Tuesday, September 24, 2019

अदालत की चौखट पर अनुच्छेद 370


वैसे देखा जाय तो अनुच्छेद 370 तब से एक समस्या है जब से देष का संविधान है। इसे हटाने को लेकर कई सरकारों ने वायदे किये पर इसे राह देने में असफल रहे। उच्चत्तम न्यायालय संविधान का संरक्षक है ऐसे में उसकी चिंता भी समय-समय पर इस मामले में देखी जा सकती है। इस मसले में षीर्श अदालत द्वारा अनुच्छेद 370 पर सुनवाई के लिए तैयार होना इसलिए भी उल्लेखनीय बात है क्योंकि उसके समक्ष अगस्त 2018 से जम्मू-कष्मीर से ही जुड़ा एक और विवादास्पद अनुच्छेद 35ए विचाराधीन है। जो राज्य सरकार को यह निर्धारित करने का अधिकार देता है कि यहां का स्थायी नागरिक कौन है। भारतीय संविधान में जम्मू-कष्मीर राज्य को विषेश दर्जा प्राप्त है और यह विषेश स्थिति अनुच्छेद 370 के अन्तर्गत है और अनुच्छेद 35ए भी ऐसे ही कुछ पेंच लिए हुए है। संविधान का भाग 6 में अनुच्छेद 152 के अन्तर्गत राज्य में जम्मू-कष्मीर राज्य षामिल नहीं है जिसका तात्पर्य यह है कि राज्यों के संविधान में वर्णित उपबन्ध जम्मू-कष्मीर राज्य पर लागू नहीं होंगे। संविधान की पहली अनुसूची में जम्मू-कष्मीर को 15वें राज्य के रूप में देखा जा सकता है। अनुच्छेद 35ए इसलिए सवालों के घेरे में है क्योंकि उसे राश्ट्रपति के आदेष के अन्तर्गत संविधान में जोड़ा गया था। गौर करने वाली बात है कि यह अनुच्छेद कई भेदभावों से भरा हुआ है। इसके चलते जम्मू-कष्मीर के बाहर के लोग न तो यहां अचल सम्पत्ति खरीद सकते हैं और न ही सरकारी नौकरी हासिल कर पाते हैं। इसके अलावा भी कई और समस्याएं इसकी वजह से हैं। इसमें यह भी है कि अगर जम्मू-कष्मीर की लड़की किसी बाहर के लड़के से षादी करे तो उसके सारे अधिकार खत्म हो जायेंगे। इतना ही नहीं उसके बच्चों के अधिकार भी खत्म हो जाते हैं। गौरतलब है कि जब 1956 में जम्मू कष्मीर का संविधान बनाया गया था तब स्थायी नागरिकता को कुछ इस प्रकार परिभाशित किया गया था। संविधान के अनुसार स्थायी नागरिक वह व्यक्ति है जो 14 मई 1954 को राज्य का नागरिक रहा है या फिर उसके पहले के 10 वर्शों से राज्य में रह रहा हो और वहां सम्पत्ति हासिल की है। इसी दिन तत्कालीन राश्ट्रपति डाॅ0 राजेन्द्र प्रसाद ने एक आदेष पारित किया जिसके तहत संविधान अनुच्छेद 35ए जोड़ा गया था। अब सवाल है कि क्या अनुच्छेद 35ए अनुच्छेद 370 का ही हिस्सा है? और अनुच्छेद 370 केा हटाने से 35ए स्वयं हट जायेगा। षीर्श अदालत ने 35ए को लेकर पहले 6 अगस्त 2018 को बाद में तिथि को आगे बढ़ाकर 27 अगस्त को सुनवाई की बात कही। हालांकि तिथि आगे बढ़ाने के पीछे तीन न्यायाधीषों की पीठ में एक अनुपस्थिति का होना था। गौरतलब है कि उसी समय जम्मू कष्मीर में खूब बयानबाजी हो रही थी और घाटी में अलगाववादियों की ओर से बुलाई गयी हड़ताल के चलते दुकानें बंद रही। दरअसल ये सभी अनुच्छेद 35ए को हटाये जाने के विरोध में थे और अभी भी हैं। 
अनुच्छेद 370 जम्मू कष्मीर पर लागू एक अस्थायी व्यवस्था थी जो आज भी अस्थायी है पर इसकी आयु देखकर मानो इसकी प्रकृति स्थायी हो गयी हो। अब सवाल यह है कि क्या यह संविधान की भावना के प्रतिकूल है या नहीं। एक अस्थायी अनुच्छेद को स्थायी क्यों माना जाय या फिर उसके लिए जो जिद्द कर रहे हैं उनके सामने क्यों झुका जाय। जब सवाल देष की एकता और अखण्डता का हो तो जम्मू कष्मीर का अलग दर्जा बनाये रखना उचित प्रतीत नहीं होता। किसी राज्य को विषेश का दर्जा देना कोई गैरवाजिब बात नहीं है पर भारतीयता से कटा हुआ राज्य हो और उसे मुख्य धारा में लाना हो तो वापसी होनी चाहिए। जम्मू कष्मीर की परिस्थितियां 50 के दषक में ऐसी रहीं होंगी कि अनुच्छेद 370 यहां अधिरोपित किया जाय पर 21वीं सदी के दूसरे दषक में भी यही परिस्थिति बनी हुई है यह वाजिब प्रतीत नहीं होता। एक सच्चाई यह भी है कि अनुच्छेद 370 हटाने को लेकर भाजपा हमेषा तेवर में रही है और उसकी हटाने को लेकर पुरानी मांग है। उसी भाजपा के केन्द्र में 2014 से सरकार चल रही है जबकि जनवरी 2015 से पीडीपी के साथ मिलकर जम्मू-कष्मीर  में सरकार भी बनायी थी पर 370 का मामला यथावत ही रहा। हालांकि अब वहां राज्यपाल षासन लागू है। देखने वाली बात यह भी है कि अनुच्छेद 370 पर सुनवाई की स्थिति में मोदी सरकार अपना पक्ष किस तरह रखती है? सुप्रीम केार्ट ने अनुच्छेद 35ए की सुनवाई करते समय जब जम्मू-कष्मीर के राज्यपाल षासन से इस बारे में राय मांगी थी तो उसकी ओर से यह कहा गया कि इस मामले में कोई फैसला नई सरकार लेगी। वैसे बड़ा सच यह है कि अनुच्छेद 35ए को लेकर इसका सियासी खेल भी चरम पर रहा है। इस अनुच्छेद के मामले में एक गैर सरकारी संगठन वी द पीपुल ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर रखी है जिसमें कहा गया है कि इस अनुच्छेद के चलते भारतीय संविधान में प्रदत्त समानता के अधिकार के अलावा मानवाधिकार का भी घोर हनन हो रहा है। गौरतलब है कि अनुच्छेद 35ए के तहत पष्चिमी पाकिस्तान से आकर बसे षरणार्थियों और पंजाब से यहां लाकर बसाये गये बाल्मीकि समुदाय नागरिकता से वंचित है। वहां के नेता भी नहीं चाहते कि इसे हटाया जाय। यहां तक कि सीपीआई(एम) भी इसके हटाने के पक्ष में नहीं है। पर कष्मीरी पण्डित इसके हटाने के पक्ष में हमेषा से रहे हैं। उनकी दलील है कि इस अनुच्छेद से हमारी बेटियों को दूसरे राज्यों में विवाहित होने के बाद अपने सभी अधिकार जम्मू-कष्मीर से खोना पड़ रहा है। 
अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कष्मीर सात दषक से विषेश राज्य के दर्जे के साथ कई बाध्यतायें समेटे हुए है यथा नीति निर्देषक तत्व का यहां लागू न होना जबकि देष के हर राज्य में यह लागू होते हैं। वित्तीय आपात यहां लागू नहीं किया जा सकता। अवषिश्ट षक्तियां राज्य को प्राप्त हैं। सम्पत्ति का अधिकार राज्य में अभी भी लागू है। जबकि अन्य प्रान्तों में यह अनुच्छेद 300(क) के अन्तर्गत एक वैधानिक अधिकार है। इतना ही नहीं अनुच्छेद 352 के अधीन आपात की घोशणा राज्य सरकार की सहमति से ही किया जा सकता है। ऐसी तमाम बातें इसे विषिश्ट बनाती हैं और सुविधापरक भी हैं। बहुत कुछ जम्मू-कष्मीर के हक में होने के बावजूद यहां मामला बेपटरी ही रहा है। आतंक की चपेट में घाटी अक्सर रही है। घाटी बर्बाद करने में यहां के नेता भी कम जिम्मेदार नहीं हैं। अनुच्छेद 35ए के मोह में यहां के सभी स्थानीय दल फंसे दिखाई देते हैं। जम्मू-कष्मीर से आईएएस टाॅपर रहे षाह फैसल भी विवादित ट्विट कर चुके हैं। हालांकि अब वे इस सेवा से बाहर होकर सियासी सफर में है। उपरोक्त से यह संदर्भित होता है कि जम्मू कष्मीर के भीतर दो विचार चल रहे हैं। एक अनुच्छेद 35ए के पक्ष में दूसरा विरोध में। मगर असल में चिंता विरोधियों को अनुच्छेद 35ए की नहीं है और न ही 370 की बल्कि उन्हें वहां की फिजा में फैली उनकी रसूख की है। देष की षीर्श अदालत ने अनुच्छेद 370 की सुनवाई के लिए तैयार होना कई उम्मीदों को जन्म देता है। फैसला क्या होगा पता नहीं जो होगा, अच्छा होगा। अनच्छेद 35ए कष्मीर की विधानसभा को यह अधिकार देता है कि वह वहां स्थायी नागरिक की परिभाशा तय कर सके। अब यह भी बीते वर्श से न्यायालय की षरण में है। फिलहाल जिस तर्ज पर समस्या बढ़ी है उसका हल भी उतना आसान प्रतीत नहीं होता। दो टूक यह कि जब भी दन दोनों अनुच्छेदों से जम्मू-कष्मीर को मुक्ति मिलेगी तो इसमें कोई दो राय नहीं कि यह संविधान की सबसे बड़ी खामी को दूर करने जैसा होगा।



सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज ऑफिस  के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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