Tuesday, November 13, 2018

बहुत ज़रूरी है नई राह का खुलना

यह एक बड़ा सच है कि पिछले कई वर्शों से नदियों पर कोई ध्यान नहीं जा रहा है यदि जा भी रहा है तो सिर्फ इसलिए कि नदी प्रदूशित हो रही है पर उसे रोक पाना भी सम्भव नहीं हो पा रहा है। जबकि इन्हीं नदियों के माध्यम से सदियों से परिवहन होता रहा, पीने का जल लिया जाता रहा, षहरों की बसावट इनके किनारे होती रही और सभ्यताओं की मुखर इतिहास की ये गवाह रही हैं पर अब यह हांफ रही हैं। गंगा हो या यमुना या अन्य सहायक नदियां सभी का हाल आमतौर पर बेहाल ही है। सदियों पुराने जल मार्गों के इतिहास को समेटे इन नदियों में समय-समय पर नई राह खोजी जाती रही है। इसी तर्ज पर वाराणसी-हल्दिया के बीच एक बार फिर यह प्रयास हुआ। प्रधानमंत्री मोदी ने वाराणसी में गंगा तट पर बने देष के पहले मल्टी माॅडल टर्मिनल अर्थात् बंदरगाह को बीते सोमवार देष को समर्पित किया जो वाराणसी से हल्दिया के बीच ऐसा पहला राश्ट्रीय जलमार्ग है जिसमें माल वाहक जहाजों का आवागमन होगा। गौरतलब है कि इस मौके पर कोलकाता से वाराणसी पहुंचे जहाज की अगवानी भी मोदी ने की। उत्साह से भरे प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि केन्द्र सरकार देष में 100 से ज्यादा राश्ट्रीय जलमार्गों पर काम कर रही हैं जिसमें वाराणसी-हल्दिया जलमार्ग भी षुमार है। गौरतलब है कि इस जलमार्ग के प्रकाष में आने से बिहार, झारखण्ड और पष्चिम बंगाल के बड़े हिस्से को बड़ा फायदा मिल सकता है। इससे मोदी का न्यू इण्डिया और न्यू विजन भी समझा जा सकता है। खास यह भी है कि पष्चिम बंगाल के हल्दिया से खाद्य सामग्री लाद कर जो जलयान वाराणसी पहुंचा वह उम्मदों का एक पिटारा भी था। नदियां हमेषा से जीवनदायनी रही हैं और यातायात का प्रमुख साधन भी रही है। बस दौर के साथ इनके साथ नाइंसाफी हुई है। यदि वाकई में नदियों की वेदना को समझा जाय तो सबसे पहले इन्हें प्रदूशण मुक्त करना होगा फिर इनसे लाभ के अम्बार को इकट्ठा करना और आसान हो जायेगा।
फिलहाल 2400 करोड़ परियोजन की यह सौगात देष को मिल गयी है और आने वाले भविश्य में इससे होने वाले कई लाभ देखने को मिलेंगे। समझने वाली बात यह भी है कि आंतरिक जल परिवहन के मामले में भारत का आंकड़ा कुल परिवहन का आधा फीसदी भी नहीं है जबकि चीन में 8 प्रतिषत परिवहन नदियों के माध्यम से होता है। यही आंकड़ा अमेरिका पर भी लागू होता है। नीदरलैण्ड जैसे देषों में यह 42 फीसदी है। खास यह भी है कि भारत का उत्तर का हिमालयी क्षेत्र से निकलने वाली नदियां हों या प्रायद्वीपीय क्षेत्र की नदियां हो परिवहन के मामले में बहुत बेहतर राय नहीं बन पायी है जबकि जल मार्गों का सदियों पुराना इतिहास भारत में ही रहा है। 305 ई.पू. में भारत आये यूनानी राजदूत मैगस्थनीज़ ने गंगा की बड़ी षिद्दत से चर्चा की है और 17 अन्य सहायक नदियों को अपनी पुस्तक इण्डिका में लिखा है। इतना ही नहीं सिन्धु एवं इसकी 13 उपनदियों से जल यात्रा की जा सकती थी इसका चित्रण भी इतिहास में मिलता है। नवीं षताब्दी के षिलालेखों से पता चलता है कि तत्कालीन राजा के पास उन दिनों नौकाओं के बेड़े हुआ करते थे। इतिहास के जैसे-जैसे आगे बढ़ने का सिलसिला आता गया जलमार्गों को लेकर अभिरूचि भी कम-ज्यादा होती रही मगर 15वीं और 16वीं सदी में जल परिवहन चरम पर था। मुगल षासनकाल में ऐसे मार्गों का सर्वाधिक इस्तेमाल किया जाता था। इतिहास के पन्ने इस बात के गवाह हैं कि नदियां जलमार्गों के मामले में सुगम, सुलभ और कहीं अधिक सुरक्षित मार्ग सिद्ध हुई हैं साथ ही बिना किसी खास निवेष के इसमें रास्ता ढ़ूंढ़ना भी आसान रहा है और मंजिल तक पहुंचना भी सुगम रहा है। 
परिवहन के लिए सड़क मार्गों और वायु मार्गों के विकास की होड़ में कहीं न कहीं भारत में जलमार्गों को नजरअंदाज किया गया था। षायद नदियों के प्रदूशित होने की वजह में एक यह भी है। निहित परिप्रेक्ष्य यह है कि यदि नदियों में जलमार्गों को लेकर मात्रात्मक बढ़ोत्तरी की गयी होती तो आबाध रूप से उसकी प्रवाहषीलता और बढ़ रहे प्रदूशण को लेकर चिंता कहीं अधिक होती। इससे नदियों का जल न केवल साफ होता बल्कि अधिक भी होता। इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि जल मार्ग में 1 किमी की यात्रा में मात्र 50 पैसे का खर्च आ रहा है जो अन्य किसी भी मार्ग से यात्रा करने में सबसे सस्ता है। करीब 5 करोड़ टन सालाना ढ़ुलाई इन जलमार्गों से की जा सकती है जो सस्ते दामों में यहां से वहां पहुंचायी जा सकती है। भारत में जल परिवहन का फैलाव अभी कहीं अधिक करने की आवष्यकता है। 20 हजार किमी से थोड़े ही अधिक क्षेत्रों में इनका विस्तार देखा जा सकता है। राश्ट्रीय जलमार्ग एक्ट-2016 में इसी स्थिति को देखते हुए 106 नये जलमार्ग का प्रस्ताव देखने को मिलता है। फिलहाल तीन जलमार्ग यात्री और मालवाहक जहाजों की परिवहन के लिए खुल चुके हैं। समय के साथ औरों की सम्भावना बनी रहेगी। इन जलमार्गों पर सुचारू रूप से परिवहन हो सके इसके लिए फिर वही बात कि नदियों की सूरत बदलनी पड़ेगी और इस पर बार-बार ध्यान देना होगा। इससे कोई भी इंकार नहीं कर सकता कि नदियां समय के साथ उथली होती जा रही हैं, जल संचय निरंतर घटता जा रहा है और प्रदूशण की प्रलय से मरती जा रही हैं। गर्मियों में ये नदी नहीं बल्कि पानी की लकीरें मात्र बन कर रह जाती हैं जिसका खामयाजा सभी को उठाना पड़ता है। गौरतलब है कि हिमालय से निकलने वाली गंगा जिसकी कुल लम्बाई 2510 किमी है बंगाल की खाड़ी पहुंचते-पहुंचते स्वयं मृतप्राय हो जाती है। प्रवाह के मामले में हांफने लगती है। ऐसे 1400 किमी लम्बी यमुना समेत कई भारतीय नदियों का हाल है।
राश्ट्रीय जल मार्ग का आगाज एक अच्छा संकेत है कुछ नयापन का भी है और कुछ नये विजन का भी। अगर ठीक ढंग से इसे विकसित किया गया और आने वाले जलमार्गों को निर्मित कर सुचारू कर लिया गया तो देष की सूरत भी बदल सकती है। वैसे भारत में कुल करीब 15 हजार किमी. तक नौवाहन हो सकता है। माल ढ़ुलाई से लेकर आवागमन को भी सुखद बनाया जा सकता है। ब्रह्यपुत्र नदी में भी ऐसी ही बड़ी सम्भावना दिखती है। यदि परिवहन के मामले में नदी जलमार्गों को मजबूती से इस्तेमाल में ला लिया गया तो सड़कों से दबाव घट सकता है। जाम के झंझटों से भी कुछ मुक्ति मिल सकती है और देष प्रदूशण के मार से भी कुछ हद तक बच सकता है। लेकिन यह सब इतना आसान नहीं है। यह तभी सम्भव है जब नदियां जीवित रहेंगी। नदियां बाढ़ में प्रलयकारी बनती हैं और गर्मी में सूखे की चपेट में होती है तो फिर जल परिवहन का क्या होगा सम्भव है कि इन दोनों पक्षों पर भी गौर करना होगा। इतना अधिकतम दोहन कैसे हो इसके लिए नियमित तौर पर गाद की न केवल सफाई हो बल्कि छोटे-बड़े षहरों के कारोबार से पनपे मलबे को इनमें जाने से रोका जाय। अविरल नदी परिवहन के लिए कभी विरल नहीं होगी बल्कि पानी के मामले में सघन रहेगी। यह भी नहीं भूलना चाहिए कि सड़क और परिवहन देष की संरचना है यह जितना अधिक विस्तार लेंगे सुगमता और सरलता सभी के हिस्से में आयेगी। नदियों के मामले में यह इसलिए और अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें भारी निवेष की आवष्यकता के बजाय बड़ी सोच की आवष्यकता है। सम्भव है जो पहल बीते 12 नवम्बर को वाराणसी में देखने को मिला है वह आने वाले दिनों में दोहराया जायेगा साथ ही परिवहन के मामले में नदियों की प्रमुखता को बढ़ावा मिलेगा।
सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

No comments:

Post a Comment