इतिहास के पन्नों में इस बात के कई सबूत मिल जायेंगे कि भारत और चीन के बीच सम्बंध भी पुराना है और रार भी पुरानी है। कूटनीति में अक्सर यह देखा गया है कि मुलाकातों के साथ संघर्शों का भी दौर जारी रहता है। भारत और चीन के मामले में यह बात सटीक है पर यह बात और है कि चीन इसका रणनीतिक फायदा उठाता है और भारत भावनाओं में बह जाता है। षीषे में उतारने वाली बात तो यह भी है कि चीन एक ऐसा पड़ोसी देष है जो सिर्फ अपने तरीके से ही परेषान नहीं करता बल्कि अन्य पड़ोसियों के सहारे भी भारत के लिए नासूर बनता है। मसलन पाकिस्तान और नेपाल इतना ही नहीं श्रीलंका और मालदीव यहां तक कि बांग्लादेष से भी ऐसी ही अपेक्षा रखता है। गौरतलब है जब पाकिस्तान और भारत के बीच की दुष्मनी प्रकट होती है तब यह बात सभी को आसानी से पच जाती है कि भारत के आगे पाकिस्तान बिल्कुल नहीं टिक पायेगा मगर जब चीन आंख दिखाता है तब भारत की मीडिया से लेकर तमाम जानकार चीन की षक्ति का बखान करते हुए भारत का हौसला बढ़ाते हैं। सवाल यह है कि क्या हमेषा के लिए यह तय हो गया है कि समस्या सदैव चीन ही बढ़ायेगा। डोकलाम विवाद से लेकर लद्दाख तक तीन साल के दरमियान में देखें तो चीन ने हमें बेवजह कई तकलीफें दी हैं और भारत सिर्फ संयम दिखाता रहा। यह बात उचित है कि युद्ध समस्या का सम्पूर्ण हल कभी हो नहीं सकता पर चीन की दबंगाई हमेषा के लिए क्यों स्वीकारी जाये। अरूणाचल से लेकर लद्दाख तक जमीन हड़पने का पक्षधर चीन जब-तब भारत के लिए मुसीबत का सबब बनता है तब-तब भारत संयम और षान्ति के साथ उसके षान्त होने का इंतजार करता है। दुविधा यह है कि इस तरीके से भारत-चीन सीमा विवाद का कोई हल क्या निकल पायेगा।
लद्दाख पर चीन की नई करतूत ने द्विपक्षीय सम्बंध को रसातल में धकेल दिया है और कोरोना महामारी के बीच बेवजह वह एक मुसीबत बन गया है। सीमा पर अच्छी खासी संख्या में चीनी सैनिक मौजूद है उसके मुकाबले में भारतीय सेना भी वहां बहुतायत में उपस्थित है। रक्षा मंत्री की मानें तो लद्दाख में लड़ाकू विमान सुखोई तथा तेजस मिराज उड़ान भर रहे हैं। गौरतलब है कि भारत सीमा पर सड़क बना रहा है और चीन को यह अखर रहा है। चीन की आपत्ति के बावजूद काम नहीं रोकने बल्कि काम तेज करने की बात कही गयी है। मई में दो समस्याएं उपजी पहला नेपाल ने अपने नक्षे में काला पानी और लिपुलेख को दिखाकर मानो भारत को एक मौन चुनौती दे दी हो जाहिर है यह चीन की कुटिल चाल का हिस्सा है। दूसरी समस्या स्वयं चीन है जो लद्दाख में भारत से भिड़ने के लिए तैयार बैठा है। चीन को यह कौन समझाये यह 1962 का नहीं यह 2020 का भारत है। सभी जानते हैं कि साल 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण करके वर्श 1954 के पंचषील समझौते की धज्जियां उड़ाई थी। इतना ही नहीं पाकिस्तान का लगातार साथ देकर भारत की कूटनीति को बौना करना इसकी फितरत रही है। संयुक्त राश्ट्र संघ की सुरक्षा परिशद् में पाक आतंकियों का पक्ष लेकर वीटो को रोकने वाला चीन कई बात अपनी संकीर्णता का परिचय कई बार दे चुका है।
देखा जाय तो सीमा विवाद के मामले में चीन का रवैया कभी उदार नहीं रहा है। भारत सहित दर्जन भर से अधिक पड़ोसी देषों का दुष्मन चीन कोरोना महामारी का जन्मदाता है। हांगकांग में स्वतंत्रता की आवाज इन दिनों दबा रहा है। अमेरिका से चलने वाला ट्रेड वाॅर अब कोरोना वाॅर में तब्दील हो गया है। दुनिया को कोरोना वायरस बांट कर चीन अब अपनी अर्थव्यवस्था के गुणा-भाग में न केवल षामिल है बल्कि सीमा विवाद खड़ा करके अपनी भीतरी समस्या को सुलझाने की राह को भारत के धमकाने से खोज रहा है। गौरतलब है कि चीनी राश्ट्रपति जिनपिंग ताउम्र के लिए राश्ट्रपति हैं और वहां लोकतंत्र का तो नामोनिषान नहीं है। ताकत और दबंगाई के बल पर चीनी नागरिकों को हांका जाता है पर कईयों ने जिनपिंग के खिलाफ आवाज उठाई। जिनपिंग को डर है कि यह आवाज अगर चीन की गूंज और क्रान्ति बन गयी तो उनकी सत्ता का तख्त पलटा जा सकता है। ऐसे में सीमा विवाद खड़ा करके चीनियों का ध्यान ही पलट दिया जाये। जिनपिंग जो नाटक कर रहे हैं वह द्विपक्षीय सम्बंध के लिहाज से कतई उचित नहीं है। यूरोप के कई देष चीन पर जुर्माने की बात कह रहे हैं। अमेरिकी राश्ट्रपति ट्रम्प विष्व स्वास्थ संगठन से इस बात के लिए नाता तोड़ लिया कि यह चीन परस्त है। ट्रम्प तो कोरोना को चीनी वायरस की संज्ञा दे रहे हैं। जिस राह पर दुनिया खड़ी है चीन फिलहाल उसके केन्द्र में है।
संयोग से चीन भारत की तुलना में आर्थिक और सामरिक दृश्टि से षक्तिषाली देष है जो जब चाहे भारत-चीन सीमा पर धमक जाता है और मुसीबत को स्वयं अपने मन-माफिक बढ़ा लेता है। वैसे चीन इन दिनों कई चीजों से उलझ रहा है। हांगकांग से लेकर ताइवान तक और यूरोप से लेकर अमेरिका तक। विवाद हर जगह भिन्न-भिन्न प्रकृति का है। ताजा-तरीन मामला भारत के साथ है। लद्दाख की समस्या डोकलाम की याद ताजा कर देती है। जब 16 जून 2017 को चीन डोकलाम की चुम्बी घाटी पर दावा करना चाह रहा था। करीब ढ़ाई महीने तक चली इस तनातनी के बीच दोनों सेनाएं वापस हुई। इसके पीछे एक बड़ा कारण भारत का संयम से उठाया गया कदम और सितम्बर 2017 के प्रथम सप्ताह में चीन में होने वाले ब्रिक्स देषों की बैठक मानी जा सकती है। अब सवाल यह है कि क्या भारत और चीन के बीच युद्ध की स्थिति बन रही है और यदि ऐसा है तो क्या यह विष्व युद्ध का संकेत दे रहा है। इन दिनों सभी की अर्थव्यवस्था उखड़ी है ऐसे में सद्भाव की आवष्यकता सभी को है। यह बात ठीक है कि भारत पहले जैसा नहीं है पर चीन से मजबूत भी तो नहीं है। पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी ने कहा था कि पड़ोसी नहीं बदल सकते। चीन और भारत की 4 हजार किलोमीटर की सीमा जब-तब विवाद को उत्पन्न करती है। जाहिर है समाधान बातचीत ही है मगर औजारों और हथियारों के इस युग में संयम खो चुके देष इस रास्ते से भटक गये हैं जिसमें चीन पहले नम्बर पर है। जबकि संयम के मामले में यही स्थान भारत का है।
डाॅ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
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