  स्तम्भकार एवं प्रशासनिक चिंतक)

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ  पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

मो0: 9456120502

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