जब अक्टूबर के पहले पखवाड़े के अन्त में अन्तर्राश्ट्रीय मुद्रा कोष की अध्यक्ष क्रिस्टीन लिगार्ड ने कहा था कि भारतीय अर्थव्यवस्था बेहद मज़बूत राह पर है तब नोटबंदी और जीएसटी के बाद से तमाम आर्थिक आलोचनाओं को झेल रही मोदी सरकार को मानो नई ऊर्जा मिल गयी हो। और अब इसी माह के दूसरे पखवाड़े के अन्त में विष्व बैंक की ‘ईज़ आॅफ डूईंग बिज़नेस रिपोर्ट‘ ने कारोबारी सुगमता को भारत के लिहाज़ से जो स्थान दिया है वह सरकार के लिए पावर हाऊस का काम कर रहा होगा। गौरतलब है कि प्रत्येक कृत्यों में सुषासन की परिपाटी का निर्वहन करने का इरादा जताने वाली मौजूदा मोदी सरकार के लिए विष्व बैंक की यह रिपोर्ट खासा उत्साह दे रही होगी। सुषासन और लम्बित आर्थिक सुधार लागू करने को लेकर हालिया रिपोर्ट में भारत 130वें नम्बर से 100वें स्थान पर आ गया है। जाहिर है इसे अभूतपूर्व छलांग कहेंगे। खास यह भी है कि विष्व बैंक ने भारत को न केवल समग्र रूप से इस स्थान को दिया है बल्कि इस साल सबसे अधिक सुधार करने वाले दुनिया के दस षीर्श देषों की सूची में भी षुमार किया है। इस आलोक में वाजिब तर्क यह बनता है कि आर्थिक परिप्रेक्ष्य में संरचनात्मक संदर्भों के साथ भारत प्रगति की ओर कदम बढ़ा रहा है। कारोबारी सूची में षामिल दस देषों में षुमार होने के चलते दक्षिण-एषिया और ब्रिक्स समूह में फिलहाल भारत इकलौता देष है। आसान कारोबार के लिहाज़ से विष्व बैंक की डूईंग बिज़नेस 2018 रिपोर्ट में न्यूज़ीलैण्ड को सबसे ऊपर दर्षाया गया है जबकि सिंगापुर और डेनमार्क क्रमषः नम्बर 2 और 3 पर सूचीबद्ध हैं। उक्त विष्व बैंक की हालिया रिपोर्ट से क्या यह मान लिया जाय कि प्रधानमंत्री मोदी की मौजूदा आर्थिक सुधार वाली नीति बिल्कुल सटीक है और इसी सटीक सुधारों ने देष की तस्वीर बदली है?
पांच संकेतक और 133 अर्थव्यवस्थाओं से युक्त वर्श 2003 से प्रारम्भ कारोबारी सुगमता की वल्र्ड बैंक इस रिपोर्ट को लेकर पहले सरकारें बहुत गम्भीरता से नहीं लेती थी मगर मौजूदा सरकार ने न सिर्फ इसे तवज्जो दिया बल्कि कैसे इस सूची में रैंकिंग और मजबूत हो इस पर भी बल दिया। फिलहाल सौ का आंकड़ा छूने के बाद अब पचास में आने की तैयारी की बात सरकार कर रही है। गौरतलब है कि भारत में कारोबार को सुगम बनाने को लेकर कदम दषकों से उठाये जा रहे हैं। समय के साथ देष आर्थिक सुधार और परिवर्तन को लेकर निरंतर आगे बढ़ता रहा है। आर्थिक सुधार की दृश्टि से एक बड़ा परिवर्तन 24 जुलाई 1991 को उदारीकरण के रूप में देखा जा सकता है। तब कारोबार समेत तमाम आर्थिक पक्षों को सुगम बनाने की दृश्टि से व्यापक प्रयास हुए थे जिसमें लाइसेंसिंग प्रणाली में ढ़ील देने सहित कई प्रकार की सुविधायें उपलब्ध थीं। हालांकि जिस मानकों पर वल्र्ड बैंक कारोबार की सुगमता को देख रहा है उदारीकरण उससे भिन्न प्रक्रिया है बावजूद इसके दोनों को आर्थिक सुधार की दिषा में सटीक कहना अप्रासंगिक न होगा। देखा जाय तो उदारीकरण के बाद देष में निजीकरण, निगमीकरण और विनिवेषीकरण की प्रक्रिया के साथ वैष्वीकरण की अवधारणा सरपट दौड़ी थी जिसे बीते ढ़ाई दषक से अधिक वक्त हो चुका है। तब प्रधानमंत्री मोदी के पूर्ववर्ती डाॅ0 मनमोहन सिंह वित्त मंत्री और पी0वी0 नरसिम्हाराव प्रधानमंत्री हुआ करते थे जिसे बीते ढ़ाई दषक से अधिक वक्त हो चुका है। जाहिर है आर्थिक सुधार के लिए अच्छा खासा वक्त देना होता है। जैसा कि वित्त मंत्री अरूण जेटली भी कह रहे हैं कि आर्थिक सुधारों का फल कुछ समय बाद मिलता है। उनका यह भी कहना है कि भारत के विकास के सम्बंध में मोदी सरकार के रोडमैप की पुश्टि कारोबारी सुगमता की रैंकिंग में उछाल से परिलक्षित होती है। इसमें कोई दो राय नहीं कि रिपोर्ट से सरकार और भारत दोनों को प्रफुल्लित होना चाहिए परन्तु इस बात को ध्यान रखते हुए कि देष में महंगाई से लेकर बेरोज़गारी और आम जन-जीवन से लेकर बुनियादी संकट में अभी भी सुगमता का आभाव बना हुआ है।
सुषासन चाहे कारोबार में हो या जीवन में इसकी अवधारणा बारम्बार से है साथ ही यह एक लोक प्रवर्धित अवधारणा है। सरकारें कितनी भी मजबूत क्यों न हों यदि बेरोज़गरी, बीमारी, अषिक्षा, चिकित्सा से लेकर बिजली, पानी, समेत जीवन के तमाम बुनियादी तत्व पूरे न हों तो सुषासन होना नहीं कहा जा सकता। दो टूक यह भी है कि सुषासन भी विष्व बैंक की गढ़ी हुई एक आर्थिक परिभाशा है जो 1992 के दौर में परिलक्षित हुई थी जिसका सामाजिक-आर्थिक न्याय के साथ कई अर्थ और भी हैं। जाहिर है जब तक इन संदर्भों को समझकर सुगमता विकसित नहीं होगी तब तक चाहे जो भी क्षेत्र हो सुषासन के असल पक्ष से वंचित ही रहेंगे। देष में 60 प्रतिषत से अधिक तादाद किसानों की है जो अभी भी परम्परागत खेती से उबर नहीं पा रहे हैं। चाहे बड़े काष्तकार हों या मझोले एवं छोटे किसान सभी पेषोपेष में हैं। सरकार की योजनाएं या तो रास्ते में गुम हो जा रही हैं या जागरूकता के आभाव में किसान इसका दोहन नहीं कर पा रहे हैं। जाहिर है देष की आधे से अधिक आबादी को कृशि सुगमता की आवष्यकता है। सभी जानते हैं कि औद्योगिकीकरण के चलते देष की बुनियादी संरचना भी मज़बूत हुई है और साथ ही देष का आर्थिक ढांचा भी। संज्ञान में तो यह भी रहे कि स्टार्टअप इण्डिया एण्ड स्टैंडअप इण्डिया तथा मेक इन इण्डिया तक ही सोच न हो बल्कि छोटे, मझोले और कम रकम वाले कारोबारी को भी तुलनात्मक अधिक सुगमता मिले। गौरतलब है कि आंकड़े समर्थन करते हैं कि नोटबंदी के बाद कारोबारियों को न केवल नुकसान उठाना पड़ा है बल्कि लाखों बेरोज़गार भी हुए। भारत का स्किल डवलपमेंट सुगमता से तो मानो भटका हुआ है। इसके लिए बने संस्थानों की संख्या महज़ 15 हजार बतायी जाती है। भले ही कारोबार के कुछ मामले में जैसा कि हालिया रिपोर्ट में है हम चीन से आगे हैं पर स्किल डवलपेंट को लेकर उसी चीन से मीलों पीछे हैं जबकि भारत में 65 फीसदी युवा हैं मसलन भारत के 15 हजार स्किल डवलपमेंट केन्द्र की तुलना में चीन में 5 लाख जबकि दक्षिण कोरिया में एक लाख से अधिक केन्द्र हैं। बेंजामिन फ्रैंकलिन ने भी कहा है कि निरंतर विकास और प्रगति के बिना सुधार, उपलब्धि और सफलता जैसे षब्दों का कोई मतलब नहीं होता। स्पश्ट है कि चाहे अन्तर्राश्ट्रीय मुद्रा कोश की अध्यक्ष क्रिस्टीन लिगार्ड की भारतीय अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक राय हो या फिर हालिया कारोबारी सुगमता से जुड़ी विष्व बैंक की रिपोर्ट हो यह तभी समुचित कहे जायेंगे जब जनता सुगमता को महसूस करे।
इस बात की भी पड़ताल उचित रहेगी कि कारोबारी सुगमता को लेकर क्या पैमाने होते हैं और भारत ने ऐसा क्या किया है जिसके चलते वांषिंगटन में जारी वल्र्ड बैंक की रिपोर्ट में 30 स्थानों का तुलनात्मक उछाल आया। गौरतलब है विष्व बैंक दस संकेतकों के आधार पर सभी देषों के प्रदर्षन का आंकलन कर रिपोर्ट जारी करता है। इन्हीं संकेतकों को लेकर देषों की रैंकिंग तैयार की जाती है। जिसकी कसौटी में बिजली कनेक्षन में लगा वक्त, अनुबंध लागू करना, कारोबार षुरू करना, सम्पत्ति पंजीकरण, दिवालियेपन के मामले सुलझाना, निर्माण प्रमाणपत्र, कर्ज लेने में लगा समय और अल्पसंख्यक निवेषक के हितों की रक्षा के साथ कर भुगतान और सीमा पार व्यापार षामिल होते हैं। जाहिर है पिछले एक वर्श में भारत ने उपरोक्त बिन्दुओं पर बड़ा उभार विकसित किया है। खास यह भी है कि उपरोक्त दस में से छः में भारत की रैंकिंग सुधारी है। कुछ के मामले में तो वह टाॅप 4 और 5 में भी है। बावजूद इसके आवष्यक और अनिवार्य तथ्य यह भी है कि कारोबारी सुगममता में जो बाढ़ आई है उसके चलते कई अवसरों को भी बढ़ावा मिलना चाहिए साथ ही छोटे-बड़े सभी उद्योगों के लिए कारोबारी मार्ग चिकना भी हो। बेरोज़गारी से अटे भारत को इससे राहत भी मिले ताकि कारोबार के साथ जन-जीवन भी सुगम हो।
सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
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