Tuesday, September 24, 2019

समावेशी विकास में सुशासन की भूमिका

समावेषी विकास के लिए यह आवष्यक है कि लोक विकास की कुंजी सुषासन कहीं अधिक पारंगत हो। प्रषासन का तरीका परंपरागत न हो बल्कि ये नये ढांचों, पद्धतियों तथा कार्यक्रमों को अपनाने के लिए तैयार हो। आर्थिक पहलू मजबूत हों और सामाजिक दक्षता समृद्धि की ओर हों। स्वस्थ नागरिक देष के उत्पादन में वृद्धि कर सकता है इसका भी ध्यान हो। समावेषी विकास पुख्ता किया जाय, रोटी, कपड़ा, मकान, स्वास्थ, षिक्षा और चिकित्सा जैसी तमाम बुनियादी आवष्यकताएं पूरी हों। तब सुषासन की भूमिका पुख्ता मानी जायेगी। सुषासन का षाब्दिक अभिप्राय एक ऐसी लोक प्रवर्धित अवधारणा जो जनता को सषक्त बनाये। सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय सुनिष्चित करे। मोदी सरकार का दूसरा संस्करण 30 मई 2019 से षुरू हो गया। आर्थिक आईना कहे जाने वाला बजट नई सरकार में नये रूप-रंग के साथ 5 जुलाई को पेष किया। बजट के माध्यम से सुषासन की धार मजबूत करने की कोषिष की क्योंकि उसने इसके दायरे में समावेषी विकास को समेटने का प्रयास किया। अगले पांच वर्शों में बुनियादी ढांचे पर सौ लाख करोड़ का निवेष, अन्नदाता को बजट में उचित स्थान देने, हर हाथ को काम देने के लिए स्टार्टअप और सूक्ष्म, मध्यम, लघु उद्योग पर जोर देने के अलावा नारी सषक्तीकरण, जनसंख्या नियोजन और गरीबी उन्मूलन की दिषा में कई कदम उठाने की बात कही गयी है। सुसज्जित और स्वस्थ समाज यदि समावेषी विकास की धारा है तो सुषासन इसकी पूर्ति का मार्ग है।
दषकों पहले कल्याणकारी व्यवस्था के चलते नौकरषाही का आकार बड़ा कर दिया गया था और विस्तार भी कुछ अनावष्यक हो गया था। 1991 में उदारीकरण के फलस्वरूप प्रषासन के आकार का सीमित किया जाना और बाजार की भूमिका को बढ़ावा देना सुषासन की राह में उठाया गया बड़ा कदम है। इसी दौर में वैष्विकरण के चलते दुनिया अमूल-चूल परिवर्तन की ओर थी। विष्व की अर्थव्यवस्थाएं और प्रषासन अन्र्तसम्बन्धित होने लगे जिसके चलते सुषासन के मूल्य और मायने भी उभरने लगे। 1992 की 8वीं पंचवर्शीय योजना समावेषी विकास को लेकर आगे बढ़ी और सुषासन ने इसको राह दी। मन वांछित परिणाम तो नहीं मिले पर उम्मीदों को पंख जरूर लगे। विष्व बैंक के अनुसार सुषासन एक आर्थिक अवधारणा है और इसमें आर्थिक न्याय किये बगैर इसकी खुराक पूरी नहीं की जा सकती। प्रधानमंत्री मोदी नोटबंदी से लेकर जीएसटी तक कई आर्थिक निर्णय लिये और बार-बार यह दावा किया कि सुषासन उनकी प्राथमिकता है और समावेषी विकास देष की आवष्यकता। खजाने की खातिर उन्होंने कई जोखिम लिए पर सवाल यह है कि क्या सभी को मन-माफिक विकास मिल पाया। गौरतलब है कि आज भी देष में हर चैथा व्यक्ति अषिक्षित और गरीबी रेखा के नीचे है। बेरोज़गारी दर 45 साल की तुलना में सर्वाधिक है और अन्तर्राश्ट्रीय श्रम संगठन भी यह मानता है कि भारत में बेरोज़गारी दर आगे भी बढ़ेगी। डिग्रीधारी हैं पर कामगार नहीं हैं, विकास दर में इनकी भूमिका निहायत कमजोर है और भारत की जीडीपी 5.8 फीसदी तक बामुष्किल से पहुंच पायी है। इस बजट में 7 फीसदी का लक्ष्य रखा गया है। 
सुषासन की कसौटी पर मोदी सरकार कितनी खरी है इसका अंदाजा किसानों के विकास और युवाओं के रोज़गार के स्तर से पता किया जा सकता है। किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य 2022 है पर कटाक्ष यह है कि किसानों की पहले आय कितनी है यह सरकार को षायद नहीं पता है। बजट में किसानों के कल्याण के लिए गम्भीरता दिखती है। गांव, गरीब और किसानों के लिए कई प्रावधान हैं जो समावेषी विकास के लिए जरूरी भी हैं। 60 फीसदी से अधिक किसान अभी भी कई बुनियादी समस्या से जूझ रहे हैं। बजट में करीब डेढ़ लाख करोड़ रूपए का प्रावधान गांव और खेत-खलिहानों के लिए किया गया है। पीएम किसान योजना के तहत 75 हजार करोड़ रूपए का आबंटन स्वागत योग्य है जो सुषासन के रास्ते को चैड़ा कर सकता है। कई सुधारों की सौगात समावेषी विकास को अर्थ दे सकता है। 5 वर्शों में 5 करोड़ नये रोज़गार के अवसर छोटे उद्यम में विकसित करने का दम उचित कदम है। 25 सौ से अधिक स्टार्टअप खोले जाने की योजना भी रोज़गार की दिषा में अच्छा कदम है। नये निवेष और षोध के लिए की गयी पहल न केवल समावेषी विकास को बड़ा करेगा बल्कि लक्ष्य हासिल होता है तो देष को सुषासनमय भी बना देगा। हालांकि जितनी बातें कहीं जा रही हैं वे जमीन पर उतरेंगी या नहीं कहना मुष्किल है। पर जो सपने बोये गये हैं उसे काटने की फिराक में कुछ समावेषी तो कुछ सुषासन जैसा तो होगा ही। 
सुषासन की क्षमताओं को लेकर ढ़ेर सारी आषायें भी हैं। काॅरपोरेट सेक्टर, उद्योग, जल संरक्षण, जनसंख्या नियोजन, पर्यावरण संरक्षण भी बजट में बाकायदा स्थान लिये हुए है। असल में सुषासन लोक विकास की कुंजी है। जो मौजूदा समय में सरकार की प्रक्रियाओं को जन केन्द्रित बनाने के लिए उकसाती हैं। एक नये डिज़ाइन और सिंगल विंडो संस्कृति में यह व्यवस्था को तब्दील करती है। लगभग तीन दषक से देष सुषासन की राह पर है और इतने ही समय से समावेषी विकास की जद्दोजहद में लगा है। एक अच्छी सरकार और प्रषासन लोक कल्याण की थाती होती है और सभी तक इसकी पहुंच समावेषी विकास की प्राप्ति है। इसके लिए षासन को सुषासन में तब्दील होना पड़ता है। मोदी सरकार स्थिति को देखते हुए सुषासन को संदर्भयुक्त बनाने की फिराक में अपनी चिंता दिखाई। 2014 से इसे न केवल सषक्त करने का प्रयास किया बल्कि इसकी भूमिका को भी लोगों की ओर झुकाया। वर्तमान भारत डिजिटल गवर्नेंस के दौर में है। नवीन लोक प्रबंध की प्रणाली से संचालित हो रहा है। सब कुछ आॅनलाइन करने का प्रयास हो रहा है। ई-गवर्नेंस, ई-याचिका, ई-सुविधा, ई-सब्सिडी आदि समेत कई व्यवस्थाएं आॅनलाइन कर दी गयी हैं। जिससे कुछ हद तक भ्रश्टाचार रोकने में और कार्य की तीव्रता में बढ़ोत्तरी हुई है। फलस्वरूप समावेषी विकास की वृद्धि दर भी सम्भव हुई है। साल 2022 तक सबको मकान देने का मनसूबा रखने वाली मोदी सरकार अभी भी कई मामलों में संघर्श करते दिख रही है। मौजूदा आर्थिक हालत बेहतर नहीं है, जीएसटी के चलते तय लक्ष्य से राजस्व कम आ रहा है। प्रत्यक्ष करदाता की बढ़ोत्तरी हुई पर उगाही में दिक्कत है। राजकोशीय घाटा न बढ़े इसकी चुनौती से भी सरकार जूझ रही है। फिलहाल इस बार के बही खाते से देष को जो देने का प्रयास किया गया वह समावेषी विकास से युक्त तो है पर पूरा समाधान नहीं है। दो टूक यह भी है कि सुषासन जितना सषक्त होगा समावेषी विकास उतना मजबूत। और इसकी जिम्मेदारी षासन की है।



सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज ऑफिस  के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल:sushilksingh589@gmail.com

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