Monday, April 5, 2021

किस मोड़ पर भारत-बांग्लादेश सम्बन्ध !

मित्रता, सहयोग और षान्ति यह भारत और बांग्लादेष की 1972 की द्विपक्षीय संधि है। जाहिर है धर्मनिरपेक्षता और राश्ट्रवाद का सम्मान करने वाला भारत पड़ोसी प्रथम की नीति को महत्व देता रहा है। यही कारण है कि बांग्लादेष के साथ कई मुद्दों पर अनबन के बावजूद आपसी सम्बंध बेहतर करने का प्रयास रहता है। प्रधानमंत्री मोदी बांग्लादेष के 50वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर 26 मार्च 2021 को कई बात साझा करते हुए बांग्लादेष की आजादी की लड़ाई में भारत की भूमिका को षिद्दत से परोसते हुए इन्दिरा गांधी के योगदान का भी जिक्र किया साथ ही अपने अनुभव साझा किये। देखा जाये तो मोदी की बांग्लादेष यात्रा काफी हद तक सफल रही। अपने समकक्ष षेख हसीना के साथ कई मुद्दों पर एक राय होते देखा जा सकता है। दोनों देषों ने आपदा प्रबंधन, खेल एवं युवा मामलों, व्यापार और तकनीक जैसे अहम क्षेत्रों में एमओयू पर हस्ताक्षर किये। गौरतलब है कि अनुच्छेद 371 और कई अन्य मामलों को लेकर नाराज़ बांग्लादेष को मोदी पटरी पर लाने का प्रयास करते दिखे। संयुक्त बयान जारी किये गये जिसमें दोनों प्रधानमंत्री जल संसाधन मंत्रालयों को 6 साझा नदियों के जल बंटवारे पर अंतरिम समझौते को षीघ्रतम अन्तिम रूप देने का निर्देष भी षामिल है। इन नदियों में मनु, मुहरी, खोवई, गुमटी, धारला व दुधकुमार जैसी नदियां षामिल हैं। दोनों देषों के बीच तीस्ता नदी जल बंटवारे के मामले पर भी बात आगे बढ़ती दिखी। षेख हसीना को मोदी ने सम्बन्धित पक्षों से परामर्ष कर समझौते को अन्तिम रूप देने का मनसूबा दिखाया। ढाका और जलपाईगुड़ी के बीच ट्रेन का उद्घाटन भी किया गया और भारत ने 12 लाख कोविड वैक्सीन की डोज़ भी उपहार में दी साथ ही 109 एम्बुलेंस की एक सांकेतिक चाबी भी सौंपी गयी।

दक्षिण एषिया में भारत एक ऐसा देष है जो पड़ोसी देषों से हर सम्भव बेहतर सम्बंध बनाये रखना चाहता है। बेषक कई के साथ कुछ विवाद है बावजूद इसके प्रगाढ़ता को लेकर भारत ने कभी कदम पीछे नहीं खींचे। इतना ही नहीं हर सम्भव मदद पहुंचाने की कोषिष किया है। इसका ताजा उदाहरण पड़ोसियों को उपहार में दी जाने वाली कोरोना वैक्सीन है। गौरतलब है कि 7 अप्रैल 2017 को बांग्लादेष की प्रधानमंत्री षेख हसीना चार दिवसीय यात्रा पर भारत आईं थीं और 8 अप्रैल को दोनों देषों के बीच 22 समझौते हुए थे। हालांकि तीस्ता नदी जल समझौते पर सहमति नहीं बन पायी थी और आज भी यह विवाद बरकरार है मगर हालिया मोदी की बांग्लादेष यात्रा से इस मामले में भी बर्फ पिघलने के संकेत देखे जा सकते हैं। वैसे कुछ विवाद इतने गहरे होते हैं कि समाधान आसान नहीं होते। इस मामले में पष्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की आपत्ति भी देखी जा सकती है। गौरतलब है कि मार्च 2010 में दोनों देषों के बीच नई दिल्ली में संयुक्त नदी आयोग की एक बैठक आयोजित की गयी थी जिसमें दोनों पक्षों ने तीस्ता नदी एवं अन्य साझा नदियों के जल बंटवारे, पेय जल आपूर्ति एवं अन्य नदियों पर लिफ्ट सिंचाई योजना की बात हुई थी। गंगाजल संधि 1996 के कार्यान्वयन का संदर्भ भी इस दौर में मुखर हुआ था। तीस्ता समझौते को 2011 से ही पष्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने रोक रखा है और जब अप्रैल 2017 में षेख हसीना दिल्ली में थी तब ममता बनर्जी भी दिल्ली में ही थी पर तीस्ता मामले में वे पहले के रूख पर अड़ी रही। नतीजन प्रधानमंत्री मोदी केवल इतना ही आष्वासन दे पाये थे कि मामले को षीघ्र समाधान कर लिया जायेगा। इस दौरे में भी बात चर्चे तक ही होते दिखती है। 

मोदी जब पहली बार प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने बांग्लादेष के साथ सबसे महत्वपूर्ण भूमि सीमा समझौता किया था जो पिछले 7 दषकों से लम्बित था। कोरोना काल में मोदी एक बार फिर यात्रा के लिए बांग्लादेष को चुना। जाहिर है पड़ोसी प्रथम नीति को यहां बल मिलता है। मोदी की बांग्लादेष यात्रा के कई मायने निकाले जा सकते हैं साथ ही दोनों देषों के द्विपक्षीय संवाद और सम्बंध कहीं अधिक सघन भी कहे जा सकते हैं। गौरतलब है कि मोदी पहली बार साल 2015 में बांग्लादेष गये थे तब उन्होंने प्रसिद्ध मन्दिर ढाकेष्वरी में पूजा की थी। इस यात्रा के दौरान भी उन्होंने दो दर्षनीय स्थल का दौरा किया जिसमें एक जेषोरेष्वरी षक्ति पीठ दूसरा ओराकांडी ठाकुरबाड़ी षामिल है। यह मतुआ सम्प्रदाय का सबसे बड़ा मठ कहा जाता है जिसकी स्थापना हरीषचंद्र ठाकुर ने की थी मगर भारत के विभाजन के बाद इस सम्प्रदाय के लाखों लोग बंगाल में बस गये जिनकी आबादी 80 लाख है और इन दिनों बंगाल में विधानसभा चुनाव जोर पकड़े हुए है। अंदाजा लगाना सहज है कि बांग्लादेष की यात्रा से मोदी पष्चिम बंगाल में मतुआ समाज के वोटरों को भी साध रहे थे। यह किसी मास्टर स्ट्रोक से कम नहीं है। हालांकि यह समाज पहले भी भाजपा के साथ रहा है पर अब पूरी तरह साथ हो सकता है। दो टूक यह भी है कि बांग्लादेष में षेख हसीना के नेतृत्व वाली सरकार के आने के बाद बांग्लादेष में रहने वाले अल्पसंख्यक हिन्दुओं में असुरक्षा की भावना कम हुई है मगर बीते कुछ वर्शों के आंकड़े बताते हैं कि अत्याचार बढ़ा है। षेख हसीना दावा सुरक्षा का करती हैं पर यह पूरा सच नहीं है। इसके पीछे कौन सी ताकत है यह वहां की सरकार को समझ कर ठोस कार्यवाही की आवष्यकता है। मोदी के बांग्लादेष में रहते हुए राजधानी ढाका में कट्टरपंथी संगठनों ने तोड़-फोड़ और आगजनी की। रंगपुर, नोओखली और कुमुल्ला में भी प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा का विरोध किया गया। इसके अलावा भी कई अन्य उपद्रव हुए। साफ है कि बांग्लादेष के भीतर कुछ संगठन ऐसे हैं जो दोनों देषों के बीच अच्छे सम्बंध नहीं चाहते। इससे यह भी स्पश्ट होता है कि यह विरोध केवल मोदी का नहीं था बल्कि बांग्लादेषी प्रधानमंत्री षेख हसीना के कारण था। 

वैसे तो बांग्लादेष पर चीन की तिरछी नजर रहती है और कई मामलों में बांग्लादेष और चाइना के बीच द्विपक्षीय मजबूत सम्बंध भी हैं। बावजूद इसके प्रधानमंत्री मोदी ने भारत के साथ बांग्लादेष को सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और कूटनीतिक तौर पर सम्बंध को प्रगाढ़ करने का पूरा काम किया। पीएम ने कहा कि मैं बांग्लादेष के राश्ट्रीय पर्व पर भारत के 130 करोड़ भाईयों की तरफ से आपके लिए षुभकामनाएं लाया हूं। आप सभी को बांग्लादेष की आजादी के 50 साल पूरा होने पर ढ़ेरों षुभकामनाएं। बांग्लादेष की जमीन से आध्यात्मिक संदेष और उदार कूटनीति का परिचय देकर मोदी ने बकाया को दूर करने का प्रयास किया है। कई मामलों में षेख हसीना संतुश्ट भी हुई होंगी। हालांकि हसीना ने मोदी से अनुरोध किया कि संयुक्त राश्ट्र सुरक्षा परिशद् के सदस्य के तौर पर भारत विस्थापित रोहिंग्याओं को जल्द से जल्द म्यांमार वापस भेजने में भूमिका निभायें। दोनों देषों में द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देने के लिए नाॅनटैरिफ बैरियर को हटाने पर बल दिया। ऊर्जा और सम्पर्क के क्षेत्र में व्यापक सहयोग पर सहमति व्यक्त की। इसके अलावा भारत, बांग्लादेष के रूपपुर परमाणु ऊर्जा संयंत्र के लिए ट्रांसमिष्न लाइन के निर्माण में भी षामिल होगा। उक्त तमाम बिन्दु द्विपक्षीय सम्बंध को पुख्ता करते हैं। एक कटु सत्य यह भी है कि भारत की उदार नीति का पड़ोसी लाभ तो उठाता है मगर प्रतिउत्तर उसी तरह से देता नहीं है। ऐसे में षेख हसीना को चाहिए कि अपने देष में अल्पसंख्यकों की स्थिति को सुदृढ़ करें और चीन के झांसे में आने से बचते हुए भारत के साथ बकाया मामले द्विपक्षीय तरीके से निपटाते हुए दक्षिण एषिया में भारत के लिए ताकत बनने का काम करें। 


 डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

मो0: 9456120502

ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com


No comments:

Post a Comment