Wednesday, May 24, 2023

चिकित्सक बनने का सपना

एक बड़ी खूबसूरत कहावत है कि वह एक डाॅक्टर ही है जो भगवान तक बात पहुंचने से पहले इंसान को बचाने पहुंच जाता है। चिकित्सा एक ऐसा पेषा है जो संवेदनषीलता से तो युक्त होता ही है साथ ही जाति और धर्म से इसका कोई लेना-देना नहीं होता। भारत में चिकित्सक के रूप में कैरियर बनाने के उद्देष्य से हर वर्श लाखों विद्यार्थी मेडिकल काॅलेजों में प्रवेष के लिए नीट परीक्षा में संलग्न देखे जा सकते हैं। प्रत्येक मई-जून के महीने में 12वीं उत्तीर्ण और डाॅक्टर बनने का सपना देखने वाले लाखों विद्यार्थियों की तादाद उभार ले लेती है। बीते 7 मई को नेषनल एलिजिबिलिटी कम एन्ट्रेंस टेस्ट यानि नीट 2023 की परीक्षा आयोजित हुई जिसमें आवेदकों की संख्या 21 लाख से अधिक थी। जो पिछले वर्श की तुलना तीन लाख अधिक है। पड़ताल बताती है कि साल 2021 में 14 लाख विद्यार्थी नीट के लिए पंजीकृत थे जबकि इसके पहले 2020 में यह आंकड़ा 16 लाख और 2019 में 15 लाख थे। आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि एमबीबीएस के लिए लगभग एक लाख सीटें सरकारी एवं निजी मेडिकल काॅलेजों में उपलब्ध है और वर्तमान में काॅलेजों की संख्या साढ़े छः सौ से अधिक है। इसके अलावा अन्य मेडिकल पढ़ाई मसलन दन्त चिकित्सा आदि की भी प्रवेष प्रक्रिया नीट के माध्यम से ही संचालित होती है। गौरतलब है कि पूरे देष में महज बावन हजार सीटें ही सरकारी कोटे की हैं जहां एमबीबीएस में सरकारी फीस के अन्तर्गत अध्ययन होता है। बाकी 48 हजार से अधिक सीटें निजी काॅलेजों आदि के हाथों में है। जाहिर है ऐसे काॅलेजों में विद्यार्थियों को भारी-भरकम षुल्क अदा करना होता है। जो कुछ काॅलेजों में तो पूरे साढ़े पांच साल की पढ़ाई में करोड़ों रूपया से अधिक भी पार कर जाता है। भारत दुनिया का आबादी में सबसे बड़ा देष है और युवा आबादी में भी यह सर्वाधिक ही है। 12वीं के बाद कैरियर की तलाष को लेकर आगे की पढ़ाई में मेडिकल लाखों का सपना होता है। आंकड़ा तो यह भी बताते हैं कि भारत के अस्सी फीसद परिवार महंगी फीस के चलते बच्चों को चिकित्सा की पढ़ाई ही करवाने में अक्षम है।
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय से मिली जानकारी के अनुसार 2014 से पहले देष में 387 मेडिकल काॅलेज थे जो वर्तमान में इक्हत्तर फीसद की बढ़त लिये हुए है और पहले सीटें महज इक्यावन हजार से थोड़ी ज्यादा थी अब यह आंकड़ा एक लाख पार कर चुका है। पोस्ट ग्रेजुएट सीटों में भी 110 फीसद की वृद्धि बतायी गयी है। पूरे भारत में तमिलनाडु में सर्वाधिक मेडिकल काॅलेज हैं। जहां कुल बहत्तर काॅलेजों में अड़तिस सरकारी हैं और इन सरकारी काॅलेजों में एमबीबीएस की पांच हजार दो सौ पच्चीस सीटें हैं जबकि छः हजार सीटें निजी काॅलेजों में है। दूसरे स्थान पर महाराश्ट्र है जहां चैसठ काॅलेज और दस हजार से ज्यादा सीटें उसमें तीस सरकारी काॅलेज हैं। यहां भी एमबीबीएस की सीटें बामुष्किल पांच हजार हैं। उत्तर प्रदेष देष का सर्वाधिक जनसंख्या वाला प्रदेष है मगर मेडिकल काॅलेजों की संख्या में यह तीसरा प्रदेष है, कुल 67 काॅलेजों में पैंतीस सरकारी हैं बाकि सभी निजी हैं। जबकि इन 35 सरकारी काॅलेजों में एमबीबीएस की सीट बामुकिष्ल 43 सौ हैं। इसी क्रम में आन्ध्र प्रदेष आन्ध्र प्रदेष, राजस्थान और गुजरात आदि देखे जा सकते हैं। उक्त से यह स्पश्ट है कि चिकित्सा सेवा को चाहने वालों की तादाद कहीं अधिक है जबकि प्रवेष की सीमा बहुत ही न्यून है षायद यही कारण है कि हजारों विद्यार्थी दुनिया के तमाम देषों में इस सपने को उड़ान देने के लिए उड़ान भरते हैं। हालांकि इसके पीछे एक मूल कारण सस्ती फीस का होना भी है। भारत के निजी चिकित्सा काॅलेजों में फीस पूरे एमबीबीएस करते-करते करोड़ से अधिक खर्च में तब्दील हो जाती है जो सभी की पहुंच में नहीं हैं। मगर दुनिया के कई ऐसे देष हैं जो तीस-पैंतीस लाख के भीतर पूरी पढ़ाई को अंजाम दे देते हैं।
देष के संसदीय कार्य मंत्री ने भी बताया है कि मेडिकल की पढ़ाई करने जाने वाले 90 फीसद विद्यार्थी नीट परीक्षा में फेल हुए रहते हैं। गौरतलब है कि प्रत्येक वर्श हजारों हजार विद्यार्थी मेडिकल की पढ़ाई के लिए विदेष जाते हैं। विदेष में चिकित्सा का अध्ययन करने के लिए पात्रता प्रमाण पत्र प्राप्त करने का षासनादेष जनवरी 2014 से लागू हुआ और तब से यह संख्या हर वर्श तेजी से बढ़ रही है। 2015-16 के बीच विदेष में चिकित्सा का अध्ययन करने के इच्छुक भारतीय छात्रों को भारतीय चिकित्सा परिशद द्वारा दी गयी पात्रता प्रमाणपत्र की संख्या 3398 थी, 2016-17 में यह आंकड़ा 8737 हो गया और बढ़त के साथ 2018 में तो यह 17 हजार के आंकड़े को भी पार किया जबकि वर्तमान में यह 20 हजार से पार कर गया है। इसके कारण को समझना बहुत सरल है भारत के मुकाबले विदेषों में मेडिकल की पढ़ाई कई मायनों में सुविधाजनक होना। नीट एक ऐसा एन्ट्रेंस टेस्ट है जिससे पार पाना कुछ के लिए बेहद मुष्किल होता है और यदि नीट में अंक कम हो तो एडमिषन फीस बहुत ज्यादा हो जाती है। ऐसे ही एक विज्ञापन पर नजर पड़ी जो इन दिनों सोषल मीडिया पर देखा जा सकता है। जिसमें मेडिकल काॅलेजों में सीट सुरक्षित करने को लेकर नीट के अंकों के हिसाब से फीस का वर्णन है। मसलन यदि विद्यार्थी का नीट में 550 से अधिक अंक है तो उसके लिये 45 से 55 लाख का पैकेज है और यही अंक अगर 450 से ऊपर और 550 से कम है तो यह 60 लाख तक का पैकेज हो जाता है और यदि इसी क्रम के साथ विद्यार्थी नीट परीक्षा महज क्वालिफाई किया हो तो उसके लिए फीस 85 लाख से सवा करोड़ होगी। उक्त से यह पता चलता है कि नीट में अंक अधिक तो फीस कम होगी मगर इतनी भी कम नहीं कि सभी सपने बुन सकें। दरअसल विडम्बना यह है कि भारत में षिक्षा के प्रति जो व्यावसायिकपन आया है वह चैतरफा प्रसार कर चुका है और चिकित्सा की पढ़ाई भी इससे वंचित नहीं है जबकि इस तरह का अध्ययन केवल डिग्री या पुस्तकों तक सीमित नहीं है। यह जनता के स्वास्थ्य के साथ-साथ देष की चिकित्सा भी सुनिष्चित करता है। कई मेधावी छात्र फीस के अभाव में चिकित्सा की पढ़ाई करने से वंचित भी हुए होंगे और आगे यह सिलसिला चलता भी रहेगा मगर सवाल यह भी है कि इसका विकल्प क्या है। जो चिकित्सा की पढ़ाई रूस, किर्गिस्तान, कजाकिस्तान, जाॅर्जिया, चीन, फिलिपीन्स यहां तक कि यूक्रेन जैसे देषों में महज 30-35 लाख में सम्भव है वहीं भारत में इतनी महंगी है कि कईयों की पहुंच में नहीं है।
देष में 14 लाख डाॅक्टरों की कमी है। यही कारण है कि विष्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के आधार पर जहां प्रति एक हजारा आबादी पर एक डाॅक्टर होना चाहिए वहां भारत में सात हजार की आबादी पर एक डाॅक्टर है। जाहिर बात है कि ग्रामीण इलाकों में चिकित्सकों के काम नहीं करने की अलग समस्या है। विष्व स्वास्थ्य संगठन ने 1977 में ही तय किया था कि वर्श 2000 तक सबके लिए स्वास्थ्य का अधिकार होगा, लेकिन वर्श 2002 की राश्ट्रीय स्वास्थ्य नीति के अनुसार स्वास्थ्य पर जी0डी0पी0 का दो प्रतिषत खर्च करने का लक्ष्य आज तक पूरा नहीं हुआ। इसके विपरीत सरकारें लगातार स्वास्थ्य बजट में कटौती कर रही हैं। देखा जाये तो तो कम चिकित्सक होने की वजह से भी भारत में चिकित्सा की पढ़ाई और चिकित्सा सेवाएं महंगी हैं। जाहिर है इस पर भी गौर करने की आवष्यकता है। रोचक तथ्य यह भी है कि विदेषी मेडिकल काॅलेजों से अध्ययन कर चुके स्नातक चिकित्सक महज 20 फीसद ही भारतीय चिकित्सा के मानक पर खरे उतर पाते हैं षेश 80 प्रतिषत अयोग्य ठहरा दिये जाते हैं और यह एक नये सिरे की बेरोजगारी की खेप भी तैयार कर देता है। गौरतलब है कि विदेषों से मेडिकल की पढ़ाई करके यदि भारत में डाॅक्टरी करनी है तो इसके लिये फाॅरन मेडिकल ग्रेजुएट्स एग्जामिनेषन (एफएमजी) पास करने के पष्चात् ही लाइसेंस मिलता है। असफल लोगों का आंकड़ा देखकर पता चलता है कि यह टेस्ट काफी कठिन होता है। विदेष में चिकित्सा की पढ़ाई सस्ती भले ही हो मगर कैरियर के मामले में उतनी उम्दा नहीं है। भले ही वहां गुणवत्ता और मात्रात्मक सुविधाजनक व्यवस्था क्यों न हो। दरअसल इसके पीछे एक मूल कारण यह भी है कि भारत एक उश्ण कटिबंधीय देष है और यहां पर पूरे वर्श मौसम अलग-अलग रूप लिये रहता है और यहां व्याप्त बीमारियां भी भांति-भांति के रंगों में रंगी रहती है। ऐसे में यहां अध्ययनरत् मेडिकल छात्र पारिस्थितिकी और पर्यावरण के साथ बीमारी और चिकित्सा संयोजित कर लेते हैं जबकि दूसरे देषों में यही अंतर रहता है। हो सकता है कि पाठ्क्रम के भी कुछ आधारभूत अंतर होते हों। फिलहाल भारत में मेडिकल काॅलेजों की संख्या जनसंख्या के अनुपात में कम ही कहा जायेगा। जाहिर है चिकित्सकों की खेप लगातार तैयार करने से ही लोगों की चिकित्सा और सरकार की आयुश्मान भारत जैसी योजना को मुकम्मल प्रतिश्ठा दिया जा सकेगा। ऐसे में सरकारी के साथ निजी मेडिकल काॅलेजों में भी षुल्क का अनुपात कम रखना ही देष के हित में रहेगा।
 दिनांक : 16/05/2023


डॉ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाउंडेशन ऑफ पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन
लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर
देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)
मो0: 9456120502

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