Thursday, April 14, 2022

देश ने पकड़ी महंगाई की स्पीड

देश में महंगाई ने एक बार फिर स्पीड पकड़ ली है। खाद्य सामग्री की कीमतों में बेतहाषा उछाल यह दर्षाता है कि देष का एक बड़ा वर्ग फिलहाल एक बड़े संकट से तो जूझ रहा है। मार्च में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित खुदरा मुद्रास्फीति दर (सीपीआई) बढ़त के साथ 6.95 फीसद पर पहुंची जबकि अनुमान था कि यह 6.28 प्रतिषत पर रहेगी। अर्थषास्त्र का विन्यास किस प्रारूप में आगे बढ़ेगा इस जानकारी से षासन अनभिज्ञ नहीं होता। मगर जब ऐसे दौर में यह पता करना मुष्किल हो जाये कि महंगाई की मंजिल क्या होगी तब षासन पर अविष्वास का बढ़ना लाज़मी है। वैसे इस लिहाज से षायद षासन अपने को छटपटाहट से मुक्त कर सकता है कि कितनी भी महंगाई और बेरोज़गारी बढ़े जनता की पसंदगी तो वही है। चुनाव में मतदाताओं का आकर्शण तो हम ही हैं जब इसका पूरा ज्ञान षासन को हो जाता है तब महंगाई सिर्फ एक गूंज होती है न कि इसके लिए कोई बड़े समाधान खोजे जाते हैं। वैसे सरकार का यह धर्म है कि जनता को ईज़ आॅफ लीविंग की ओर ले जाये न कि महंगाई के बोझ से दम ही निकाल दे। आंकड़े बताते हैं कि पिछले 17 महीनों में यह सबसे ज्यादा महंगाई वाला आंकड़ा है। गौरतलब है कि बीते 12 अप्रैल सरकार ने महंगाई से जुड़े आंकड़े जारी किये। फरवरी में खुदरा मुद्रास्फीति दर महज 6 फीसद से थोड़ा ही ज्यादा था और जनवरी में तो यह 5.85 पर था। इस बात से अंदाजा लगाना आसान है कि महंगाई से कमर तोड़ने में यह आंकड़े कितनी स्पीड से काम कर रहे हैं। मार्च 2022 में खाने-पीने की चीजों की खुदरा महंगाई दर 7.68 फीसद रही जबकि फरवरी में यह 5.85 फीसद पर थी। अप्रैल का नजारा क्या होगा इससे जुड़े आंकड़े तो आगे पता चल जायेंगे मगर रोजाना बाजार यह षोर कर रहा है कि मार्च की तुलना में अप्रैल अधिक कीमत वसूल रहा है। 

राश्ट्रीय सांख्यिकीय कार्यालय ने मार्च के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक और फरवरी 2022 के लिए औद्योगिक उत्पादन सूचकांक का आंकड़ा जारी किया है। आंकड़े यह बता रहे हैं कि खाद्य मुद्रास्फीति नवम्बर 2020 के बाद सबसे अधिक स्तर पर पहुंच गयी है। गौरतलब है कि नवम्बर 2020 में यह 7.68 फीसद थी जो मार्च 2022 में 9.2 प्रतिषत की गगनचुम्बी आंकड़े पर है। अर्थषास्त्र का एक सीधा सिद्धांत है कमायी में खर्च चल जाये तो सब ठीक है पर बेतहाषा महंगाई हो जाये और कमाई भी छिन्न-भिन्न हो तब संकट गहरा हो जाता है। इन दिनों जिस कदर महंगाई चैतरफा स्पीड बनाये हुए है इससे रसोई का बजट बिगड़ गया है। हालांकि सबसे अधिक मुष्किल में गरीब परिवार है मगर मध्यम वर्ग भी इस कमर तोड़ महंगाई से परेषान तो है। हाल यह है कि खर्च का एक बड़ा हिस्सा अब थाली में ही सिमट गया है। माना जा रहा है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते वैष्विक कीमतों पर असर पड़ा है और खाद्य कीमतों विषेशकर गेहूं की कीमतों में तेजी से वृद्धि देखी गयी है और आषंका जताई जा रही है कि अनाज की कीमतों में और वृद्धि सम्भव है। इतना ही नहीं किसानों की आय में कुछ कमी आने की सम्भावना रही है। यदि भूले न हों तो यह जानते होंगे कि 2022 में किसानों की आय दोगुनी करनी है। अब यह स्पश्ट नहीं है कि आय पहले जैसी रहेगी या पहले पर भी मार पड़ेगी दोगुनी तो दूर की कौड़ी लगती है। भारत में हर चैथा व्यक्ति गरीबी रेखा के नीचे है जिसकी कमाई 1.9 डाॅलर प्रतिदिन से कम है। मध्यम वर्ग में जो निम्न वर्ग है वह कोरोना के चलते लगभग 7 करोड़ गरीबी रेखा के नीचे गोते लगा रहा है। जाहिर है ये महंगाई से बेअसर नहीं हो सकते। हालांकि सरकार अभी भी 80 करोड़ लोगों को 5 किलो अनाज उपलब्ध कराने का दावा कर रही है। मगर बड़ा सवाल यह है कि सुषासन का दम भरने वाली सरकारें जनता की केवल सांस चलती रहे इतने तक ही क्यों सीमित है?

खाद्य एवं कृशि संगठन (एफएओ) ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि फरवरी की तुलना में मार्च में विष्व खाद्य कीमतों में 13 फीसद की वृद्धि हुई है। इसे अब तक कि सबसे अधिक वृद्धि बताया गया है। देखा जाये तो यह एक ऐसी छलांग है जो षायद ही कोई लगाना चाहे। खाद्य मूल्य सूचकांक रिपोर्ट में यह स्पश्ट किया गया है कि काला सागर में युद्ध के चलते अनाज और वनस्पति तेल के बाजार को अच्छा खासा झटका लगा है। गौरतलब है कि रूस और यूक्रेन मिलकर विष्व के गेहूं और मक्के के निर्यात में क्रमषः 30 फीसद व 20 फीसद का योगदान रखते हैं। मक्के की कीमत बढ़ रही है और फरवरी में ही इसमें 19 फीसद से अधिक की वृद्धि दर्ज की गयी थी। रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते यूक्रेन के बंदरगाह बंद है ऐसे में निर्यात सीमित हो गया है। भारत में 65 फीसद खाद्य तेल का निर्यात किया जाता है। युद्ध के चलते सूरजमुखी के बीज के तेल की कीमतें भी बढ़ गयी हैं। वजह कुछ भी हो लेकिन दम आम आदमी का फूल रहा है। देखा जाये तो पिछले कुछ महीनों से खाद्य पदार्थों की कीमत जिस तेजी से बढ़ी है उसमें आम आदमी ही नहीं बल्कि मध्यम और उच्च, मध्यम वर्ग की भी कमर टूटने लगी है। दुविधा यह है कि सरकारें अनेक अर्थषास्त्रियों के मौजूदगी के बावजूद कीमतों पर अंकुष नहीं रख पाती हैं। देखा जाये तो वर्श भर के दरमियान कीमतें दोगुनी हो गयी हैं। कई खाद्य पदार्थ तो कीमतों के मामले में अकाल्पनिक बढ़ोत्तरी ले चुके हैं। मसलन नींबू जैसे जरूरी पदार्थ जो 50-60 रूपए किलो आसानी से उपलब्ध होते थे आज यह 3 सौ रूपए किलो से अधिक की कीमत पर बिक रहे हैं। सब्जियों की कीमत भी आसमान ही छू रही है बस जमीन पर तो आम जन-मानस ही पड़ा है। 

वल्र्ड बैंक, अन्तर्राश्ट्रीय मुद्रा कोश, यूनाईटेड नेषन्स, वल्र्ड फूड प्रोग्राम और विष्व व्यापार संगठन के प्रमुखों ने बीते 13 अप्रैल को एक संयुक्त बयान जारी कर खाद्य सुरक्षा के लिए बढ़ते खतरे से निपटने में मदद करने हेतु समन्वित कार्यवाही का आग्रह किया। इसमें कोई दो राय नहीं कि जब दुनिया किसी नई करवट की ओर होती है तो खाद्य पदार्थों पर खतरा उठना स्वाभाविक रहा है। खाद्य आयात से खपत के एक बड़े हिस्से के साथ गरीब देषों के लिए खतरा सबसे अधिक होता है और जो देष गरीब नहीं भी है वहां महंगाई बढ़ने से वहां का मध्यम और कमजोर वर्ग के लिए खतरा पैदा हो जाता है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारत दुनिया को खाद्य सामग्री उपलब्ध करा सकता है। यह रणनीतिक तौर पर वैष्विक फलक पर एक अच्छी छलांग के रूप में देखी जा सकती है मगर ऐसे ही खाद्य सामग्री के लिए गरीब और निम्न आर्थिक तबका अगर महंगाई की आग में झुलस रहा है तो उसके लिए क्या योजना है। लाख टके का सवाल यह भी है कि महंगाई क्यों बढ़ती है इस पर कोई स्पश्ट राय कभी आती ही नहीं है। बस आंकड़े परोस दिये जाते हैं। आम जनमानस तो सिर्फ इतना जानता है कि वस्तुएं सस्ती हों, सुलभ हों और उसकी थाली में पहुंच जायें तो सरकार भी अच्छी है और महंगाई से भी वो मुक्त हैं पर जब यही आफत बनकर टूटे तो भले ही सरकार कितनी अच्छी हो खाली पेट सुहाती नहीं। 

 दिनांक : 14/04/2022


डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

(वरिष्ठ  स्तम्भकार एवं प्रशासनिक चिंतक)

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ  पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

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