Wednesday, January 4, 2017

काले धन से कैशलेस तक

वित्तमंत्री अरूण जेटली भारत को कैशलेस  अर्थव्यवस्था बनाने की बात लगातार दोहरा रहे हैं और मानते हैं कि इससे काले धन पर नियंत्रण होगा। उन्हीं का दिया हुआ आंकड़ा है कि भारत में कुल वित्तीय लेन-देन का 5 प्रतिशत  से भी कम इलैक्ट्राॅनिक माध्यम से होता है। गौरतलब है कि नोटबंदी को अब सीधे तौर पर कैशलेस से जोड़ने की कवायद करते सरकार दिख रही है जबकि नोटबंदी के समय इसे काले धन पर चोट बताई जा रही थी। ऐसा क्यों हो रहा है इसके पीछे क्या वजह है इसका जवाब सरकार से बेहतर षायद ही किसी के पास हो। बावजूद इसके यह बात ठीक है कि हमारी अर्थव्यवस्था भी कैषलेस क्यों न हो। रोचक यह भी है कि बीते 50 दिनों में 70 से अधिक निर्णय लेने वाली आरबीआई ने करीब एक महीने से कोई भी ताजा आंकड़ा नगदी की जमा को लेकर फिलहाल अभी पेष नहीं किया है। दिसम्बर की षुरूआत में रिज़र्व बैंक ने कहा था कि लगभग 12 लाख करोड़ रूपए खातों में जमा हो चुके हैं। गौरतलब है कि कुल प्रचलित मुद्रा का 86 फीसदी मुद्रा पांच सौ और हजार के नोट के रूप में थे जो कुल मुद्रा यानी 17 लाख करोड़ की तुलना में साढ़े चैदह लाख करोड़ था। रिज़र्व बैंक ने 30 दिसम्बर के बाद इस बात को उद्घाटित नहीं किया कि खातों में अब कितनी नकदी जमा हुई और यह भी नहीं बताया कि काला धन की क्या स्थिति है। इस मामले में सरकार से भी सवाल पूछा जाना चाहिए कि पचास दिन के बाद की क्या स्थिति है पर बीते 31 दिसम्बर को प्रधानमंत्री मोदी ने दार्षनिक और मनोवैज्ञानिक अंदाज में बात करते हुए देष के नाम सम्बोधन में वर्ग विषेश के लिए कुछ अच्छी घोशणाएं की लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया कि उनकी अगली रणनीति क्या है। बेषक सरकार ने नोटबंदी करके क्रान्तिकारी और बेहतर कदम उठाया हो परन्तु उद्देष्य कितने पूरे हुए अभी इसकी पूरी पड़ताल सामने नहीं आई है। इतना ही नहीं अब सरकार काले धन के बजाय जिस प्रकार कैषलेस की बात कर रही है उसे देखते हुए लगता है कि मानो नोटबंदी कैषलेस के लिए हुई हो जबकि सच्चाई इससे अलग है।
बीते 3 जनवरी को देहरादून के एक स्कूल में कैषलेस को लेकर एक सेमिनार का आयोजन हुआ। इस सेमिनार के मुख्य अतिथि और मुख्य वक्ता देष के मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाष जावड़ेकर थे। इस सेमिनार में भागीदारी हेतु मैं भी आमंत्रित था। हैरत यह था कि करीब 45 मिनट के सम्बोधन में प्रकाष जावड़ेकर का पूरा वक्तव्य नेट बैंकिंग और कैषलेस के सिद्धान्त के इर्द-गिर्द रहा। उन्होंने काले धन को तनिक मात्र भी छूने की कोषिष नहीं की। बीते कुछ दिनों से देखा जा रहा है कि प्रधानमंत्री समेत वित्तमंत्री व अन्य मंत्री भी काले धन की बात करने से कतरा रहे हैं। अब जनता का ध्यान कैषलेस की ओर मोड़ने की कोषिष में है। ऐसी ही कुछ कोषिष प्रकाष जावड़ेकर भी सेमिनार में करते हुए दिखाई दिये। देष बदल रहा है और इस बदलाव को सभी महसूस करें। उन्होंने सम्बोधन से पहले यह भी कहा कि कैषलेस पर अब प्रकाष सर की कक्षा होगी। फिलहाल बीते दिसम्बर के आखिर में वित्त मंत्री अरूण जेटली द्वारा दिये गये उन आंकड़ों को देखें जिनमें अप्रैल से नवम्बर तक प्रत्यक्ष कर में 14.4 फीसदी की बढ़त बताई जबकि अप्रत्यक्ष कर में यही बढ़त 26.5 की है। इसके अलावा कई अन्य मुद्दों पर भी बढ़त के आंकड़े उन्होंने दिये। गौरतलब है कि नोटबंदी 8 नवम्बर की आधी रात को हुई थी और तब से लेकर अब तक क्या लाभ-हानि रहा इसका कोई अलग से आंकड़ा नहीं दिया गया है। हां यह जरूर हुआ है कि जीडीपी गिरी है, विकास दर गिरा है, बेरोज़गारी भी कुछ हद तक बढ़ी है, विदेषी निवेष 10 अरब डाॅलर कम बताया जा रहा है। इस वित्त वर्श की पिछली तिमाही भी जनता की तरह ही काफी परेषानी में रही है और अन्तिम तिमाही भी ऐसी ही कुछ परेषानी से जूझती दिख रही है। सर्वे भी इस बात का समर्थन करते हैं कि आने वाले कुछ महीनों तक देष में नोटबंदी का नकारात्मक असर बना रहेगा अलबत्ता इसका आगे लाभ भले ही क्यों न हो। 
नोटबंदी को नाकेबंदी और नसबंदी तक कहा गया और बीते सात दषकों की तुलना में सर्वाधिक जोखिम भरा निर्णय भी माना गया। अर्थव्यवस्था के लिहाज़ से यह कितना परिपक्व निर्णय था इस पर राय अलग-अलग है। विरोधी एक सुर में मोदी सरकार के इस निर्णय को कटघरे में खड़ा करते रहे जबकि सरकार भले ही निर्णय-दर-निर्णय बदलती रही पर फैसले से पीछे नहीं हटी। एक-एक दिन में कई-कई निर्णय भी लिये गये। 14 और 22 दिसम्बर को क्रमषः दिनभर में 7 और 6 बार निर्णय लिये गये जो रिज़र्व बैंक और सरकार दोनों के इतिहास में ऐसा पहले षायद ही हुआ हो। जिस कैषलेस अर्थव्यवस्था को लेकर इन दिनों एड़ी-चोटी का जोर लगाया जा रहा उसके अनेक लाभ तो हैं पर इसमें चुनौतियां भी अनेकों हैं। भारत जैसे देष को कैषलेस अर्थव्यवस्था में बदलना इतना आसान काज नहीं है। इंटरनेट सेवाएं खराब रहती हैं, जागरूकता और जानकारी का भी आभाव है। डिजिटल साक्षरता की भरपूर कमी है, षिकायत कहां करें इसकी एजेंसियां भी पूरी तरह निर्मित नहीं हैं और साइबर को लेकर प्रषिक्षण की कोई खास व्यवस्था भी नहीं हैं। कहा जाय तो साइबर सुरक्षा अपर्याप्त है। इतना ही नहीं बाजारों में अधिकांष छोटे किस्म के कारोबारी हैं और यहां तक इसे पहुंचाना बड़ी चुनौती है। कई ग्राहकों के पास स्मार्ट फोन नहीं हैं। इंटरनेट बैंकिंग, मोबाइल बैंकिंग और डिजिटल वैलेट्स के उपयोग करने में करोड़ों सक्षम नहीं है। गौरतलब है कि कुल 74 फीसदी देष की साक्षरता है साथ ही भारत घनी आबादी वाला देष है जहां 60 फीसदी से अधिक किसान और 98 फीसदी गैर संगठित मजदूर हैं। इसके अतिरिक्त अनेकों अनजान समस्यायें हैं जो सरकार भी अभी पूरी तरह नहीं समझ पाई होगी। बावजूद इसके कैषलेस थ्योरी कहीं अधिक अच्छी कही जा सकती है क्योंकि इससे काला बाजारी, काला कारोबार और काली कमाई की जमावट के बजाय सफेद धन और सफेद कारोबार के साथ पारदर्षी अर्थव्यवस्था परिलक्षित होगी।
सरकार ने काले धन को समाप्त करने के लिए पांच सौ, हजार के नोट को प्रतिबंधित किया। वो धन जिस पर कर नहीं चुकाया गया, छुपा कर रखा गया उसे हम सरसरी तौर पर काला धन कहते हैं पर उनका क्या जो कैष के रूप में नहीं है। जो रियल स्टेट या सोने-चांदी में निवेषित है। फिलहाल काला धन सरकार की आर्थिक नीतियों और रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीतियों को विफल कर देता है। इसी को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने नोटबंदी वाला कदम उठाया पर जो काला बाजारी इसके बाद हुई वो भी हैरत में डालने वाली थी। तमाम नाकेबंदी के बावजूद 50 दिन के अंदर तमाम प्रकार की गड़बड़ियां हुईं। इनकम टैक्स विभाग के छापों से लाखों-करोड़ों में नये-पुराने नोट बरामद हुए और कुछ बैंक और बैंकर्स भी सरकार की इस मुहिम को मुंह चिढ़ाने से बाज नहीं आये जिसके चलते कई बैंकर्स आज जेल की हवा खा रहे हैं। जिस अनुमान के तहत नोटबंदी का निर्णय आया था उसकी सफलता पर आज भी संदेह व्यक्त किया जा रहा है और जनता को हुई परेषानी को देखते हुए सरकार भी कुछ लीपापोती कर रही है। कैषलेस अर्थव्यवस्था पर बार-बार जोर देना कुछ इसी प्रकार के संकेत दिखाई देते हैं। सबके बावजूद यक्ष प्रष्न यह है कि नोटबंदी से जिस काली कमाई वालों पर चोट करनी थी उस पर हुई या नहीं। रही बात कैषलेस अर्थव्यवस्था की तो यह किसी भी देष में न तो पूरी तरह लागू है और न पूरी तरह षायद हो सकती है पर कोषिष तो की जा सकती है।


सुशील कुमार सिंह


No comments:

Post a Comment