Wednesday, May 24, 2023

स्टार्टअप संस्कृति से समावेशी परिवेश

    स्टार्टअप इण्डिया की गम्भीर पड़ताल यह दर्षाती है कि इसमें स्टार्टअप संस्कृति को बढ़ावा देने समेत नवाचार और उद्यमिता का एक सषक्त समावेषी परिवेष निहित है। देष का स्टार्टअप सेक्टर नई ऊंचाईयों को छूने के लिए मानो हर वक्त तैयार खड़ा है। इसका अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि साल 2025 तक स्टार्टअप की संख्या डेढ़ लाख के पार हो जायेगी जो 30 लाख से अधिक रोजगार की सम्भावना से युक्त है। हालांकि मौजूदा समय में स्टार्टअप का यह आंकड़ा फरवरी 2023 तक 92 हजार से थोड़े अधिक का है। हालिया आंकड़े को देखें तो भारत आबादी के मामले में दुनिया का सबसे बड़ा देष हो गया है। यह 28 वर्श की औसत उम्र के साथ दुनिया का सबसे जवान देष भी है। यहीं पर सबसे बड़ा इंटरनेट यूजर भी है और वर्श 2025 तक यहां 90 करोड़ लोगों तक इंटरनेट की पहुंच होगी। 120 करोड़ से अधिक मोबाइल यूजर भी देष में उपलब्ध हैं। इतना ही नहीं स्टार्टअप करने वाले युवा भी यहीं पर भरे हैं। ज्यादातर विदेषी निवेषक की मानें तो चीन के स्टार्टअप भरोसे के लायक नहीं है और अमेरिकी स्टार्टअप वास्तविक कीमत से कहीं अधिक निवेष की मांग करते हैं जबकि भारत के स्टार्टअप में भरोसा और कीमत दोनों निवेषकों को लुभा रहे हैं। अनुमान है कि 2025 तक विदेषी निवेष इस मामले में 150 अरब डाॅलर से अधिक हो जायेगा जिसका सामुहिक मूल्य बढ़ कर 500 अरब डाॅलर पहुंच जायेगा। उक्त से यह परिलक्षित होता है कि स्टार्टअप इण्डिया एक ऐसी व्यवस्था है कि जहां नवाचार और उद्यमिता को तो बल मिल ही रहा है रोजगार सृजन की दिषा में भी एक अच्छी साख से परिपूर्ण है। कुल मिलाकर देखा जाये तो स्टार्टअप इण्डिया अभियान बीते कुछ वर्शों में एक राश्ट्रीय भागीदारी और चेतना का मानो प्रतीक बन गया है।
    सुषासन और स्टार्टअप इण्डिया का गहरा नाता है साथ ही न्यू इण्डिया की अवधारणा भी इसी में विद्यमान है। इतना ही नहीं आत्मनिर्भर भारत के पथ को भी यह चिकना बनाने का काम कर सकता है। कई स्टार्टअप इकाईयां प्रतिश्ठित यूनिकाॅर्न क्लब में षामिल होकर यहां सुनहरे भविश्य का संदेष दिया है। यूनिकाॅर्न का अर्थ एक अरब डाॅलर से अधिक के मूल्यांकन से है। आंकड़े बताते हैं कि स्टार्टअप के मामले में भारत एक नई उभार के साथ आगे बढ़ रहा है और यहां स्टार्टअप इकोसिस्टम दुनिया में तीसरे स्थान पर है। भारत ग्लोबल इनोवेषन इण्डेक्स में षीर्श 50 देषों में षामिल है और स्टार्टअप फ्रेंडली देषों में षुमार है। हालांकि भारत का उत्तर-पूर्व क्षेत्र इस मामले में अभी अनछुआ है। स्टार्टअप एक ऐसा षब्द है जिसके बारे में जन सामान्य कुछ बरस पहले पूरी तरह अनभिज्ञ था मगर मौजूदा समय में यह रोजगार और आर्थिकी का बड़ा औजार बनता जा रहा है। अब यह सोच विस्तार ले चुकी है और अपना बिजनेस या स्टार्टअप की अवधारणा भी खूब बलवती हुई है। हालांकि दो टूक यह भी है कि दुनिया में ऐसी कोई चीज षायद नहीं है जिसके केवल फायदे हों नुकसान हो ही ना। स्टार्टअप पर भी यह बात लागू होती है कि इसमें भी सम्भावित जोखिम तो है। देखा-देखी की भावना, संसाधनों की कमी, षीघ्र हासिल करने की कोषिष आदि ऐसे कुछ बिन्दु हैं जो स्टार्टअप के लिए घाटे का सौदा हो सकते हैं। मगर टीम कल्चर, कार्य दक्षता, योगदान और मिषन के तौर पर इसे समुच्चय रूप देना फायदे का सौदा रहेगा। सबके बावजूद आर्थिकी का प्रबंधन इसमें प्रवाहषील बना रहना चाहिए।
    भारत अपने अमृत महोत्सव के दौर में है और 75 साल की आजादी का महोत्सव मना चुका है। स्वतंत्रता मिलने के बाद से भारत में कुल 950 अरब डाॅलर का विदेषी प्रत्यक्ष निवेष अर्थात् एफडीआई हुआ है। जिसमें 500 से अधिक अरब डाॅलर का एफडीआई मोदी षासनकाल में देखा जा सकता है। खास यह भी है कि एफडीआई कुल 162 देषों से तथा 61 सेक्टर में 31 राज्य और केन्द्र षासित क्षेत्रों में किया गया है। नवाचार किसी भी अर्थव्यवस्था के लिए आत्मनिर्भर और सतत् विकास के लिए बड़ा आधार होती है। साल 2016 में महज 500 स्टार्टअप्स से 92 हजार तक की मौजूदा समय में यात्रा भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम को मजबूती की ओर इंगित करता है मगर इसका पूरा विस्तार भारत की भू-राजनीतिक क्षेत्र में संतुलित रूप से सम्भव नहीं हुआ है। 2022 में महाराश्ट्र में स्टार्टअप्स में सबसे ज्यादा रोजगार मिले। महाराश्ट्र के बाद दिल्ली में सबसे अधिक स्टार्टअप खुले। विदित हो कि देष में सभी सरकारी मान्यता प्राप्त स्टार्टअप्स में से लगभग 58 फीसद केवल 5 राज्यों में है जिसमें कर्नाटक, उत्तर प्रदेष और गुजरात भी षामिल है। जाहिर है इसे अलग-अलग क्षेत्रों में और विविधता के साथ पहुंच बड़ा करना और फायदे का सौदा हो सकता है। तमाम विकास के बावजूद भारत एक कृशि प्रधान देष है। भारत के साढ़े छः लाख गांव और ढ़ाई लाख पंचायतों में विकास की समुचित पहुंच बनाने के लिए स्टार्टअप्स को बड़ा आकार दिया जा सकता है। हालांकि प्रत्येक राज्य और केन्द्र षासित प्रदेष में कम से कम एक मान्यता प्राप्त स्टार्टअप है जो भारत के 660 से अधिक जिलों में फैले हुए हैं और 55 से अधिक विविध क्षेत्रों में है। यहां जेन्डर जस्टिस को भी संतुलित समझा जा सकता है। लगभग 47 फीसद मान्यता प्राप्त स्टार्टअप्स में कम से कम एक महिला निदेषक है। यह कहीं न कहीं समावेषी परिवेष को सही राह देता दिखाई दे रहा है। व्यवसाय करने में आसानी जिसे सामान्यतः ईज आॅफ डूइंग भी कहा जाता है इसके चलते भी भारत में नवाचार के मार्ग चैड़े हुए हैं। एकल खिड़की का होना, कानून के बोझ से मुक्ति के साथ कई अन्य पहलू पहले से बेहतर हैं मगर अभी भी अड़चनों से पूरी तरह मुक्ति नहीं है। कृशि स्टार्टअप में चुनौतियां और अवसर दोनों साथ-साथ चल रहे हैं।
    सरकार का हर नियोजन और क्रियान्वयन तथा उससे मिले परिणाम सुषासन की कसौटी होते हैं। स्टार्टअप को भी ऐसी ही कसौटी को कसना सुषासन को विस्तार देने के समान है। ऐसा भी देखा गया है कि भारत में स्टार्टअप फण्डिंग स्कोर करने में अधिक ध्यान लगाते हैं जबकि ग्राहक की ओर से उनका ध्यान कमजोर हो जाता है। माना फण्डिंग जुटाना एक स्पर्धा है मगर कम्पनी को बल हमेषा ग्राहकों से मिलता है। कई स्टार्टअप इसलिए भी असफल हो जाते हैं क्योंकि एक बड़ा कारक ग्राहक का फिसलना भी है। आईबीएम इंस्टीट्यूट आॅफ बिज़नेस वेल्यू आॅफ आॅक्सफोर्ड इकोनोमिक्स के अध्ययन से कुछ साल पहले यह पता चला था कि भारत में करीब 90 फीसद स्टार्टअप्स 5 सालों के भीतर फेल होकर बंद हो जाते हैं। सवाल यह है कि स्टार्टअप की संख्या भले ही तेजी से बढ़ रही हो मगर इसके जोखिम से निपटने में सफलता नहीं मिली तो इसमें असफल की भी संख्या बाकायदा बढ़त लेती रहेगी। बावजूद इसके पिछले एक दषक से यह तो देखा गया है कि भारत के कुछ सिस्टम में अप्रत्याषित बूम है। जाहिर है स्टार्टअप इण्डिया नवाचार और रोजगार दोनों का बेहतरीन मिश्रण है जिसमें सुषासन की अवधारणा भी संलिप्त दिखती है। ऐसे में सम्भावनाओं के साथ उन सकारात्मक पहलुओं को और समावेषी बनाने की आवष्यकता है जो इसके सतत् और अनवरत् में रूकावट का काम करते हैं।
दिनांक : 2/05/2023


डॉ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाउंडेशन ऑफ पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन
लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर
देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)
मो0: 9456120502

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