Tuesday, September 24, 2019

अर्थ स्पष्ट है अंतर्राष्ट्रीय न्यायलय के फैसले का

देखा जाय तो कुलभूशण जाधव के मामले में अन्तर्राश्ट्रीय न्यायालय के फैसले का अर्थ बिल्कुल स्पश्ट है जिसके चलते पाकिस्तान बैकफुट पर है और भारत की कूटनीति फ्रंट पर। फैसले का अर्थ यह है कि पाकिस्तान मानवाधिकार और वियना समझौते का उल्लंघन करते हुए न केवल एक तरफा फैसला लिया बल्कि जाधव को फांसी की सजा देने पर तुला हुआ था। मई 2017 से जाधव को बचाने का अभियान अन्तर्राश्ट्रीय न्यायालय में चल रहा है। गौरतलब है कि उन्हीं दिनों अन्तर्राश्ट्रीय न्यायालय ने आष्वासन दिया था कि जल्द से जल्द इस मामले में अपना फैसला वह सुना देगा। बीते 17 जुलाई को जो फैसला आया तब दो साल से अधिक वक्त हो चुका था पर वह जाधव को राहत देने वाला था और काफी हद तक भारत की कूटनीति को भी इससे बल मिलता है। भारत की ओर से पैरवी कर रहे हरीष साल्वे ने सुनवाई के पहले दिन ही मई 2017 में अन्तर्राश्ट्रीय न्यायालय को यह आगाह कर दिया था कि फैसला आने से पहले पाकिस्तान जाधव को फांसी दे सकता है। ऐसे में इस मामले को गम्भीरता से लेना चाहिए। फिलहाल जाधव पर फैसले से पाकिस्तान एक बार फिर बेनकाब हुआ है। ध्यानतव्य हो कि अन्तर्राश्ट्रीय न्यायालय के इस न्यायालय को मानने के लिए पाकिस्तान बाध्य नहीं है। हरीष साल्वे का मानना है कि वैसे तो पाकिस्तान इस दिषा में बढ़ेगा नहीं, यदि बढ़ता भी है तो संयुक्त राश्ट्र में मामला उठाने का विकल्प खुला हुआ है। गौरतलब है कि 16 जजों की बेंच में 15 ने फैसले के पक्ष में मत दिया जबकि एक ने विरोध में, विरोधी जज स्वयं पाकिस्तानी था। न्यायालय ने हालांकि की जाधव को रिहा करने के भारत के अनुरोध को खारिज कर दिया है पर पाकिस्तान से अपने फैसले की समीक्षा करने का उसने जो आदेष दिया उससे अर्थ स्पश्ट है कि पाकिस्तान मानवाधिकार का उल्लंघन करके मनमानी फैसला नहीं ले सकता। 
कुलभूशण जाधव के पूरे मामले की पड़ताल की जाये तो इसमें पाकिस्तान की पूरी नाटकीय पटकथा के साथ झूठ गढ़ने वाली व्यवस्था का चित्रण होता है जो अन्तर्राश्ट्रीय न्यायालय तक बादस्तूर जारी रहा। जबसे यह मामला प्रकाष में आया तब से भारत जाधव को बचाने के मामले में न केवल अपनी कूटनीतिक रफ्तार बढ़ा दी बल्कि उनके देष वापसी को लेकर जनता को आष्वासन देती रही। पाकिस्तान द्वारा फांसी की सजा सुनाये जाने से यह भी साफ था कि अपील और दलील को पाकिस्तान से कोई वास्ता नहीं है और न ही इस बात से उससे कोई मतलब कि जाधव आखिर कसूरवार है भी या नहीं। उसे तो इसलिए फांसी देनी थी क्योंकि वह भारत का नागरिक है। जाहिर है यह भारत की नाक का सवाल भी हो गया था। अन्तर्राश्ट्रीय न्यायालय जाकर भारत ने यह भी स्पश्ट किया कि पाकिस्तान की करतूतों से वह ऊब चुका है। साथ ही न्याय व्यवस्था में उसका विष्वास कहीं अधिक मजबूत है। सात दषक से लोकतांत्रिक देष होने की वाहवही लूटने वाला देष पाकिस्तान नियमों को कैसे ताक पर रखता है इसकी भी कलई इस घटना ने खोली है। अन्तर्राश्ट्रीय मंचों पर गलत बयानबाजी करके दुनिया को गुमराह करके पाक की अन्तर्राश्ट्रीय न्यायालय में एक न चली। सुनवाई के दौरान पाकिस्तान का कच्चा चिट्ठा जब सामने रखा गया और न्यायालय को जब यह बताया गया कि पड़ोसी देष में गठित सैन्य अदालतें किस तरह सबूतों के आभाव में मानवाधिकार और वैष्विक संधियों की धज्जियां उड़ा रही हैं। जो देष आतंक से पटा है उस पाकिस्तान की अदालतें खतरनाक आतंकियों के खिलाफ कार्यवाही नहीं करती बल्कि उन्हें संरक्षण देने का काम करती हैं। यह संयोग ही है कि जब अन्तर्राश्ट्रीय न्यायालय जाधव की फांसी की सजा रोक लगा रहा था तब मुम्बई आतंकी घटना का मास्टर माइंड हाफिज सईद को पाकिस्तान की जेल में डाला जा रहा था। हालांकि इसके पीछे पाक प्रधानमंत्री इमरान खान की चली गयी दूर की चाल है जिस पर भारत ही नहीं अमेरिका समेत दुनिया की नजर है। 
अन्तर्राश्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान एक बार फिर अलग-थलग पड़ गया है। भारत के पक्ष में अन्तर्राश्ट्रीय न्यायालय का फैसला उसके लिए उसकी दनिया में किरकिरी करा रही है। पाकिस्तान ने भारत की अपील के खिलाफ जो आपत्तियां उठायी वह असल में स्वीकार करने लायक ही नहीं थी। पाक की इस आपत्ति को न्यायालय ने खारिज कर दिया और कहा कि भारत का आवेदन स्वीकार करने लायक है। हैरत की बात यह है कि पाकिस्तान के लिए पाकिस्तान का गहरा मित्र चीन इस मामले में उसके साथ नहीं था। यहां चीन ने भारत का साथ दिया। एक अर्थ यह भी है कि पाकिस्तान की दोस्ती की कीमत अन्तर्राश्ट्रीय स्तर पर चीन तभी चुकायेगा जब उसके दामन पर ऐसा करने से कोई दाग नहीं लगेगा। हालांकि संयुक्त राश्ट्र सुरक्षा परिशद् में पाक आतंकियों पर वीटो करके चीन ने अपनी खूब किरकिरी कराई थी और जब अमेरिका, इंग्लैण्ड और फ्रांस ने चीन की इस फितरत को उसकी आदत समझ लिया तब मसूद अजहर के मामले में दबाव के साथ उसे अन्तर्राश्ट्रीय आतंकी घोशित करने में एकजुटता दिखाई। अन्तर्राश्ट्रीय स्तर पर यह पाकिस्तान की दूसरी हार है। गौरतलब है 1999 को वायुसेना ने गुजरात के कक्ष में पाकिस्तानी नौसेना के विमान अटलांटिक को मार गिराया जिसमें सभी 16 सैनिकों की मौत हो गयी। पाकिस्तान का दावा था कि विमान को उसके एयर स्पेस में गिराया गया और भारत से इस मामले में 6 करोड़ डाॅलर का मुआवजा मांगा। मामला अन्तर्राश्ट्रीय न्यायालय में गया और 16 जजों की पीठ ने जून 2000 में इसे खारिज कर दिया। इस मामले में 14 जज भारत की तरफ जबकि 2 पाकिस्तान के दावे के साथ थे। इस घटना से यह भी साफ है कि अन्तर्राश्ट्रीय न्यायालय के भीतर पाकिस्तान पहले भी किरकिरी करा चुका है और अलग-थलग पड़ना उसकी सामान्य आदत है। 
कुछ बातें कुलभूशण जाधव के बारे में भी कर लेना यहां सही रहेगा। महाराश्ट्र के जाधव भारतीय नौसेना के पूर्व अधिकारी रहे हैं। पाकिस्तान ने इन्हें जासूस बताते हुए मार्च 2016 में ईरान से अगवा किया था लेकिन उसके 25 दिन बाद उसने भारतीय उच्चायोग को इस बारे में सूचित किया था। सूचना 25 दिन बाद क्यों दी जा रही है इसका उसके पास कोई स्पश्ट कराण नहीं था। जाधव को भारतीय उच्चायोग से सम्पर्क स्थापित करने देने का अनुरोध 16 बार खारिज किये जाने के बाद जब यह मुद्दा भारत अन्तर्राश्ट्रीय न्यायालय में ले गया तब पाक ने कहा कि यह मामला उसके दायरे में नहीं आता। इसी समय पाकिस्तान का तत्कालीन विदेष मंत्री ने यह भी स्वीकार किया था कि जाधव के खिलाफ पुख्ता सबूत नहीं है। हालांकि उसी दिन इसी बात का खण्डन भी किया गया। मामला यहीं तक नहीं रूका जब पाकिस्तान में जाधव से उनका परिवार मिलने गया तब भी उनके साथ अनाप-षनाप बर्ताव किये गये। पाकिस्तान पहले से ही जानता था कि अन्तर्राश्ट्रीय न्यायालय में उनकी एक नहीं चलेगी और अपने गलत फैसले को दूसरी गलती से ठीक करने की पिछले दो साल से अधिक समय से कोषिष कर रहा है जिसका नतीजा आज दुनिया के सामने है। हालांकि यह जाधव की रिहाई का फैसला नहीं है पर जाधव के साथ अब न्याय की सम्भावना बढ़ती दिखाई देती है। मानवाधिकार और वियना समझौते के उल्लंघन के चलते पाकिस्तान की नकेल कस दी गयी है। गौरतलब है कि वियना संधि के तहत राजनयिकों को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। इस संधि के अन्तर्गत 54 आर्टिकल हैं। फरवरी 2017 में इस संधि पर हस्ताक्षर कर 191 देषों ने इसे पालन के लिए अपनी सहमति जताई थी। यह संधि 1961 में वियना में हुए सम्मेलन में अंतिम रूप ली थी। फिलहाल दो साल, दो महीने तक चले इस मुकदमे में भारत की जीत हुई और पाकिस्तान पर षिकंजा कसा गया। फांसी रूक गयी है पर रिहाई के लिए कानूनी लड़ाई अभी षेश है। 



सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज ऑफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502

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