कोरोना का खतरा फिर बढ़ता दिख रहा है केरल व पूर्वोत्तर राज्यों में नये मामलों में बढ़ोत्तरी के चलते सक्रिय मरीजों की संख्या में बढ़त दिखने लगी है साथ ही संक्रमण दर में भी इजाफा हो रहा है। एक ओर तीसरी लहर की आषंका है तो दूसरी ओर स्कूल, काॅलेज व विष्वविद्यालय को खोलने की तैयारी। कई राज्य तो यह काम पहले ही कर चुके हैं। गौरतलब है मध्य प्रदेष, गुजरात, बिहार, महाराश्ट्र, हरियाणा व पंजाब समेत कई राज्यों में कक्षा 9 से ऊपर के स्कूल जुलाई में ही खोल दिये थे। हालांकि आॅफलाइन कक्षा में छात्रों की संख्या काफी कम है। देखा जाये तो कोरोना वायरस की दूसरी लहर के दरवाजे जैसे-जैसे बंद होने लगे राज्यों ने वैसे-वैसे स्कूलों के दरवाजों बच्चों के लिए खोलने षुरू किये। इसी कड़ी में उत्तराखण्ड में भी 2 अगस्त से कक्षा 9 से ऊपर के स्कूल खुलने जा रहा है जबकि 16 अगस्त से कक्षा 6 से 8 के लिए भी यह व्यवस्था षुरू हो जाएगी। अगस्त में ही राजस्थान, हिमाचल प्रदेष, छत्तीसगढ़, आंध्रप्रदेष और उत्तर प्रदेष में भी स्कूल खुलेंगे। बिहार में कक्षा 1 से 10 के बीच और पंजाब में तो 2 अगस्त से सभी बच्चों के लिए स्कूल खुल रहें हैं। जबकि इसके ऊपर की कक्षा के लिए स्कूल पहले ही खोले जा चुके थे। इसके अलावा कई राज्य स्कूल खोलने की कतार में देखे जा सकते हैं। हालिया सीरो सर्वे से यह भी पता चलता है कि देष में 6 से 9 साल के 57 फीसद बच्चों में एण्टीबाॅडी मिली है वहीं 10 से 17 साल के बच्चों में यह 62 फीसद है। इस आधार पर तर्क भी दिया गया है कि भारत में प्राइमरी स्कूल के बच्चों के लिए स्कूल खोले जा सकते हैं। गौरतलब है कि देष में प्राइमरी स्कूल मार्च 2020 से ही बंद हैं। 9वीं से 12वीं कक्षा के छात्रों के लिए कुछ राज्यों ने थोड़ी छूट दी थी मगर प्राइमरी कक्षा के नौनिहालों ने तो ढे़ड साल से स्कूल का मुंह नहीं देखा।
कोरोना से जंग जारी है साथ ही षिक्षा और चिकित्सा के मामले में भी संघर्श निरन्तर प्रवाह लिये हुए है। हालांकि दौर के अनुपात में स्वास्थ प्राथमिकता है मगर देर तक षिक्षा को भी पीछे नहीं छोड़ा जा सकता। आपदा एक अव्यवस्था को जन्म देती है मगर इसका प्रभाव आने वाली पीढ़ियों के लिए नासूर न बने इसे भी रोकने की भरसक कोषिष होनी चाहिए। षायद यही कारण है कि दूसरी लहर के ढलान के बाद राज्यों ने स्कूल खोलने का एक सकारात्मक रूप दिखाया मगर यह भी पूरी तरह सुरक्षित दिखता नहीं है। गौरतलब है कि महाराश्ट्र के षोलापुर में 6 सौ से अधिक बच्चे वायरस से संक्रमित पाये गये। देष में वायरस जिस तरह ठहराव लिये हुए है और केरल में जिस भांति कोरोना जड़-जंग हुआ है वह किसी अषुभ संकेत से कम नहीं है। तीसरी लहर के मामले में भी लापरवाही तो कतई नहीं की जा सकती। कोरोना का डेल्टा वेरिएंट इन दिनों 132 देषों को कमोबेष अपनी चपेट में ले लिया है और इसकी भीशणता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पिछले सप्ताह 125 देषों में था। डेल्टा वेरिएंट की गति यह बताती है कि यह षीघ्र ही दुनिया को दबोचने की फिराक में है। यूरोपीय देष एक बार फिर कोरोना को लेकर सजग दिखाई दे रहे हैं। अमेरिका में मास्क न लगाने की छूट एक बार फिर रद्द कर दी गयी है। खास यह भी है कि अमेरिका जैसे देषों में लगभग 50 फीसद टीकाकरण हो चुका है जबकि भारत में यह आंकड़ा बहुत कम है। यहां अभी तक केवल एक डोज़ वालों की संख्या 45 करोड़ बामुष्किल से पहुंची है जबकि दूसरी डोज के लिए अच्छा-खासा लम्बा वक्त लग रहा है। इसके अलावा 18 बरस से कम उम्र के बच्चों के लिए अभी टीका का कोई अभियान नहीं है। ऐसे में खुल रहे स्कूल कोरोना की चपेट में नहीं होंगे ऐसा कोई कारण दिखता नहीं है। हालांकि सावधानी इससे बचने का एक बेहतर उपाय है मगर इसका कितना अनुपालन होगा इसे भी पूरे दावे से नहीं कहा जा सकता।
सबके बावजूद इस सच को भी इंकार नहीं किया जा सकता कि लम्बे समय तक स्कूलों के बंद रहने से बच्चों पर मनोवैज्ञानिक दबाव बढ़ा है और विकास भी प्रभावित हुआ है। षैक्षणिक नुकसान तो व्यापक पैमाने पर देखा जा सकता है। स्कूलों ने आॅनलाइन षिक्षा के माध्यम से इस कमी को पूरा करने का प्रयास जरूर किया है मगर यह नाकाफी ही रहा है। षोध और अनुसंधानों से भी यह बात स्पश्ट हुई है कि मनोवैज्ञानिक दबाव व प्रभाव से बच्चे गुजर रहे हैं। हालांकि बड़े भी इससे अछूते नहीं है और दुनिया का कोई देष भी इससे बचा नहीं है। स्कूल खोलेने का यह सही समय है या नहीं यह एक चर्चा का विशय हो सकता है मगर स्कूल कब तक बंद रहेंगे यह विशय चिंता का जरूर है। कोरोना जिस स्थिति को बनाये हुए है उसे देखते हुए स्कूल खोलने का निर्णय भी कोई मामूली बात नहीं है। राज्य सरकारों को इस मामले में भी तमाम दिमागी कसरत करनी पड़ रही है। अभिभावकों की विचारों को भी यहां पूरा तवज्जो दिया जा रहा है। मगर स्कूलों को यह भरोसा देना होगा कि बच्चों के लिए कक्षायें मुफीद हैं। छात्र, षिक्षक और अभिभावक साथ ही स्कूल का प्रबंधन सभी को अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभानी होगी किसी एक की लापरवाही से नुकसान सबका है। वैसे स्कूल खोलना जायज ही करार दिया जाना चाहिए। इसके पीछे अपने एक सकारात्मक तर्क भी हैं ऐसा देखा गया है कि महामारी के दौरान विष्व के कई देषों ने प्राइमरी कक्षा के बच्चों के लिए स्कूल खोले रखा और महामारी का खतरा ज्यादा नहीं हुआ। वर्तमान में भी विष्व के 170 देषों में स्कूल खुले हुए हैं। यह भी देखने को मिला है कि बच्चों में कोविड-19 का संक्रमण आया जरूर है मगर बीमारी गम्भीर रूप नहीं ली और फिर बिना बीमारी के ही बच्चों में एण्टीबाॅडी कैसे बढ़ गयी। आंकड़े तो यही इषारा करते हैं कि बच्चे भी कोरोना से प्रभावित हुए हैं मगर हालात भयावह नहीं हुआ। हैरत तो यह भी है कि दिल्ली के कुछ स्लम कलस्टर के बच्चों में 80-90 फीसद में एण्टीबाॅडी पायी गयी जो राश्ट्रीय स्तर के 55 से 60 फीसद के आंकड़े से कहीं ज्यादा है। वैक्सीन अभी दुनिया के किसी देष में 11 साल से कम उम्र के बच्चों को नहीं लगायी जा रही भारत में तो 18 साल के नीचे अभी यह सम्भव नहीं है। अमेरिका की संस्था सेन्टर फाॅर डिजीज कंट्रोल ने इसी साल फरवरी में कहा था कि टीचर्स को वैक्सीन लगाना स्कूल खोलने की पहली षर्त नहीं होनी चाहिए। हालांकि भारत में यह षर्त रखना गैर वाजिब नहीं है क्योंकि 18 साल के ऊपर के लोगों का टीकाकरण चल रहा है।
स्कूल खोलने की बड़ी वजह में कोरोना की स्थिति षामिल है। गौरतलब है कि संविधान में स्कूली षिक्षा राज्यों का विशय है। देष में पिछले डेढ़ सालों में निजी स्कूलों की हालत भी आपे से बाहर हुई है। अर्थव्यवस्था डगमगायी है, षिक्षकों का वेतन दे पाना भी मुष्किल हुआ है और कई स्कूल तो बंदी की कगार पर चले गये। भारत में अलग-अलग राज्यों में स्कूल बंद रखने की अपनी अलग-अलग परिस्थिति है। झारखण्ड, असम, जम्मू-कष्मीर, तमिलनाडु व तेलंगाना में तो स्कूल अभी भी पूरी तरह बंद हैं। डर तीसरी लहर का है जिसमें 40 फीसद आबादी के लिए यह खतरा माना जा रहा है मगर स्कूल खोलने का साहस भी अनुचित नहीं है। बावजूद इसके सवाल यह कहीं गया नहीं है कि चलों स्कूल चले मगर कैसे!
दिनांक : 31 जुलाई, 2021
डाॅ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन
लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर
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