आज भारत के सबसे उत्तर में बसे संविधान की पहली अनुसूची में दर्ज 15वें प्रान्त जम्मू-कष्मीर से अनुच्छेद 370 की समाप्ति का दिवस है। पिछले साल 5 अगस्त को जब इस प्रदेष को अनुच्छेद 370 और 35ए से मुक्त किया गया था तब यहां नये परिवर्तनों के साथ नई हवा भी बही थी और संविधान के भीतर एक इतिहास गढ़ा गया था। इतना ही नहीं जम्मू-कष्मीर से लद्दाख को अलग करते हुए बिना विधानसभा वाला केन्द्रषासित प्रदेष बना कर दषकों पुरानी उसकी भी मांग को पूरा किया गया था। जम्मू-कष्मीर और लद्दाख भारत के केन्द्रषासित प्रदेषों में सूचीबद्ध हो गये साथ ही परिवर्तन की बाट जोहने लगे। अनुच्छेद 370 और 35ए के खात्मे ने कई उम्मीदों को जन्म दिया मगर कई षंकाएं भी बरकरार रहीं। वहां की स्थानीय दल के नेताओं को न केवल नजरबंद किया गया बल्कि अलगाववादियों को जेल का रास्ता भी दिखाया गया। उक्त सभी बातें घाटी में बदली फिजा को देखकर उठाये गये कदम थे। इसमें कोई दो राय नहीं कि मोदी सरकार ने जम्मू-कष्मीर को विषेश राज्य से मुक्त करके इसे भारत की मुख्य धारा में जोड़ने का काम किया। जाहिर है अनुच्छेद 370 और 35ए के बंधनों से जकड़ा जम्मू-कष्मीर एक साल से बहाल है जो संविधान में खास से आम हो गया। नौकरी, सम्पत्ति और निवास के विषेश अधिकार से भी मुक्त हो गया। अन्य राज्यों के लोगों के लिए भी जमीन खरीदने से लेकर बसने तक की बातें सामान्य हो गयी। दोहरी नागरिकता के भी जकड़न से इस प्रदेष को मुक्ति मिली। एक विधान, एक निषान की अवधारणा से भी यह ओत-प्रोत हुआ। सब कुछ हुए एक साल पूरा हो गया। अनुच्छेद 370 और 35ए के खत्म होने से कई उम्मीदें वादियों में करवटें लेने लगी। सवाल है कि क्या समय के साथ जम्मू-कष्मीर और लद्दाख मन-माफिक लक्ष्य हासिल किये हैं।
गौरतलब है 5 अगस्त 2019 के दिन केन्द्र सरकार ने जम्मू-कष्मीर राज्य को विषेश दर्जा देने वाले भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 और 35ए को निरस्त करते हुए राज्य का पुर्नगठन किया जिसमें एक जम्मू कष्मीर तो दूसरा लद्दाख के रूप में केन्द्र षासित प्रदेष बनाये। यही दिन वहां के बाषिन्दों के लिए सपने की दुनिया की षुरूआत भी कही जा सकती है। मगर एक साल का वक्त इसे पूरा करने में या तो बहुत कम है या फिर किसी को परवाह नहीं है। तीन दषक पहले घाटी से विस्थापित हो चुके कष्मीरी पण्डित को यह आस थी कि उनकी पुर्नवापसी होगी मगर एक साल बीतने के बाद भी उनके पुर्नवास को लेकर अभी तक कोई पहल नहीं की गयी। हालांकि इतना लम्बा वक्त बीत चुका है कि दषकों पहले घाटी को छोड़ चुके ये लोग कष्मीर से बाहर अपनी जिन्दगी जीना सीख चुके होंगे। ऐसे में वहां से सब कुछ छोड़कर वापस होना भी एक मुष्किल काज होगा। फिर भी वापसी के लिए रास्ता समतल करने का काम सरकार की जिम्मेदारी है। सुखद यह है कि पिछले एक साल में घाटी में पथरावों की घटनाओं में कमी के साथ आतंकी घटनाओं में भी धीमापन देखा जा सकता है। गौरतलब है कि 2018 में 532 पथरावों की घटनाएं हुई थी जबकि 2019 में 389 और 2020 में 102 घटना दर्ज है। इसी तर्ज पर 370 के खात्मे के साथ आतंकियों के खात्मे की दर भी बढ़ी है। 2018 में 583 आतंकवादी जहां गिरफ्तार किये गये थे वहीं 2019 और 2020 में क्रमषः 849 और 444 है। सब कुछ पटरी पर होने की स्थिति होने के बीच सवाल यह है कि अनुच्छेद 370 के चलते पाकिस्तान से आये डेढ़ लाख हिन्दू षरणार्थियों की नागरिकता जो अटकी थी अब उसका क्या हुआ। कष्मीर के लोगों का षेश भारत से सम्पर्क कितना बढ़ा और अन्य राज्यों का घाटी में आवागमन की क्या स्थिति रही। दूसरे प्रदेषों के व्यापारी पहले घाटी में समस्या के कारण निवेष नहीं करते थे अब रास्ता साफ है पर विकास अभी भी बाढ़ जोह रहा है। वैसे सबकुछ एकाएक नहीं होगा जाहिर है मुख्यतः जम्मू कष्मीर एक नये लोकतंत्र के परिधान में है और सबकुछ चरणबद्ध तरीके से ही सम्भव है। जिस तरह कट्टरपन, अलगाववाद और घाटी में अमन-चैन के खिलाफ गतिविधियां जारी थी एक साल के भीतर इसमें खूब कमी आयी पर दबाव केन्द्र और राज्य दोनों ने तुलनात्मक सहन किया। गौरतलब है कि एक साल के बाद भी कष्मीरियों की बुनियादी व्यवस्था मसलन षिक्षा, रोजगार, सुरक्षा, चिकित्सा, और भारत में कहीं भी मजबूत विस्तार को लेकर अभी कुछ खास कदम नहीं उठे हैं पर भविश्य में इसके होने की उम्मीद की जा सकती है।
नये केन्द्रषासित प्रदेष लद्दाख की भी पड़ताल यहां स्वाभाविक है। लद्दाख का नाम लेते ही मस्तिश्क पर एक नया चित्र उभरता है। लद्ाख में भी अनुच्छेद 370 और 35ए हटने के साथ विभाजन का जष्न मना था और केन्द्रषासित के रूप में अलग होने की दोहरी खुषी थी। वैसे केन्द्रषासित प्रदेष लद्दाख वालों के लिए यह पुरानी मांग थी लेकिन विधायिका न मिलने से कुछ कसक महसूस हुआ होगा। गौरतलब है कि लद्दाख क्षेत्रफल की दृश्टि से देष का सबसे बड़ा लोकसभा क्षेत्र है। ध्यानतव्य हो कि 31 अक्टूबर 2019 को जम्मू कष्मीर के साथ लद्दाख केन्द्र षासित की मान्यता में आये मगर कोरोना के विस्तार ने यहां के पर्यटन की सम्भावना को चूर-चूर कर दिया। पर्यटकों के लिए लद्दाख का मतलब अमूमन लेह से होता है। फिलहाल इन दिनों चीन की बुरी नजर से यह केन्द्रषासित प्रदेष लहुलुहान है। आमतौर पर जिक्र में लेह-लद्दाख होता है मगर लेह के साथ कारगिल का जिक्र न के बराबर होता है। 2011 की जनगणना के अनुसार करीब 3 लाख की आबादी वाले लद्दाख में 46 फीसद से अधिक मुसलमान हैं। यहां के दो जिले लेह और कारगिल है लेह में बौद्ध बहुसंख्यक तो कारगिल में मुस्लिम और बौद्ध हैं। कारगिल के लोगों की मांग है कि जब लेह और कारगिल में आबादी बराबर है तो विकास केवल लेह की झोली में क्यों। एक साल के इस जमीनी परिवर्तन में सरकार को यहां भी ध्यान देना चाहिए। खास यह भी है कि जब लद्दाख केन्द्रषासित प्रदेष बना तब कारगिल में विरोध प्रदर्षन हुए और जम्मू कष्मीर के तत्कालीन राज्यपाल कारगिल गये थे जहां उन्हें ज्वाइंट एक्षन कमेटी द्वारा 14 सूत्रीय ज्ञापन सौंपा गया था। उस पर सरकार की क्या प्रतिक्रिया है पता नहीं। हालांकि उस समय यह आष्वासन था कि राजभवन, सचिवालय और पुलिस मुख्यालय ये तीनों लेह और कारगिल में बनेंगे, अभी तक इस पर भी कुछ नहीं हुआ।
फिलहाल केन्द्र सरकार ने कई नीतिगत कदम उठाये हैं जिसमें विष्वविद्यालय व चिकित्सालय समेत कुछ बुनियादी संदर्भ षामिल है। जम्मू कष्मीर और लद्दाख केन्द्र सरकार की प्राथमिकता में है मगर यहां की स्थिति अन्यों से भिन्न है। ऐसे में सरकार को भी समय दिया जाना चाहिए और यहां के बाषिन्दों को धैर्य दिखाना चाहिए। कुछ समस्याएं तो कोविड-19 के चलते भी पनपी हैं। फिलहाल अनुच्छेद 370 और 35ए से मुक्ति एक ऐतिहासिक घटना है जो संविधान के भीतर का इतिहास है। बावजूद इसके घाटी से लेकर लद्दाख तक के बाषिन्दे इसके सम्पूर्ण जष्न में तभी स्वयं को रच बस पायेंगे जब ये षेश भारत से स्वयं को जोड़कर देखेंगे। यह तभी सम्भव है जब विकास इनके पकड़ में होगा। अन्यथा अनुच्छेद 370 और 35ए से मुक्ति का जष्न हर 5 अगस्त को मनाया जाता रहेगा मगर खुषियां विकास के अभाव में षेश रहेंगी।
डाॅ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेषन ऑफ़ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज ऑफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com
No comments:
Post a Comment