Monday, May 9, 2022

पेट्रोल और डीजल को जीएसटी में लाये सरकार!

पेट्रोल और डीजल की कीमतें न केवल लगातार बढ़ रही हैं बल्कि इनकी कीमतों के चलते चैतरफा महंगाई भी आसमान पर पहुंच गई है। लाख टके का सवाल यह है कि पेट्रोल और डीजल को सरकार जीएसटी के दायरे में क्यों नहीं लाती। इसका सपाट उत्तर यह है कि जीएसटी के दायरे में लाते ही सरकारी राजस्व संग्रह में बेतहाषा गिरावट होगी जो सरकार के लिए किसी सदमे से कम नहीं होगा। पेट्रोल और डीजल से केन्द्र सरकार की कमाई का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि साल 2018-19 में 2.10 लाख करोड़ की केन्द्रीय एक्साइज़ ड्यूटी वसूली गयी थी जो 2019-20 में 2.19 लाख करोड़ थी मगर यही 2020-21 में 3.71 लाख करोड़ पहुंच गयी। साफ है कि सरकार ने ड्यूटी बढ़ाकर राजकोश को भर लिया है और जनता महंगाई के चलते भरभरा गयी। गौरतलब है कि मई 2020 में एक्साइज़ ड्यूटी पेट्रोल पर 10 रूपए तो डीजल पर 13 रूपए प्रति लीटर एक साथ बढ़ा दिया गया था। जो षायद अब तक की सबसे बड़ी छलांग है। हालांकि उस दौर में कोरोना के चलते लगे लाॅकडाउन से तेल की बिक्री में गिरावट थी और क्रूड आॅयल प्रति बैरल अपने सबसे निचले स्तर पर जा पहुंचा था तब 20 डाॅलर प्रति बैरल कच्चा तेल की कीमत थी। जब कच्चा तेल सस्ता होता है तब सरकारें टैक्स लगाकर जनता को सस्ता पेट्रोल और डीजल की सम्भावना को खत्म कर देती है और जब यही महंगा होता है तो बढ़ते तेल की कीमत का ठीकरा महंगे क्रूड आॅयल पर फोड़ती हैं। यहां स्पश्ट कर दें कि जून 2017 से तेल की कीमतें कम्पनियां तय करती हैं। जाहिर है यहां भी सरकार इस बात से पलड़ा झाड़ सकती है कि बढ़ती तेल की कीमतों से उसका कोई लेना-देना नहीं है। रोचक सवाल यह भी है कि जब चुनाव समीप होता है तो तेल की कीमतों में ठहराव क्यों आ जाता है। उक्त से साफ है कि भले ही तेल की कीमतें कम्पनियां तय करती हों मगर सरकार के निर्देषों से वह अछूती नहीं हैं। नवम्बर 2021 से रूकी तेल की कीमतें 10 मार्च 2022 को पांच राज्यों के चुनाव के परिणाम के बाद जिस कदर तेजी ली वह इस बात को पुख्ता करती है।

हालांकि नवम्बर 2021 में ही केन्द्र सरकार ने पेट्रोल और डीजल की कीमतों में राहत देने का काम भी किया था। सरकार ने उत्पाद षुल्क में पेट्रोल पर 5 रूपए और डीजल पर 10 रूपए प्रति लीटर की कटौती की थी। इसके अलावा कई भाजपा षासित राज्यों समेत दिल्ली और पंजाब में भी वैट दरों में कटौती करके जनता को राहत देने का काम किया था। तमिलनाडु, महाराश्ट्र, बंगाल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेष, केरल और झारखण्ड ने इस कटौती से इंकार कर दिया था। इसी को देखते हुए बढ़ते पेट्रोल, डीजल की महंगाई के बीच बीते 27 अप्रैल को प्रधानमंत्री मोदी ने मुख्यमंत्रियों की वर्चुअल बैठक में इन राज्यों को कोड करते हुए अपना असंतोश जताया। इसमें कोई षक नहीं कि तेल की कीमत बढ़ने में वैट की भी बड़ी भूमिका है और राज्य भी इसे कमाने का जरिया बना लिये हैं। जिन राज्यों ने वैट घटाया और जनता को राहत देने की कोषिष की उन्हें व्यापक पैमाने पर राजस्व संग्रह में गिरावट का सामना भी करना पड़ा। इस मामले में कर्नाटक सबसे अधिक नुकसान में रहा जिसे 5 हजार करोड़ से अधिक का घाटा उठाना पड़ा। जबकि वैट में कोई कटौती न करने के चलते महाराश्ट्र 34 सौ करोड़ से अधिक की कमायी के साथ सबसे अधिक फायदे में रहा। गौरतलब है कि तेल की भीशण महंगाई के बीच प्रधानमंत्री मोदी बैठक के दौरान राज्यों को वैट कम नहीं करने को अन्याय बताया। वैसे अभी भी एक्साइज़ ड्यूटी लगभग 33 रूपए और वैट भिन्न-भिन्न राज्यों में अलग-अलग देखा जा सकता है। पड़ताल बताती है कि अक्टूबर 2018 में पेट्रोल पर यह ड्यूटी 20 रूपए प्रति लीटर से कम थी। यदि तुलना करें तो पेट्रोल पर 2014 में एक्साइज ड्यूटी महज 9.48 रूपए प्रति लीटर थी, जो 2020 तब बढ़कर 32.9 रूपए प्रति लीटर हो चुकी है। यदि वहीं डीजल पर 2014 में महज 3.56 रूपए प्रति लीटर एक्साइज ड्यूटी लगती थी। केन्द्र सरकार ने जब नवम्बर में पेट्रोल और डीजल की एक्साइज़ ड्यूटी में कमी की थी उसके बाद अब यह पेट्रोल पर 27.90 रूपए प्रति लीटर और डीजल पर 21.8 रूपए है। चार दरों में विभाजित जीएसटी की सबसे बड़ी दर 28 प्रतिषत की है। यदि पेट्रोल और डीजल के मामले में जीएसटी को लागू कर दिया जाता है तो स्पश्ट है कि 25 से 30 रूपए लीटर तेल की कीमत घट जायेगी जो सम्भव नहीं है क्योंकि सरकारें भी जानती है कि ये आराम की कमाई है। 

वन नेषन, वन टैक्स से पेट्रोल, डीजल, गैस और षराब समेत 6 वस्तुएं बाहर हैं। जिसमें मुख्यतः पेट्रोल, डीजल को लेकर यह मांग उठती रहती है कि इसे भी जीएसटी का हिस्सा बनाया जाये। अब तक जीएसटी काउंसिल की 46 बैठकें हो चुकी हैं। सितम्बर 2021 में जीएसटी काउंसिल की 45वीं बैठक में इसे जीएसटी में लाने का विचार सामने आया था मगर ऐसा कुछ हुआ नहीं। वैसे अप्रैल 2018 के पहले सप्ताह में पेट्रोल, डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने की दिषा में धीरे-धीरे आम सहमति बनाने की बात वित्त मंत्रालय ने कही थी मगर इस पर भी हजार अडंगे बताये जा रहे हैं। उत्पाद षुल्क घटाने का दबाव तो पहले से रहा है जो नवम्बर 2021 में घटाया भी गया मगर जीएसटी में लाने का इरादा तो राज्यों का भी नहीं है। देखा जाये तो केन्द्र और राज्य दोनों सरकारें यह नहीं चाहती कि पेट्रोल और डीजल जीएसटी के दायरे में आये क्योंकि इससे दोनों की कमाई पर बड़ा असर पड़ेगा। गौरतलब है कि सरकार यह बजटीय घाटा कम करना चाहती है तो उत्पाद षुल्क घटाना सम्भव ही नहीं है। यदि एक रूपए प्रति लीटर डीजल, पेट्रोल में कटौती होती है तो खजाने को 13 हजार करोड़ का नुकसान होता है जाहिर है सरकार यह जोखिम क्यों लेगी और ऐसे समय में जब अर्थव्यवस्था पूरी तरह पटरी पर भी न हो। हालांकि सरकार जीएसटी से रिकाॅर्ड कमाई कर रही है। मार्च 2022 में जीएसटी संग्रह अब तक का सबसे ज्यादा है। इसके पहले अप्रैल 2021 में सर्वाधिक था। स्पश्ट है कि एक तरफ जीएसटी से कमाई तो दूसरी तरफ पेट्रोल और डीजल पर एक्साइज़ ड्यूटी लगाकर कमाई दो तरफा बनी हुई है जबकि जनता महंगाई में जमींदोज हो रही है। 

अब इस सवाल का जवाब खोजना आसान हो जाता है कि केन्द्र और राज्य सरकारें जीएसटी में पेट्रोल, डीजल क्यों नहीं लाना चाहती। सरकारें जनता के लिए होती हैं और जनता के साथ लगातार अन्याय करना किसी भी लोकतांत्रिक सरकार के लिए उचित नहीं है। मौजूदा हालात में कोरोना के चलते जनता की कमाई  जहां अभी भी मुष्किल में है वहां बढ़ती पेट्रोल और डीजल की कीमतें साथ ही इनकी वजह से जीवन आसान करने वाली वस्तुओं पर महंगाई की मार चैतरफा कहर है। केन्द्र सरकार इस बात से पलड़ा नहीं झाड़ सकती कि राज्य वैट न कम करके अन्याय किया है बल्कि उन्हें यह भी सोचना है कि कमाई का कोई और रास्ता निकालकर उत्पाद षुल्क में कमी की जाये ताकि आसमान छूता तेल जमीन पर ही रहे। वैसे तो सही यह है कि वन नेषन, वन टैक्स को और मजबूती देने के लिए तेल के साथ खेल बंद किया जाये और इसे जीएसटी के दायरे में लाया जाये। 

दिनांक : 28/04/2022


डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

(वरिष्ठ  स्तम्भकार एवं प्रशासनिक चिंतक)

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ  पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

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