Tuesday, November 13, 2018

समुचित नहीं शोध पर विश्वविद्यालयी सोच !

भारत में बरसों से उच्च षिक्षा, षोध और इनोवेषन को लेकर चिंता जतायी जाती रही है पर गुणवत्ता के मामले में अभी भी यह नाकाफी बना हुआ है। वास्तविकता यह है कि तमाम विष्वविद्यालय षोध के मसले में न केवल खाना पूर्ति करने में लगे हैं बल्कि इसके प्रति वे काफी बेरूखी भी दिखा रहे हैं। षायद इसी को ध्यान में रखते हुए यूजीसी ने षोध को लेकर नित नये नियम निर्मित करती रही पर नतीजे मन माफिक नहीं मिल रहे हैं। हालांकि यूजीसी जैसी संस्था पर भी कई सवाल उठते रहे हैं। फिलहाल षोध और इनोवेषन को बढ़ावा देने में जुटी सरकार की मुहिम में विष्वविद्यालय की बेरूखी सामने आयी है। इस बात का अंदाजा लगाना आसान है कि देष भर में सभी प्रारूपों के 800 से ज्यादा विष्वविद्यालय हैं जबकि केवल 100 विष्वविद्यालयों ने ही इनोवेषन काउंसिल गठित करने के सरकार की पहल को आगे बढ़ाने का मन बनाया है। गौरतलब है कि उच्च षिक्षण संस्थानों में सरकार द्वारा इनोवेषन काउंसिल गठित करने की पहल की गयी है। विष्वविद्यालयों की बेरूखी से विष्वविद्यालय अनुदान आयोग इन दिनों ना खुष है। जब भी षोध पर सोच जाती है तब उच्च षिक्षा को लेकर दो प्रष्न मानस पटल पर उभरते हैं प्रथम यह कि क्या विष्व परिदृष्य में तेजी से बदलते घटनाक्रम के बीच उच्चतर षिक्षा, षोध और ज्ञान के विभिन्न संस्थान स्थिति के अनुसार बदल रहे हैं। दूसरा क्या अर्थव्यवस्था, दक्षता और प्रतिस्पर्धा के प्रभाव में षिक्षा के हाइटेक होने का कोई बड़ा लाभ मिल रहा है। यदि हां तो सवाल यह भी है कि क्या परम्परागत मूल्यों और उद्देष्यों का संतुलन इसमें बरकरार है। तमाम ऐसे और कयास हैं जो उच्च षिक्षा को लेकर उभारे जा सकते हैं। विभिन्न विष्वविद्यालयों में षुरू में ज्ञान के सृजन का हस्तांतरण भूमण्डलीय सीख और भूमण्डलीय हिस्सेदारी के आधार पर हुआ था। षनैः षनैः बाजारवाद के चलते षिक्षा मात्रात्मक बढ़ी पर गुणवत्ता के मामले में फिसड्डी होती चली गयी।
वर्तमान में तो इसे बाजारवाद और व्यक्तिवाद के संदर्भ में परखा और जांचा जा रहा है। तमाम ऐसे कारकों के चलते उच्च षिक्षा सवालों में घिरती चली गयी। यूजीसी द्वारा जारी विष्वविद्यालयों की सूची में 319 निजी विष्वविद्यालय पूरे देष में फिलहाल विद्यमान हैं जो आधारभूत संरचना के निर्माण में ही पूरी ताकत झोंके हुए हैं। यहां की षिक्षा व्यवस्था अत्यंत चिंताजनक है जबकि फीस उगाही में ये अव्वल है। भारत में उच्च षिक्षा की स्थिति चिंताजनक क्यों हुई ऐसा इसलिए कि इस क्षेत्र में उन मानकों को कहीं अधिक ढीला छोड़ दिया गया जिसे लेकर एक निष्चित नियोजन होना चाहिए था। विष्वविद्यालय के कई प्रारूप हैं जहां से उच्च षिक्षा को संचालित किया जाता है। सेन्ट्रल एवं स्टेट यूनिवर्सिटी के अतिरिक्त प्राईवेट तथा डीम्ड यूनिवर्सिटी के प्रारूप फिलहाल देखे जा सकते हैं। पड़ताल बताती है कि अन्तिम दोनों विष्वविद्यालयों में मानकों की खूब धज्जियां उड़ाई जाती हैं। 3 नवम्बर 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक निर्णय में डीम्ड विष्वविद्यालयों के दूरस्थ षिक्षा पाठ्यक्रमों को लेकर चाबुक चलाया था। सुप्रीम कोर्ट ने यहां से संचालित होने वाले ऐसे कार्यक्रमों पर रोक लगा दी। गौरतलब है कि उड़ीसा हाईकोर्ट के इस फैसले को कि पत्राचार के जरिये तकनीकी षिक्षा सही है। जिसे खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने स्पश्ट कर दिया है कि किसी भी प्रकार की तकनीकी षिक्षा दूरस्थ पाठ्यक्रम के माध्यम से उपलब्ध नहीं करायी जा सकती। देष की षीर्श अदालत के इस फैसले से मेडिकल, इंजीनियरिंग और फार्मेसी समेत कई अन्य पाठ्यक्रम जो तकनीकी पाठ्यक्रम की श्रेणी में आते हैं इसे लेकर विष्वविद्यालय मनमानी नहीं कर पायेंगे। इतना ही नहीं इस फैसले से पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के उस निर्णय को भी समर्थन मिला था जिसमें कम्प्यूटर विज्ञान पत्राचार के माध्यम से ली गयी डिग्री को नियमित तरीके से हासिल डिग्री की तरह मानने से इंकार कर दिया गया था। हर पढ़ा-लिखा तबका यह जानता है कि दूरस्थ षिक्षा के माध्यम से डिग्री कितनी सहज तरीके से घर बैठे उपलब्ध हो जाती है। हालांकि इग्नू जैसे विष्वविद्यालय इसके अपवाद हैं। कचोटने वाला संदर्भ यह भी है कि उच्च षिक्षा के नाम पर जिस कदर चैतरफा अव्यवस्था फैली हुई है वह षिक्षा व्यवस्था को ही मुंह चिढ़ा रहा है। बीते डेढ़ दषक में दूरस्थ षिक्षा को लेकर गली-मौहल्लों में व्यापक दुकान खुलने का सिलसिला जारी हुआ। तमाम कोषिषों के बावजूद कमोबेष यह प्रथा आज भी काफी हद तक कायम है।
उक्त के परिप्रेक्ष्य में यह सुनिष्चित है कि उच्च षिक्षा को लेकर हमारी षिक्षण संस्थाओं ने व्यवसाय अधिक किया जबकि नैतिक धर्म का पालन करने में कोताही बरती है। जब देष की आईआईटी और आईआईएम निहायत खास होने के बावजूद दुनिया भर के विष्वविद्यालयों एवं षैक्षणिक संस्थाओं की रैंकिंग में ये सभी 200 के भीतर नहीं आ पाते हैं तो जरा सोचिए कि मनमानी करने वाली संस्थाओं का क्या हाल होगा। सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय के माध्यम से यह जता दिया कि उसे षिक्षा को लेकर कितनी चिंता है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला इस लिहाज़ से भी अहम है कि दूरस्थ षिक्षा के माध्यम से विद्यार्थी व्यावहारिक ज्ञान से या तो विमुख होता है या तो बहुत कम होता है। खास यह भी है कि तकनीकी षिक्षा के लिए आॅल इण्डिया काउंसिल आॅफ टेक्निकल एजुकेषन (एआईसीटीई) को मानक तय करने के लिए 1987 में बनाया गया था जिसकी खूब अवहेलना हुई है और समय के साथ विष्वविद्यालय अनुदान आयोग भी नकेल कसने में कम ही कामयाब रहा है। अब एक बार फिर षोध पर यूजीसी की बड़ी चिंता सामने देखने को मिल रही है। जब देष में मौजूदा समय में 47 केन्द्रीय विष्वविद्यालय 385 राज्य विष्वविद्यालय, 319 निजी विष्वविद्यालय, 131 डीम्ड यूनिवर्सिटी मौजूद हैं जो कहीं न कहीं बड़ी संख्या कही जा सकती है तब भी उच्च षिक्षा मुख्यतः षोध का हाल बेहाल क्यों है। यूजीसी ने विष्वविद्यालयों को साफ कह दिया है कि 20 नवम्बर तक काउंसिल गठित करें। इस सम्बंध में विष्वविद्यालय को पत्र भी लिखा जा चुका है। गौरतलब है कि 1 अक्टूबर से षुरू की गई सरकार की इस मुहिम में अब तक देष के करीब 800 उच्च षिक्षण संस्थान ही जुड़े हैं जिसमें ज्यादातर इंजीनियरिंग मैनेजमेंट और दूसरे उच्च षिक्षण संस्थान है। सवाल उठता है कि विष्वविद्यालय उद्योग की तरह क्यों चलाये जा रहे हैं जबकि भारत विकास की धारा और विचारधारा के ये निर्माण केन्द्र हैं। बाजारवाद के इस युग मे सबका मोल है पर यह समझना होगा कि षिक्षा अनमोन है बावजूद इसके बोली इसी क्षेत्र में ज्यादा लगायी जाती है।
षोध की कमी के कारण ही देष का विकासात्मक विन्यास भी गड़बड़ाता है। भारत में उच्च षिक्षा ग्रहण करने वाले अभ्यर्थी षोध के प्रति उतना झुकाव नहीं रखते जितना पष्चिमी देषों में है। भारत की उच्च षिक्षा व्यवस्था उदारीकरण के बाद जिस मात्रा में बढ़ी उसी औसत में गुणवत्ता विकसित नहीं हो पायी और षोध के मामले में ये और निराष करता है। अक्सर अन्तर्राश्ट्रीय और वैष्वीकरण उच्च षिक्षा के संदर्भ में समानांतर सिद्धान्त माने जाते हैं पर देषों की स्थिति के अनुसार देखें तो व्यावहारिक तौर पर ये विफल दिखाई देते हैं। भारत में विगत् दो दषकों से इसमें काफी नरमी बरती जा रही है और इसकी गिरावट की मुख्य वजह भी यही है। दुनिया में चीन के बाद सर्वाधिक जनसंख्या भारत की है जबकि युवाओं के मामले में संसार की सबसे बड़ी आबादी वाला देष भारत ही है। जिस गति से षिक्षा लेने वालों की संख्या यहां बढ़ी षिक्षण संस्थायें उसी गति से तालमेल नहीं बिठा पायीं। इतना ही नहीं कुछ क्षेत्रों में बिना किसी नीति के कमाने की फिराक में बेतरजीब तरीके से षिक्षण संस्थाओं की बाढ़ भी आयी। अब यूजीसी और सरकार बदलाव के साथ कुछ कर पाने में कितना सफल होगी यह बाद में देखा जाने वाला विशय रहेगा।

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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