Thursday, August 6, 2020

बिगड़ गया शिक्षा का पूरा ताना-बाना

कोरोना संकट ने सबसे ज्यादा नुकसान जिन क्षेत्रों में किया है षिक्षा उसमें सबसे आगे है। विडम्बना यह है कि जिस षिक्षा के लिए सब कुछ दांव पर लगाने के लिए लोग तैयार रहते हैं वही इन दिनों अचेत पड़ी है। इतना ही नहीं कई क्षेत्रों के लिए तो सरकार द्वारा फौरी राहत ढूंढी गयी पर षिक्षा के मामले में हमेषा बचने का काम किया गया। हालांकि इसके पीछे बच्चों को बचाना रहा है मगर सवाल यह है कि क्या बंद पड़े स्कूल और घर में बंद बच्चे किसी अवसाद या समस्या से ग्रस्त नहीं हो रहे हैं। आॅनलाइन षिक्षा पर खूब जोर-आज़माइष हुई है मगर कई बुनियादी कमियां साथ ही षिक्षकों का ऐसे अध्यापन का प्रषिक्षण न होना और छोटे बच्चों के साथ यह तकनीकी जुगाड़बाजी अरूचि और अवसाद का कारण भी बन गयी। कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया में कहर बरपाया है करोड़ों इससे संक्रमित है, लाखों की जान जा चुकी है और अर्थव्यवस्था को बड़ा नुकसान पहुंचाया है। खास यह भी है कि इसी के चलते बच्चे और षिक्षा अर्थात् देष का भविश्य स्याह हो रहा है। बच्चों पर काम करने वाली एक संस्था सेव द चिल्ड्रन की रिपोर्ट को देखें तो ऐसा लगता है कि षिक्षा का पूरा ताना-बाना कोरोना के चलते तहस-नहस हो गया है। रिपोर्ट में स्पश्ट है कि मानव इतिहास में पहली बार वैष्विक स्तर पर बच्चों की एक पूरी पीढ़ी की षिक्षा रूक गयी है। स्कूल से लेकर यूनिवर्सिटी तक दुनिया के कुल छात्रों का 90 फीसद हिस्सा इससे बाधित हुआ है। 11 करोड़ बच्चों को गरीबी में धकेलने वाला खतरा भी इसी के कारण हुआ है। कोरोना का साइड इफेक्ट इतना गहरा, गम्भीर और दीर्घकालिक है कि एक करोड़ बच्चों के स्कूल लौटने की सम्भावना ही खत्म हो गयी है। समस्या यह है कि षिक्षा को लेकर पहले भी बच्चे हाषिये पर थे और अब तो और बड़ा सवालिया निषान हो गया। 
वैसे कोरोना महामारी षुरू होने से पहले भी दुनिया भर के करीब 26 करोड़ बच्चे षिक्षा से वंचित थे। अब कोरोना संकट के कारण षिक्षा ले रहे बच्चे भी इसकी जद्द में आ गये हैं। चीन की तुलना में भारत की षिक्षा व्यवस्था आंकड़ों के लिहाज़ से कहीं अधिक प्रभावित है। बीते मार्च से स्कूल बंद चल रहे हैं कोरोना ने स्कूल खोलने का अवसर ही नहीं दिया। अभी भी इस पर कोई निष्चित तारीख घोशित नहीं की गयी है। बच्चों की षिक्षा संकट में है और स्कूल फीस के अभाव में भारी नुकसान झेल रहे हैं। स्कूलों को पहले ही निर्देष दे दिये गये थे कि वे फीस जमा कराने में असमर्थ अभिभावकों पर दबाव न डालें वरना उनके खिलाफ कार्रवाई की जायेगी। षुरू में यह सब बातें झेल ली गयीं पर वक्त लम्बा खिंच रहा है। जाहिर है फीस के अभाव में स्कूल कैसे चलेंगे। देष के लाखों स्कूल अलग-अलग परिस्थितियों से जूझ रहे हैं। यदि इन्हें फीस नहीं मिलती है तो ये बन्द भी हो सकते हैं। उत्तर प्रदेष के बेसिक षिक्षा मंत्री स्कूलों को षुल्क न दिये जाने की मांग को अव्यवहारिक करार दिया। उन्होंने दो टूक कहा कि ऐसी स्थिति में राज्य के 6 लाख से ज्यादा स्कूल बंद हो जायेंगे। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेष में 1 लाख 69 हजार सरकारी स्कूल और जबकि 6 लाख से ज्यादा निजी स्कूल हैं। यही हाल देष के अन्य प्रान्तों का भी है। पष्चित बंगाल में तो स्कूलों को अस्पताल बनाने की कवायद है। इससे साफ है कि बच्चों की स्कूल में वापसी हाल-फिलहाल में सम्भव नहीं है। सिक्किम में तो स्कूल अनिष्चितकाल के लिए बंद कर दिये गये हैं। कोरोना और बाढ़ दोनों से जूझ रहा असम में भी षैक्षणिक कलेन्डर आगे बढ़ाने की बात हो रही है। पंजाब सरकार निजी स्कूलों की फीस वसूली की चिंता ज्यादा करते दिखाई दे रही है तो वहीं राजस्थान में सिलेबस छोटा करने का विचार किया जा रहा है। उत्तराखण्ड समेत देष के अन्य प्रान्तों में फीस को लेकर दृश्टिकोण असमंजस से भरा हुआ है जाहिर है अभिभावक फीस से छूट चाहता है। मगर स्कूल इतने बड़े आर्थिक नुकसान को षायद ही सह पायें। ऐसे में बीच का रास्ता निकालना पड़ेगा। फिलहाल स्कूल कब खुलेंगे, किस गाइडलाइन के अंतर्गत होंगे अभी सब कुछ साफ नहीं है। 
सवाल यह भी है कि स्कूल खोलने को लेकर स्कूल संचालक कितने तैयार हैं और क्या अभिभावक स्कूल खुलने की स्थिति में बच्चों को भेजेंगे। क्या गाइडलाइन के अनुसार व्यवस्था चल पायेगी। भारत में स्कूल में पढ़ने वालों बच्चों की कुल तादाद 33 करोड़ है। कुल जनसंख्या का करीब 20 फीसद हिस्सा 6 से 14 वर्श की उम्र के बच्चों का है जो षिक्षा का अधिकार कानून के अंतर्गत षिक्षा पर हकदारी रखते हैं। कई सरकारी स्कूल बच्चों को खाना खिलाते हैं जाहिर है सुरक्षा की दृश्टि से यह भी सम्भव नहीं होगा। बन्दी के इस दौरान 9 करोड़ से अधिक बच्चे स्कूल के साथ मिड डे मील से भी वंचित हैं। बच्चे ही नहीं मुसीबत में तो टीचर भी हैं। भारत के स्कूलों में 10 लाख से ऊपर कान्ट्रैक्ट पर काम करने वाले टीचर हैं। केवल दिल्ली में ही यह संख्या 29 हजार से ज्यादा है। दिल्ली सहित यूपी, बिहार व अन्य प्रान्तों के षिक्षक सैलरी न मिलने की षिकायत महामारी से पहले भी करते रहे हैं। ऐसे में कोरोना के चलते ये सब भी छिन्न-भिन्न हो गये हैं। निजी स्कूलों के टीचर की नौकरी भी खतरे में है। स्कूल संचालक फीस न मिलने की स्थिति में वेतन नहीं दे पा रहे हैं और यदि कुछ सम्भव भी हो रहा है तो वह पूरा नहीं है। भारत का हर चैथा व्यक्ति गरीबी रेखा के नीचे है और इस गरीबी का सीधा रिष्ता पढ़ाई रूकने और स्कूल छोड़ने से सम्बंधित है। आमदनी ठप्प है और रोज़गार निस्तोनाबूत है ऐसे में षिक्षा दुश्चक्र में उलझ गयी है। कोरोना संकट में हाल तो यह है कि इनको पढ़ाने वाले षिक्षकों की आर्थिक स्थिति भुखमरी के कगार पर पहुंच गयी है। जैसे-जैसे दिन बीत रहा है यह वज्रपात बढ़त ले रहा है। 
कोरोना वायरस में बचाव को लेकर ही इन दिनों सारी कूबत झोंकी जा रही है। षारीरिक दूरी, मास्क और सेनिटाइज़र तथा साबुन से हाथ धोने की चर्चा में ही चार महीने से अधिक वक्त निकल गया। स्कूल, ट्यूषन, कोचिंग सब बंद पड़े हैं। आॅनलाइन षिक्षा, बच्चों के पल्ले नहीं पड़ रही है। बच्चों का षिक्षा का जो चस्का होता था वह भी बेस्वाद हो रहा है। छोटे षहरों, कस्बों में बड़े कहे जाने वाले स्कूलों और षहरों में छोटे-मोटे स्कूलों में आॅनलाइन के नाम पर पढ़ाई केवल खाना पूर्ति का काम कर रही है। केवल षिक्षा ही नहीं बच्चों की भी स्थिति पहले जैसी तो कतई नहीं है। रोज स्कूल जाने वाले बच्चे, स्कूल जाना ही भूल गये हैं। नई षिक्षा नीति 2020 नये क्लेवर-फ्लेवर के साथ बीते 29 जुलाई को उद्घाटित हुई जिसमें षिक्षा को लेकर बहुत कुछ बदलने की कोषिष दिखती है। आगे एक दषक तक क्या होगा उसमें विषद् चर्चा है मगर कोरोना काल में षिक्षा का ऊँट किस करवट बैठेगा इस पर सरकार को भी कुछ नहीं सूझ रहा है। हालांकि इस दिषा में प्रयास जारी है सम्भव है कि आगे एक-दो महीने में स्कूल खुलने वाली स्थिति बने पर इंतजार षिक्षा की सही स्थिति की रहेगी और बिगड़ चुका षिक्षा का ताना-बाना कब फिर पटरी पर आयेगा इसकी भी प्रतीक्षा रहेगी। बच्चे षिक्षा के मामले में उसी आतुरता व चाहत के साथ फिर संलग्न हों इसका प्रयास भी नये सिरे से करना होगा। आर्थिक घाटा तो सरकार का भी है ऐसे में षिक्षा खर्च की भरपाई भी सरकार की चुनौतियों में रहेगी। निजी स्कूल संचालक आर्थिक अभाव को झेल रहे हैं, पूरे भाव के साथ स्कूल चलाना उनके लिए भी बड़ी चुनौती रहेगी। फिलहाल इन्हीं सब चुनौतियों के बीच सभी की जरूरत षिक्षा का बिखरे ताने-बाने को सही करने में एक बार फिर से अपने हिस्से का जोर सभी को लगाना होगा।



डाॅ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज ऑफिस  के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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