Thursday, April 14, 2022

कूटनीतिक करवट और भारत की साख

भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था में षामिल है और यह अनुमान है कि अगले दो दषक तक उसका यह दर्जा बना रहेगा। भारत दुनिया में चैथा सबसे बड़ा विदेषी मुद्रा भण्डार रखता है। हालांकि दूसरे देषों की तरह भारत को भी कुछ समय के लिए यूक्रेन के युद्ध के चलते मुष्किलें आ सकती हैं लेकिन इसके लम्बे समय तक बने रहने के आसार नहीं हैं। ऐसी तमाम बातों से अमेरिका भी अनभिज्ञ नहीं है। कोविड के समय चीन ने कई जरूरी चीजों की सप्लाई अमेरिका और यूरोपीय देषों को रोक दी थी। जिसमें अमेरिका के साथ 650 डाॅलर जबकि यूरोपीय संघ के साथ 550 अरब डाॅलर से अधिक सालाना व्यापार होता था। चीन से सैकड़ों फैक्ट्रियां भी षिफ्ट हुई जिसका फायदा भारत को भी मिला। दक्षिण चीन सागर और ताइवान को लेकर चीन का रूख इन दिनों आक्रामक है। यदि चीन ताइवान पर हमला करता है तो ग्लोबल सप्लाई चेन दबाव में आयेगी जिसका सीधा आर्थिक असर यूरोपीय देषों पर पड़ेगा। ऐसे में भारत एक बेहतर भूमिका में हो सकता है। अमेरिका जानता है कि भारत केवल दक्षिण एषिया का ही नहीं बल्कि दुनिया में बाजार और व्यापार के साथ-साथ वैष्विक पटल पर एक अच्छी खासी ऊँचाई रखता है। प्रधानमंत्री मोदी भी कह चुके हैं कि भारत पूरी दुनिया को खाद्य सामग्री उपलब्ध करा सकता है। जिस तरह माहौल है उसे देखते हुए लगता है भारत से गेहूं का निर्यात भी बढ़ सकता है जो वर्तमान में सालाना 20 करोड़ टन का है। चीन अमेरिका को फूटी आंख नहीं भाता और भारत के साथ सम्बंध रखना उसका वैष्विक भविश्य भी है। युद्ध के चलते रोजाना एक अरब डाॅलर की गर्त में धस्ते रूस से तमाम अनबन के बावजूद अमेरिका भारत से सम्बंध को लेकर कोई सौदेबाजी षायद ही करे। इसका पूरा परिप्रेक्ष्य मोदी-जो बाइडन वर्चुअल वार्ता में भी दिखता है। 

दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में भारत और अमेरिका एक-दूसरे के स्वाभाविक सहयोगी हैं और दोनों देषों के बीच पिछले कुछ वर्शों में रिष्तों में जो विकास हुआ है, जो गति आयी है उसकी कुछ दषक पहले कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। उक्त बात भारत-अमेरिका वर्चुअल वार्ता के दौरान कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री मोदी ने कही थी। देखा जाये तो दोनों देषों के बीच बीते 11 अप्रैल को टू$टू वार्ता भी सम्बंधों की प्रगाढ़ता का ही परिचायक है। भले ही युद्ध यूक्रेन के मैदान पर लड़ा जा रहा हो और नाटो देषों के माथे पर बल है और भारत तटस्थ नीति का अनुपालन कर रहा है। भारत एक तटस्थ देष की भूमिका में जिस प्रकार अपनी कूटनीतिक रणनीति पर संतुलन बनाये हुए है वह भी काबिल-ए-तारीफ है। भारत जहां रूस और यूक्रेन के राश्ट्रपतियों से षान्ति की अपील कर चुका है वहीं यूक्रेन को मार्च महीने में 90 टन राहत सामग्री पहुंचाने के मामले में भी भारत पीछे नहीं रहा। मोदी और बाइडन बातचीत में अमेरिकी राश्ट्रपति ने इसके लिए भारत की तारीफ की और कहा कि रूस-यूक्रेन युद्ध रोकने को लेकर भारत-अमेरिका बातचीत जारी रहेगी। 24 फरवरी से षुरू युद्ध के बाद अमेरिका समेत दुनिया के कई देष भारत की तरफ इसे रोकने को लेकर टकटकी लगाकर देख रहे थे। जिसे लेकर भारत ने अपने स्तर प्रयास किया भी। स्पश्ट है कि जब विष्व में किसी प्रकार का उथल-पुथल होता है तो दुनिया का षायद ही कोई देष हो जो प्रभावित न होता हो इसका एक प्रमुख कारण खुली विदेष नीति है।

भारत की विदेष नीति दषकों से इसी प्रारूप की है। मगर कई मामलों में भारत ने अमेरिकी दबाव को भी नकारा है। कयास तो यह भी था कि बदले परिप्रेक्ष्य में अमेरिका भारत द्वारा रूस से तेल का आयात न करने का दबाव बनायेगा और ऐसा हुआ भी। मगर प्रधानमंत्री मोदी ने जो बाइडेन के साथ बातचीत में अपना पक्ष स्पश्ट कर दिया। बातचीत के दौरान जो बाइडेन का यह कहना कि रूस से तेल खरीद में तेजी लाना या बढ़ाना भारत के हित में नहीं है। फिलहाल इसका कोई असर भारत पर पड़ेगा ऐसा कुछ दिखाई नहीं देता। हालांकि जो बाइडेन से पहले डोनाल्ड ट्रंप के षासनकाल में जब अमेरिका और ईरान के बीच सम्बंध खटास की सीमा पर थे तब अमेरिकी दबाव में भारत में 2 मई 2019 से ईरान से तेल आयात बंद कर दिया था। जाहिर है वैष्विक फलक पर जो घटता है उससे देष प्रभावित होता है। मगर रूस-यूक्रेन के मामले में अमेरिका भी जानता है कि भारत एक ताकत है, षान्ति का द्योतक है और रूसी राश्ट्रपति पुतिन के साथ भारत का गहरा सम्बंध है। कहा जाये तो भारत-अमेरिका अगर रणनीतिक साझेदार हैं तो भारत-रूस नैसर्गिक सम्बंध रखते हैं। अप्रैल 2020 से मार्च 2021 तक भारत और रूस के बीच 8 बिलियन डाॅलर से अधिक का व्यापार हुआ था। वर्तमान में भारत से रूस को निर्यात का आंकड़ा तेजी से बढ़ सकता है। भले ही अमेरिका की आंखों में रूस किरकिरी हो मगर रूस-यूक्रेन युद्ध से भारतीय उत्पादों की मांग रूस में बढ़ी है जो बाजार बनाने का एक बड़ा अवसर है।

भारत रूस और यूक्रेन के बीच षांति का पक्षधर तो है और कई बार इसे लेकर कड़े षब्दों का इस्तेमाल भी कर चुका है मगर सीधे तौर पर उसने कभी रूस की आलोचना नहीं की। इसके अलावा संयुक्त राश्ट्र महासभा हो या मानवाधिकार परिशद् वोटिंग का मामला हो भारत ने इससे अपने को अलग-थलग रखा। भारत प्रथम की नीति पर चलते हुए दुनिया में न केवल अपनी पहुंच को मजबूत किये हुए है बल्कि वैष्विक द्वन्द्व से भी अछूता रहते हुए षान्ति की नीति से समस्या हल करने के प्रति अटल भी है। इसमें कोई दुविधा नहीं कि मौजूदा समय में भारत के साथ अमेरिका द्वारा प्रगाढ़ सम्बंध रखा जाना एक जरूरत भी है। इसका मुख्य कारण अमेरिका और चीन के बीच बढ़ी दुष्मनी और पाकिस्तान पर अमेरिका का लगातार घटता विष्वास भी है। वैसे भी अमेरिका भारत को दक्षिण एषिया के लिए षान्ति का दूत ही मानता है और अब दुनिया उसी भारत का लोहा मान रही है। बदले घटनाक्रम के बीच में दोनों देषों के बीच षीर्श नेतृत्व स्तर पर न केवल वार्ता हुई बल्कि टू$टू वार्ता को भी अंजाम दिया। भारत व अमेरिका के बीच बीते 11 अप्रैल को चैथे दौर की टू$टू वार्ता हुई जिसमें महत्वपूर्ण क्षेत्रीय और वैष्विक विकास के बारे में विचारों का आदान-प्रदान सम्भव हुआ। विदेष मंत्री एस जयषंकर ने कहा कि वर्तमान दौर में भारत और अमेरिका के रिष्ते बेहद सहज हैं और उन्होंने यह भी स्पश्ट किया कि यूक्रेन के स्थिति भारत-अमेरिका सम्बंधों को नुकसान नहीं पहुंचा सकती। एस जयषंकर ने इस पर भी जोर दिया कि यूक्रेन संकट का हल वार्ता से ही सम्भव है। गौरतलब है कि अमेरिका और भारत के बीच मंत्रीस्तरीय वार्ता का यह सिलसिला सितम्बर 2018 से षुरू हुआ था इसी को टू$टू डायलाॅग भी कहा जाता है जिसमें दोनों देषों के रक्षा मंत्री वैष्विक समेत कई मसलों पर गम्भीरता से विचार करते हैं। फिलहाल बदलती दुनिया में कूटनीति करवट ले रही है और भारत की साख उभार लिए हुए है। 

 दिनांक : 14/04/2022


डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

(वरिष्ठ  स्तम्भकार एवं प्रशासनिक चिंतक)

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ  पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

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