मौजूदा समय की वास्तविक उपलब्धि क्या है? इसका जवाब आसानी से नहीं मिलेगा मगर दो टूक यह है कि इसका उत्तर कोरोना से मुक्ति है। देष में कोविड-19 का संक्रमण पहली लहर की तुलना में काफी तेजी से फैल रहा है। प्रत्येक दिन डेढ़ लाख से अधिक नये मामले सामने आ रहे हैं। मार्च के अंत में जहां एक्टिव केस भारत में एक लाख से कम थे वहीं अब यह 10 लाख के आंकड़े को पार कर गया है। केन्द्र सरकार की तरफ से अभी किसी प्रकार के व्यापक कदम की सूचना नहीं है मगर राज्यों ने लाॅकडाउन और कफ्र्यू की ओर कदम बढ़ा दिया है। महामारी की इस फिज़ा में एक बार फिर भारत बंद की षंका उभर गयी है। हालांकि इसकी सम्भावना कम ही है पर कोरोना ग्राफ इस षंका को तूल दे रहा है। कोरोना ने एक बार फिर छोटे कारोबार को बंदी के कगार पर खड़ा कर दिया है, नौकरी पर खतरा मंडरा रहा है और अर्थव्यवस्था संकट के भंवरजाल में फिर उलझ सकती है। सार्वजनिक स्थानों पर क्या होगा इसके नियम तय किये जाने लगे हैं। षादी-विवाह के लिए गाइडलाइन जारी की जा रही है। जिस तरह का माहौल इन दिनों है वह डराने वाला है। गौरतलब है कि जब दुनिया कोरोना की दूसरी लहर में थी तब भारत पहली लहर को आसानी से निपटने में कामयाब होता दिख रहा था मगर अब दूसरी लहर की स्थिति तो मानो सारे रिकाॅर्ड तोड़ने की ओर है। कोरोना कब जायेगा, कितनी कीमत लेकर जायेगा इसका अंदाजा किसी को नहीं है। एक ओर जहां भारत में टीकाकरण तेजी लिए हुए है तो दूसरी तरफ कोरोना पीड़ितों की संख्या भी रिकाॅर्ड बढ़ोत्तरी न केवल चिंता को बढ़ाता है बल्कि देष नई बर्बादी की ओर भी धकेल रहा है।
सवाल षासन पर भी उठ रहा है। विपक्षी कोरोना से निपटने के मामले में सरकार की नीतियों को असफल बता रहे हैं। इतना ही नहीं कोरोना के टीके की मांग और आपूर्ति में असंतुलन देखा जा रहा है। भारत में कई राज्यों से कोरोना वैक्सीन की कमी की बात हो रही है। कई टीका केन्द्र वैक्सीन के आभाव में तालाबंदी के षिकार हो गये हैं और ऐसी सूचनाएं महाराश्ट्र, ओडिषा, आन्ध्र प्रदेष, तेलंगाना, समेत छत्तीसगढ़ आदि प्रान्तों से है। हालांकि केन्द्र सरकार वैक्सीन की कमी को नकारते हुए इसे राजनीति बता रही है। यदि वास्तव में वैक्सीन की कमी हो रही है तो यह चिंताजनक है क्योंकि एक ओर जहां 11 से 14 अप्रैल के बीच वैक्सीनेषन फेस्टिवल मनाने की अपील प्रधानमंत्री मोदी कर चुके हैं वहीं दूसरी ओर टीके की कमी षासन पर बड़ा सवाल खड़ा करता है। फिलहाल देष में कोरोना की दूसरी लहर फिर से एक नई राह पर चलने के लिए मजबूर कर दिया है। भारत के कई राज्य नाइट कफ्र्यू और लाॅकडाउन के आंषिक असर से इन दिनों दो-चार हो रहे हैं जिसमें उत्तर प्रदेष, उत्तराखण्ड, मध्य प्रदेष, गुजरात, दिल्ली, राजस्थान, ओडिषा आदि षामिल हैं। इस प्रकार के निर्णय से यह बात आसानी से समझ आती है कि सरकारों के पास रात में कफ्र्यू और वीक एण्ड लाॅकडाउन के अलावा कोई और सरल तरीका षायद नहीं है। हालांकि ऐसे तरीकों को पहले भी प्रयोग में लाया गया था जाहिर है कोरोना चेन तोड़ने में कमोबेष यह मददगार सिद्ध हुआ होगा। मगर इसकी अपनी कई जटिलतायें हैं जिस पर पूरा षोध बाकी सा लगता है। गौरतलब है कि इन दिनों कोरोना पूरी दुनिया को चपेट में ले लिया है। इटली, पोलैंड, फ्रान्स, हंगरी, बेल्जियम, ब्राजील समेत मध्य एषिया व अमेरिकी देषों में वीकेंड लाॅकडाउन और कफ्र्यू का प्रयोग देखा जा सकता है। फ्रांस में तो देषव्यापी लाॅकडाउन का ऐलान किया गया है जबकि फिलीपीन्स जैसे देष आंषिक लाॅकडाउन के अन्तर्गत हैं।
कोरोना से बिगड़ती स्थिति को संभालने में क्या वाकई केन्द्र सरकार विफल है जैसा कि कांग्रेस के नेता राहुल गांधी कह रहे हैं या फिर राज्यों ने स्थिति को समझने में कोई चूक की या जनता इसके भयावह स्थिति से अनभिज्ञ रही। जो भी हो देष बड़ा है और कोरोना से निपटने में काफी संजीदगी दिखानी होगी। मुंह पर मास्क और दो गज की दूरी लोगों से दूर हो जाना कतई उचित नहीं है। हालांकि जिस तरह बिहार चुनाव से मौजूदा समय में जारी चुनावी रैलियों में इस नियम का उल्लंघन दिखा उससे भी जन मानस को ऐसा करने का बल मिलता है। इन दिनों इस मामले में प्रषासन भी सख्त है और बड़े पैमाने पर चलान काटे जा रहे हैं पर यह समस्या का पूरा समाधान नहीं है। जाहिर है इसे लेकर जनता को स्वयं जागरूक होना होगा। एक ओर टीकाकरण का लगातार बढ़ना और दूसरी ओर कोरोना के ग्राफ का ऊँचा होना। षासन और जनता दोनों के लिए किसी संकट से कम नहीं है। षासन करने वाले मजबूत इच्छा षक्ति के होते हैं और उनमें जनता की ताकत होती है जिसका उपयोग जन सुरक्षा और लोक विकास में किया जाता है। मगर इस महामारी ने दोनों को खतरे में डाल दिया। बीते कुछ वर्शों से देष सुषासन की राह पर तेजी से दौड़ लगा रहा था। हालांकि आर्थिक संकट और बेरोज़गारी से देष परेषान भी था और रही-सही कसर कोरोना ने पूरी कर दी। नतीजन एक बहुत बड़े जन मानस के समक्ष रोटी की समस्या खड़ी हो गयी। सुषासन सामाजिक-आर्थिक न्याय है, लोकतंत्र की पूंजी है और सभी के लिए सर्वोदय का काम करता है मगर इन दिनों यह भी संकट से जूझ रहा है। पहली लहर में मध्यम वर्ग की कमर टूट गयी थी इस बार वह छिन्न-भिन्न हो सकता है। ऐसे में सरकार को चाहिए कि सुषासन की सुसंगत व्यवस्था के लिए बढ़ी हुई ताकत से कोरोना से निपटे और आर्थिक संकट से जूझ रहे लोगों के लिए कोई जमीनी रणनीति भी सुझाये। हालांकि प्रधानमंत्री मोदी पूरे देष में लाॅकडाउन को लेकर कोई संकेत नहीं दिया है मगर रणनीति कब बदल जायेगी यह तो आने वाली समस्या बतायेगी। कोरोना और कफ्र्यू सुषासन को चुनौती दे रहे हैं। सुषासन को चाहिए कि इनका देष निकाला करे ताकि लोकतंत्र में लोक और तंत्र दोनों को राहत मिले।
डाॅ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन
लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर
देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)
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