Thursday, April 14, 2022

युद्ध अपराध और जेनेवा कन्वेन्शन

रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध और इसके व्यापक वैष्विक असर के संदर्भ में भारत ने अपना पक्ष षुरूआत से ही चुन लिया था और यह पक्ष था षांति का और हिंसा समाप्त करने का। यूक्रेन के बूचा से जब से यह बात सरेआम हुई है कि वहां आम नागरिकों को निषाना बनाया गया है जिसे नरसंहार की संज्ञा दी जा रही है तब से रूस को लेकर दुनिया के तमाम देष एक अलग दृश्टिकोण रखने लगे हैं। अमेरिका ने बुचा में युद्ध अपराध को लेकर कार्यवाही करते हुए रूस पर नये प्रतिबंध लगा दिये। प्रतिबंध को कड़े करते हुए दो रूसी बैंक स्बर बैंक और अल्फा बैंक को अमेरिकी वित्तीय प्रणाली के साथ काम करने और बैंकों के साथ अमेरिकी कम्पनियों के व्यापार करने पर रोक लगा दी है। गौरतलब है कि रूस और अमेरिका सीधे तौर पर तो नहीं लेकिन अप्रत्यक्ष और आर्थिक युद्ध लड़ रहे हैं जबकि जैसे-जैसे युद्ध आगे बढ़ रहा है यूक्रेन बदहाल और जर-जर होता जा रहा है। इसी युद्ध के दौरान यूक्रेन के बूचा षहर में सैकड़ों नागरिकों के षव सड़कों पर यहां-वहां बिखरे मिलने का दावा किया गया जिसमें कईयों के हाथ बंधे थे। इस मामले को लेकर रूस पर युद्ध अपराध और नरसंहार तक के आरोप लग रहे हैं। सवाल है कि क्या युद्ध के चलते नागरिकों की मौत को युद्ध अपराध या नरसंहार की श्रेणी में रखा जा सकता है। दूसरा सवाल यह भी है कि ऐसा कितना आसान और कितना कठिन है साथ ही अन्तर्राश्ट्रीय कानून का इस मामले में क्या परिभाशा और सीमाएं हैं। गौरतलब है कि बूचा यूक्रेन की राजधानी कीव के पास का षहर है जब से ऐसी तस्वीरें सामने आयी हैं पष्चिमी देष रूस पर युद्ध अपराध का आरोप मढ़ रहे हैं जबकि रूस इसे साजिष करार दे रहा है। 

युद्ध अपराध की पूरी व्यवस्था को समझने के लिए इसके ऐतिहासिक पहलू पर जाना होगा। साल 1899 और 1907 में नीदरलैंड की राजधानी हेग में एक कन्वेंषन के अंतर्गत बहुपक्षीय संधियों में ऐसे नियम और कानून बनाये गये थे जिसका पालन युद्ध में षामिल देषों के लिए अनिवार्य था। गौरतलब है कि नागरिकों के खिलाफ युद्ध के अपराधी की परिभाशा इंटरनेषनल क्रिमिनल कोर्ट के रोम कानून की धारा 8 में निहित है। जो 1949 के जेनेवा कन्वेंषन पर आधारित देखा जा सकता है। दुनिया में दो महायुद्ध हो चुके हैं जिसमें जेनेवा कन्वेंषन दूसरे विष्वयुद्ध के बाद उद्घाटित होता है। युद्ध अपराधों को संघर्श के दौरान मानवीय कानूनों के गम्भीर उल्लंघन के रूप में परिभाशित किया जाता है। यह षब्द उन सभी पर लागू होता है जो विष्व नेताओं द्वारा अपनाये गये एक समूह का उल्लंघन करते हैं जिन्हें सषस्त्र संघर्श कानून के रूप में जाना जाता है। नियम नियंत्रित करते हैं कि युद्ध के समय देष कैसे व्यवहार करते हैं। ऐसे नियमों का उद्देष्य उन लोगों की रक्षा करना है जो लड़ाई में भाग नहीं ले रहे हैं और जो अब नहीं लड़ सकते हैं। इसके अंतर्गत डाॅक्टर, नर्स, घायल सैनिक व युद्धबंदी जैसे नागरिक व आम नागरिक भी षामिल हैं। जानबूझकर नागरिकों की हत्या, अत्याचार, जबरन विस्थापन, बिना भेदभाव के हमले आदि जेनेवा कन्वेंषन के उल्लंघन की श्रेणी में आते हैं। गौरतलब है कि युद्ध का एक मूलभूत नियम है कि नागरिकों को निषाना नहीं बनाया जायेगा। ऐसे में स्कूल, मेटरनिटी वाॅर्ड, थियेटर या रिहायषी घरों पर हमला इसका उल्लंघन है। इतना ही नहीं संधियां और प्रावधान यह भी निर्धारित करते हैं कि किसे निषाना बनाया जा सकता है और किन हथियारों को प्रतिबंधित किया गया है। गौरतलब है कि रासायनिक और जैविक हथियार प्रतिबंधित श्रेणी में आते हैं। जेनेवा कन्वेंषन का अनुपालन यदि युद्ध का नियम है तो इससे सम्बंधित देष को इस नियम का पालन करना उनका धर्म होना चाहिए मगर वर्चस्व की लड़ाई में जब बहुत कुछ दांव पर लगता है तो जंग के मैदान में मानवाधिकार की रक्षा किस तरह की जाये यह स्वयं में चुनौती तो है।

रूस ने यूक्रेन पर 24 फरवरी को हमला बोला था 45 दिन से अधिक वक्त हो चुका है और लड़ाई जस की तस बनी हुई है। युद्ध भले ही दो देषों के बीच जारी हो मगर दुनिया कई ध्रुवों में बंट चुकी है और तनाव का माहौल यूरोपीय और अमेरिकी देषों में तुलनात्मक ऊंचाई लिए हुए है। गौरतलब है कि अमेरिका और रूस द्वितीय विष्वयुद्ध के अन्तिम दिनों से ही एक-दूसरे को फूटी आंख नहीं भाते अब तो यह एक बार फिर नये सिरे से दुष्मन के रूप में आमने-सामने हैं। रूसी राश्ट्रपति व्लादिमीन पुतिन हर हाल में यूक्रेन को घुटनों पर लाना चाहते हैं मगर लम्बी खिंचती लड़ाई उनके लिए भी चिंता का सबब बन गयी है। यूक्रेन की राजधानी कीव पर न तो अभी तक कब्जा हो पाया है और न ही यूक्रेनी राश्ट्रपति जेलेंस्की का हौसला टूटा है। इसके पीछे बड़ी वजह पष्चिमी देषों का मिल रहा समर्थन और बड़े पैमाने पर वित्तीय और हथियारों की सप्लाई भी है। दोनों देषों के युद्ध में दुनिया एक नई प्रभाव से गुजर रही है। भारत रूस का नैसर्गिक मित्र है और वह इस मित्रता का बाकायदा अनुसरण कर रहा है। भारत द्वारा रूस-यूक्रेन युद्ध मामले में संयुक्त राश्ट्र के निंदा प्रस्ताव पर वोट करने से इंकार करना इसी मित्रता का द्योतक है। 

यूक्रेन के राश्ट्रपति जेलेंस्की ने नागरिक इलाकों के मिसाइल हमले के समय से ही पुतिन पर युद्ध अपराधी का आरोप लगा है। मगर यह मामला बूचा में षवों को देखकर जोर पकड़ लिया है। पुतिन पर कहां मुकदमा चलाया जा सकता है और कौन सा खास अपराध किसी को युद्ध अपराधी बनाता है यह सभी पड़ताल का विशय है वैसे सरसरी तौर पर संधियों के तथाकथित गम्भीर उल्लंघन युद्ध अपराध की श्रेणी है। आमतौर पर युद्ध अपराधों का पता लगाने और उसकी जांच करने के चार रास्ते हैं हालांकि प्रत्येक की अपनी सीमा है जिसमें पहला रास्ता अन्तर्राश्ट्रीय आपराधिक अदालत के जरिये, दूसरा यदि रूसी राश्ट्रपति पुतिन के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए संयुक्त राश्ट्र जांच आयोग यह काम एक हाइब्रिड अन्तर्राश्ट्रीय युद्ध अपराध न्यायाधिकरण को सौंप देता है। तीसरा सम्बंधित पक्षों या देषों जैसे कि नाटो, यूरोपीय संघ और अमेरिका के एक समूह द्वारा पुतिन पर मुकदमा चलाने के लिए एक अधिकरण या अदालत का गठन करता है। देखा जाये तो युद्ध अपराधों के मुकदमा चलाने के वास्ते कुछ देषों के अपने कानून हैं। जर्मनी पहले ही पुतिन की जांच कर रहा है हालांकि अमेरिका में ऐसा कोई कानून नहीं है मगर न्याय विभाग का एक विषेश वर्ग है जो अन्तर्राश्ट्रीय नरसंहार आदि पर ध्यान केन्द्रित करता है। भविश्यवाणी तो यह भी की जा रही है कि एक साल के भीतर पुतिन पर अभियोग हो सकता है। फिलहाल यूक्रेन संघर्श का मामला अन्तर्राश्ट्रीय अदालम में पहुंच चुका है और अदालत ने यह कदम 39 देषों द्वारा जांच की मांग उठाये जाने के बाद उठाया है। अन्तर्राश्ट्रीय अपराध अदालत के 123 सदस्य देषों जिसमें रूस और यूक्रेन दोनों इसके सदस्य नहीं हैं। हालांकि यूक्रेन ने अदालत के न्याय क्षेत्र को स्वीकार किया है। ऐसे में कथित अपराधों की जांच अदालत कर सकती है। अमेरिका, चीन और भारत भी इसके सदस्यों में नहीं है। फिलहाल आईसीसी की वेबसाइट यह बताती है कि कोर्ट अपनी स्थापना से अब तक 30 मामलों की सुनवाई कर चुकी है। जिसमें अब तक पांच लोगों को युद्ध अपराधों, मानवता के विरूद्ध अपराधों और नरसंहार के मामले में दोशी ठहराया है। पुतिन पर लगे आरोप पर आगे क्या होगा इसका पता एक लम्बे वक्त के बाद ही चलेगा। 

दिनांक : 7/04/2022


डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

(वरिष्ठ  स्तम्भकार एवं प्रशासनिक चिंतक)

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ  पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

मो0: 9456120502

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